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मैसूर मैसूर पर्यटन मैसूर ज़िला
मैसूर
महाराजा पैलेस, मैसूर
विवरण मैसूर शहर, दक्षिण-मध्य कर्नाटक, भूतपूर्व मैसूर राज्य, दक्षिणी भारत में स्थित है।
राज्य कर्नाटक
ज़िला मैसूर
भौगोलिक स्थिति उत्तर- 12°3', पूर्व- 76°65'
मार्ग स्थिति मैसूर शहर सड़क द्वारा बैंगलोर से 139 किलोमीटर, हम्पी से 400 किलोमीटर, दिल्ली से 2,230 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
कब जाएँ अक्टूबर से मार्च
कैसे पहुँचें हवाई जहाज़, रेल व सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है।
हवाई अड्डा मैसूर हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन मैसूर रेलवे स्टेशन
बस अड्डा मैसूर सिटी बस अड्डा
यातायात ऑटो रिक्शा, बस, टैम्पो, साइकिल रिक्शा
क्या देखें मैसूर पर्यटन
कहाँ ठहरें होटल, धर्मशाला, अतिथि ग्रह
क्या खायें मैसूर पाक, रागी और अक्की रोटी, इडली सांभर, मसाला पुरी
क्या ख़रीदें सिल्क की साड़ियाँ, चंदन की लकड़ी के सामान
एस.टी.डी. कोड 0821
ए.टी.एम लगभग सभी
Map-icon.gif गूगल मानचित्र
भाषा कन्नड़ भाषा, अंग्रेज़ी, तमिल, हिन्दी
अन्य जानकारी 1799 ई. से 1831 ई. तक यह मैसूर रियासत की प्रशासनिक राजधानी था और अब मैसूर बंगलोर के बाद कर्नाटक राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है।
बाहरी कड़ियाँ अधिकारिक वेबसाइट
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मैसूर शहर, दक्षिण-मध्य कर्नाटक, भूतपूर्व मैसूर राज्य, दक्षिणी भारत में स्थित है। यह चामुंडी पहाड़ी के पश्चिमोत्तर में 770 मीटर की ऊँचाई पर लहरदार दक्कन पठार पर कावेरी नदी व कब्बानी नदी के बीच स्थित है। 1799 ई. से 1831 ई. तक यह मैसूर रियासत की प्रशासनिक राजधानी था और अब बंगलोर के बाद कर्नाटक राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। मैसूर भारतीय गणतंत्र में सम्मिलित एक राज्य तथा नगर है। यह अब कर्नाटक राज्य की राजधानी भी है। इस राज्य की सीमा उत्तर-पश्चिम मुंबई, पूर्व में आन्ध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्व में तमिलनाडु और दक्षिण-पश्चिम में केरल राज्यों से घिरी हुई है। अपनी क्रेप सिल्क की साड़ियों, चंदन के तेल और चंदन की लकड़ी से बने सामान के लिए मशहूर यह स्थान वुडयार वंश के शासन काल में उनकी राजधानी हुआ करता था। वुडयार राजा कला और संस्कृति प्रेमी थे। अपने 150 वर्ष के शासन काल में उन्होंने इसे बहुत बढ़ावा दिया। उस दौरान मैसूर दक्षिण की सांस्कृतिक राजधानी बन गया। मैसूर महलों, बगीचों और मंदिरों का नगर है। आज भी इसकी खूबसूरती कायम है। कर्नाटक संगीत व नृत्य का यह प्रमुख केंद्र है।

पौराणिक उल्लेख

मैसूर शहर के आस-पास की भूमि पर वर्षा के जल से भरे उथले जलाशय हैं। इस स्थान का उल्लेख महाकाव्य महाभारत में 'महिष्मति' के रूप में हुआ है। मौर्य काल, तीसरी शताब्दी ई. पू. में यह 'पूरिगेरे' के नाम से विख्यात था। महिष्मंडल महिषक लोग महिष्मति, नर्मदा घाटी से प्रवास कर यहाँ पर बस गए थे। बाद में यह महिषासुर कहलाया था।

इतिहास

मैसूर शहर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसके प्राचीनतम शासक कदम्ब वंश के थे, जिनका उल्लेख टॉल्मी ने किया है। कदम्बों को चेरों, पल्लवों और चालुक्यों से युद्ध करना पड़ा था। 12वीं शताब्दी में जाकर मैसूर का शासन कदम्बों के हाथों से होयसलों के हाथों में आया, जिन्होंने द्वारासमुद्र अथवा आधुनिक हलेबिड को अपनी राजधानी बनाया था। होयसल राजा रायचन्द्र से ही अलाउद्दीन ख़िलज़ी ने मैसूर जीतकर अपने राज्य में सम्मिलित किया था। इसके उपरान्त मैसूर विजयनगर राज्य में सम्मिलित कर लिया गया और उसके विघटन के उपरान्त 1610 ई. में वह पुन: स्थानीय हिन्दू राजा के अधिकार में आ गया था।

इस राजवंश के चौथे उत्तराधिकारी चिक्क देवराज ने मैसूर की शक्ति और सत्ता में उल्लेखनीय वृद्धि की। किन्तु 18वीं शताब्दी के मध्य में उसका राजवंश हैदरअली द्वारा अपदस्थ कर दिया गया था और उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने 1799 ई. तक उस पर राज्य किया। टीपू की पराजय और मृत्यु के उपरान्त विजयी अंग्रेज़ो ने मैसूर को संरक्षित राज्य बनाकर वहाँ एक पाँच वर्षीय बालक कृष्णराज वाडियर को सिंहासन पर बैठाया था। कृष्णराज अत्यंत अयोग्य शासक सिद्ध हुआ, 1821 ई. में ब्रिटिश सरकार ने शासन प्रबंध अपने हाथों में ले लिया, परंतु 1867 ई. में कृष्ण के उत्तराधिकारी चाम राजेन्द्र को पुन: शासन सौंप दिया। उस समय से इस सुशासित राज्य का 1947 ई. में भारतीय संघ में विलय कर दिया गया।

मैसूर-युद्ध

1761 ई. में हैदर अली ने मैसूर में हिन्दू शासक के ऊपर नियंत्रण स्थापित कर लिया। निरक्षर होने के बाद भी हैदर की सैनिक एवं राजनीतिक योग्यता अद्वितीय थी। उसके फ़्राँसीसियों से अच्छे सम्बन्ध थे। हैदर अली की योग्यता, कूटनीतिक सूझबूझ एवं सैनिक कुशलता से मराठे, निज़ाम एवं अंग्रेज़ ईर्ष्या करते थे। हैदर अली ने अंग्रेज़ों से भी सहयोग माँगा था, परन्तु अंग्रेज़ इसके लिए तैयार नहीं हुए, क्योंकि इससे उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी न हो पाती। भारत में अंग्रेज़ों और मैसूर के शासकों के बीच चार सैन्य मुठभेड़ हुई थीं। अंग्रेज़ों और हैदर अली तथा उसके पुत्र टीपू सुल्तान के बीच समय-समय पर युद्ध हुए। 32 वर्षों (1767 से 1799 ई.) के मध्य में ये युद्ध छेड़े गए थे।

युद्ध

भारत के इतिहास में चार मैसूर युद्ध लड़े गये हैं, जो इस प्रकार से हैं-

  1. प्रथम युद्ध (1767 - 1769 ई.)
  2. द्वितीय युद्ध (1780 - 1784 ई.)
  3. तृतीय युद्ध (1790 - 1792 ई.)
  4. चतुर्थ युद्ध (1799 ई.)

यातायात और परिवहन

मैसूर शहर दो उत्तरी रेलमार्गों के जंक्शन पर स्थित है और भारत की प्रमुख पश्चिमी सड़क प्रणाली पर एक महत्त्वपूर्ण विभाजक बिंदु है।

वायु मार्ग

मैसूर में मैसूर हवाई अड्डा है, जो शहर से 12 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ से सभी प्रमुख शहरों के लिए उड़ानें आती-जाती हैं।

रेल मार्ग

बैंगलोर से मैसूर के बीच अनेक रेलें चलती हैं। शताब्दी एक्सप्रेस मैसूर को चेन्नई से जोड़ती है।

सड़क मार्ग

राज्य राजमार्ग मैसूर को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ते हैं। कर्नाटक सड़क परिवहन निगम और पड़ोसी राज्यों के परिवहन निगम तथा निजी परिवहन कंपनियों की बसें मैसूर से विभिन्न राज्यों के बीच चलती हैं। यह शहर सड़क द्वारा बैंगलोर से 139 किलोमीटर, हम्पी से 400 किलोमीटर, दिल्ली से 2,230 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

उद्योग और व्यापार

मैसूर एक महत्त्वपूर्ण निर्माण एवं व्यापारिक केंद्र है। मैसूर में सूती एवं रेशमी वस्त्र, चावल, तेल की मिलें, चंदन का तेल और रसायनिक उर्वरक उद्योग हैं। शहर के उद्योगों को बिजली पूर्व में स्थित शिवसमुद्रम के निकट पनबिजली गृह से मिलती है। मैसूर के कुटीर उद्योगों में बुनाई, तंबाकू, कॉफ़ी प्रसंस्करण और बीड़ी निर्माण शामिल हैं। यह क्षेत्र हाथीदांत, धातु और लकड़ी की अपनी कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है।

रेलवे स्टेशन के पास स्थित बाज़ार स्थानीय कृषि उत्पादों के लिए संग्रहण केंद्र का काम करता है। मैसूर में काली मिट्टी के विशाल भूभाग पर कपास उगाया जाता है। यहाँ से चावल, मोटा अनाज और तिलहन का निर्यात किया जाता है। मैसूर की सरकारी सिल्क फैक्टरी में मैसूर की सिल्क की साड़ियाँ बनती हैं।

शिक्षण संस्थान

मैसूर अति सुन्दर परिष्कृत नगर है। मैसूर में 1916 में स्थापित मैसूर विश्वविद्यालय और कई संबद्ध महाविद्यालय हैं, जिनमें महाराजा कॉलेज, महिलाओं के लिए महारानी कॉलेज, युवराज साइंस कॉलेज, शारदाविलास टेरेजियन व अन्य कॉलेज शामिल हैं। यहाँ कर्नाटक राज्य मुक्त विश्वविद्यालय का केंद्र है। अन्य शैक्षणिक संस्थानों में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग, एस. जे. कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, विद्यावर्द्धक कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, मैसूर मेडिकल कॉलेज, जे. एस. एस. मेडिकल कॉलेज, जे. एस. एस. डेंटल ऐंड फ़ार्मेसी कॉलेज, फ़ारूक़िया डेंटल एंड फ़ार्मेसी कॉलेज, एस. डी. एम. इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट, विद्या विकास कॉलेज ऑफ़ होटल मैनेजमेंट, जे. एस. एस. लॉ कॉलेज, शारदा लॉ कॉलेज, वी. वी. लॉ कॉलेज और महाजन लॉ कॉलेज शामिल हैं। कन्नड़ संस्कृति की प्रोन्नति के लिए भी कई संस्थान हैं।

पर्यटन

मैसूर अति सुन्दर परिष्कृत नगर है। यह एक पर्यटन स्थल भी है। मैसूर में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं। मैसूर में क़िले, पहाड़ियाँ एवं झीलें भी हैं। मैसूर महलों, बगीचों और मंदिरों का नगर है। आज भी इसकी ख़ूबसूरती कायम है।

पुराना क़िला

18वीं शताब्दी में यूरोपीय शैली में पुन:निर्मित एक पुराना क़िला, मैसूर के मध्य में स्थित है। क़िले के दायरे में महाराजा महल (1897 ई.) है, जिसमें हाथीदांत व सोने से निर्मित सिंहासन है।

पार्क एवं इमारतें

मैसूर में कर्ज़न पार्क, सिल्वर जुबली क्लॉक टावर (1927 ई.), गाँधी चौक और महाराजा की दो मूर्तियाँ पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं।

पश्चिम में गोर्डोन पार्क के निकट भूतपूर्व ब्रिटिश रेज़िडेंसी (1805), प्रख्यात ओरिएंटल लाइब्रेरी, विश्वविद्यालय भवन, सार्वजनिक कार्यालय, जगमोहन महल और ललिता महल आदि अन्य प्रसिद्ध इमारतें हैं।

पहाड़ियाँ एवं झील

तीर्थयात्री बड़ी संख्या में चामुंडी पहाड़ी पर लगभग 1,064 मीटर दूर जाते हैं, जहाँ शिव के पवित्र बैल, नन्दी की अखंडित मूर्ति है। इस शिखर से दक्षिण की ओर स्थित नीलगिरि पहाड़ियों का सुंदर नज़ारा देखा जा सकता है।

कावेरी नदी पर मैसूर के पश्चिमोत्तर में 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित विशाल कृष्णराव झील है, जिसमें बाँध भी बना है। इस बाँध के नीचे फ़व्वारे व झरनेयुक्त सीढ़ीदार वृन्दावन उद्यान हैं, जिन पर रात में रोशनी की जाती है।

अभयारण्य

पूर्व में स्थित सोमनाथपुर में होयसल वंश द्वारा निर्मित (1268 ई.) एक मंदिर है। वेणुगोपाल वन्य जीव उद्यान के एक भाग बांदीपुर अभयारण्य तक मैसूर से पहुँचा जा सकता है। यह गौर, भारतीय बाइसन और चीतल के झुंडों के लिए विख्यात है। यहाँ घूमने के लिए सड़कों का संजाल है। इससे लगकर ही तमिलनाडु राज्य का मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य स्थित है। यह कावेरी व उसकी नदियों का अपवाह क्षेत्र है।

पूर्व में स्थित सोमनाथपुर में होयसल वंश द्वारा र्निर्मित (1268 ई.) एक मंदिर है।

ख़रीदारी

सोमनाथपुर मंदिर, मैसूर

सिल्क की साड़ियों को लेने के लिय आप केआर सर्कल पर बने फैक्टरी शोरूम और थोक बाज़ार जा सकते हैं। मैसूर की असली चंदन की लकड़ी के सामान लिए सय्याजी राव रोड पर बने कावेरी आर्ट एंपोरियम जा सकते हैं। यह एंपोरियम सरकार द्वारा संचालित है। सय्याजी राव रोड पर बनी देवराज बाज़ार में ख़ूबसूरत शहरी चित्रकारी करी तसवीर मिलती हैं। इस बाज़ार में बहुत साफ-सफाई है।

जनसंख्या

2001 की जनगणना के अनुसार मैसूर शहर की जनसंख्या 7,42,261 है। मैसूर ज़िले की कुल जनसंख्या 26,24,911 है।


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