हूल विद्रोह

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हूल विद्रोह भगनाडीह गाँव, संथाल परगना में 30 जून,सन्1855 ई. में अंग्रेज़ों के विरुद्ध हुए संघर्ष के रूप में जाना जाता है। इस विद्रोह में गाँव के चार भाइयों- सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव ने क्रांन्ति के स्वर शंखनाद किया और विप्लव की ज्योति प्रज्वलित की।

  • 10 जुलाई,सन्1855 ई. को ब्रतानी सैनिकों के साथ हुए संघर्ष में चाँद तथा भैरव गोली के शिकार हुए।
  • अंग्रेज़ों ने सिद्धू तथा कान्हू के विश्वस्त साथियों को पैसे का लालच देकर उन्हें भी कुछ दिनों बाद गिरफ़्तार कर लिया और फिर 26 जुलाई को दोनों भाइयों को भगनाडीह ग्राम में खुलेआम एक पेड़ पर टांगकर फ़ाँसी की सज़ा दे दी गई।[1]


इन्हें भी देखें: संथाल, आन्दोलन विप्लव सैनिक विद्रोह (1757-1856 ई.) एवं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वर्तमान 'सीधू, कान्हू विश्वविधालय', संथाल परगना की स्थापना मुख्यमंत्री, लालू प्रसाद ने उन्हीं के सम्मान में की थी।

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