"तुलसी माता की आरती" के अवतरणों में अंतर
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जय जय तुलसी माता, | जय जय तुलसी माता, | ||
− | सबकी सुखदाता वर | + | सबकी सुखदाता वर माता। |
सब योगों के ऊपर, | सब योगों के ऊपर, | ||
सब रोगों के ऊपर, | सब रोगों के ऊपर, | ||
− | रज से रक्षा करके भव | + | रज से रक्षा करके भव त्राता। |
बहु पुत्री है श्यामा, सूर वल्ली है ग्राम्या, | बहु पुत्री है श्यामा, सूर वल्ली है ग्राम्या, | ||
− | विष्णु प्रिय जो तुमको सेवे सो नर तर | + | विष्णु प्रिय जो तुमको सेवे सो नर तर जाता। |
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित, | हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित, | ||
− | पतित जनों की तारिणि तुम हो | + | पतित जनों की तारिणि तुम हो विख्याता। |
लेकर जन्म बिजन में, आई दिव्य भवन में, | लेकर जन्म बिजन में, आई दिव्य भवन में, | ||
− | मानव लोक तुम्हीं से सुख संपति | + | मानव लोक तुम्हीं से सुख संपति पाता। |
हरि को तुम अति प्यारी श्याम वर्ण सुकुमारी, | हरि को तुम अति प्यारी श्याम वर्ण सुकुमारी, | ||
− | प्रेम अजब है श्री हरि का तुम से | + | प्रेम अजब है श्री हरि का तुम से नाता। |
− | जय जय तुलसी | + | जय जय तुलसी माता।</poem></span></blockquote> |
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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12:15, 21 मार्च 2014 के समय का अवतरण
जय जय तुलसी माता,
सबकी सुखदाता वर माता।
सब योगों के ऊपर,
सब रोगों के ऊपर,
रज से रक्षा करके भव त्राता।
बहु पुत्री है श्यामा, सूर वल्ली है ग्राम्या,
विष्णु प्रिय जो तुमको सेवे सो नर तर जाता।
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित,
पतित जनों की तारिणि तुम हो विख्याता।
लेकर जन्म बिजन में, आई दिव्य भवन में,
मानव लोक तुम्हीं से सुख संपति पाता।
हरि को तुम अति प्यारी श्याम वर्ण सुकुमारी,
प्रेम अजब है श्री हरि का तुम से नाता।
जय जय तुलसी माता।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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