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'''जमशेद जी जीजाभाई''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Jamsetjee Jejeebhoy'') (जन्म: [[15 जुलाई]], 1783 ई. - मृत्यु: [[14 अप्रैल]], [[1859]]) अपने व्यवसाय से अत्यंत धनी बने दानवीर थे। जमशेद जी जीजाभाई का सबसे अधिक नाम उनकी दानशीलता के कारण है।   
  
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
जमशेद जी जीजाभाई का जन्म 15 जुलाई, 1883 ई. को एक गरीब [[परिवार]] में [[मुंबई]] में हुआ था। आर्थिक तंगी के कारण वे शिक्षा ग्रहण नहीं कर सके। 12 [[वर्ष]] की छोटी उम्र में अपने मामा के साथ पुरानी बोतलें बेचने के धंधे में लग गए थे। कुछ दिन बाद ममेरी बहन से उनका [[विवाह]] भी हो गया। 1899 में [[माता]]-[[पिता]] का देहांत हो जाने से परिवार का पूरा भार जीजाभाई ऊपर आ गया।
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जमशेद जी जीजाभाई का जन्म 15 जुलाई, 1783 ई. को एक गरीब [[परिवार]] में [[मुंबई]] में हुआ था। आर्थिक तंगी के कारण वे शिक्षा ग्रहण नहीं कर सके। 12 [[वर्ष]] की छोटी उम्र में अपने मामा के साथ पुरानी बोतलें बेचने के धंधे में लग गए थे। कुछ दिन बाद ममेरी बहन से उनका [[विवाह]] भी हो गया। 1899 में [[माता]]-[[पिता]] का देहांत हो जाने से परिवार का पूरा भार जीजाभाई ऊपर आ गया।
  
 
==व्यवसाय की शुरुआत==
 
==व्यवसाय की शुरुआत==

08:34, 6 जुलाई 2015 का अवतरण

जमशेद जी जीजाभाई
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पूरा नाम जमशेद जी जीजाभाई
जन्म 15 जुलाई, 1783
जन्म भूमि बॉम्बे (वर्तमान मुंबई])
मृत्यु 14 अप्रैल, 1859
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र उद्योगपति और व्यापारी
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी जमशेद जी जीजाभाई का सबसे अधिक नाम उनकी दानशीलता के कारण है। उनकी आर्थिक सहायता से स्थापित संस्थाओं में प्रमुख हैं- जे. जे. अस्पताल, जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट, पूना बांध और जल संस्थान।

जमशेद जी जीजाभाई (अंग्रेज़ी:Jamsetjee Jejeebhoy) (जन्म: 15 जुलाई, 1783 ई. - मृत्यु: 14 अप्रैल, 1859) अपने व्यवसाय से अत्यंत धनी बने दानवीर थे। जमशेद जी जीजाभाई का सबसे अधिक नाम उनकी दानशीलता के कारण है।

जीवन परिचय

जमशेद जी जीजाभाई का जन्म 15 जुलाई, 1783 ई. को एक गरीब परिवार में मुंबई में हुआ था। आर्थिक तंगी के कारण वे शिक्षा ग्रहण नहीं कर सके। 12 वर्ष की छोटी उम्र में अपने मामा के साथ पुरानी बोतलें बेचने के धंधे में लग गए थे। कुछ दिन बाद ममेरी बहन से उनका विवाह भी हो गया। 1899 में माता-पिता का देहांत हो जाने से परिवार का पूरा भार जीजाभाई ऊपर आ गया।

व्यवसाय की शुरुआत

उनमें बड़ी व्यवसाय-बुद्धि थी। व्यवहार से उन्होंने साधारण हिसाब रखना और कामचलाऊ अंग्रेजी सीख ली थी। उन्होंने अपने व्यापार का भारत के बाहर विस्तार किया। भाड़े के जहाजों में चीन के साथ वस्तुओं का क्रय-विक्रय करने लगे। 20 वर्ष के थे तभी उन्होंने पहली चीन यात्रा की। कुल मिलाकर वे पांच बार चीन गए। कभी ये यात्राएं खतरनाक भी सिद्ध हुईं। एक बार पुर्तग़ालियों ने इनका जहाज पकड़कर लूट लिया और इन्हें केप ऑफ गुडहोप के पास छोड़ दिया था। किसी तरह मुंबई आकर इन्होंने फिर अपने को संभाला और 1914 में अपना जहाज ख़रीदने के बाद जहाजी बेड़ा बढ़ाने और निरंतर उन्नति की दिशा में बढ़ते गए।

योगदान

दुर्भिक्ष सहायता, कुओं और बांधों का निर्माण, सड़कों और पुलों का निर्माण, औषधालय स्थापना, शिक्षा-संस्थाएं, पशु-शालाएं, अनाथालय आदि सभी के लिए उन्होंने धन दिया। उनकी आर्थिक सहायता से स्थापित संस्थाओं में प्रमुख हैं- जे. जे. अस्पताल, जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट, पूना बांध और जल संस्थान। ‘मुंबई समाचार’ और ‘मुंबई टाइम्स’ (अब का टाइम्स ऑफ इंडिया) जैसे पत्रों को भी सहायता मिली। अनुमानतः उस समय उन्होंने 30 लाख रुपये से अधिक का दान दिया था।

सम्मान

महारानी विक्टोरिया द्वारा सम्मानित होने वाले प्रथम भारतीय थे। सांप्रदायिक भेदभाव से दूर रहने वाले जीजाभाई ने महिलाओं की स्थिति सुधारने तथा पारसी समाज की बुराइयां दूर करने के लिए भी अनेक क़दम उठाए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

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