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'''अण्णा साहेब किर्लोस्कर''' ([[अंग्रेजी]]: ''Annasaheb Kirloskar'',  जन्म: [[31 मई]], 1843 - मृत्यु: [[2 नवंबर]], 1885) का वास्तविक नाम  '''बळवंत पांडुरंग किर्लोस्कर''' है। इन्होंने नाटकों के कलापक्ष को समृद्ध किया और [[मराठी]] [[रंगमंच]] की आधुनिक तकनीक आंरभ की। [[लोकमान्य तिलक]] के शब्दों में इन्होंने अपने नाटकों के द्वारा [[भारतीय संस्कृति]] का पुनरुद्वार किया।  
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
मराठी रंगमंच में क्रांति लाने वाले अण्णा साहेब किर्लोस्कर का जन्म [[31 मई]] 1843 ई. को [[बेलगाम ज़िला|बेलगांव ज़िले]] में हुआ था। [[संस्कृत]] कविता और नाटकों में रूचि रखने वाले विद्धान पिता के प्रभाव से बचपन से ही उनकी रूचि नाटकों की ओर गई थी। [[मराठी भाषा|मराठी]] और संस्कृत की आंरभिक शिक्षा के वाद जब वे [[अंग्रेजी]] पढ़ने [[पूना]] गए तो पढ़ाई के स्थान पर नाटक मंडली में सम्मिलित हो गए उन्होंने अभिनय किया और नाटक भी लिखे। उनका लिखा हुआ 'श्री शंकराचार्य दिग्विजय' पहला संगीत नाटक था। बाद में उन्होंने [[राजपूताना]] इतिहास पर नाटक लिखा तथा [[कालिदास]] की अमर रचना के आधार पर 'संगीत शांकुतलम' नामक नाटक की रचना की।  
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====किर्लोस्कर नाटक मंडली की स्थापना====
 
====किर्लोस्कर नाटक मंडली की स्थापना====
इनकी प्ररेणा से 'किर्लोस्कर नाटक मंडली' की स्थापना हुई। उस मंड़ली ने पहला नाटक 'संगीत शांकुतलम' ही प्रस्तुत किया। नाटक अत्यधिक सफल रहा। इस पर अण्णा साहब ने रेवेन्यू कमिश्नर के दफ़्तर की नौकरी छोड़ दी और मराठी रंगमंच को आगे बढ़ाने में जुट गए। इनकी नाटक मंड़ली ने [[महाराष्ट्र]] और महाराष्ट्र के बाहर अनेक प्रदर्शन किए। शांकुतलम के बाद जिन नाटकों को अधिक ख्याति मिली वे थे -
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इनकी प्रेरणा से 'किर्लोस्कर नाटक मंडली' की स्थापना हुई। उस मंड़ली ने पहला नाटक 'संगीत शांकुतलम' ही प्रस्तुत किया। नाटक अत्यधिक सफल रहा। इस पर अण्णा साहब ने रेवेन्यू कमिश्नर के दफ़्तर की नौकरी छोड़ दी और मराठी रंगमंच को आगे बढ़ाने में जुट गए। इनकी नाटक मंड़ली ने [[महाराष्ट्र]] और महाराष्ट्र के बाहर अनेक प्रदर्शन किए। शांकुतलम के बाद जिन नाटकों को अधिक ख्याति मिली वे थे -
 
# संगीत सौभद्र ([[सुभद्रा]] और [[अर्जुन]] के विवाह पर आधारित )  
 
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# राम राज्य वियोग ([[राम]] वनवास पर आधारित )  

06:38, 28 अक्टूबर 2015 का अवतरण

अण्णा साहेब किर्लोस्कर
अण्णा साहेब किर्लोस्कर
पूरा नाम अण्णा साहेब किर्लोस्कर
अन्य नाम बळवंत पांडुरंग किर्लोस्कर (मूल नाम)
जन्म 31 मई, 1843
जन्म भूमि बेलगाम ज़िला, कर्नाटक
मृत्यु 2 नवंबर, 1885 (आयु- 42 वर्ष)
कर्म-क्षेत्र नाटककार
मुख्य रचनाएँ 'संगीत शांकुतलम', 'संगीत सौभद्र', 'राम राज्य वियोग' आदि
भाषा मराठी
विशेष योगदान 'किर्लोस्कर नाटक मंडली' की स्थापना
नागरिकता भारतीय
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

अण्णा साहेब किर्लोस्कर (अंग्रेजी: Annasaheb Kirloskar, जन्म: 31 मई, 1843 - मृत्यु: 2 नवंबर, 1885) का वास्तविक नाम बळवंत पांडुरंग किर्लोस्कर है। इन्होंने नाटकों के कलापक्ष को समृद्ध किया और मराठी रंगमंच की आधुनिक तकनीक आंरभ की। लोकमान्य तिलक के शब्दों में इन्होंने अपने नाटकों के द्वारा भारतीय संस्कृति का पुनरुद्वार किया।

जीवन परिचय

मराठी रंगमंच में क्रांति लाने वाले अण्णा साहेब किर्लोस्कर का जन्म 31 मई 1843 ई. को बेलगांव ज़िले में हुआ था। संस्कृत कविता और नाटकों में रूचि रखने वाले विद्वान पिता के प्रभाव से बचपन से ही उनकी रूचि नाटकों की ओर गई थी। मराठी और संस्कृत की आंरभिक शिक्षा के वाद जब वे अंग्रेजी पढ़ने पूना गए तो पढ़ाई के स्थान पर नाटक मंडली में सम्मिलित हो गए उन्होंने अभिनय किया और नाटक भी लिखे। उनका लिखा हुआ 'श्री शंकराचार्य दिग्विजय' पहला संगीत नाटक था। बाद में उन्होंने राजपूताना इतिहास पर नाटक लिखा तथा कालिदास की अमर रचना के आधार पर 'संगीत शांकुतलम' नामक नाटक की रचना की।

किर्लोस्कर नाटक मंडली की स्थापना

इनकी प्रेरणा से 'किर्लोस्कर नाटक मंडली' की स्थापना हुई। उस मंड़ली ने पहला नाटक 'संगीत शांकुतलम' ही प्रस्तुत किया। नाटक अत्यधिक सफल रहा। इस पर अण्णा साहब ने रेवेन्यू कमिश्नर के दफ़्तर की नौकरी छोड़ दी और मराठी रंगमंच को आगे बढ़ाने में जुट गए। इनकी नाटक मंड़ली ने महाराष्ट्र और महाराष्ट्र के बाहर अनेक प्रदर्शन किए। शांकुतलम के बाद जिन नाटकों को अधिक ख्याति मिली वे थे -

  1. संगीत सौभद्र (सुभद्रा और अर्जुन के विवाह पर आधारित )
  2. राम राज्य वियोग (राम वनवास पर आधारित )

निधन

2 नवंबर, 1885 ई. को केवल 42 वर्ष की उम्र में अण्णा साहेब किर्लोस्कर का देहांत हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 19।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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