छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 खण्ड-1

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 खण्ड-1
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय पाँचवाँ
कुल खण्ड 24 (चौबीस)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय पांचवें का यह प्रथम खण्ड है। इस खण्ड में प्राणतत्त्व की सर्वश्रेष्ठता के विषय में बताया गया है।

शरीर में प्राणतत्त्व की सर्वश्रेष्ठता-

शरीर में जो स्थान 'प्राण' का है, वह किसी अन्य इन्द्रिय का नहीं है। एक बार सभी इन्द्रियों में अपनी-अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद छिड़ गया। तब सभी ने प्रजापति ब्रह्मा से निर्णय जानना चाहा कि सर्वश्रेष्ठ कौन है?

इस पर प्रजापति ने कहा कि- "तुममें से जिसके द्वारा शरीर छोड़ देने पर वह निश्चेष्ट हो जाये, वही श्रेष्ठ है।"

सबसे पहले वाणी ने, उसके बाद चक्षु ने, फिर कानों ने, फिर मन ने शरीर को बारी-बारी से छोड़ा, किन्तु हर बार शरीर का एक अंग ही निश्चेष्ट हुआ। शेष शरीर सक्रिय बना रहा। जैसे वाणी के जाने से वह गूंगा हो गया, चक्षु के जाने से अन्धा हो गया, कानों के जाने से बहरा हो गया और मन के जाने से बालक-रूप-जैसा हो गया, पर जीवित रहा और अपने सारे कार्य करता रहा, किन्तु जब 'प्राण' जाने लगा, तो सारी इन्द्रियाँ शिथिल होने लगीं। उन्होंने घबराकर प्राण को रोका और उसकी सर्वश्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया।


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