आधुनिक केरल

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केरल का आधुनिक इतिहास 18 वीं शती से शुरू होता है। ब्रिटिश उपनिवेशीय शासन के प्रारम्भ से लेकर आज तक का इतिहास इस काल खण्ड में आता है। इसी कालखण्ड में आधुनिक केरल का गठन हुआ था। इस कालखण्ड का सबसे शक्तिशाली राज्य तिरुवितांकूर था जहाँ ब्रिटिशों का प्रत्यक्ष शासन नहीं चल रहा था।

तिरुवितांकूर

तिरुवितांकूर नाम कैसे पड़ा, इसके बारे में बताया जाता है कि केरल के दक्षिणी छोर पर पश्चिमी घाट एवं अरब सागर के बीच का उर्वरक भूभाग 'श्री वाषुकोड' (देश जहाँ समृद्धि बसी हो) नाम से अभिहित था। यह 'तिरुवारंकोड' बना जिसका ग्राम्य रूप 'तिरुवंकोड' था जिससे तिरुवितांकूर बना। ईस्वी सन् की प्रारम्भिक शताब्दियों में इस प्रदेश के शासक आय राजवंश के थे। यह प्रदेश वेणाड नाम से विख्यात हो गया। महाराजा मार्ताण्ड वर्मा के शासनकाल में (सन् 1729 - 1758) वेणाड कोच्चि तक फैलकर तिरुवितांकूर नाम से प्रसिद्ध हो गया। मार्त्ताण्ड वर्मा ने ही गृह युद्ध को समाप्त कर दिया था और आट्टिंगल, कोल्लम, कोट्टारक्करा, कायंकुळम, अम्बलपुष़ा रियासतों को मिलाकर तिरुवितांकूर नामक शक्तिशाली देश की आधारशिला रखी थी। उसके उत्तराधिकारी कार्तिक तिरुनाल रामवर्मा ओर धर्मराजा (1758 - 1798) को मैसूर के सुलतान टीपू के आक्रमण का सामना करना पडा। किन्तु उन्होंने देश की प्रगति को लक्ष्य बनाकर शासन चक्र चलाया। तत्पश्चात् अविट्टम तिरुनाल बालराम वर्मा (1798 - 1810), रानी गौरी लक्ष्मी बाई (1810 - 1815), रानी गौरी पार्वती बाई (1815 - 1829), स्वाति तिरुनल (1829 - 1847), उत्रम तिरुनाल मार्ताण्ड वर्मा (1829 - 1860), आयिल्यम तिरुनाल (1860 - 1880), विशाखम् तिरुनाल (1880 - 1885), श्रीमूलम तिरुनाल (1885 - 1924), रानी सेतुलक्ष्मी बाई (1924 - 1931), श्रीचित्तिरा तिरुनाल बालराम वर्मा (1931 - 1949) आदि ने तिरुवितांकूर पर शासन किया। नवीन तिरुवितांकूर की राजधानियाँ थीं - पद्मनाभपुरम और तिरुवनन्तपुरम। तिरुवनन्तपुरम को स्थायी रूप से राजधानी बनाने वाले धर्मराजा ही थे।

तिरुवितांकूर के इतिहास में नित्य स्मरण किये जाने वाले तीन राजाओं का नाम मिलता है -

  1. वेलुत्तम्पि दलवा है जो ब्रिटिश प्रभुता के विरुद्ध लड़े
  2. स्वाति तिरुनाल थे जो पंडित ओर संगीतज्ञ थे
  3. चित्तिरा तिरुनाल थे जिन्होंने सब हिन्दुओं के लिए मंदिर के किवाड खोल दिए थे।

केरल राज्य का गठन

दीवान सी. पी. रामस्वामी अय्यर ने यह घोषणा की थी कि 1947 में जब ब्रिटिश भारत छोडेंगे तब तिरुवितांकूर स्वतंत्र राज्य बनेगा। उसकी इस घोषणा के साथ जो आन्दोलन हुआ उसके अंत में तिरुवितांकूर भारत संघ में सम्मिलित हो गया। पट्टम ताणु पिल्लाई के नेतृत्व में पहला प्रजातांत्रिक मंत्रीमण्डल अधिकार में आया (मार्च 1948)। तिरुवितांकूर और कोच्चि को मिलाकर 1 जुलाई 1949 को तिरुकोच्चि राज्य बनाया गया और 1 नवम्बर 1956 को मलाबार को भी मिलाकर केरल राज्य बनाया गया। केरल राज्य के गठन के समय तक तिरुवितांकूर और तिरुकोच्चि के राजप्रमुख पद चित्तिरा तिरुनाल को दिया गया था।

ब्रिटिश शासन

अन्यान्य यूरोपीय देशों की तरह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भी व्यापार को लक्ष्य बनाते हुए पहुँची थी। कपनी ने सन् 1664 में कोष़िक्कोड में व्यापार केन्द्र की स्थापता की। सन् 1684 में उन्होंने तिरुवितांकूर का उस भाग, जो अंचुतेंगु नाम से जाना जाता था, को आट्टिन्गल रानी से ले लिया। सन् 1695 में वहाँ एक दुर्ग बनवाया। इसी समय उन्होंने तलश्शेरी में भी अपना सिक्का जमाया। एप्रिल 1723 में ब्रिटिश ईस्ट इन्डिया कंपनी और तिरुवितांकूर के बीच संधि हो गई। सन् 1792 में जो श्रीरंगपट्टणम संधि हुई उसके तहत टीपू का मलाबार ब्रिटिशों को प्राप्त हो गया। सन् 1791 में कंपनी ने कोच्चि के साथ भी संधि कर ली। इस के अनुसार ब्रिटिशों को वार्षिक कर देकर कोच्चि राजा ब्रिटिशों का सामंत बना। 1800 से कोच्चि मद्रास की ब्रिटिश सरकार के अधीन हो गया। 1795 की संधि के अनुसार तिरुवितांकूर ने भी ब्रिटिश प्रभुता स्वीकार की। अतः एक ब्रिटिश रेसिडेन्ट तिरुवनन्तपुरम में रहते हुए शासन का निरीक्षण किया। ब्रिटिशों को प्रतिवर्ष आठ लाख रुपये तिरुवितांकूर कर रूप में देता था। 1805 में हुई संधि के अनुसार तिरुवितांकूर में यदि कोई गृह कलह या हंगामा होता हो तो उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार भी ब्रिटिशों को प्राप्त हो गया। इस प्रकार समूचा केरल ब्रिटिशों के अधिकार में आ गया।

ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह

ब्रिटिश शासन के विरुद्ध स्वदेश पर अभिमान करने वालों का विरोध उठना स्वाभाविक था। केरल वर्मा पषश्शि राजा, वेलुत्तम्पि दलवा और पालियत्तच्छन ने ब्रिटिशों के विरुद्ध हथियार उठाया। यद्यपि उनका विद्रोह विफल हो गया था तथापि वह जनता में ब्रिटिशों के प्रति दुश्मनी एवं देश भक्ति जगाने में सहायक हुआ।

ब्रिटिशों ने मलाबार में जो कर प्रणाली चलाई थी उसके विरोध में कोट्टयम राजवंश के पष़श्शि राजा ने सशस्त्र विद्रोह किया। ब्रिटिशों ने राजा - रजवाडों से कर वसूल किया। राजा तो सीधे जनता से कर वसूल करते थे। कोट्टयम में कर वसूली का अधिकार ब्रिटिशों ने पषश्शि राजा को न देकर उसके मातुल कुरुम्ब्रा रियासत के शासक को दिया था। इस का विरोध करते हुए सन् 1795 में पषश्शि राजा ने कर वसूली का सारा काम बन्द कर दिया। सन् 1793 - 1797, 1800 - 1805 वर्षों में वीर पषश्शि राजा के सैनिकों की ब्रिटिश सैनिकों के साथ मुठभेड हुई। पषश्शि राजा ने वयनाड के वनों में प्रवेश कर युद्ध करना शुरू किया। किन्तु 30 नवम्बर 1805 को ब्रिटिश तोपों ने उन्हें उड़ा दिया। ब्रिटिशों के विरुद्ध उन्होंने प्रतिरक्षा की जो दीवार खडी की थी, वह टूट गई।

तिरुवितांकूर के गृह कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप करके रेसिडेन्ट मेकाले वेलुत्तम्पि दलवा के विरोध का पात्र बना। यह विरोध खुली लडाई में परिणत हुआ। वेलुत्तम्बि ने कोच्चि के प्रधानमंत्री पालियत्तच्छन के साथ ब्रिटिश सेना पर आक्रमण किया। वेलुत्तम्पि ने 11 नवंबर 1809 को ब्रिटिश आधिपत्य के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए लोगों का आह्वान करते हुए एक घोषणा निकाली जो 'कुण्डरा घोषणा' नाम से जानी जाती है। तो भी ब्रिटिश सेना ने तिरुवितांकूर सेना के शक्ति दुर्गों को एक-एक करके अधीन कर लिया। अपने को पराजित होते देख वेलुत्तम्पि ने आत्महत्या कर ली। यद्यपि सन् 1812 में वयनाडु के कुरिच्यर और कुरुम्पर नामक आदिवासी वर्गों ने ब्रिटिशों के विरुद्ध हथियार उठाए तथापि विद्रोह को दबाया गया।

तिरुवितांकूरः विकास पथ पर

18 वीं - 19 वीं शताब्दियों में शासकों ने जो नीति अपनाई उसके कारण केरल सामाजिक प्रगति के पथ पर उन्मुख हुआ। तिरुवितांकूर में सडकें बनीं, नियम सुधारे गए। कर-व्यवस्था भी बनायी गई। नवीन तिरुवितांकूर के शिल्पी थे मार्त्ताण्ड वर्मा और कार्त्तिक तिरुनाल। दोनों ने तिरुवितांकूर राज्य की सुदृढ नींव डाली। दोनों रानियों गौरी लक्ष्मी बाई और गौरी पार्वती बाई के शासन काल में भी समाज सुधार के अनेक कार्य हुए। स्वाति तिरुनाल रामवर्मा (1829 - 1847) का काल तिरुवितांकूर का सुवर्णकाल माना जाता है। उन्होंने अंग्रेज़ी शिक्षा का प्रारंभ किया, कला और विज्ञान को भी बढावा दिया। सन् 1836 में उन्होंने तिरुवनन्तपुरम में प्लेनेटोरियम की स्थापना की। उन्होंने 1834 में तिरुवनन्तपुरम में जो इंग्लीश स्कूल शुरू किया वह 1866 में यूनिवर्सिटी कॉलेज बना, जो आज भी है। सन् 1836 में तिरुवितांकूर में जनगणना भी हुई।

महाराजा उत्रम् तिरुनाल

महाराजा उत्रम् तिरुनाल के काल में (सन् 1847 - 1860) चान्नार (नाडार) जाति की नारियों को छाती ढंकने की अनुमति दी गई। तिरुवनन्तपुरम में सन् 1859 में जो स्कूल लड़कियों के लिए खोला गया वही आज का सरकारी महिला विद्यालय है। तिरुवितांकूर का पहला डाकघर आलप्पुष़ा में खोला गया तथा सन् 1859 में पहली आधुनिक कयर फैक्टरी भी खोली गई।

आयिल्यम तिरुनाल महाराजा

आयिल्यम तिरुनाल महाराजा के काल (1860 - 1880) में भूस्वामित्व व्यवस्था में बडा परिवर्तन हुआ जो पण्डारप्पाट्टा घोषणा (सरकार के स्वामित्व की घोषणा) (1865), भूस्वामी और कुटियान (भूस्वामी की भूमि पर रहने वाला) घोषणा (1867) का परिणाम था। दीवान सर टी. माधव राव (1858 - 1872) अनेक योजनाएँ बनाकर तिरुवितांकूर को प्रगति पथ पर ले चले।

महाराजा श्रीमूलम् तिरुनाल

महाराजा श्रीमूलम् तिरुनाल (1885 - 1924) ने क्रान्तिकारी परिवर्तन की पृष्ठभूमि तैयार की। यह युग दो घटनाओं का गवाह बना - एक शिक्षा के क्षेत्र में हुई अभूतपूर्व क्रान्ति और दो विधान सभा का गठन, जो भारतीय रियासतों में प्रथम था। श्री मूलम तिरुनाल के शासन की सबसे बडी उपलब्धि 1888 में गठित विधान परिषद है। 1904 में सरकार द्वारा चयनित जनप्रतिनिधियों की प्रजासभा (पोपुलर एस्सेम्बिलि) का गठन हुआ। 1922 में बनाये नियम के अनुसार विधान परिषद (लेजिस्लेटीव काउन्सिल) की सदस्य संख्या बढाकर 50 कर दी गई। नारियों को भी मतदान का अधिकार दिया गया।

श्रीमूलम तिरुनाळ के बाद रानी सेतु लक्ष्मी बाई रीजन्ट बनीं। वे 1925 में नायर रेगुलेशन नियम लायीं जिसमें मातृसत्तात्मक उत्तराधिकार नियम रद्दकर पितृसत्तात्मक उत्तराधिकार नियम को मान्यता दी गई। तत्पश्चात् श्री चित्तिरा तिरुनाल बालराम वर्मा शासक बने। चित्तिरा तिरुनाल का शासनकाल तीन बातों के लिए चिरस्मरणीय हो गया -

  1. विधान सभा सुधार
  2. व्यापार उद्योग नीति
  3. समाज सुधार

प्रस्तुत कालखण्ड स्वतंत्रता संग्राम, कम्यूरिस्ट आन्दोलन का विकास और देश की स्वतंत्रता प्राप्ति आदि महत्त्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी बना। सन् 1936 में जो मंदिर प्रवेश घोषणा की गई उसने चित्तिरा तिरुनाल को यशस्वी बनाया। इसी काल में तिरुवितांकूर विश्वविद्यालय (1927), लैन्ड मोर्टगेज बैंक (भूमि बंधक बैंक) (1932), ट्रैवनकूर रबड वर्क्स, कुण्डरा क्ले फैक्टरी, पुनलूर प्लाईवुड फैक्टरी, पल्लिवासल जल विद्युत परियोजना, स्टेट रोड ट्रान्स्पोर्ट सर्विस (राज्य सडक परिवहन सेवा) इत्यादि का प्रारम्भ हुआ। इन सब योजनाओं को कार्यान्वित करने वाले दीवान सर सी. पी. रामस्वामी अय्यर थे जो राजनीति की दृष्टि से उन लोगों में थे जिनका सर्वाधिक विरोध होता था। देश स्वतंत्र होने के बाद 1 जुलाई 1949 को तिरुवितांकूर और कोच्चि को मिलाकर तिरुकोच्चि राज्य का गठन किया गया।

कोच्चि

तिरुवितांकूर की तरह कोच्चि और मलाबार भी प्रगति के कई सोपान पार कर गए। सन् 1912 से 1947 तक के काल में ब्रिटिशों द्वारा नियुक्त दीवान ही कोच्चि का शासन करते थे। उन दीवानों के नाम व शासनकाल नीचे दिया जाता है जो स्वतंत्रता प्राप्ति तक शासक नियुक्त हुए थे -

  1. कर्नल मन्रो (1812 - 1818)
  2. नञ्चप्पय्या (1815 - 1825)
  3. शेषगिरि राव (1825 - 1830)
  4. एडामना शंकर मेनन (1830 - 1835)
  5. वेंकट सुब्बय्या (1835 - 1840)
  6. शंकर वारियर (1840 - 1856)
  7. वेंकट राव (1856 - 1860)
  8. तोट्टक्काट्टु शंकुण्णि मेनन (1860 - 1879)
  9. तोट्टक्काट्टु गोविन्द मेनन (1879 - 1889)
  10. तिरुवेंकिटाचार्य (1889 - 1892)
  11. सुब्रह्मण्य पिल्लाई (1892 - 1896)
  12. पी. राजगोपालाचारि (1896 - 1901)
  13. एल. लोक्क (1901 - 1902)
  14. एन्. पट्टाभिराम राव (1902 - 1907)
  15. ए. आर. बैनर्जी (1907 - 1914)
  16. जे. डब्ल्यू. भोर (1914 - 1919)
  17. टी. विजयराघवाचारि (1919 - 1922)
  18. पी. नारायण मेनन (1922 - 1925)
  19. टी. एस. नारायण अय्यर (1925 - 1930)
  20. सी. जी. हेरबर्ट (1930 - 1935)
  21. आर. के. षण्मुखम चेट्टि (1935 - 1941)
  22. एफ. डब्लियू डिक्सन (1941 - 1943)
  23. सर जाँर्ज बाँग (1943 - 1944)
  24. सी. पी. करुणाकर मेनन (1944 - 1947)।

कर्नल मन्रो ने ऐसे नवीन कार्य किए जिनसे कोच्चि नव हो गया। रणादार नाम से पुलिस सेना का गठन, एरणाकुलम में हज़ूर कच्चेरि (राज्य सम्बन्धी कचहारी) की स्थापना आदि परिष्कार वे लाये। सन् 1821 में ग़ुलामों के उत्पीडन के विरोध की घोषणा की गई। उन्होंने 'पुत्तन' नाम से नया सिक्का चलाया। शंकर वारियर के काल में ग़ुलाम प्रथा समाप्तकर दी गई (1884 में)। सन् 1845 में जो एलिमेन्टरी स्कूल स्थापित हुआ था वह बाद में महाराजा कॉलेज बन गया।

सन् 1889 में प्रथम कन्या स्कूल तृश्शूर में स्थापित हुआ। कोच्चि का नवीनीकरण किया गया। षोरणूर से एरणाकुळम तक रेल का निर्माण, एरणाकुलम में चीफ कोर्ट की स्थापना, कण्डेष़ुत्तु (खेत और स्थल का वृक्ष समेत विवरण या गणना) की पूर्त्ति, लोकस्वास्थ्य विभाग का गठन, एरणाकुलम शहर में पेय जल वितरण योजना इत्यादि ने मिलकर के कोच्चि का नवीनीकरण किया। सन् 1925 में केच्चि में विधान सभा स्थापित हुई। 18 जून 1938 को हाई कोर्ट का उद्घाटन हुआ।

मलाबार

मलाबार ब्रिटिश मद्रास राज्य के अन्तर्गत एक ज़िला था। वहाँ भी तिरुकोच्चि की जैसी उन्नति हुई। ब्रिटिश सत्ता ने सड़कों तथा बागों के निर्माण में ध्यान दिया। शिक्षा के प्रचार-प्रसार में भी उसने योग दिया। सन् 1848 में बासल मिशन ने कोष़िक्कोड के कल्लायि में जो प्राथमिक पाठशाला खोली थी वही आगे जाकर मलाबार क्रिस्च्यन कॉलेज बना। हेरमन गुण्डेर्ट जैसे ईसाई धर्मप्रचारकों ने मलयालम भाषा की महान् सेवा की। मद्रास नगर विकास नियम के अनुसार सन् 1866, 1867 वर्षों में कोष़िक्कोड, तलश्शेरि, कण्णूर, पालक्काड़, फोर्ट कोच्चि आदि मुनिसिपालिटी बने। इस प्रकार के विकास कार्यों के चलते ब्रिटिशों का शोषण भी ज़ारी था। सामंतों तथा उनके सहायक ब्रिटिश अधिकारियों की नीतियाँ सन् 1836 - 1853 काल में एरानाड तथा वल्लुवनाड तहसीलों में मॉप्पिळा मुसलमानों के दंगों का कारण बनीं। इनका सामना करने के लिए सन् 1854 में 'मलाबार विशेष पुलिस बल' का गठन किया गया। 19 वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में मुद्रणालयों का प्रचार-प्रसार, समाचार पत्रों तथा विद्यालयों का आविर्भाव, साहित्य का विकास आदि हुआ जो केरल को विशेष परिवर्तन की ओर ले गए। 20 वीं शताब्दी के प्रारंभ में जनता में राजनीतिक जागरण उत्पन्न हुआ। केरल में भी राष्ट्रीय आन्दोलनों की लहरें उठीं।

केरल राज्य

केरल का जो वर्तमान स्वरूप है उसको निर्मित करने वाले तत्त्वों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तथा उसकी पृष्ठभूमि के रूप में कार्य कर रहे नव जागरण के आन्दोलनों का प्रबल हाथ रहा है। नव केरल के निर्माण में योग देने वालों की लम्बी सूची मिलती हैं - श्री नारायण गुरु, चट्टम्बि स्वामी, अय्यनकाळि, ब्रह्मानन्द शिवयोगी, वागभटानन्द गुरु, वैकुण्ठ स्वामी आदि। वैसे ही यदि धार्मिक संगठनों, अन्य सुधारात्मक आन्दोलनों और राजनीतिक दलों का सामूहिक प्रयास एवं शैक्षिक उन्नति न होती तो नव केरल का निर्माण संभाव न होता। स्वतंत्रता के पहले ही केरल में राजाधिकार के विरुद्ध 'दायित्वपूर्ण शासन' तथा सामाजिक अधिकार के लिए सत्याग्रह हुए। 1 जुलाई 1949 को तिरुवितांकूर तथा कोच्चि को मिलाकर तिरुकोच्चि राज्य का गठन किया गया। टी. के. नारायण पिळ्ळै प्रथम मुख्यमंत्री बने। राज्य पुनर्गठन के तहत 1949 में तोवाला, अगस्तीश्वरम, कलक्कुळम, विलवन्कोड़ आदि चार दक्षिणी तहसीलों को तमिलनाडु (उन दिनों मद्रास राज्य) में मिलाया गया। मलाबार ज़िला तथा दक्षिणी केनरा ज़िले का कासरकोड तहसील केरल के साथ मिलाया गया। इस प्रकार 1956 में वर्तमान केरल बना था।



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