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− | हे < | + | हे पार्थ<ref>पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी [[अर्जुन]] के सम्बोधन है।</ref> ! जिस अव्यभिचारिणी धारण शक्ति से मनुष्य ध्यान योग के द्वारा मन, प्राण और [[इन्द्रियाँ|इन्द्रियों]] की क्रियाओं को धारण करता है, वह धृति सात्त्विकी है ।।33।। |
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05:50, 7 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-18 श्लोक-33 / Gita Chapter-18 Verse-33
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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