भारत के पार्थियन राज्य

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भारत के पार्थियन राज्य का मानचित्र

भारत में जिस प्रकार बैक्ट्रिया के यवनों ने आक्रमण कर अपने अनेक राज्य इस देश में स्थापित किए थे, वैसे ही पार्थिया के पार्थियन लोगों ने भी भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में अपने शासन को क़ायम किया। सेल्यूकस द्वारा स्थापित सीरियन साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर पार्थिया ने किस प्रकार स्वतंत्रता प्राप्त की थी, इसका उल्लेख पिछले अध्याय में किया जा चुका है। पार्थिया के शक्तिशाली राजा मिथिदातस द्वितीय की शक्ति से पराभूत होकर ही शक लोग भारत में प्रवेश करने के लिए विवश हुए थे। मिथिदातस द्वितीय के शासनकाल में पार्थिया कि शक्ति बहुत अधिक बढ़ी हुई थी, और शक आक्रमणों को उसके विरुद्ध सफलता नहीं प्राप्त हो सकी थी।

पार्थियन वंश के शासक

ऐसा प्रतीत होता है, कि मिथिदातस द्वितीय के किसी उत्तराधिकारी राजा के समय में पार्थियनों ने भारत पर आक्रमण किया, और आर्कोशिया (कन्धार) व सीस्तान के प्रदेशों को जीत लिया। भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में पार्थियन लोगों का जो शासन इस विजय द्वारा स्थापित हुआ, इसका मूल पार्थियन राज्य के साथ सम्बन्ध नहीं रह सका, और वहाँ पर एक स्वतंत्र पार्थियन वंश शासन करने लगा। इस स्वतंत्र पार्थियन वंश का प्रथम राजा वोनोनस (वनान) था। उसके सिक्कों पर जो लेख है, वे ग्रीक भाषा में हैं। कन्धार में कुछ ऐसे सिक्के भी प्राप्त हुए हैं, जिनमें एक ओर तो वोनोनस (वनान) का नाम ग्रीक भाषा में दिया गया है, और दूसरी ओर भारतीय प्राकृत भाषा में 'महाराजभ्रातस ध्रमिअस श्पलहोरस' लिखा है। इससे यह अनुमान किया जाता है कि वनान सम्पूर्ण पार्थियन साम्राज्य का स्वामी था, और उसका भाई श्पलहोर कन्धार व उसके समीपवर्ती भारतीय प्रदेशों पर शासन करने के लिए नियुक्त था। भारत के पार्थियन राज्य का शासक यह श्पलहोर पहली सदी ई. पू. के मध्य भाग में हुआ था।

श्लपगदम

मोअस सिक्का 90-60 ई.

श्पलहोर के बाद भारत के पार्थियन राज्य का स्वामी उसका पुत्र श्लपगदम बना, उसके सिक्कों पर 'श्पलहोरपुत्रस ध्रमिअस श्पलगदमस' लिखा है। पार्थियन राजाओं ने अपने नाम के साथ 'ध्रमिक' या 'ध्रमिअ' विशेषण लगाया है। इससे सूचित होता है, कि ये भी भारतीय धर्म के प्रभाव में आ गए थे। भारत के पार्थियन राजा केवल कन्धार और सीस्तान के प्रदेशों से ही संतुष्ट नहीं रहे। इन्होंने क़ाबुल पर आक्रमण करके उसे भी जीत लिया, और वहाँ के यवन राज्य का अन्त किया। इसके बाद वे पुष्करावती (पश्चिमी गान्धार) की ओर बढ़े, और उसे भी अपने अधीन कर लिया।

अय (एजस)

पार्थियन लोगों की शक्ति को इस प्रकार विस्तृत करने वाले राजा का नाम अय (एजस) था। जो सम्भवतः श्पलगदम के बाद पार्थियन राज्य का स्वामी बना था। इसके सिक्कों पर 'महाराज राजराज महान् अय' लेख अंकित है। इससे यह सूचित होता है कि वह बहुत ही शक्तिशाली था और राजाधिराज कहाता था। अनेक ऐतिहासिकों के मत में यह अय पार्थियन न होकर शक था, और शक महाराज मोग या मोअ का उत्तराधिकारी था। पार्थियन और शक राजाओं के विषय में जो कुछ भी ज्ञान हमें हैं, उसका आधार केवल उनके सिक्के ही हैं। इसी कारण इस विषय में मतभेद की गुंन्जाइश रहना स्वाभाविक है।

गोन्दोफ़ैरस

गोन्दोफ़ैरस का सिक्का

अय के बाद पार्थियन राज्य का स्वामी गोंडोफ़ारस (गुदफ़र) हुआ। उसकी राजधानी पश्चिमी गान्धार में थी, और वह बहुत शक्तिशाली था। उसका नाम ईसाई धर्म की प्राचीन अनुश्रुति में भी पाया जाता है। उसके अनुसार ईसाइर मिशनरी सेन्ट टामस ने गुदफ़र के राज्य में ईसाई धर्म का प्रचार किया था। सन्ट टामस ईसाई धर्म का एक ऐसा प्रचारक था, जिसने भारत में पहले अपने धर्म का प्रचार किया।

पार्थियन साम्राज्य का अंत

गुदफ़र के बाद भारत के पार्थियन राज्य की शक्ति क्षीण होने लग गई। इसका मुख्य कारण यह था, कि इस समय युइशि जाति ने भारत पर आक्रमण शुरू कर दिए थे। युइशि जाति का उल्लेख हम पहले ही कर चुके हैं। हूणों के आक्रमण के कारण युइशि लोग अपने मूल अभिजन को छोड़कर शकों पर आक्रमण करने के लिए विवश हुए थे, और शक लोगों ने आगे बढ़कर बैक्ट्रिया को जीत लिया था। शकों की अन्य शाखा इन्हीं युइशि लोगों से धकेली जाकर पार्थिया के समीप से होती हुई भारत में प्रविष्ट हुई थी। पर शक लोग बैक्ट्रिया में देर तक नहीं टिक सके। युइशियों ने वहाँ पर भी उन पर आक्रमण किया, और बैक्ट्रिया को जीतकर वे भारत की तरफ़ बढ़ आए। पार्थियन लोगों के भारतीय राज्य का अन्त करना इन युइशि आक्रान्ताओं का ही कार्य था।

भारतीय इतिहास में पार्थियन लोगों को पह्लव कहा गया है। पुराणों में शकों और पह्लवों का नाम प्रायः साथ-साथ आता है। इसका कारण यही है, कि शक लोग पार्थिया होकर ही भारत में प्रविष्ट हुए, और यह सम्भव है कि उनकी सेना में पार्थियन सैनिक भी अच्छी बड़ी संख्या में हों। सम्भवतः पार्थियन लोग भी विशाल शक-जाति की ही एक शाखा थे, जो अपने जाति-भाइयों से पहले ईरान में प्रविष्ट हो गए थे।

इन्हें भी देखें: पह्लव, गोन्दोफ़ैरस एवं मोअस


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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