खर मास

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खर मास
भगवान विष्णु
विवरण वैदिक ज्योतिष और हिन्दू पंचांग के अनुसार सूर्य एक राशि में एक महीने तक रहता है। जब सूर्य 12 राशियों का भ्रमण करते हुए बृहस्पति की राशियों, धनु और मीन में प्रवेश करता है तो अगले 30 दिनों यानि एक महीने की अवधि को खरमास कहते हैं।
अन्य नाम मलमास, काला महीना
ज्योतिषीय विवरण सूर्य की धनु संक्रांति के कारण मलमास होता है। सूर्य जब बृहस्पति की राशि धनु अथवा मीन में होता है तो ये दोनों राशियां सूर्य की मलीन राशि मानी जाती हैं।
अवधि शुरुआत- 15 दिसम्बर, 2016; समाप्ति- 14 जनवरी, 2017
विशेष खर मास में सभी प्रकार के हवन, विवाह चर्चा, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, द्विरागमन, यज्ञोपवीत, विवाह, हवन या अन्य धार्मिक कर्मकांड आदि कार्य निषेध हैं।
अन्य जानकारी खर मास में सिर्फ भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण ही किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार, खर मास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्तिनरकका भागी होता है।

खर मास भारतीय पंचांग पद्धति में प्रति वर्ष सौर पौष मास को कहते हैं। उत्तराखण्ड में इसे 'मलमास' या 'काला महीना' भी कहा जाता है। इस मास के दौरान हिन्दू जगत् में कोई भी धार्मिक कृत्य और शुभ मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। इसके अलावा यह महीना अनेक प्रकार के घरेलू और पारम्परिक शुभ कार्यों की चर्चाओं के लिए भी वर्जित है। देशाचार के अनुसार नवविवाहिता कन्या भी खर मास के अन्दर पति के साथ संसर्ग नहीं कर सकती है और उसे इस पूरे महीने के दौरान अपने मायके में आकर रहना पड़ता है।[1] वर्ष 2016 में खर मास 15 दिसम्बर दिन गुरुवार को सूर्योदय पूर्व 06:05 बजे से सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू हुआ, जो 14 जनवरी, 2017 को दिन में 1 बजकर 51 मिनट पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ समाप्त हुआ।

निषेध होते हैं शुभ कार्य

खर मास में सभी प्रकार के हवन, विवाह चर्चा, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, द्विरागमन, यज्ञोपवीत, विवाह या अन्य हवन कर्मकांड आदि तक का निषेध है। सिर्फ भागवत कथा या रामायण कथा का सामूहिक श्रवण ही खर मास में किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार, खर मास में मृत्यु को प्राप्त व्यक्तिनरकका भागी होता है। अर्थात, चाहे व्यक्ति की अल्पायु हो या दीर्घायु, अगर वह पौष के अन्तर्गत खर मास यानी मल मास की अवधि में अपने प्राण त्याग रहा है तो निश्चित रूप से उसके लिए इहलोक और परलोक का आकलननरकके द्वार की तरफ खुलता है। दिव्य आत्माओं का शरीर त्याग अगर खर मास के दौरान हो जाता है तो उसकी गणना सत्कर्मी में नहीं होती क्योंकि उसके मृत्युपरान्त संस्कार में न केवल परिजन बल्कि रिश्तेदार भी कडकठंड में विचलित हो जाते हैं। गरुड़ पुराण में भी पौष मास की मृत्यु का अधोगामी परलोक स्पष्ट रूप से बताया गया है। इस बात की पुष्टि महाभारत में होती है कि जब खर मास के अन्दर अर्जुन ने भीष्म पितामह को धर्म युद्ध में बाणों की शैया से वेध दिया था। सैकड़ों बाणों से विद्ध हो जाने के बावजूद भी भीष्म पितामह ने अपने प्राण नहीं त्यागे। प्राण नहीं त्यागने का मूल कारण यही था कि अगर वह इस खर मास में प्राण त्याग करते हैं तो उनका अगला जन्मनरककी ओर जाएगा। इसी कारण उन्होंने अर्जुन से पुनः एक ऐसा तीर चलाने के लिए कहा जो उनके सिर पर विद्ध होकर तकिए का काम करे। इस प्रकार से भीष्म पितामह पूरे खर मास के अन्दर अर्द्ध मृत अवस्था में बाणों की शैया पर लेटे रहे और जब सौर माघ मास की मकर संक्रांति आई, उसके बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को उन्होंने अपने प्राणों का त्याग किया। इसलिए कहा गया है कि माघ मास की देह त्याग से व्यक्ति सीधा स्वर्ग का भागी होता है।[1]

खर मास क्यों

खर मास को खर मास क्यों कहा जाता है यह भी एक पौराणिक किंवदंती है। खर गधे को कहते हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने सात घोड़ों के रथ पर बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करता है और परिक्रमा के दौरान कहीं भी सूर्य को एक क्षण भी रुकने की इजाजत नहीं है। लेकिन सूर्य के सातों घोड़े सारे साल भर दौड़ लगाते-लगाते प्यास से तड़पने लगे। उनकी इस दयनीय स्थिति से निबटने के लिए सूर्य एक तालाब के निकट अपने सातों घोड़ों को पानी पिलाने हेतु रुकने जाते हैं। लेकिन तभी उन्हें यह प्रतिज्ञा याद आई कि घोड़े बेशक प्यासे रह जाएं लेकिन उनकी यात्रा में विराम नहीं लेना है। नहीं तो सौर मंडल में अनर्थ हो जाएगा। सूर्य भगवान ने चारों ओर देखा, तत्काल ही सूर्य भगवान पानी के कुंड के आगे खड़े दो गधों को अपने रथ पर जोत कर आगे बढ़ गए और अपने सातों घोड़े तब अपनी प्यास बुझाने के लिए खोल दिए गए। अब स्थिति यह रही कि गधे यानी खर, अपनी मन्द गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे और सूर्य का तेज बहुत ही कमज़ोर होकर धरती पर प्रकट हुआ। शायद यही कारण है कि पूरे पौष मास के अन्तर्गत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य देवता का प्रभाव क्षीण हो जाता है और कभी-कभार ही उनकी तप्त किरणें धरती पर पड़ती हैं।[1]

ज्योतिषीय विवरण

सूर्य की धनु संक्रांति के कारण मलमास होता है। सूर्य जब बृहस्पति की राशि धनु अथवा मीन में होता है तो ये दोनों राशियां सूर्य की मलीन राशि मानी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य का बृहस्पति में परिभ्रमण श्रेष्ठ नहीं माना जाता है, क्योंकि बृहस्पति में सूर्य कमज़ोर स्थिति में रहते हैं। वर्ष में दो बार सूर्य बृहस्पति की राशियों में संपर्क में आता है। प्रथम द्रष्टा16 दिसंबर से 15 जनवरी तथा द्वितीय द्रष्टा14 मार्च से 13 अप्रैल। द्वितीय दृष्टि में सूर्य मीन राशि में रहते हैं। सूर्य की गणना के आधार पर प्रायः इन दोनों माह को धनुर्मास एवं मीन मास कहा जाता है। इन दोनों महीनों में मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। इस माह के दौरान विवाह, यज्ञोपवीत, कर्ण छेदन, गृह आरंभ, गृह प्रवेश, वास्तु पूजा, कुआं एवं बावड़ी उत्खनन, राजसी कार्य, दिव्य यज्ञ अनुष्ठान जिसमें लक्ष्यचंडी तथा सहस्त्रचंडी यज्ञ के साथ ही वैदिक कर्म त्याग दिए जाते हैं। खास तौर पर मलमास माह में धर्म के प्रति समर्पण भाव से इष्ट की आराधना, वैष्णव तथा शिव मंदिरों में जाकर सत्संग व कीर्तन का लाभ लें, वस्त्र-भोजन तथा औषधि का दान करना श्रेष्ठ होता है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 जोशी, पं. केवल आनंद। खरमास और मोक्ष का बन्द दरवाजा (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 28 दिसम्बर, 2014।
  2. खरमास आरंभ, एक माह तक नहीं होंगे शुभ कार्य (हिन्दी) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 28 दिसम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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