खो-खो

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खो-खो खेलते खिलाड़ी

यह एक अनूठा स्वदेशी खेल है, जो युवाओं में ओज और स्वस्थ संघर्षशील जोश भरने वाला है। यह खेल पीछा करने वाले और प्रतिरक्षक, दोनों में अत्यधिक तंदुरुस्ती, कौशल, गति, ऊर्जा और प्रत्युत्पन्नमति की मांग करता है। खो-खो किसी भी तरह की सतह पर खेला जा सकता है।

इतिहास

खो-खो मैदानी खेलों के सबसे प्रचीनतम रुपों में से एक जिसका उद्भव प्रागैतिहासिक भारत में माना जा सकता है। मुख्य रुप से आत्मरक्षा, आक्रमण व प्रत्याक्रमण के कौशल को विकसित करने के लिए इसकी खोज हुई थी।

खेल का मैदान

खो-खो का क्रीड़ा क्षेत्र आयताकार होता है। यह 29 X 16 मीटर होता है। मैदान के अंत में दो आयताकार होते हैं। आयताकार की भुजा 16 मीटर और दूसरी भुजा 2.75 मी. होती है। इन दोनों आयताकारों के मध्य में दो लकड़ी के स्तम्भ होते हैं। केन्द्रीय गली 23.50 मी. लम्बी और 30 सैंटीमीटर चौड़ी होती है।

शब्दावली

  1. स्तम्भ या पोस्ट:-मध्य लेन के अंत में दो स्तम्भ गाडे जाते है जो भूमि से 1.20 से 1.25 सैंटीमीटर के बीच ऊँचे होते हैं। इनकी परिधि 30 सैंटीमीटर से अधिक नहीं हो सकती।
  2. केन्द्रीय गली या लेन:- दोनों स्तम्भों के मध्य में केन्द्रीय गली होती है। यह 23.50 मी. लम्बी और सैंटीमीटर चौड़ी होती है।
  3. क्रॉस लेन:- प्रत्येक आयताकार 15 मी. लम्बा और 30 सैंटीमीटर चौड़ा होता है वह केन्द्रीय लेन को समकोण (90°) पर काटता है। यह स्वयं भी दो सर्द्धकों में विभाजित होता है। इसे क्रॉस-लेन कहते हैं।
  4. स्तम्भ रेखा:- केन्द्र से गुजरती हुई क्रॉस-लेन और केन्द्रीय लेन के समानांतर रेखा को स्तम्भ रेखा कहते हैं।
  5. आयताकार:- स्तम्भ रेखा का बाहरी क्षेत्र आयताकार कहलाता है।
  6. परिधियाँ:- केन्द्रीय लेन तथा बाहरी सीमा निश्चित करने वाली दोनों आयताकारों की रेखाओं से 7.85 मी. दूर दोनों पार्श्व रेखाओं को परिधियाँ कहते हैं।
  7. अनुधावक या चेज़र:- वर्गों में बैठे खिलाड़ी अनुधावक कहलाते हैं। विरोधी खिलाड़ियों को पकड़ने या छूने के लिए भागने वाला अनुधावक या चेज़र सक्रिय अनुधावक कहलाता है
  8. धावक:- चेज़रों या धावकों के विरोधी खिलाड़ी 'धावक' या 'रनर' कहलाते हैं।
  9. खो देना:- अच्छी 'खो' देने के लिए सक्रिय धावक को बैठे हुए धावक को पीछे से हाथ से छूते ही 'खो' शब्द और ऊँचे तथा स्पष्ट कहना चाहिए। छूने और 'खो' कहने का समय एक साथ होना चाहिए।
  10. फ़ाऊल:- यदि बैठा हुआ या सक्रिय धावक किसी नियम का उल्लघन करता है तो वह फ़ाऊल होता है।
  11. दिशा ग्रहण करना:- एक स्तम्भ से दूसरे स्तम्भ की ओर जाना दिशा ग्रहण करना है।
  12. मुँह मोड़ना:- जब सक्रिय धावक एक विशेष दिशा की ओर जाते समय अपने कंधे की रेखा 90 के कोण से अधिक दिशा को मोड़ लेता है तो इसे मुँह मोड़ना कहते हैं। यह फाऊल होता है।
  13. निवर्तन या पलटना:- किसी विशेष दिशा की ओर जाता हुआ सक्रिय धावक जब विपरीत दिशा में जता है तो उसे निवर्तन या पलटना कहा जाता है। यह फाऊल होता है।
  14. पांव बाहर:- जब रनर के दोनों पांव सीमाओं से बाहर भूमि को छू लें तो उसके पांव बाहर माने जाते हैं उसे आऊट माना जाता है।

खेल के नियम

  1. क्रीड़ा क्षेत्र को आकार में वर्णित अनुसार चिह्नित होना चाहिए।
  2. दौड़ने या चेज़र बनने का निर्णयटॉस द्वारा किया जाएगा।
  3. एक धावक (चेज़र) के अतिरिक्त अन्य सभी धावक वर्गों में इस प्रकार बैंठेगे कि दो साथ-साथ बैठे धावकों का मुँह एक ओर नहीं होगा। नौंवा धावक पीछा करने के लिए किसी एक स्तम्भ के पास खड़ा होगा।
  4. सक्रिय धावक के शरीर का कोई भी भाग केन्द्रीय गली से स्पर्श नहीं करेगा। वह स्तम्भों में अन्दर से केन्द्रीय रेखा पार नहीं कर सकता।
  5. 'खो' बैठे हुए धावक के पीछे से समीप जा कर ऊँची और स्पष्ट आवाज़ में देनी चाहिए। बैठा हुआ धावक बिना 'खो' प्राप्त किए नहीं उठ सकता और न ही वह अपनी टाँग या भुजा फैला कर स्पर्श प्राप्त करने की कोशिश करेगा।
  6. यदि कोई सक्रिय धावक उस वर्ग की केन्द्रीय गली से बाहर चला जाए जिस पर कोई धावक बैठा है या यदि वह निष्क़्रिय धावक की पकड़ छोड़ देता है तो सक्रिय धावक उसे खो नहीं देगा। कोई सक्रिय धावक 'खो' देने के लिए वापिस नहीं आ सकता।
  7. नियम 4, 5 तथा 6 का उल्लघंन फाऊल होता है। इस पर सक्रिय धावक उस दिशा के विपरीत जाने के लिए बाध्य किया जाएगा जिस दिशा में वह जा रहा रही थी। निर्णायक की सीटी के संकेत के साथ सक्रिय धावक संकेतित दिशा की ओर चल देगा। यदि इस तरह रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना जाता।
  8. सक्रिय धावक 'खो' देने के पश्चात् तुरंत 'खो' पाने वाले धावक का स्थान ग्रहण कर लेगा। खो देना और साथ बैठे धावक के लोना एक साथ होना चाहिए।
  9. ठीक खो लेने के पश्चात् यदि सक्रिय धावक का पहला क़दम सैंटर लेन को छूता हो तो वह फाऊल नहीं है। यदि केंद्रीय लेन को क्रॉस करे तो वह फाऊल है।
  10. दिशा लेने के पश्चात् सक्रिय धावक पुन: क्रॉस लाइन में आक्रमण कर सकता है और इस को फाऊल नहीं माना जाता।
  11. सक्रिय धावक वह दिशा ग्रहण करेगा जिस ओर इसका मुँह हो मुड़ा हो अर्थात् जिस ओर उसने अपने कन्धे की रेखा को मोड़ा था।
  12. सक्रिय धावक किसी एक स्तम्भ की ओर दिशा ग्रहण करने के पश्चात् स्तम्भ रेखा की उसी दिशा में जाएगा जब तक वह खो नहीं करता। सक्रिय धावक केन्द्र गली से दूसरी ओर नहीं जाएगा जब तक कि वह स्तम्भ के चारों ओर बाहर से न घूम ले।
  13. यदि कोई सक्रिय धावक स्तम्भ छोड़ देता है तो वह स्तम्भ छोड़ने वाले स्थान की ओर वाली केन्द्रीय लेन पर रहते हुए दूसरे स्तम्भ की दिशा में जाएगा।
  14. सक्रिय धावक का मुँह सदैव उसके द्वारा ग्रहण की गई दिशा की ओर रहेगा। वह अपने मुँह को नहीं मोड़ेगा। उसे केन्द्रीय लेन के समानांतर कंधे की रेखा मोड़ने की आज्ञा होगी।
  15. धावक इस प्रकार बैठेंगे कि धावकों के मार्ग में रुकावट न पहुँचे यदि ऐसी रुकावट से कोई रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना जाएगा।
  16. दिशा ग्रहण करने वाले और मुँह मोड़ने वाले नियम आयताकार क्षेत्र में लागू न होंगे।
  17. पारी के दौरान सक्रिय धावक सीमा से बाहर जासकता है परंतु सीमा से बाहर उसे दिशा लेने और मुँह मिड़ने के नियमों का पालन करना होगा।
  18. कोई भी रनर बैठे हुए धावक को छू नहीं सकता। यदि वह ऐसा करता है तो उसे चेतावनी दी जाती है। यदि वह फिर उस हरकत को दोहराता है तो उसे मैदान से बाहर भेज दिया जाता है। अभिप्राय यह कि आऊट दिया जाता है।
  19. यदि रनर के दोनों पैर सीमा से बाहर हों तो वह आऊट हो जाता है।
  20. यदि सक्रिय चेज़र बिना किसी नियम का उल्लंघन किए रनर को छू लेता है तो रनर आऊट माना जाएगा।
  21. सक्रिय धावक नियम 4 से 14 तक के किसी नियम का उल्लंघन नहीं करेंगे। इन नियमों का उल्लंघन फाऊल माना जाता है। यदि ऐसे फाऊल के कारण कोई रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना जाएगा।
  22. यदि कोई सक्रिय धावक नियम 8 से 14 तक के किसी नियम का उल्लंघन करते है तो अम्पायर तुरंत ही उचित दिशा लेने और कार्य करने के लिए बाध्य करेगा।
खो-खो खेलते खिलाड़ी

मैच सम्बन्धी नियम

  • प्रत्येक टीम में खिलाड़ियों की संख्या 9 होती है और 8 खिलाड़ी अतिरिक्त होते हैं।
  • प्रत्येक पारी में नौ-नौ मिनट छूने तथा दौड़ने का काम बारी-बारी से होता है। प्रत्येक मैच में 4 पारियाँ होती है। दो पारियों छूने की और 2 पारियाँ दौड़ने की होती हैं।
  • रनर खेलने के क्रमानुसार स्कोर के पास अपने नाम दर्ज कराएंगे। पारी के आरम्भ में पहले तीन खिलाड़ी सीमा के अन्दर होंगे। इन तीनों के आऊट होने के पश्चात् तीन और खिलाड़ी 'खो' देने से पहले अन्दर आ जाएंगे। जो इस अवधि में प्रवेश न कर सकेंगे उन्हें आऊट घोषित किया जाएगा। अपनी बारी के बिना प्रविष्ट होने वाला खिलाड़ी भी आऊट घोषित किया जाएगा। यह प्रक्रिया पारी के अंत तक जारी रहेगी। तीसरे रनर को निकालने वाला सक्रिय धावक नए प्रविष्ट होने वाले रनर का पीछा नहीं करेगा, वह 'खो' देगा। प्रत्येक टीम खेल के मैदान के केवल एक पक्ष से ही अपने रनर प्रविष्ट करेगी।
  • धावक तथा प्रत्येक रनर समय से पहले भी अपनी पारी समाप्त कर सकते हैं। केवल धावक या रनर टीम के कप्तान के अनुरोध पर ही अम्पायर खेल रोक कर पारी समाप्ति की घोषणा करेगा। एक पारी के बाद 5 मिनट तथा दो पारियों के बीच 9 मिनट का ब्रेक होगा।
  • धावक पक्ष को प्रत्येक रनर के आऊट होने पर एक अंक मिलेगा। सभी रनरों के समय से पहले आऊट हो जाने पर उनके विरुद्ध एक 'लोना' दे दिया जाता है। इसके पश्चात् वह टीम उसी क्रम से अपने रनर भेजेगी। लोना प्राप्त करने के लिए कोई अतिरिक्त अंक नहीं दिया जाता है। पारी का समय समाप्त होने तक इसी ढंग से खेल जारी रहेगी। पारी के दौरान रनरों के क्रम में परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
  • नॉक आऊट पद्धति में मैच के अंत में अधिक अक प्राप्त करने वाली टीम को विजयी घोषित किया जाएगा। यदि अंक बराबर हों तो एक और पारी खेली जाएगी। यदि फिर भी अंक बराबर रहें तो टाई ब्रेकर नियम का प्रयोग किया जाएगा। इस स्थिति में यह ज़रुरी नहीं कि टीमों में वहीं खिलाड़ी हों।
  • लीग प्रणाली में विजेता टीम को 2 अंक प्राप्त होगें। पराजित टीम को शून्य अंक तथा बराबर रहने की दशा में प्रत्येक टीम को एक एक अंक दिया जाएगा। यदि लीग प्रणाली में लीग अंक बराबर हो तो टीम अथवा टीमें पर्चियों द्वारा पुन: मैच खेलेंगी। ऐसे मैच नॉक-आऊट प्रणाली के आधार पर खेलें जाएंगे।
  • यदि किसी कारणवश मैच पूरा नहीं होता है तो यह किसी अन्य समय खेला जाएगा और पिछले अंक नहीं गिने जाएंगे। मैच शुरू से ही खेला जाएगा।
  • यदि किसी एक टीम के अंक दूसरी टीम से 12 या उससे अधिक हो जाएं तो पहली टीम दूसरी टीम को धावक के रुप में पीछा करने को कह सकती है। यदि दूसरी टीम इस बार अधिक अंक प्राप्त कर ले तो भी उसका धावक बनने का अधिकार बना रहता है।

मैच के लिए अधिकारी

मैच की व्यवस्था के लिए निम्नलिखित अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं।

  1. अम्पायर (दो)
  2. रैफरी (एक)
  3. टाइम-कीपर (एक)
  4. स्कोरर (एक)

अम्पायर

अम्पायर लॉबी से बाहर खड़ा होगा और केन्द्रीय गली द्वारा विभाजित अपने स्थान से खेल की देख रेख करेगा। वह अपने अर्द्धक में सभी निर्णय देगा। वह निर्णय देने में दूसरे अर्द्धक के अम्पायर की सहायता कर सकता है।

रैफरी

रैफरी के कर्त्तव्य इस प्रकार है।

  1. वह अम्पायरों की उनके कर्त्तव्य पालन में सहायता करेगा और उनमें मत भेद होने की दिशा में अपना फैसला देगा।
  2. वह खेल में बाधा पहुँचाने वाले, असभ्य व्यवहार करने वाले नियमों का उल्लंघन करने वाले खिलाड़ियों को दण्ड देता है।
  3. वह नियमों की व्याख्या सम्बन्धी प्रश्नों पर अपना निर्णय देता है।

टाइम-कीपर

टाइप-कीपर का काम समय का रिकार्ड रखना है। वह सीटी बजाकर पारी के आरम्भ या समाप्ति का संकेत देता है।

स्कोरर

स्कोरर इस बात का ध्यान रखता है कि खिलाड़ी निश्चित क्रम से मैदान में उतरते हैं। वह आऊट हुए रनरों का रिकार्ड रखता है। प्रत्येक पारी के अंत में वह स्कोर शीट पर अंक दर्ज करता है और धावकों का स्कोर तैयार करता है। मैच के अंत में वह परिणाम तैयार करता है और रैफरी को सुनाने के लिए देता है।


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