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मोढेरा

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मोढेरा गुजरात के प्रसिद्ध ऐतिहासिक और प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यह मैसाणा से 25 किलोमीटर और अहमदाबाद से 102 किलोमीटर की दूरी पर स्‍थित है, जहाँ मातं‍गि का कुल स्थान है। मोढेरा में राजा भीमदेव प्रथम द्वारा बनवाया गया विश्व प्रसिद्ध सूर्य मन्दिर है, जिसकी सुन्दरता और अद्भुत स्थापत्य सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह मन्दिर मोढेरा से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मोढेरा से ही लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर 'डीसा' है, जहाँ सिद्धाम्बिका माता का मन्दिर है।

दर्शनीय स्थल

मोढेरा अपनी स्थापत्य कला और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध रहा है। आज भी यहाँ कई धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक स्थल हैं। यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में प्रमुख हैं-

सूर्य मन्दिर

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'मोढेरा सूर्य मन्दिर' गुजरात में पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है, जिसकी पवित्रता और भव्यता का वर्णन स्कन्दपुराण और ब्रह्मपुराण में भी मिलता है। प्राचीन समय में इस प्रसिद्ध स्थान का नाम 'धर्मारण्य' था। लंका के राजा रावण का वध करने के पश्चात भगवान श्रीराम ने ब्राह्मण हत्या से मुक्ति के लिए यहाँ पर यज्ञ किया था और कालान्तर 1026 ईस्वी में सोलंकी नरेश भीमदेव प्रथम नें 'मोढेरा सूर्य मन्दिर' का निर्माण करवाया। मन्दिर में कमल के फूल रूपी विशाल चबूतरे पर भगवान सूर्य देव की ऱथ पर आरूढ सुवर्ण की प्रतिमा थी। मन्दिर परिसर में एक विशाल सरोवर तथा 52 स्तम्भों पर टिका एक मण्डप था। 52 स्तम्भ वर्ष के सप्ताहों के प्रतीक हैं। स्तम्भों तथा दीवारों पर खजुराहो की तरह की आकर्षक शिल्पकला थी। शिल्पकला की सुन्दरता का आँकलन देख कर ही किया जा सकता है। आज यह स्थल भी हिन्दूओं की उपेक्षा का प्रतीक चिह्न बन कर रह गया है।

  • मुस्लिम आक्रांता अलाउद्दीन ख़िलज़ी के आक्रमण के दौरान इस मन्दिर को काफ़ी नुकसान पहुँचा था। यहाँ पर उसने लूटपाट की और मन्दिर की अनेक मूर्तियों को खंडित कर दिया था। आज इस मन्दिर के संरक्षण की जिम्मेदारी 'भारतीय पुरातत्व विभाग' के पास है। समय के थपेडों को सहते हुए भी यह मन्दिर अपनी भव्यता का प्रमाण प्रस्तुत करता है। वर्तमान में इस मन्दिर में पूजा-अर्चना आदि करना निषेध है।

माताजी का मन्दिर

प्राचीन काल में मोढेरा नगरी 'धर्मारण्य' नाम से जानी जाती थी। मोढेरा, जो कि मोढेरा मातंगि का कुल स्थान है, यहाँ माताजी का प्रसिद्ध मंदिर है। दूर-दूर से माताजी को मानने वाले भक्त यहाँ उनके दर्शन करने की अभिलाषा लेकर आते हैं। मंदिर परिसर बहुत बड़ा है, जहाँ रहने और खाने की उत्तम व्यवस्था है। भक्तगण अपने मन्नतें मानते हैं और उनके पूर्ण होने पर पुन: आने की कहकर जाते हैं।


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