"यूँ तो कुछ भी नया नहीं -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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सुन के आवाज़ अपने दिल के टूट जाने की !
 
सुन के आवाज़ अपने दिल के टूट जाने की !
मैं भी हैरान हूँ, इस क़िस्म के वीराने में !!
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मैं भी हैरान हूँ इस, क़िस्म के वीराने में !!
 
   
 
   
 
ग़मे दौराँ की भी क़ीमत लगाई जाती है !
 
ग़मे दौराँ की भी क़ीमत लगाई जाती है !
तन्हा जीने की भी, इक शर्त है ज़माने में !!
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तन्हा जीने की भी इक, शर्त है ज़माने में !!
 
   
 
   
 
कोई मक़्सद ही नहीं मुझको मिला जीने का !
 
कोई मक़्सद ही नहीं मुझको मिला जीने का !

07:05, 7 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

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यूँ तो कुछ भी नया नहीं -आदित्य चौधरी

यूँ तो कुछ भी नया नहीं मेरे फ़साने में !
लुत्फ़ आता है, तुझे बारहा सुनाने में !!

वो जो इक दूर से आवाज़ आ रही थी कोई !
उसे तो वक़्त है, मेरे क़रीब आने में !!

तुझे भुला न सकूँगा ये मेरी फ़ितरत है !
चैन मिलता है मुझे, ख़ुद को भूल जाने में !!

सुन के आवाज़ अपने दिल के टूट जाने की !
मैं भी हैरान हूँ इस, क़िस्म के वीराने में !!
 
ग़मे दौराँ की भी क़ीमत लगाई जाती है !
तन्हा जीने की भी इक, शर्त है ज़माने में !!
 
कोई मक़्सद ही नहीं मुझको मिला जीने का !
एक लम्हा ही जीऊँ, जब हो मौत आने में !!



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