मानसून का शंख -आदित्य चौधरी

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मानसून का शंख -आदित्य चौधरी


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        "आपको कुछ पता भी है कि दुनिया में क्या हो रहा है, अरे! दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी और एक हमारे ये हैं... भोले भंडारी... अरे महाराज समाधि लगाये ही बैठे रहोगे या कुछ मेरी भी सुनोगे ?" कैलास पर्वत पर पार्वती मैया ग़ुस्से से भन्ना रही थीं। शंकर जी ने ध्यान भंग करना ही सही समझा और बोले-
"तुम्हारी ही तो सुनता हूँ भागवान... दूसरे देवता तो चार-चार... छह-छह ब्याह करके बैठे हैं और मैं तो सिर्फ़ तुम्हारी ही माला जपता रहता हूँ... अब हुआ क्या जो नंदी की तरह सींग समेत लड़ रही हो ?"
        "मेरे अलावा कोई दूसरी इस कमबख्त नंदी पर बैठ कर घूमने को तैयार भी तो नहीं होगी... बताओ, हद हो गई... भला नंदी भी कोई सवारी हुई... ज़रा किसी दूसरी देवी को बिठा कर तो देखो नंदी पर... लक्ष्मी जी होतीं तो दो दिन में भाग जातीं... वो तो मैं ही हूँ जो तुम्हारे भूत-प्रेतों के साथ निभा रही हूँ।" अब तक साड़ी कमर में खोंसी जा चुकी थी। नंदी की आँखों में उदासी छा गई थी, दोनों कान लटक गए और गर्दन झुक गई... भगवान शिव शंकर इस मामले की नज़ाकत को समझ कर पूरी तरह से आत्मसमर्पण करके बोले-
"चलो ठीक, बेचारे नंदी को क्यों घसीट रही हो... अब बता भी दो, क्या बात है ?
"बात... बात तो कुछ नहीं है ! मैं तो बस इतना चाहती हूँ कि जैसे दूसरे भगवानों का सम्मान होता है, ऐसे ही आपका भी होना चाहिए... मुझसे यह नहीं बर्दाश्त होता कि सब आपको भोलेबाबा-भोलेबाबा कहकर बहकाते रहें... बस कह दिया मैंने... हाँ नईं तो..."
"आख़िर तुम चाहती क्या हो... ये तो बताओ ?"
        "देखो जी ! जब तुम शंख बजाते हो, तभी तो ये इंद्र देवता बारिश करता है... है कि नईं...अरे कभी मना भी कर दिया करो कि भैया ! मैं नहीं बजा रहा शंख... अब आप कान खोल कर सुन लीजिए, बारह साल तक शंख मत बजाना... जब तक मैं नहीं कहूँ, तब तक नहीं... आई समझ में या मुझे भी तांडव करके दिखाना पड़ेगा" पार्वती मैया ने अध्यादेश जारी कर दिया।
"मैं समझ गया।"
"क्या समझ गए ?"
"यही कि सुबह नारद आया था..." 
"तो ?... नारद से क्या मतलब ?... वो तो सिर्फ़ इतना ही बता रहा था कि जो रुतबा दूसरे भगवानों का होता है... वो आपका क्यों नहीं है"
"चलो ठीक है... जैसे तुम कहो... अब मैं बारह साल तक शंख नहीं बजाऊँगा... या फिर जब तुम कहोगी, तब ही बजाऊँगा... अब तो शांत हो जाओ भगवती।"
अब लौटें अपने देश में...
        "सब लोग ध्यान से सुनो... अब बारह साल तक बारिश नहीं होगी... भोलेबाबा याने शंकर भगवान को किसी ने बहका दिया है तो वो शंख नहीं बजाएँगे।"
गाँव की चौपाल पर, छोटे पहलवान ने ये घोषणा सुनी और अपने घर से हल-बैल लेकर सीधे जा पहुँचा खेत में, और हल चलाने लगा। उधर पार्वती जी को चैन नहीं पड़ रहा था कि देखें तो सही कि पृथ्वी पर हो क्या रहा है ? इसलिए शंकर-पार्वती धरती पर विचरण करने लगे। संयोग से छोटे पहलवान के गाँव पहुँच गए तो देखा कि छोटे तो हल चला रहा है।
"लगता है बेचारे को पता नहीं है कि 12 साल बरसात नहीं होगी... आइए इसे बता दें..." पार्वती जी ने शंकर जी से कहा
"रहने दो - रहने दो इसे मत छेड़ो... ये भारत का किसान है... इससे पंगा लेना ठीक नहीं है... तुम नहीं जानती इनको..."
"नहीं, मैं तो इससे बात करूँगी।"
इतना कहकर, सामान्य नर-नारी के वेश में दोनों छोटे के पास पहुँचे।
"बरसात तो बारह वर्ष तक नहीं होगी और तुम हल चला रहे हो ? ऐसा लगता है कि तुमको ये बात मालूम नहीं है !" पार्वती ने पूछा
"मुझे पता है कि बारह वर्ष तक बारिश नहीं होगी।"
"तो फिर ?"
"अजी, बात ये है बहन जी कि बारह साल बाद बारिश होगी और इन बारह सालों में अगर मैं हल चलाना भूल गया तो ?... वैसे महादेव जी भी बारह साल बाद, शंख बजा पाएँगे या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है... लेकिन कोई बात नहीं है, किसी और देवी-देवता को दे दी जाएगी शंख बजाने की ज़िम्मेदारी... क्यों बहन जी ठीक है ना... ?"
शंकर जी भी खड़े-खड़े सुन रहे थे। पार्वती जी उन्हें एक तरफ़ ले जा कर बोली
"अजी मैं तो कहती हूँ ज़रा शंख बजा कर देखना तो... मुझे तो लगता है ये किसान सही कह रहा है !"
महादेव मुस्कुराए और शंख बजा दिया... बस फिर क्या था... झमा-झम बरसात होने लगी।
        भारत का ही नहीं बल्कि विश्व के प्रत्येक देश का किसान, यदि भगवान नहीं है तो भगवान से कम भी नहीं है। भारत के किसान की परिस्थितियाँ बहुत विषम हैं, जिनके बारे में जानकारी हमें अख़बार, पत्रिका और टीवी पर मिलती रहती है। सामान्यत: किसान का एक बेटा खेत में होता है तो दूसरा सीमाओं पर तैनात होता है, देश की रक्षा के लिए।
        विश्व का परिदृश्य देखें तो कृषि क्षेत्र में भारत दूसरे स्थान पर है (कुल उत्पाद में)। यदि प्रति हेक्टेयर उत्पादन की बात करें तो हालात बहुत चिंताजनक हैं। किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उत्पादन पर नज़र डालें तो भारत का स्थान लगभग 83-84 वाँ है। इसमें अमरीका 11 वें स्थान पर और जापान 15 वें स्थान पर है। इसे सरल भाषा में कहें तो जितनी भूमि में हम जिस मात्रा में अन्न पैदा कर रहे हैं, उतनी ही भूमि में कुछ देश चार गुणे से अधिक उत्पादन कर रहे हैं। 
        कृषि क्षेत्रफल के लिए भी हमारी जागरूकता नहीं के बराबर है। देश के कुल क्षेत्रफल का 50% से भी कम कृषि उपयोग में आता है, जो कि प्रतिदिन बढ़ने के बजाय कम होता जा रहा है। इज़राइल ने समुद्री दलदल को सुखा-सुखा कर उसे खेती के योग्य बना लिया है और कई किलोमीटर तक समुद्र में घुस गया है। जबकि हमारे यहाँ उल्टा हो रहा है। हम कृषि योग्य भूमि को कंक्रीट के जंगल में बदल रहे हैं। उपजाऊ भूमि पर बनती अट्टालिकाएँ और सड़कें कृषि के लिए स्पष्ट ख़तरा है। 
        इस 'तथाकथित विकास' के पीछे कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिन पर हमारी निगाह नहीं जा पाती, जैसे कि 'इकॉनमिक हिट-मॅन'। वैसे तो हिट-मॅन उनको कहा जाता है जो किसी की जान लेने के कार्य को व्यवसाय की तरह करते हैं और भाड़े पर उपलब्ध होते हैं। लेकिन 'इकॉनमिक हिट-मॅन' उनसे ज़्यादा ख़तरनाक साबित हुए हैं। इकॉनमिक हिट-मॅन सबसे पहले पिछड़े देशों या प्रदेशों के मुख्य व्यक्ति से संपर्क करके उन्हें एक योजनाबद्ध विकास का लालच देते हैं। यह एक ऐसे विकास का प्रारूप होता है जिसमें ऑयल रिफ़ायनरी, बिजली-घर, जल-संसाधन सयंत्र, ऊँची अट्टालिकाओं के 'कॉरपोरेट कॉम्पलॅक्स', शॉपिंग मॉल, ऍक्सप्रॅस वे, फ़्लाईओवर, मॅट्रो, टनल वे, सबवे, अम्युज़मॅन्ट पार्क आदि-आदि एक सुनहरे सपनों जैसी योजनाएँ होती हैं। शहरों का आधुनिकीकरण और नये शहर बनाना इनका मुख्य मुद्दा होता है।
        इस चकाचौंध से भरे आकर्षक प्रस्ताव को भला तीसरी दुनिया का कौन से विकासशील देश या प्रदेश का मुखिया स्वीकार नहीं करेगा ? विकासशील और पिछड़े देशों और प्रदेशों के विकास के लिए दुनिया में कुछ संस्थाएँ कार्यरत हैं, जैसे कि विश्व बॅन्क, यू.ऍस-एड (USAID) आदि। इसी तरह की संस्थाओं से इन देशों या प्रदेशों को ऋण के रूप में पैसा दिलवाया जाता है और लगभग सभी ठेकों को पूर्व निर्धारित कम्पनियों को दिया जाता है। साथ ही उस देश या प्रदेश के मुखिया को रिश्वत के रूप में मोटी रक़म दे दी जाती है। किसान की उपजाऊ ज़मीन का अधिगृहण किया जाता है। मुआवज़े के पैसे को किसान ऐश-आराम में उड़ा देते हैं और बेरोज़गार हो जाते हैं।
        सबसे अधिक ध्यान देने वाली बात यह है कि पूरे विश्व में केवल वही देश शक्तिशाली, आत्मनिर्भर और विकसित हो पाए हैं, जिस देश के किसान समृद्ध, स्वस्थ और पढ़े-लिखे हैं। जैसे- जापान, इज़राइल, नीदरलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी आदि। 

इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और...
-आदित्य चौधरी
संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक