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[[महाभारत]] में मूलतः 8800 श्लोक थे तथा इसका नाम 'जयसंहिता' (विजय संबंधी ग्रंथ) था। बाद में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात यह वैदिक जन [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]] के वंशजों की कथा होने के कारण ‘भारत‘ कहलाया। कालान्तर में [[गुप्त काल]] में श्लोकों की संख्या बढ़कर एक लाख होने पर यह 'शतसाहस्त्री संहिता' या 'महाभारत' कहलाया। महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख 'आश्वलाय गृहसूत्र' में मिलता है। वर्तमान में इस महाकाव्य में लगभग एक लाख श्लोकों का संकलन है। महाभारत महाकाव्य 18 पर्वो- [[आदि पर्व महाभारत|आदि]], [[सभा पर्व महाभारत|सभा]], [[वन पर्व महाभारत|वन]], [[विराट पर्व महाभारत|विराट]], [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योग]], [[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म]], [[द्रोण पर्व महाभारत|द्रोण]], [[कर्ण पर्व महाभारत|कर्ण]], [[शल्य पर्व महाभारत|शल्य]], [[सौप्तिक पर्व महाभारत|सौप्तिक]], [[स्त्री पर्व महाभारत|स्त्री]], [[शान्ति पर्व महाभारत|शान्ति]], [[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन]], [[आश्वमेधिक पर्व महाभारत|अश्वमेघ]], [[आश्रमवासिक पर्व महाभारत|आश्रमवासी]], [[मौसल पर्व महाभारत|मौसल]], [[महाप्रास्थानिक पर्व महाभारत|महाप्रास्थानिक]] एवं [[स्वर्गारोहण पर्व महाभारत|स्वर्गारोहण]] में विभाजित है। महाभारत में ‘हरिवंश‘ नाम परिशिष्ट है। इस महाकाव्य से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है।
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[[महाभारत]] में मूलतः 8800 श्लोक थे तथा इसका नाम 'जयसंहिता' (विजय संबंधी ग्रंथ) था। बाद में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात् यह वैदिक जन [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]] के वंशजों की कथा होने के कारण ‘भारत‘ कहलाया। कालान्तर में [[गुप्त काल]] में श्लोकों की संख्या बढ़कर एक लाख होने पर यह 'शतसाहस्त्री संहिता' या 'महाभारत' कहलाया। महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख 'आश्वलाय गृहसूत्र' में मिलता है। वर्तमान में इस महाकाव्य में लगभग एक लाख श्लोकों का संकलन है। महाभारत महाकाव्य 18 पर्वो- [[आदि पर्व महाभारत|आदि]], [[सभा पर्व महाभारत|सभा]], [[वन पर्व महाभारत|वन]], [[विराट पर्व महाभारत|विराट]], [[उद्योग पर्व महाभारत|उद्योग]], [[भीष्म पर्व महाभारत|भीष्म]], [[द्रोण पर्व महाभारत|द्रोण]], [[कर्ण पर्व महाभारत|कर्ण]], [[शल्य पर्व महाभारत|शल्य]], [[सौप्तिक पर्व महाभारत|सौप्तिक]], [[स्त्री पर्व महाभारत|स्त्री]], [[शान्ति पर्व महाभारत|शान्ति]], [[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन]], [[आश्वमेधिक पर्व महाभारत|अश्वमेध]], [[आश्रमवासिक पर्व महाभारत|आश्रमवासी]], [[मौसल पर्व महाभारत|मौसल]], [[महाप्रास्थानिक पर्व महाभारत|महाप्रास्थानिक]] एवं [[स्वर्गारोहण पर्व महाभारत|स्वर्गारोहण]] में विभाजित है। महाभारत में ‘हरिवंश‘ नाम परिशिष्ट है। इस महाकाव्य से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है।
  
  
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Disamb2.jpg जय एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- जय (बहुविकल्पी)

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महाभारत में मूलतः 8800 श्लोक थे तथा इसका नाम 'जयसंहिता' (विजय संबंधी ग्रंथ) था। बाद में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात् यह वैदिक जन भरत के वंशजों की कथा होने के कारण ‘भारत‘ कहलाया। कालान्तर में गुप्त काल में श्लोकों की संख्या बढ़कर एक लाख होने पर यह 'शतसाहस्त्री संहिता' या 'महाभारत' कहलाया। महाभारत का प्रारम्भिक उल्लेख 'आश्वलाय गृहसूत्र' में मिलता है। वर्तमान में इस महाकाव्य में लगभग एक लाख श्लोकों का संकलन है। महाभारत महाकाव्य 18 पर्वो- आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शान्ति, अनुशासन, अश्वमेध, आश्रमवासी, मौसल, महाप्रास्थानिक एवं स्वर्गारोहण में विभाजित है। महाभारत में ‘हरिवंश‘ नाम परिशिष्ट है। इस महाकाव्य से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है।



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