"लेकिन एक टेक और लेते हैं -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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'प्यासा' (1957) [[गुरुदत्त]] ने बनाई थी। गुरुदत्त सिनेमा जगत में लाइटिंग इफ़ॅक्ट के लिए विश्वविख्यात हैं। साथ ही उनके द्वारा किए गए 'सॉंग पिक्चराइज़ेश' भी कमाल के हैं। सॉंग पिक्चराइज़ेश के लिए विजय आनंद बॉलीवुड सिनेमा में सबसे बेहतरीन माने जाते हैं। उन्होंने फ़िल्म निर्देशन में जो प्रयोग किए हैं, वो ग़ज़ब हैं। 'गाइड' का गाना 'आज फिर जीने की तमन्ना है' मुखड़े की बजाय अंतरे से शुरू है और 'ज्यूल थीफ़' (1967) का गाना 'होठों पे ऐसी बात मैं दबा के चली आई' में विजय आनंद का निर्देशन और [[वैजयंती माला]] का नृत्य अभी तक बेजोड़ माना जाता है। | 'प्यासा' (1957) [[गुरुदत्त]] ने बनाई थी। गुरुदत्त सिनेमा जगत में लाइटिंग इफ़ॅक्ट के लिए विश्वविख्यात हैं। साथ ही उनके द्वारा किए गए 'सॉंग पिक्चराइज़ेश' भी कमाल के हैं। सॉंग पिक्चराइज़ेश के लिए विजय आनंद बॉलीवुड सिनेमा में सबसे बेहतरीन माने जाते हैं। उन्होंने फ़िल्म निर्देशन में जो प्रयोग किए हैं, वो ग़ज़ब हैं। 'गाइड' का गाना 'आज फिर जीने की तमन्ना है' मुखड़े की बजाय अंतरे से शुरू है और 'ज्यूल थीफ़' (1967) का गाना 'होठों पे ऐसी बात मैं दबा के चली आई' में विजय आनंद का निर्देशन और [[वैजयंती माला]] का नृत्य अभी तक बेजोड़ माना जाता है। | ||
यश चौपड़ा ने प्रेम त्रिकोण को अपना प्रिय विषय बना लिया तो ऋषिकेश मुखर्जी ने स्वस्थ कॉमेडी को। ऋषिकेश मुखर्जी ने फ़िल्म सम्पादन से अपनी शुरुआत की थी। दोनों ने ही विदेशी फ़िल्मों की नक़ल करने के बजाय अधिकतर भारतीय मौलिक कहानियों को चुना। | यश चौपड़ा ने प्रेम त्रिकोण को अपना प्रिय विषय बना लिया तो ऋषिकेश मुखर्जी ने स्वस्थ कॉमेडी को। ऋषिकेश मुखर्जी ने फ़िल्म सम्पादन से अपनी शुरुआत की थी। दोनों ने ही विदेशी फ़िल्मों की नक़ल करने के बजाय अधिकतर भारतीय मौलिक कहानियों को चुना। | ||
− | 1954 में जापानी फ़िल्म 'द सेवन समुराई' बनी, जो 'अकीरा कुरोसावा' ने बनाई। जापान के अकीरा कुरोसावा 'विश्व सिनेमा जगत के पितामह' कहे जाते हैं। विश्व | + | 1954 में जापानी फ़िल्म 'द सेवन समुराई' बनी, जो 'अकीरा कुरोसावा' ने बनाई। जापान के अकीरा कुरोसावा 'विश्व सिनेमा जगत के पितामह' कहे जाते हैं। विश्व की श्रेष्ठ फ़िल्मों में गिनी जाने वाली इस फ़िल्म को आधार बना कर अनेक फ़िल्में बनी जिनमें एक रमेश सिप्पी की '[[शोले (फ़िल्म)|शोले]]' भी है। अल्पायु में ही स्वर्ग सिधारे जापान के महान कहानीकार 'रुनोसुके अकूतगावा' की दो कहानियों पर आधारित अद्भुत फ़िल्म, 'राशोमोन' बना कर कुरोसावा पहले ही ख्याति प्राप्त कर चुके थे। इस समय भारत में भी कई अच्छी फ़िल्में बनीं। [[सत्यजित राय]], 'पाथेर पांचाली' (1955) बना रहे थे, जिसकी शूटिंग के लिए बार-बार पैसा ख़त्म हो जाता था लेकिन अपने पसंदीदा 40 एम.एम. लेन्स के साथ उन्होंने इस फ़िल्म से भारत में ही नहीं, बल्कि सारी दुनियाँ में शोहरत पाई। हम भारतीयों को गर्व होना चाहिए कि कुरोसावा ने सत्यजित राय के लिए कहा- |
"सत्यजित राय के बिना सिनेमा जगत वैसा ही है जैसे सूरज-चाँद के बिना आसमान।" | "सत्यजित राय के बिना सिनेमा जगत वैसा ही है जैसे सूरज-चाँद के बिना आसमान।" | ||
सत्यजित राय ने [[राजकपूर]] की 'मेरा नाम जोकर' के प्रथम भाग (बचपन वाला) को 10 महान फ़िल्मों में से बताया। राजकपूर अभिनीत 'जागते रहो' (1956) और [[महबूब ख़ान]] की '[[मदर इंडिया]]' (1957) जैसी अच्छी फ़िल्में आईं। 1957 में ही एक और अच्छी फ़िल्म ‘[[दो आंखें बारह हाथ]]’ [[वी. शांताराम]] ने बनाई। ये सिनेमा 1980-90 तक आते-आते [[श्याम बेनेगल]] की 'अंकुर' और गोविन्द निहलानी की 'आक्रोश' भी हमें दिखा गया और 'रिचर्ड एटनबरो' की [[महात्मा गाँधी]] पर बनी उत्कृष्ट फ़िल्म 'गांधी' भी। | सत्यजित राय ने [[राजकपूर]] की 'मेरा नाम जोकर' के प्रथम भाग (बचपन वाला) को 10 महान फ़िल्मों में से बताया। राजकपूर अभिनीत 'जागते रहो' (1956) और [[महबूब ख़ान]] की '[[मदर इंडिया]]' (1957) जैसी अच्छी फ़िल्में आईं। 1957 में ही एक और अच्छी फ़िल्म ‘[[दो आंखें बारह हाथ]]’ [[वी. शांताराम]] ने बनाई। ये सिनेमा 1980-90 तक आते-आते [[श्याम बेनेगल]] की 'अंकुर' और गोविन्द निहलानी की 'आक्रोश' भी हमें दिखा गया और 'रिचर्ड एटनबरो' की [[महात्मा गाँधी]] पर बनी उत्कृष्ट फ़िल्म 'गांधी' भी। | ||
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हॉलीवुड में 'वॅस्टर्न्स' (काउ बॉय कल्चर वाली फ़िल्में) का ज़ोर भी चल निकला। सरजो लियोने की 'वंस अपॉन ए टाइम इन द वॅस्ट' एक श्रेष्ठ फ़िल्म बनी। सरजो लियोने ने क्लिंट ईस्टवुड के साथ कई फ़िल्में बनाईं। इन फ़िल्मों में 'ऐन्न्यो मोरिकोने' के संगीत दिया और सारी दुनियाँ में प्रसिद्ध हुआ। 'नीनो रोटा' भी फ़िल्मों में लाजवाब संगीत दे रहे थे जिसका इस्तेमाल इटली के फ़िल्मकारों ने ख़ूब किया। | हॉलीवुड में 'वॅस्टर्न्स' (काउ बॉय कल्चर वाली फ़िल्में) का ज़ोर भी चल निकला। सरजो लियोने की 'वंस अपॉन ए टाइम इन द वॅस्ट' एक श्रेष्ठ फ़िल्म बनी। सरजो लियोने ने क्लिंट ईस्टवुड के साथ कई फ़िल्में बनाईं। इन फ़िल्मों में 'ऐन्न्यो मोरिकोने' के संगीत दिया और सारी दुनियाँ में प्रसिद्ध हुआ। 'नीनो रोटा' भी फ़िल्मों में लाजवाब संगीत दे रहे थे जिसका इस्तेमाल इटली के फ़िल्मकारों ने ख़ूब किया। | ||
फ़ॅदरिको फ़ॅलिनी ने 1963 में 8<sup>1</sup>/<sub>2</sub> फ़िल्म बनाई तो वह विश्व की दस सार्वकालिक सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में जगह पा गई। इस फ़िल्म में संगीत 'नीनो रोटा' ने ही दिया और फ़िल्म की पकड़ इतनी ज़बर्दस्त बनी कि हम फ़िल्म से ध्यान हटा ही नहीं सकते। फ़ोर्ड कॉपोला ने भी 'मारियो पुज़ो' के उपन्यास पर आधारित फ़िल्म 'द गॉडफ़ादर' के लिए 'नीनो रोटा' को ही चुना। फ़िल्मों में अच्छे संगीत की भूमिका अब प्रमुख हो गई। संगीत के बादशाह 'मोत्ज़ार्ट' पर माइलॉस फ़ोरमॅन ने 'अमादिउस' बनाई। वुल्फ़गॅन्ग अमादिउस मोत्ज़ार्ट और अन्तोनियो सॅलिरी की कहानी पर बनी यह फ़िल्म, फ़ोरमॅन के उस करिश्मे से बड़ा करिश्मा थी, जो वे 1975 में 'वन फ़्ल्यू ओवर द कुक्कूज़ नेस्ट' बना कर कर चुके थे। | फ़ॅदरिको फ़ॅलिनी ने 1963 में 8<sup>1</sup>/<sub>2</sub> फ़िल्म बनाई तो वह विश्व की दस सार्वकालिक सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में जगह पा गई। इस फ़िल्म में संगीत 'नीनो रोटा' ने ही दिया और फ़िल्म की पकड़ इतनी ज़बर्दस्त बनी कि हम फ़िल्म से ध्यान हटा ही नहीं सकते। फ़ोर्ड कॉपोला ने भी 'मारियो पुज़ो' के उपन्यास पर आधारित फ़िल्म 'द गॉडफ़ादर' के लिए 'नीनो रोटा' को ही चुना। फ़िल्मों में अच्छे संगीत की भूमिका अब प्रमुख हो गई। संगीत के बादशाह 'मोत्ज़ार्ट' पर माइलॉस फ़ोरमॅन ने 'अमादिउस' बनाई। वुल्फ़गॅन्ग अमादिउस मोत्ज़ार्ट और अन्तोनियो सॅलिरी की कहानी पर बनी यह फ़िल्म, फ़ोरमॅन के उस करिश्मे से बड़ा करिश्मा थी, जो वे 1975 में 'वन फ़्ल्यू ओवर द कुक्कूज़ नेस्ट' बना कर कर चुके थे। | ||
− | पचास के दशक में के.आसिफ़ ने मशहूर फ़िल्म '[[मुग़ल-ए-आज़म]]' शुरू की, जो क़रीब नौ साल का समय लेकर 1960 में प्रदर्शित हुई। यूँ तो मुग़ल-ए-आज़म से जुड़े हुए हज़ार अफ़साने हैं लेकिन [[बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ|उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ]] का ठुमरी गाने का अंदाज़ सबसे रोचक है। इस फ़िल्म के संगीतकार नौशाद, के. आसिफ़ को लेकर बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ के घर पहुँचे और उनसे फ़िल्म में गाने के लिए कहा। बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ ने दोनों को टालने के लिए 25 हज़ार रुपये मांगे क्योंकि उस समय फ़िल्मों में गाना शास्त्रीय गायकों के लिए ओछी बात मानी जाती थी। के. आसिफ़ को चुटकी बजाकर बात करने की आदत थी, उन्होंने चॅक बुक निकालकर 10 हज़ार की रक़म लिखी और ख़ाँ साहब को चॅक थमा दिया और चुटकी बजाकर बोले "ये लीजिए एडवांस मैं आपको 25 हज़ार ही दूँगा।" पचास के दशक में फ़िल्मों में गाना गाने के हज़ार, दो हज़ार रुपये मिला करते थे। | + | पचास के दशक में के.आसिफ़ ने मशहूर फ़िल्म '[[मुग़ल-ए-आज़म]]' शुरू की, जो क़रीब नौ साल का समय लेकर 1960 में प्रदर्शित हुई। यूँ तो मुग़ल-ए-आज़म से जुड़े हुए हज़ार अफ़साने हैं, लेकिन [[बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ|उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ]] का ठुमरी गाने का अंदाज़ सबसे रोचक है। इस फ़िल्म के संगीतकार नौशाद, के. आसिफ़ को लेकर बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ के घर पहुँचे और उनसे फ़िल्म में गाने के लिए कहा। बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ ने दोनों को टालने के लिए 25 हज़ार रुपये मांगे क्योंकि उस समय फ़िल्मों में गाना शास्त्रीय गायकों के लिए ओछी बात मानी जाती थी। के. आसिफ़ को चुटकी बजाकर बात करने की आदत थी, उन्होंने चॅक बुक निकालकर 10 हज़ार की रक़म लिखी और ख़ाँ साहब को चॅक थमा दिया और चुटकी बजाकर बोले "ये लीजिए एडवांस मैं आपको 25 हज़ार ही दूँगा।" पचास के दशक में फ़िल्मों में गाना गाने के हज़ार, दो हज़ार रुपये मिला करते थे। |
आख़िरकार बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ रिकॉर्डिंग स्टूडियो पहुँचे। वहाँ उन्होंने औरों की तरह खड़े होकर गाने से मना कर दिया तो ज़मीन पर गद्दा, चांदनी और मसनद की व्यवस्था की गई। इतने पर भी ख़ाँ साहब गाने को राजी न हुए और उन्होंने पहले उस दृश्य को फ़िल्माने के लिए कहा, जिस पर कि उनकी ठुमरी चलनी थी। इसके बाद [[दिलीप कुमार]] और [[मधुबाला]] का वो दृश्य फ़िल्माया गया, जिसमें दिलीप कुमार, मधुबाला के चेहरे पर पंख से हल्के-हल्के से सहला रहे हैं। यह दृश्य स्टूडियो में पर्दे पर प्रोजेक्टर से चलाया गया और इसको देखते हुए ख़ाँ साहब ने अपनी मशहूर ठुमरी गायी। राग सोहणी में ‘प्रेम जोगन बनके’ ठुमरी, जितनी बार भी सुन लें, अच्छी ही लगती है। ठुमरी गा कर ख़ाँ साब बोले- | आख़िरकार बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ रिकॉर्डिंग स्टूडियो पहुँचे। वहाँ उन्होंने औरों की तरह खड़े होकर गाने से मना कर दिया तो ज़मीन पर गद्दा, चांदनी और मसनद की व्यवस्था की गई। इतने पर भी ख़ाँ साहब गाने को राजी न हुए और उन्होंने पहले उस दृश्य को फ़िल्माने के लिए कहा, जिस पर कि उनकी ठुमरी चलनी थी। इसके बाद [[दिलीप कुमार]] और [[मधुबाला]] का वो दृश्य फ़िल्माया गया, जिसमें दिलीप कुमार, मधुबाला के चेहरे पर पंख से हल्के-हल्के से सहला रहे हैं। यह दृश्य स्टूडियो में पर्दे पर प्रोजेक्टर से चलाया गया और इसको देखते हुए ख़ाँ साहब ने अपनी मशहूर ठुमरी गायी। राग सोहणी में ‘प्रेम जोगन बनके’ ठुमरी, जितनी बार भी सुन लें, अच्छी ही लगती है। ठुमरी गा कर ख़ाँ साब बोले- | ||
"वैसे ये लड़का और ये लड़की हैं तो अच्छे..." | "वैसे ये लड़का और ये लड़की हैं तो अच्छे..." |
14:27, 5 जून 2012 का अवतरण
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बाहरी कड़ियाँ
- गाइड का गाना 'आज फिर जीने की तमन्ना है' (यू ट्यूब विडियो)
- ज्यूल थीफ़ का गाना 'होठों पर ऐसी बात' (यू ट्यूब विडियो)
- राशोमोन (Rashomon) (यू ट्यूब विडियो)
- गांधी (यू ट्यूब विडियो)
- द गॉडफ़ादर का मुख्य पार्श्व संगीत (Godfather Theme Song)(यू ट्यूब विडियो)
- द गुड बैड एंड अग्ली का पार्श्व संगीत (The Good The Bad And The Ugly Theme)(यू ट्यूब विडियो)
- ऑटम सोनाटा (Autumn Sonata)(यू ट्यूब विडियो)
- द थर्टी नाइन स्टेप्स (The 39 Steps)(यू ट्यूब विडियो)
- द सिटी लाइट्स (City Lights) (यू ट्यूब विडियो)
- मॉर्डन टाइम्स (Modern Times) (यू ट्यूब विडियो)
- गोल्ड रश (Gold Rush) (यू ट्यूब विडियो)
- द किड (The Kid) (यू ट्यूब विडियो)
- राजा हरिश्चंद्र (यू ट्यूब विडियो)
- बॅटलशिप पोटेम्किन (Battleship Potemkin) (यू ट्यूब विडियो)
- द ग्रेट डिक्टेटर (The Great Dictator)(यू ट्यूब विडियो)
- 'द ग्रेट डिक्टेटर' में चार्ली चॅपलिन का भाषण (यू ट्यूब विडियो)
- 'ख़ामोशी' (यू ट्यूब विडियो)
- प्यासा (यू ट्यूब विडियो)
- ‘प्रेम जोगन बनके’ (यू ट्यूब विडियो)