राष्ट्रमंडल खेल 2010 की उपलब्धियाँ

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प्रतीक चिह्न, दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल 2010

दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेल 2010 में भारत ने नया इतिहास रचते हुए पदक तालिका में पहली बार दूसरा स्थान प्राप्त किया। भारत ने पहली बार 38 स्वर्ण पदकों सहित कुल 101 पदक जीते। भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स के माध्यम से अपनी खेल शक्ति, आयोजन क्षमता और अपनी बढ़ती आर्थिक ताक़त की चकाचौंध से दुनिया को चौंधिया दिया। भारत की अर्थव्यवस्था की प्रगति से दुनिया पहले ही काफ़ी हद तक वाक़िफ़ थी। पर उनके दिमाग में कहीं न कहीं सपेरों और गाय, भैंसों के देश वाली छवि बनी हुई थी। पर आधुनिक साज-सज्जा वाले खेलगाँव और अत्याधुनिक सुविधाओं वाले स्टेडियमों को देखकर भाग लेने वाले देशों के मुँह से 'वाह' निकल ही गई। सच यही है कि विदेशी मीडिया इस आयोजन से अभिभूत है। इसके अलावा भारत ने खेलों में झण्डे गाड़कर सभी को क्षमता से अचम्भित ज़रूर कर दिया है।

खेल ताक़त के रूप में उभरना

भारत को इन खेलों के आयोजन से सबसे ज़्यादा कोई फ़ायदा हुआ है तो वह निश्चय ही एक खेल ताक़त के रूप में उभरना है। खेलों की शुरुआत के समय किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि हम राष्ट्रमंडल खेलों के दिग्गज माने जाने वाले इंग्लैण्ड को पीछे छोड़कर आस्ट्रेलिया के बाद दूसरा स्थान हासिल कर लेंगे। भारत ने 38 स्वर्ण पदकों सहित 101 पदक जीतकर दूसरा स्थान हासिल किया। वहीं इंग्लैण्ड 37 स्वर्ण पदकों से कुल 142 पदक जीतकर दूसरे स्थान पर पिछड़ गया। भारत और इंग्लैण्ड के बीच दूसरे स्थान की जंग आख़िरी समय तक जारी रही और आख़िर में सायना नेहवाल के स्वर्ण ने यह अन्तर बनाया। इंग्लैण्ड को पछाड़ना इसलिए भी मायने रखता है कि उसके यहाँ पर 2012 के ओलम्पिक का आयोजन होना है और इसे ध्यान में रखकर वह पिछले काफ़ी समय से तैयारियों में जुटा हुआ था।

सफलता के कारक

भारत को इस मुकाम तक पहुँचाने में सभी 38 स्वर्ण पदक ही नहीं, बल्कि सभी पदक जीतने वालों की अहम भूमिका रही। लेकिन देश की बैडमिंटन स्टार सायना नेहवाल यदि स्वर्ण पदक जीतने का क़ारनामा नहीं कर पातीं तो शायद हमें तीसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ता। सायना ने पहला गेम खोने के बाद जिस तरह से वापसी की वह निश्चय ही काबिले तारीफ़ है। इसके अलावा इन गेम्स में सर्वाधिक चार स्वर्ण पदक जीतने वाले निशानेबाज़ गगन नारंग के योगदान को कैसे भुलाया जा सकता है। गगन ही क्यों, विजय कुमार और ओमकार के तीन-तीन और अनीसा सैयद के दो स्वर्ण पदकों ने भी दूसरे स्थान पर पहुँचाने में मदद की। इतना सब होने के बाद भी यह सच है कि भारत पिछले खेलों में जीते 16 स्वर्ण पदक से पीछे रह गया। यही नहीं पिछले गेम्स में पाँच स्वर्ण पदक जीतकर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बने समरेश जंग का प्रदर्शन मायूस करने वाला रहा। वह मात्र एक पदक, वह भी कांस्य ही जीत सके।

बेजोड़ प्रदर्शन

राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का अब तक का सफ़र
वर्ष स्वर्ण पदक रजत पदक कांस्य पदक कुल पदक
1934 - - 1 1
1958 - 1 2 3
1966 3 4 3 10
1970 5 3 4 12
1974 4 8 3 15
1982 5 8 3 16
1990 13 8 11 32
1994 6 11 7 24
1998 7 10 8 25
2002 17 22 30 69
2006 22 17 10 49
2010 38 27 36 101
विशेष: 1938 और 1954 में भारत को कोई पदक नहीं मिला

भारत को पदकों की होड़ में आगे बढ़ाने में कुश्ती ने भी अहम भूमिका निभाई। पर कुश्ती की ख़ास बात यह रही कि फ्रीस्टाइल मज़बूत पक्ष माना जाता रहा है, पर हमारा प्रदर्शन ग्रीको रोमन में कहीं बेहतर रहा। ग्रीको रोमन के चार मुक़ाबले फ्रीस्टाइल में तीन ही स्वर्ण पदक जीत सके। कुश्ती में सुशील कुमार पहलवान ने स्वर्ण पदक जीता। इसके अलावा भारत को गीता, अनीता और अलका ने महिला वर्ग में भी तीन स्वर्ण पदक दिलाए। बाक्सिंग, तीरंदाज़ी और बैडमिंटन में भी भारतीय प्रदर्शन उम्मीदों के अनुरूप हुआ। पहली दो स्पर्धओं में भारत ने तीन-तीन और बैडमिंटन में दो स्वर्ण पदक जीते। पर इन स्पर्धाओं में सभी को पहले से ही अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी।

इतिहास रचा

कृष्णा पूनिया ने डिस्क्स स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीतकर भारतीय झण्डे गाड़ दिए। वह मिल्खा सिंह के 1958 में स्वर्ण पदक जीतने के बाद इस प्रदर्शन को दोहराने वाली पहली भारतीय हैं। इस स्वर्धा की खूबी यह रही कि भारत ने इसके तीनों पदकों पर कब्ज़ा जमाया। इसमें हरवंत कौर ने रजत और सीमा अंतिल ने कांस्य पदक जीता। इसके अलावा अश्विनी, मनजीत, मनदीप और सिनी जोंस ने महिलाओं की चार गुणा 400 मीटर रिले का स्वर्ण जीतकर चार चाँद लगा दिए। भारत ने दो स्वर्ण के अलावा तीन रजत और पाँच कांस्य पदक भी जीते। इस तरह का प्रदर्शन इन गेम्स में इससे पहले कभी नहीं कर सका था।

अप्रत्याशित सफलता

जिम्नास्टिक में पदक जीतने को निश्चय ही अप्रत्याशित माना जा सकता है। यह ऐसी स्पर्धा है जिसमें भारत को कभी पदक की उम्मीद ही नहीं रही है। लेकिन आशीष कुमार ने हैरतभरा प्रदर्शन करके एक रजत और एक कांस्य पदक जीतकर भारत की इस खेल में झोली को ख़ाली नहीं रहने दिया। इन खेलों की एक सबसे बड़ी खूबी यह रही कि इसमें देश के कई छोटे शहरों और गाँवों के ग़रीब खिलाड़ियों ने पदक जीतकर अपनी धाक जमा दी। इससे यह साफ़ हो गया कि देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है और ज़रूरत सिर्फ़ उनको तलाश करके तराशने की है। यदि हम भविष्य में ऐसा कर सकें तो सफलताएँ हमादे क़दम चूम सकती है। इन खेलों में इस माहौल से निकलकर सफलता पाने वाले प्रमुख खिलाड़ियों में तीरंदाज़ दीपिका कुमारी, एथलीट प्रजूषा मलाइकल, जिम्नास्ट आशीष, लम्बी दूरी की धावक कविता राउत और पहलवान राजिन्दर शर्मा शामिल हैं।

नारी शक्ति का दम

राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की महिला खिलाड़ियों ने यादगार प्रदर्शन करते हुए देश के लिए एक तिहाई से ज़्यादा पदक जीत लिए। भारत ने इन खेलों के इतिहास में अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए कुल 101 पदक हासिल किए, जिनमें महिलाओं का योगदान एक तिहाई से कहीं ज़्यादा है। महिला खिलाड़ियों ने 13 स्वर्ण, 11 रजत और 12 कांस्य सहित कुल 36 पदक हासिल किए हैं। पुरुष खिलाड़ियों के खाते में 25 स्वर्ण, 15 रजत और 24 कांस्य हैं तथा एक टीम रजत भी गया है। भारत ने खेलों के अन्तिम दिन जो दो स्वर्ण पदक हासिल किए वो दोनों ही महिला बैडमिंटन खिलाड़ियों के रैकेट से निकले। भारत की महिला निशानेबाज़ों, पहलवानों, एथलीटों, भारोत्तोलकों, बैडमिंटन और टेनिस खिलाड़ियों ने काफ़ी उम्दा प्रदर्शन किया और यह दिखाया कि वे पुरुष खिलाड़ियों से कंधे से कंधा मिलाकर देश के लिए गौरव ला सकती हैं। एथलेटिक्स में कृष्णा पूनिया, हरवंत कौर और सीमा अंतिल ने महिला डिस्क्स थ्रो में स्वर्ण, रजत और कांस्य जीतकर नया इतिहास बनाया। कृष्णा ने तो भारत को 52 वर्षों के बाद एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक दिलाया। मनजीत कौर, सिनी जोंस, अश्विनी चिरानंदा और मनदीप कौर की चौकड़ी ने चार गुणा 400 मीटर रिले का स्वर्ण जीता। स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल ने खेलों के अन्तिम दिन महिला एकल स्पर्धा का स्वर्ण जीता। जबकि ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पेनप्पा की जोड़ी ने महिला युगल में स्वर्ण पदक जीतकर नया इतिहास रचा। टेनिस स्टार सानिया मिर्जा से भी भारत को स्वर्ण पदक की उम्मीद थी लेकिन वह कड़ा संघर्ष करने के बावजूद महिला एकल मुक़ाबले में रजत पदक ही हासिल कर सकीं। देश की महिला पहलवानों ने गजब के दांव पेंच दिखाते हुए कुश्ती में एक नया इतिहास रचा और इस खेल को एक नया आयाम दे दिया। गीता ने 55 किग्रा वर्ग में, अलका तोमर ने 59 किग्रा वर्ग में और अनीता ने 67 किग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीता। महिला तीरंदाज़ी में दीपिका कुमारी, डोला बनर्जी और बोम्बाल्या देवी की तिकड़ी ने कमाल के निशाने साधते हुए रिकर्व टीम स्पर्धा का स्वर्ण जीता, जबकि 16 वर्षीय दीपिका ने व्यक्तिगत वर्ग में स्वर्ण जीतकर दोहरी स्वर्णिम उपलब्धि हासिल की। महिलाओं की भारोत्तलन की 58 किग्रा स्पर्धा में रेणु बाला चानू ने करोड़ों देशवासियों की उम्मीदों का भार अपने मज़बूत कंधों पर उठाते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया। निशानेबाज़ी में अनीसा सईद ने 25 मीटर पिस्टल व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण जीतकर अपना नाम इतिहास में दर्ज करा दिया। हिना सिद्धू और अन्नु राज सिंह ने 10 मीटर पेयर्स एयर पिस्टल स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता। महिला खिलाड़ियों के इस प्रदर्शन ने कई पुरुष खिलाड़ियों के प्रदर्शन को पीछे छोड़ दिया। महिला खिलाड़ियों की यह कामयाबी भारत में लड़कियों को खेलों में आगे लाने के लिए प्रेरणास्रोत का कार्य करेंगी, क्योंकि इनमें कई विजेता खिलाड़ी देश के ऐसे दूर-दराज़ क्षेत्रों से हैं, जो कि पूरी तरह से सुविधाओं से वंचित हैं।


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