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[[चित्र:Kirti-Stambh-Chittorgarh.jpg|thumb|200px|कीर्ति स्तम्भ, चित्तौड़गढ़]]
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{{सूचना बक्सा पर्यटन
*चित्तौड़गढ़, [[उदयपुर]] ज़िले ([[राजस्थान]]) का एक प्रमुख नगर है।
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|चित्र=Chittorgarh-Fort-8.jpg
*[[मेवाड़]] का प्रसिद्ध नगर जो [[भारत]] के इतिहास में सिसौदिया राजपूतों की वीरगाथाओं के लिए अमर है।  
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|चित्र का नाम=चित्तौड़गढ़ का क़िला
*प्राचीन नगर चित्तौड़गढ़ स्टेशन से ढाई मील दूर है। मार्ग में [[गम्भीर नदी]] पड़ती है। भूमितल से 508 फुट ऊँची पहाड़ी पर इतिहास प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ स्थित है। दुर्ग के भीतर ही चित्तौड़नगर बसा है, जिसकी लम्बाई साढ़े तीन मील और चौढ़ाई एक मील है। परकोटे की क़िले की परिधि 12 मील है। कहा जाता है कि चित्तौड़ से 8 मील उत्तर की ओर नगरी नामक प्राचीन बस्ती ही महाभारतकालीन माध्यमिका है। चित्तौड़ का निर्माण इसी के खंडहरों से प्राप्त सामग्री से किया गया था।  
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|विवरण=चित्तौड़गढ़ [[मेवाड़]] का प्रसिद्ध नगर जो [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में सिसौदिया [[राजपूत|राजपूतों]] की वीरगाथाओं के लिए अमर है।
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|राज्य=[[राजस्थान]]
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|ज़िला=चित्तौड़गढ़
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|स्वामित्व=
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|मार्ग स्थिति=चित्तौड़गढ़ सड़क मार्ग [[जयपुर]] से 372 किमी, [[उदयपुर]] से 113 किमी, [[दिल्ली]] से 583 किमी की दूरी पर स्थित है।
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|मौसम=
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|तापमान=
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|प्रसिद्धि=चित्तौड़गढ़ के सात-सात दरवाज़े बहुत प्रसिद्ध हैं। इन दरवाज़ों के नाम हैं—पद्मपोल, भैरवपोल, हनुमानपोल, गणेशपोल, जोठलापोल और रामपोल।
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|कब जाएँ=[[अक्टूबर]] से [[मार्च]]
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|कैसे पहुँचें=हवाई जहाज़, रेल, बस आदि
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|हवाई अड्डा=महाराणा प्रताप हवाई अड्डा
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|रेलवे स्टेशन=चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन, चंडेरिया रेलवे स्टेशन, शंभूपुरा रेलवे स्टेशन
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|बस अड्डा=मुरली बस अड्डा
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|यातायात=स्थानीय बस, ऑटो रिक्शा, साईकिल रिक्शा
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|क्या देखें=[[चित्तौड़गढ़ क़िला]], [[रानी पद्मिनी का महल]], [[कीर्ति स्तम्भ]], [[कलिका माता का मन्दिर चित्तौड़गढ़|कलिका माता का मन्दिर]], श्रृंगार चवरी, तुलजा भवानी, अन्नपूर्णा, नीलकंठ, शतविंश देवरा, मुकुटेश्वर, सूर्यकुंड, चित्रांगद-तड़ाग तथा पद्मिनी, जयमल, पत्ता और हिंगलु के महल।
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|कहाँ ठहरें=होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
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|क्या खायें=राजस्थानी भोजन
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|क्या ख़रीदें=हस्तनिर्मित खिलौने, चमड़े के जूते और कपड़े
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'''चित्तौड़गढ़''', [[भारत]] के पश्चिमी राज्य [[राजस्थान]] का एक प्रमुख नगर है। [[मेवाड़]] का प्रसिद्ध नगर जो [[भारत]] के इतिहास में सिसौदिया राजपूतों की वीरगाथाओं के लिए अमर है। प्राचीन नगर चित्तौड़गढ़ स्टेशन से ढाई मील दूर है। मार्ग में गम्भीर नदी पड़ती है। भूमितल से 508 फुट ऊँची पहाड़ी पर इतिहास प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ स्थित है। दुर्ग के भीतर ही चित्तौड़नगर बसा है, जिसकी लम्बाई साढ़े तीन मील और चौढ़ाई एक मील है। परकोटे की क़िले की परिधि 12 मील है। कहा जाता है कि चित्तौड़ से 8 मील उत्तर की ओर नगरी नामक प्राचीन बस्ती ही महाभारतकालीन माध्यमिका है। चित्तौड़ का निर्माण इसी के खंडहरों से प्राप्त सामग्री से किया गया था।  
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[[चित्र:Chittorgarh-Fort-13.jpg|thumb|left|[[चित्तौड़गढ़ क़िला]]<br />Chittorgarh Fort]]
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
[[चित्र:Chittorgarh-Fort.jpg|thumb|चित्तौड़गढ़ क़िला, चित्तौड़गढ़<br />Chittorgarh Fort, Chittorgarh]]
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किंवदंती है कि प्राचीन गढ़ को [[महाभारत]] के [[भीम (पांडव)|भीम]] ने बनवाया था। भीम के नाम पर भीमगोड़ी, भीमसत आदि कई स्थान आज भी क़िले के भीतर हैं। पीछे [[मौर्य वंश]] के राजा मानसिंह ने [[उदयपुर]] के महाराजाओं के पूर्वज बघा रावल को जो उनका भानजा था, यह क़िला सौंप दिया। यहीं बप्पारावल ने मेवाड़ के नरेशों की राजधानी बनाई, जो 16वीं शती में उदयपुर के बसने तक इसी रूप में रही। 1303 ई. में सुलतान [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। इस अवसर पर [[पद्मिनी (रानी)|महारानी पद्मिनी]] तथा अन्य वीरांगनाएँ अपने कुल के सम्मान तथा भारतीय नारीत्व की लाज रखने के लिए अग्नि में कूदकर भस्म हो गईं और राजपूत वीरों ने युद्ध में प्राण उत्सर्ग कर दिए। जिस स्थान पर रानी पद्मिनी सती हुई थीं वह समाधीश्वर नाम से विख्यात है। स्थानीय जनश्रुति के आधार पर कहा जाता है कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर दो आक्रमण किए थे, किन्तु आधुनिक खोजों से एक ही आक्रमण सिद्ध होता है। रानी पद्मिनी के महल नामक प्रासाद के खंडहर भी क़िले के अन्दर ही अवस्थित हैं। इस भवन को 1535 ई. में [[गुजरात]] के सुलतान [[बहादुरशाह]] ने नष्ट कर दिया था। गुजरात के सुलतान बहादुरशाह (1405-1442ई.) ने चित्तौड़ विजय से लौटते समय [[चन्द्रावती]] को आँखों से देखकर इसका चित्रण अपनी पुस्तक 'ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया' में किया है। चित्तौड़ का दूसरा 'साका' या जौहर गुजरात के सुलतान बहादुरशाह के मेवाड़ पर आक्रमण के समय हुआ। इस अवसर पर महारानी कर्णावती ने [[हुमायूँ]] को राखी भेजकर उसे अपना राखीबंद भाई बनाया था। चित्तौड़ के निकट ही [[पिंडौली]] नामक ग्राम है, जहाँ अकबर और मेवाड़ की सेना में युद्ध हुआ था। तीसरा 'साका' अकबर के समय में हुआ, जिसमें वीर जयमल और पत्ता ने मेवाड़ की रक्षा के लिए हँसते-हँसते प्राणदान किया था। [[अकबर]] के समय में ही [[राणा उदयसिंह|महाराणा उदयसिंह]] ने उदयपुर नामक नगर को बसाकर मेवाड़ की नई राजधानी वहाँ बनाई। चित्तौड़ के क़िले के अन्दर आठ विशाल सरोवर हैं। प्रसिद्ध भक्त कवयित्री [[मीराबाई]] (जन्म 1498 ई.) का भी यहाँ मन्दिर है, जिसे बहादुरशाह ने तोड़ डाला था। महाराणा कुम्भा का कीर्तिस्तम्भ, जो उन्होंने गुजरात के सुलतान बहादुरशाह को परास्त करने के उपलक्ष्य में बनवाया था, चित्तौड़ का सर्वप्रथम स्मारक है। 122 फुट ऊँचे इस स्तम्भ के निर्माण में 10 लाख रुपया लगा था। यह नौ मंज़िला है और इसके शिखर तक पहुँचने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हैं। 12वीं-13वीं शती में जीजा नामक एक धनाढ्य जैन ने आदिनाथ की स्मृति में सात मंज़िला कीर्तिस्तम्भ बनवाया था जो 80 फुट ऊँचा है। इसमें 49 सीढ़ियाँ हैं। नीचे से ऊपर तक इस स्तम्भ में सुन्दर शिल्पकारी दिखाई देती है। चित्तौड़-द्वार के पास [[राणा साँगा]] ([[बाबर]] का समकालीन) का निर्मित करवाया हुआ सूरज मन्दिर स्थित है।  
किंवदंती है कि प्राचीन गढ़ को [[महाभारत]] के [[भीम (पांडव)|भीम]] ने बनवाया था। भीम के नाम पर भीमगोड़ी, भीमसत आदि कई स्थान आज भी क़िले के भीतर हैं। पीछे [[मौर्य वंश]] के राजा मानसिंह ने [[उदयपुर]] के महाराजाओं के पूर्वज बघा रावल को जो उनका भानजा था, यह क़िला सौंप दिया। यहीं बप्पारावल ने मेवाड़ के नरेशों की राजधानी बनाई, जो 16वीं शती में उदयपुर के बसने तक इसी रूप में रही। 1303 ई. में सुलतान [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। इस अवसर पर महारानी [[पद्मिनी]] तथा अन्य वीरांगनाएँ अपने कुल के सम्मान तथा भारतीय नारीत्व की लाज़ रखने के लिए अग्नि में कूदकर भस्म हो गईं और राजपूत वीरों ने युद्ध में प्राण उत्सर्ग कर दिए। जिस स्थान पर रानी पद्मिनी सती हुई थीं वह समाधीश्वर नाम से विख्यात है। स्थानीय जनश्रुति के आधार पर कहा जाता है कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर दो आक्रमण किए थे, किन्तु आधुनिक खोजों से एक ही आक्रमण सिद्ध होता है। [[चित्र:Chittorgarh-Fort-2.jpg|thumb|left|200px|चित्तौड़गढ़ क़िला, चित्तौड़गढ़<br />Chittorgarh Fort, Chittorgarh]] रानी पद्मिनी के महल नामक प्रासाद के खंडहर भी क़िले के अन्दर ही अवस्थित हैं। इस भवन को 1535 ई. में [[गुजरात]] के सुलतान [[बहादुरशाह]] ने नष्ट कर दिया था। चित्तौड़ का दूसरा 'साका' या जौहर गुजरात के सुलतान बहादुरशाह के मेवाड़ पर आक्रमण के समय हुआ। इस अवसर पर महारानी कर्णावती ने [[हुमायूँ]] को राखी भेजकर उसे अपना राखीबंद भाई बनाया था। तीसरा 'साका' अकबर के समय में हुआ, जिसमें वीर जयमल और पत्ता ने मेवाड़ की रक्षा के लिए हँसते-हँसते प्राणदान किया था। [[अकबर]] के समय में ही महाराणा [[उदयसिंह]] ने उदयपुर नामक नगर को बसाकर मेवाड़ की नई राजधानी वहाँ बनाई। चित्तौड़ के क़िले के अन्दर आठ विशाल सरोवर हैं। प्रसिद्ध भक्त कवियित्री [[मीराबाई]] (जन्म 1498 ई.) का भी यहाँ मन्दिर है, जिसे बहादुरशाह ने तोड़ डाला था। महाराणा कुम्भा का कीर्तिस्तम्भ, जो उन्होंने गुजरात के सुलतान बहादुरशाह को परास्त करने के उपलक्ष्य में बनवाया था, चित्तौड़ का सर्वप्रथम स्मारक है। 122 फुट ऊँचे इस स्तम्भ के निर्माण में 10 लाख रुपया लगा था। यह नौ मंज़िला है और इसके शिखर तक पहुँचने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हैं। 12वीं-13वीं शती में जीजा नामक एक धनाढ्य जैन ने आदिनाथ की स्मृति में सात मंज़िला कीर्तिस्तम्भ बनवाया था जो 80 फुट ऊँचा है। इसमें 49 सीढ़ियाँ हैं। नीचे से ऊपर तक इस स्तम्भ में सुन्दर शिल्पकारी दिखाई देती है। चित्तौड़-द्वार के पास [[राणा सांगा]] (बाबर का समकालीन) का निर्मित करवाया हुआ सूरज मन्दिर स्थित है।  
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[[चित्र:Padmini-Palace-Chittorgarh.jpg|thumb|250px|left|[[रानी पद्मिनी का महल]], चित्तौड़गढ़]]
[[चित्र:View-Of-Chittor.jpg|thumb|400px|चित्तौड़गढ़ का दृश्य]]
 
  
 
==सात दरवाज़े==
 
==सात दरवाज़े==
चित्तौड़गढ़ के सात सात दरवाज़े बहुत प्रसिद्ध हैं। इन दरवाज़ों के नाम हैं—पद्मपोल, भैरवपोल, हनुमानपोल, गणेशपोल, जोठलापोल और रामपोल। भैरवपोल के पास जयमल और कल्लू राठौर के स्मारक हैं। पत्ता का स्मारक भी पास ही है। रामपोल के ही निकट पलालेश्वर है, जहाँ राणा सांगा की कई तोपे रखी हैं। निकटस्थ शांतिनाथ के जैन मन्दिर को बहादुरशाह ने विध्वंस कर दिया था। वीरांगना [[पन्ना धाय]] का महल रानीमहल के निकट ही है। पन्नामहल ही में पन्ना के अपूर्व बलिदान की प्रसिद्ध कथा घटित हुई थी। [[राणा कुम्भा]] का बनवाया हुआ जटाशंकर नामक मन्दिर भी पास ही स्थित है। भैरवपोल, रामपोल और हनुमानपोल द्वारों की रचना महाराणा कुम्भा ने ही की थी।  
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चित्तौड़गढ़ के सात सात दरवाज़े बहुत प्रसिद्ध हैं। इन दरवाज़ों के नाम हैं—पद्मपोल, भैरवपोल, हनुमानपोल, गणेशपोल, जोठलापोल और रामपोल। भैरवपोल के पास जयमल और कल्लू राठौर के स्मारक हैं। पत्ता का स्मारक भी पास ही है। रामपोल के ही निकट पलालेश्वर है, जहाँ राणा सांगा की कई तोपे रखी हैं। निकटस्थ [[शांतिनाथ]] के जैन मन्दिर को बहादुरशाह ने विध्वंस कर दिया था। वीरांगना [[पन्ना धाय]] का महल रानीमहल के निकट ही है। पन्नामहल ही में पन्ना के अपूर्व बलिदान की प्रसिद्ध कथा घटित हुई थी। राणा कुम्भा का बनवाया हुआ जटाशंकर नामक मन्दिर भी पास ही स्थित है। भैरवपोल, रामपोल और हनुमानपोल द्वारों की रचना महाराणा कुम्भा ने ही की थी।
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==प्रमुख धार्मिक स्थल==
 
==प्रमुख धार्मिक स्थल==
[[चित्र:Chittorgarh-Fort-3.jpg|thumb|200px|चित्तौड़गढ़ क़िला, चित्तौड़गढ़<br />Chittorgarh Fort, Chittorgarh]]
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चित्तौड़ के अन्य उल्लेखनीय स्थान हैं—श्रंगार चवरी, कालिका मन्दिर, तुलजा भवानी, अन्नपूर्णा, नीलकंठ, शतविंश देवरा, मुकुटेश्वर, सूर्यकुंड, चित्रांगद-तड़ाग तथा पद्मिनी, जयमल, पत्ता और हिंगलु के महल। प्राचीन [[संस्कृत साहित्य]] में चित्तौड़ का चित्रकोट नाम मिलता है। चित्तौड़ इसी का अपभ्रंश हो सकता है।  
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चित्तौड़ के अन्य उल्लेखनीय स्थान हैं—श्रृंगार चवरी, कालिका मन्दिर, तुलजा भवानी, अन्नपूर्णा, नीलकंठ, शतविंश देवरा, मुकुटेश्वर, सूर्यकुंड, चित्रांगद-तड़ाग तथा पद्मिनी, जयमल, पत्ता और हिंगलु के महल। प्राचीन [[संस्कृत साहित्य]] में चित्तौड़ का चित्रकोट नाम मिलता है। चित्तौड़ इसी का अपभ्रंश हो सकता है।
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==प्रमुख दर्शनीय स्थल==
 
==प्रमुख दर्शनीय स्थल==
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#[[कीर्तिस्तम्भ चित्तौड़गढ़|कीर्तिस्तम्भ]]
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#[[कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़|कीर्ति स्तम्भ]]
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चित्र:A-View-Chittorgarh-Fort.jpg|[[चित्तौड़गढ़ क़िला|चित्तौड़गढ़ क़िले]] का एक दृश्य
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चित्र:Krishna-Temple-Chittorgarh-1.jpg|कृष्ण मंदिर, [[चित्तौड़गढ़ क़िला]]
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चित्र:Krishna-Temple-Chittorgarh-2.jpg|कृष्ण मंदिर, [[चित्तौड़गढ़ क़िला]]
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चित्र:Rana-Khumba-Palace-Chittorgarh.jpg|राणा कुंभा का महल, चित्तौड़गढ़
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चित्र:Rana-Khumba-Palace-Chittorgarh-1.jpg|राणा कुंभा का महल, चित्तौड़गढ़
 
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==संबंधित लेख==
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07:54, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

चित्तौड़गढ़
चित्तौड़गढ़ का क़िला
विवरण चित्तौड़गढ़ मेवाड़ का प्रसिद्ध नगर जो भारत के इतिहास में सिसौदिया राजपूतों की वीरगाथाओं के लिए अमर है।
राज्य राजस्थान
ज़िला चित्तौड़गढ़
निर्माण काल मौर्य काल
स्थापना 7 वीं शताब्दी
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 24° 52' 48.00", पूर्व- 74° 37' 48.00"
मार्ग स्थिति चित्तौड़गढ़ सड़क मार्ग जयपुर से 372 किमी, उदयपुर से 113 किमी, दिल्ली से 583 किमी की दूरी पर स्थित है।
प्रसिद्धि चित्तौड़गढ़ के सात-सात दरवाज़े बहुत प्रसिद्ध हैं। इन दरवाज़ों के नाम हैं—पद्मपोल, भैरवपोल, हनुमानपोल, गणेशपोल, जोठलापोल और रामपोल।
कब जाएँ अक्टूबर से मार्च
कैसे पहुँचें हवाई जहाज़, रेल, बस आदि
हवाई अड्डा महाराणा प्रताप हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन, चंडेरिया रेलवे स्टेशन, शंभूपुरा रेलवे स्टेशन
बस अड्डा मुरली बस अड्डा
यातायात स्थानीय बस, ऑटो रिक्शा, साईकिल रिक्शा
क्या देखें चित्तौड़गढ़ क़िला, रानी पद्मिनी का महल, कीर्ति स्तम्भ, कलिका माता का मन्दिर, श्रृंगार चवरी, तुलजा भवानी, अन्नपूर्णा, नीलकंठ, शतविंश देवरा, मुकुटेश्वर, सूर्यकुंड, चित्रांगद-तड़ाग तथा पद्मिनी, जयमल, पत्ता और हिंगलु के महल।
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
क्या खायें राजस्थानी भोजन
क्या ख़रीदें हस्तनिर्मित खिलौने, चमड़े के जूते और कपड़े
एस.टी.डी. कोड 01472
ए.टी.एम लगभग सभी
Map-icon.gif गूगल मानचित्र
भाषा हिंदी, राजस्थानी, अंग्रेजी
अन्य जानकारी चित्तौड़ के क़िले के अन्दर आठ विशाल सरोवर हैं। प्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीराबाई (जन्म 1498 ई.) का भी यहाँ मन्दिर है, जिसे बहादुरशाह ने तोड़ डाला था।
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चित्तौड़गढ़, भारत के पश्चिमी राज्य राजस्थान का एक प्रमुख नगर है। मेवाड़ का प्रसिद्ध नगर जो भारत के इतिहास में सिसौदिया राजपूतों की वीरगाथाओं के लिए अमर है। प्राचीन नगर चित्तौड़गढ़ स्टेशन से ढाई मील दूर है। मार्ग में गम्भीर नदी पड़ती है। भूमितल से 508 फुट ऊँची पहाड़ी पर इतिहास प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ स्थित है। दुर्ग के भीतर ही चित्तौड़नगर बसा है, जिसकी लम्बाई साढ़े तीन मील और चौढ़ाई एक मील है। परकोटे की क़िले की परिधि 12 मील है। कहा जाता है कि चित्तौड़ से 8 मील उत्तर की ओर नगरी नामक प्राचीन बस्ती ही महाभारतकालीन माध्यमिका है। चित्तौड़ का निर्माण इसी के खंडहरों से प्राप्त सामग्री से किया गया था।

इतिहास

किंवदंती है कि प्राचीन गढ़ को महाभारत के भीम ने बनवाया था। भीम के नाम पर भीमगोड़ी, भीमसत आदि कई स्थान आज भी क़िले के भीतर हैं। पीछे मौर्य वंश के राजा मानसिंह ने उदयपुर के महाराजाओं के पूर्वज बघा रावल को जो उनका भानजा था, यह क़िला सौंप दिया। यहीं बप्पारावल ने मेवाड़ के नरेशों की राजधानी बनाई, जो 16वीं शती में उदयपुर के बसने तक इसी रूप में रही। 1303 ई. में सुलतान अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। इस अवसर पर महारानी पद्मिनी तथा अन्य वीरांगनाएँ अपने कुल के सम्मान तथा भारतीय नारीत्व की लाज रखने के लिए अग्नि में कूदकर भस्म हो गईं और राजपूत वीरों ने युद्ध में प्राण उत्सर्ग कर दिए। जिस स्थान पर रानी पद्मिनी सती हुई थीं वह समाधीश्वर नाम से विख्यात है। स्थानीय जनश्रुति के आधार पर कहा जाता है कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर दो आक्रमण किए थे, किन्तु आधुनिक खोजों से एक ही आक्रमण सिद्ध होता है। रानी पद्मिनी के महल नामक प्रासाद के खंडहर भी क़िले के अन्दर ही अवस्थित हैं। इस भवन को 1535 ई. में गुजरात के सुलतान बहादुरशाह ने नष्ट कर दिया था। गुजरात के सुलतान बहादुरशाह (1405-1442ई.) ने चित्तौड़ विजय से लौटते समय चन्द्रावती को आँखों से देखकर इसका चित्रण अपनी पुस्तक 'ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया' में किया है। चित्तौड़ का दूसरा 'साका' या जौहर गुजरात के सुलतान बहादुरशाह के मेवाड़ पर आक्रमण के समय हुआ। इस अवसर पर महारानी कर्णावती ने हुमायूँ को राखी भेजकर उसे अपना राखीबंद भाई बनाया था। चित्तौड़ के निकट ही पिंडौली नामक ग्राम है, जहाँ अकबर और मेवाड़ की सेना में युद्ध हुआ था। तीसरा 'साका' अकबर के समय में हुआ, जिसमें वीर जयमल और पत्ता ने मेवाड़ की रक्षा के लिए हँसते-हँसते प्राणदान किया था। अकबर के समय में ही महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर नामक नगर को बसाकर मेवाड़ की नई राजधानी वहाँ बनाई। चित्तौड़ के क़िले के अन्दर आठ विशाल सरोवर हैं। प्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीराबाई (जन्म 1498 ई.) का भी यहाँ मन्दिर है, जिसे बहादुरशाह ने तोड़ डाला था। महाराणा कुम्भा का कीर्तिस्तम्भ, जो उन्होंने गुजरात के सुलतान बहादुरशाह को परास्त करने के उपलक्ष्य में बनवाया था, चित्तौड़ का सर्वप्रथम स्मारक है। 122 फुट ऊँचे इस स्तम्भ के निर्माण में 10 लाख रुपया लगा था। यह नौ मंज़िला है और इसके शिखर तक पहुँचने के लिए 157 सीढ़ियाँ बनी हैं। 12वीं-13वीं शती में जीजा नामक एक धनाढ्य जैन ने आदिनाथ की स्मृति में सात मंज़िला कीर्तिस्तम्भ बनवाया था जो 80 फुट ऊँचा है। इसमें 49 सीढ़ियाँ हैं। नीचे से ऊपर तक इस स्तम्भ में सुन्दर शिल्पकारी दिखाई देती है। चित्तौड़-द्वार के पास राणा साँगा (बाबर का समकालीन) का निर्मित करवाया हुआ सूरज मन्दिर स्थित है।

रानी पद्मिनी का महल, चित्तौड़गढ़

सात दरवाज़े

चित्तौड़गढ़ के सात सात दरवाज़े बहुत प्रसिद्ध हैं। इन दरवाज़ों के नाम हैं—पद्मपोल, भैरवपोल, हनुमानपोल, गणेशपोल, जोठलापोल और रामपोल। भैरवपोल के पास जयमल और कल्लू राठौर के स्मारक हैं। पत्ता का स्मारक भी पास ही है। रामपोल के ही निकट पलालेश्वर है, जहाँ राणा सांगा की कई तोपे रखी हैं। निकटस्थ शांतिनाथ के जैन मन्दिर को बहादुरशाह ने विध्वंस कर दिया था। वीरांगना पन्ना धाय का महल रानीमहल के निकट ही है। पन्नामहल ही में पन्ना के अपूर्व बलिदान की प्रसिद्ध कथा घटित हुई थी। राणा कुम्भा का बनवाया हुआ जटाशंकर नामक मन्दिर भी पास ही स्थित है। भैरवपोल, रामपोल और हनुमानपोल द्वारों की रचना महाराणा कुम्भा ने ही की थी।

प्रमुख धार्मिक स्थल

चित्तौड़ के अन्य उल्लेखनीय स्थान हैं—श्रृंगार चवरी, कालिका मन्दिर, तुलजा भवानी, अन्नपूर्णा, नीलकंठ, शतविंश देवरा, मुकुटेश्वर, सूर्यकुंड, चित्रांगद-तड़ाग तथा पद्मिनी, जयमल, पत्ता और हिंगलु के महल। प्राचीन संस्कृत साहित्य में चित्तौड़ का चित्रकोट नाम मिलता है। चित्तौड़ इसी का अपभ्रंश हो सकता है।

प्रमुख दर्शनीय स्थल

  1. चित्तौड़गढ़ क़िला
  2. रानी पद्मिनी का महल
  3. कीर्ति स्तम्भ
  4. कलिका माता का मन्दिर


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वीथिका

चित्तौड़गढ़ का दृश्य

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