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अक्षरः- शिव, विष्णु
 
अक्षरः- शिव, विष्णु
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'''अक्षर''' ([[विशेषण]]) [क्षर+अच् न. त.]
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1. अविनाशी, अच्युत, अनश्वर- कु. 3/50, भग. 15/16
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:::(ग) एक या अनेक वर्ण, समष्टिरूप से भाषा-प्रतिषेधाक्ष-रविक्लवाभिरामम् -श. 3/25 2. दस्तावेज, लिखावट (बहुव), 3. अविनाशी आत्मा, ब्रह्म, 4. पानी 5. आकाश 6. परमानन्द, मोक्ष। सम. -'''अर्थ''' शब्दों का अर्थ;-'''चं''' ('''चुं''') '''चुः''','''-चणः''' (नः) लिपिक, लेखक, नकलनवीस।
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इसी प्रकार '''°जीवकः °जीवी, °जीविकः''' पेशेवर लेखक।-'''च्युतकं''' किसी अक्षर के लुप्त होने के कारण दूसरा ही अर्थ निकलना। -'''छंदस्''' (नपुं.)-'''वृत्तं''' वर्णों की संख्या से बद्ध [[छंद]] या वृत्त-जननी- तूलिका सरकंडा या कलम।-(वि) '''न्यास''' 1. लिखना, वर्णक्रम 2. वर्णमाला 3. वेद - '''भूमिका''' तख्ती-रघुवंश 19/16-'''मुखः''' विद्वान्, विद्यार्थी। -'''वर्जित''' ([[विशेषण]]) अशिक्षित, बिना पढ़ा-लिखा। -'''विन्यास''' ([[पुल्लिंग]]) हिज्जे, [[लिपि]], वर्ण विन्यास।-'''शत्रुः''' (पुल्लिंग) निरक्षर, अपढ़-शिक्षा ([[स्त्रीलिंग]]) गुह्य अक्षरों की विद्या।-संस्थानं वर्णविन्यास, लिखना, वर्णमाला।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=05-06|url=|ISBN=}}</ref>
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{{seealso|संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची)|संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची)|संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश}}
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'''अक्षर''' शब्द का अर्थ है अर्थात्‌ जो न घट सके, न नष्ट हो सके। इसका प्रयोग पहले वाणी या वाक्‌ के लिए एवं शब्दांश के लिए होता था। वर्ण के लिए भी अक्षर का प्रयोग किया जाता रहा। यही कारण है [[लिपि]] संकेतों द्वारा व्यक्त वर्णों के लिए भी आज अक्षर शब्द का प्रयोग सामान्य जन करते हैं। भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन ने अक्षर को अंग्रेजी सिलेबल का अर्थ प्रदान कर दिया है, जिसमें स्वर, स्वर तथा व्यंजन, अनुस्वार सहित स्वर या व्यंजन ध्वनियाँ सम्मिलित मानी जाती हैं। एक ही आघात या बल में बोली जाने वाली [[ध्वनि]] या ध्वनि समुदाय की इकाई को अक्षर कहा जाता है। इकाई की पृथकता का आधार स्वर या स्वररत्‌ वोक्वॉयड) व्यंजन होता है। व्यंजन ध्वनि किसी उच्चारण में स्वर का पूर्व या पर अंग बनकर ही आती है। अस्तु, अक्षर में स्वर ही मेरुदंड है। अक्षर से स्वर को न तो पृथक्‌ ही किया जा सकता है और न बिना स्वर या स्वररत्‌ व्यंजन के अक्षर का निर्माण ही संभव है। उच्चारण में यदि व्यंजन मोती की तरह है तो स्वर धागे की तरह। यदि स्वर सशक्त सम्राट है तो व्यंजन अशक्त राजा। इसी आधार पर प्राय अक्षर को स्वर का पर्याय मान लिया जाता है, किंतु ऐसा है नहीं, फिर भी अक्षर निर्माण में स्वर का अत्यधिक महत्व होता है। कतिपय भाषाओं में व्यंजन ध्वनियाँ भी अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी भाषा में न, र, ल्‌ जैसी व्यंजन ध्वनियाँ स्वररत्‌ भी उच्चरित होती हैं एवं स्वरध्वनि के समान अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी सिलेबल के लिए हिंदी में अक्षर शब्द का प्रयोग किया जाता है। डॉ. रामविलास शर्मा ने सिलेबल के लिए स्वरिक शब्द का प्रयोग किया जाता है। (भाषा और समाज, पृ. 59)। चूँकि अक्षर शब्द का भाषा और व्याकरण के इतिहास में अनेक अर्थच्छाया के लिए प्रयोग किया गया है, इसलिए सिलेबल के अर्थ में इसके प्रयोग से भ्रमसृजन की आशंका रहती है।
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शब्द के उच्चारण में जिस ध्वनि पर शिखरता या उच्चता होती है वही अक्षर या '''सिलेबल''' होता है, जैसे हाथ में आ ध्वनि पर। इस शब्द में एक अक्षर है। अकल्पित शब्द में तीन अक्षर हैं यथा अ कल्‌ पित्‌; आजादी में तीन यथा आ जा दी; अर्थात्‌ शब्द में जहाँ जहाँ स्वर के उच्चारण की पृथकता पाई जाए वहाँ-वहाँ अक्षर की पृथकता होती है।
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[[ध्वनि]] उत्पादन की दृष्टि से विचार करने पर फुफ्फुस संचलन की इकाई को अक्षर या स्वरिक (सिलेबल) कहते हैं, जिसमें एक ही शीर्षध्वनि होती है। शरीर रचना की दृष्टि से अक्षर या स्वरिक को फुफ्फुस स्पंदन भी कह सकते हैं, जिसका उच्चारण ध्वनि तंत्र में अवरोधन होता है। जब ध्वनि खंड या अल्पतम ध्वनि समूह के उच्चारण के समय अवयव संचलन अक्षर में उच्चतम हो तो वह ध्वनि अक्षरवत्‌ होती है। स्वर ध्वनियाँ बहुधा अक्षरवत्‌ उच्चरित होती है एवं व्यंजन ध्वनियाँ क्वचित्‌। शब्दगत उच्चारण की नितांत पृथक्‌ इकाई को अक्षर कहा जाता है, यथा <br />
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(1) एक अक्षर के शब्द आ, <br />
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(2) दो अक्षर के शब्द भारतीय, उर्दू, <br />
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(3) तीन अक्षर के शब्द बोलिए, जमानत, <br />
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(4) चार अक्षर के शब्द अधुनातन, कठिनाई, <br />
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(5) पाँच अक्षर के शब्द अव्यावहारिकता, अमानुषिकता। <br />
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किसी शब्द में अक्षरों की संख्या इस बात पर कतई निर्भर नहीं करती कि उसमें कितनी ध्वनियाँ हैं, बल्कि इस बात पर कि शब्द का उच्चारण कितने आघात या झटके में होता है अर्थात्‌ शब्द में कितनी अव्यवहित ध्वनि इकाइयाँ हैं। अक्षर में प्रयुक्त शीर्ष ध्वनि के अतिरिक्त शेष ध्वनियों को अक्षरांग या '''गह्वर ध्वनि''' कहा जाता है। चार में एक अक्षर (सिलेबल) है जिसमें आ शीर्ष ध्वनि तथा च एवं र गह्वर ध्वनियाँ हैं। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=69,70 |url=}}</ref>
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{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
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==संबंधित लेख==
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09:18, 3 अगस्त 2023 के समय का अवतरण

हिन्दी जिसका कभी नाश न हो, अविनाशी, स्थिर, नित्य, परमात्मा, महादेव, विष्णु, आत्मा, आकाश, मोक्ष, मूल प्रकृति, अव्यक्त, श्वास के एक आघात में उच्चरित ध्वनि इकाई, स्वर या स्वरसहित व्यंजन या व्यंजनसहित स्वर, स्थिर, ब्रह्म, शिव
-व्याकरण    विशेषण, पुल्लिंग
-उदाहरण  
(शब्द प्रयोग)  
 देवनागरी में कुल 52 अक्षर हैं, जिसमें 14 स्वर और 38 व्यंजन हैं।
-विशेष    अक्षर (लाक्षणिक) लिपि के रूप में भी प्रयोग होता है। जैसे-देवनागरी अक्षर, अरबी अक्षर
-विलोम  
-पर्यायवाची    अंक, आखर, वर्ण, हर्फ़
संस्कृत [अ+क्षर] अक्षर (विक्रमोर्वशीयम्), अविनाशी, अनश्वर-[1], [2], स्थिर, दृढ़

अक्षरः- शिव, विष्णु अक्षर- (क) वर्णमाला का एक अक्षर-अक्षराणामकारऽस्मि-[3] आदि। (ख) कोई एक ध्वनि-एकाक्षरं परं ब्रह्म-[4]। (ग) एक या अनेक वर्ण, समष्टिरुप से भाषा-प्रतिषेधाक्षरविक्लवाभिरामम्-[5], दस्तावेज, लिखावट, अविनाशी आत्मा, ब्रह्म, पानी, आकाश, परमानन्द, मोक्ष

अन्य ग्रंथ
संबंधित शब्द
संबंधित लेख
अन्य भाषाओं मे
भाषा असमिया उड़िया उर्दू कन्नड़ कश्मीरी कोंकणी गुजराती
शब्द बर्ण, आखर, अक्षर बर्ण (अख्यर) हर्फ़ अक्षर अछुर, हरूफ अक्षर, वर्ण
भाषा डोगरी तमिल तेलुगु नेपाली पंजाबी बांग्ला बोडो
शब्द एलुत्तु अक्षरमु अक्खर वर्ण (र्न), अक्षर (क्ख)
भाषा मणिपुरी मराठी मलयालम मैथिली संथाली सिंधी अंग्रेज़ी
शब्द स्वर, वर्ण, शब्द अक्षरं अखरु

अन्य शब्दों के अर्थ के लिए देखें शब्द संदर्भ कोश


अक्षर (विशेषण) [क्षर+अच् न. त.]

1. अविनाशी, अच्युत, अनश्वर- कु. 3/50, भग. 15/16

2. स्थिर, दृढ़।-र: शिव 2. विष्णु। -रं

(क) वर्णमाला का एक अक्षर-अक्षराणामकारोऽस्मि-भग. 10/33 त्र्यक्षर आदि।
(ख) कोई एक ध्वनि,-एकाक्षरं परं ब्रह्म-मनुस्मृति 2/83
(ग) एक या अनेक वर्ण, समष्टिरूप से भाषा-प्रतिषेधाक्ष-रविक्लवाभिरामम् -श. 3/25 2. दस्तावेज, लिखावट (बहुव), 3. अविनाशी आत्मा, ब्रह्म, 4. पानी 5. आकाश 6. परमानन्द, मोक्ष। सम. -अर्थ शब्दों का अर्थ;-चं (चुं) चुः,-चणः (नः) लिपिक, लेखक, नकलनवीस।

इसी प्रकार °जीवकः °जीवी, °जीविकः पेशेवर लेखक।-च्युतकं किसी अक्षर के लुप्त होने के कारण दूसरा ही अर्थ निकलना। -छंदस् (नपुं.)-वृत्तं वर्णों की संख्या से बद्ध छंद या वृत्त-जननी- तूलिका सरकंडा या कलम।-(वि) न्यास 1. लिखना, वर्णक्रम 2. वर्णमाला 3. वेद - भूमिका तख्ती-रघुवंश 19/16-मुखः विद्वान्, विद्यार्थी। -वर्जित (विशेषण) अशिक्षित, बिना पढ़ा-लिखा। -विन्यास (पुल्लिंग) हिज्जे, लिपि, वर्ण विन्यास।-शत्रुः (पुल्लिंग) निरक्षर, अपढ़-शिक्षा (स्त्रीलिंग) गुह्य अक्षरों की विद्या।-संस्थानं वर्णविन्यास, लिखना, वर्णमाला।[6]


इन्हें भी देखें: संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेताक्षर सूची), संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश (संकेत सूची) एवं संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश

अक्षर शब्द का अर्थ है अर्थात्‌ जो न घट सके, न नष्ट हो सके। इसका प्रयोग पहले वाणी या वाक्‌ के लिए एवं शब्दांश के लिए होता था। वर्ण के लिए भी अक्षर का प्रयोग किया जाता रहा। यही कारण है लिपि संकेतों द्वारा व्यक्त वर्णों के लिए भी आज अक्षर शब्द का प्रयोग सामान्य जन करते हैं। भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन ने अक्षर को अंग्रेजी सिलेबल का अर्थ प्रदान कर दिया है, जिसमें स्वर, स्वर तथा व्यंजन, अनुस्वार सहित स्वर या व्यंजन ध्वनियाँ सम्मिलित मानी जाती हैं। एक ही आघात या बल में बोली जाने वाली ध्वनि या ध्वनि समुदाय की इकाई को अक्षर कहा जाता है। इकाई की पृथकता का आधार स्वर या स्वररत्‌ वोक्वॉयड) व्यंजन होता है। व्यंजन ध्वनि किसी उच्चारण में स्वर का पूर्व या पर अंग बनकर ही आती है। अस्तु, अक्षर में स्वर ही मेरुदंड है। अक्षर से स्वर को न तो पृथक्‌ ही किया जा सकता है और न बिना स्वर या स्वररत्‌ व्यंजन के अक्षर का निर्माण ही संभव है। उच्चारण में यदि व्यंजन मोती की तरह है तो स्वर धागे की तरह। यदि स्वर सशक्त सम्राट है तो व्यंजन अशक्त राजा। इसी आधार पर प्राय अक्षर को स्वर का पर्याय मान लिया जाता है, किंतु ऐसा है नहीं, फिर भी अक्षर निर्माण में स्वर का अत्यधिक महत्व होता है। कतिपय भाषाओं में व्यंजन ध्वनियाँ भी अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी भाषा में न, र, ल्‌ जैसी व्यंजन ध्वनियाँ स्वररत्‌ भी उच्चरित होती हैं एवं स्वरध्वनि के समान अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी सिलेबल के लिए हिंदी में अक्षर शब्द का प्रयोग किया जाता है। डॉ. रामविलास शर्मा ने सिलेबल के लिए स्वरिक शब्द का प्रयोग किया जाता है। (भाषा और समाज, पृ. 59)। चूँकि अक्षर शब्द का भाषा और व्याकरण के इतिहास में अनेक अर्थच्छाया के लिए प्रयोग किया गया है, इसलिए सिलेबल के अर्थ में इसके प्रयोग से भ्रमसृजन की आशंका रहती है।

शब्द के उच्चारण में जिस ध्वनि पर शिखरता या उच्चता होती है वही अक्षर या सिलेबल होता है, जैसे हाथ में आ ध्वनि पर। इस शब्द में एक अक्षर है। अकल्पित शब्द में तीन अक्षर हैं यथा अ कल्‌ पित्‌; आजादी में तीन यथा आ जा दी; अर्थात्‌ शब्द में जहाँ जहाँ स्वर के उच्चारण की पृथकता पाई जाए वहाँ-वहाँ अक्षर की पृथकता होती है।

ध्वनि उत्पादन की दृष्टि से विचार करने पर फुफ्फुस संचलन की इकाई को अक्षर या स्वरिक (सिलेबल) कहते हैं, जिसमें एक ही शीर्षध्वनि होती है। शरीर रचना की दृष्टि से अक्षर या स्वरिक को फुफ्फुस स्पंदन भी कह सकते हैं, जिसका उच्चारण ध्वनि तंत्र में अवरोधन होता है। जब ध्वनि खंड या अल्पतम ध्वनि समूह के उच्चारण के समय अवयव संचलन अक्षर में उच्चतम हो तो वह ध्वनि अक्षरवत्‌ होती है। स्वर ध्वनियाँ बहुधा अक्षरवत्‌ उच्चरित होती है एवं व्यंजन ध्वनियाँ क्वचित्‌। शब्दगत उच्चारण की नितांत पृथक्‌ इकाई को अक्षर कहा जाता है, यथा
(1) एक अक्षर के शब्द आ,
(2) दो अक्षर के शब्द भारतीय, उर्दू,
(3) तीन अक्षर के शब्द बोलिए, जमानत,
(4) चार अक्षर के शब्द अधुनातन, कठिनाई,
(5) पाँच अक्षर के शब्द अव्यावहारिकता, अमानुषिकता।
किसी शब्द में अक्षरों की संख्या इस बात पर कतई निर्भर नहीं करती कि उसमें कितनी ध्वनियाँ हैं, बल्कि इस बात पर कि शब्द का उच्चारण कितने आघात या झटके में होता है अर्थात्‌ शब्द में कितनी अव्यवहित ध्वनि इकाइयाँ हैं। अक्षर में प्रयुक्त शीर्ष ध्वनि के अतिरिक्त शेष ध्वनियों को अक्षरांग या गह्वर ध्वनि कहा जाता है। चार में एक अक्षर (सिलेबल) है जिसमें आ शीर्ष ध्वनि तथा च एवं र गह्वर ध्वनियाँ हैं। [7]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कु. 3/50
  2. भगवद्-गीता 15/16
  3. भगवद्-गीता 10/33 त्र्यक्षर
  4. मनुस्मृति 2/83
  5. शकुन्तला नाटक 3/25
  6. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 05-06 |
  7. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 69,70 |

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