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इस प्रकार ध्यान योग की अन्तिम स्थिति को प्राप्त हुए पुरुष के और उसके जीते हुए चित्त के लक्षण बतला देने के बाद, अब तीन [[श्लोक]] में ध्यान योग द्वारा सच्चिदानन्द परमात्मा को प्राप्त पुरुष की स्थिति का वर्णन करते हैं-  
 
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जिस प्रकार वायुरहित स्थान में स्थित [[दीपक]] चलायमान नहीं होता, वैसी ही उपमा परमात्मा के [[ध्यान]] में लगे हुए योगी के जीते हुए चित्त की कही गयी है ।।19।।  
  
 
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06:14, 5 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

गीता अध्याय-6 श्लोक-19 / Gita Chapter-6 Verse-19

प्रसंग-


इस प्रकार ध्यान योग की अन्तिम स्थिति को प्राप्त हुए पुरुष के और उसके जीते हुए चित्त के लक्षण बतला देने के बाद, अब तीन श्लोक में ध्यान योग द्वारा सच्चिदानन्द परमात्मा को प्राप्त पुरुष की स्थिति का वर्णन करते हैं-


यथा दीपो निवातस्थो नेंग्ङते सोपमा स्मृता ।
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मन: ।।19।।



जिस प्रकार वायुरहित स्थान में स्थित दीपक चलायमान नहीं होता, वैसी ही उपमा परमात्मा के ध्यान में लगे हुए योगी के जीते हुए चित्त की कही गयी है ।।19।।

As a light does not flicker in a windless place, such is stated to be the picture of the disciplined mind of the Yogi practicing meditation on god. (19)


यथा = जिस प्रकार; निवातस्थ: = वायुरहित स्थान में स्थित; दीप: = दीपक; न = नहीं; इन्गते = चलायमान होता है; सा = वैसा ही; उपमा = उपमा; आत्मन: = परमात्मा के; योगम् = ध्यान में लगे हुए; युज्जत: = योगी के; यतचित्तस्य = जीते हुए चित्त की; स्मृता = कही गई है



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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