ईसाई धर्म

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ईसाई धर्म
ईसाई धर्म का प्रतीक
ईसाई धर्म का प्रतीक
विवरण 'ईसाई धर्म' या 'मसीही धर्म' या 'मसयहयत' विश्व के प्रमुख धर्मों में से एक है जिसके ताबईन ईसाई कहलाते हैं
मुख्य सम्प्रदाय कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट, आर्थोडोक्स, मॉरोनी, एवनजीलक
प्रवर्तक ईसा मसीह (जीसस क्राइस्ट)
आस्था सूत्र मैं आकाश तथा पृथ्वी एवं सभी गोचर-अगोचर वस्तुओं के सृजक एकमात्र महाशक्तिमान पिता प्रभु तथा उनके पुत्र ईसा मसीह में विश्वास करता हूँ।
ईसाई त्रयंक ईसाई लोग ईश्वर को 'पिता' और ईसा मसीह को 'ईश्वर पुत्र' मानते हैं। ईश्वर, ईश्वर पुत्र और पवित्र आत्मा– ये तीनों ईसाई त्रयंक (ट्रिनीटी) माने जाते हैं।
धर्म ग्रन्थ बाइबिल
धर्म प्रचार ईसा मसीह के प्रमुख शिष्यों में से एक संत टामस ने प्रथम शताब्दी ईस्वी में ही भारत में मद्रास के पास आकर ईसाई धर्म का प्रचार किया था।
अन्य जानकारी वर्तमान में भारत में ईसाई धर्मावलम्बियों की संख्या लगभग 1 करोड़ 65 लाख है, जो देश की कुल जनसंख्या का लगभग 2.5% है।

ईसाई धर्म या मसीही धर्म या मसयहयत विश्व के प्रमुख धर्मों में से एक है जिसके ताबईन ईसाई कहलाते हैं। ईसाई धर्म के पैरोकार ईसा मसीह की तालीमात पर अमल करते हैं। ईसाईओं में बहुत से समुदाय हैं मसलन कैथोलिक, प्रोटैस्टैंट, आर्थोडोक्स, मॉरोनी, एवनजीलक आदि। 'ईसाई धर्म' के प्रवर्तक ईसा मसीह (जीसस क्राइस्ट) थे, जिनका जन्म रोमन साम्राज्य के गैलिली प्रान्त के नज़रथ नामक स्थान पर 6 ई. पू. में हुआ था। उनके पिता जोजेफ़ एक बढ़ई थे तथा माता मेरी (मरियम) थीं। वे दोनों यहूदी थे। ईसाई शास्त्रों के अनुसार मेरी को उसके माता-पिता ने देवदासी के रूप में मन्दिर को समर्पित कर दिया था। ईसाई विश्वासों के अनुसार ईसा मसीह के मेरी के गर्भ में आगमन के समय मेरी कुँवारी थी। इसीलिए मेरी को ईसाई धर्मालम्बी 'वर्जिन मेरी (कुँवारी मेरी) तथा ईसा मसीह को ईश्वरकृत दिव्य पुरुष मानते हैं। ईसा मसीह के जन्म के समय यहूदी लोग रोमन साम्राज्य के अधीन थे और उससे मुक्ति के लिए व्याकुल थे। उसी समय जॉन द बैप्टिस्ट नामक एक संत ने ज़ोर्डन घाटी में भविष्यवाणी की थी कि यहूदियों की मुक्ति के लिए ईश्वर शीघ्र ही एक मसीहा भेजने वाला है। उस समय ईसा की आयु अधिक नहीं थी, परन्तु कई वर्षों के एकान्तवास के पश्चात् उनमें कुछ विशिष्ट शक्तियों का संचार हुआ और उनके स्पर्श से अंधों को दृष्टि, गूंगों को वाणी तथा मृतकों को जीवन मिलने लगा। फलतः चारों ओर ईसा को प्रसिद्धि मिलने लगी। उन्होंने दीन दुखियों के प्रति प्रेम और सेवा का प्रचार किया।
यरुसलम में उनके आगमन एवं निरन्तर बढ़ती जा रही लोकप्रियता से पुरातनपंथी पुरोहित तथा सत्ताधारी वर्ग सशंकित हो उठा और उन्हें झूठे आरोपों में फ़ँसाने का प्रयास किया। यहूदियों की धर्मसभा ने उन पर स्वयं को ईश्वर का पुत्र और मसीहा होने का दावा करने का आरोप लगाया और अन्ततः उन्हें सलीब (क्रॉस) पर लटका कर मृत्युदंड की सज़ा दी गई। परन्तु सलीब पर भी उन्होंने अपने विरुद्ध षड़यंत्र करने वालों के लिए ईश्वर से प्रार्थना की कि वह उन्हें माफ़ करे, क्योंकि उन्हें नहीं मालूम कि वे क्या कर रहे हैं। ईसाई मानते हैं कि मृत्यु के तीसरे दिन ही ईसा मसीह पुनः जीवित हो उठे थे। ईसा मसीह के शिष्यों ने उनके द्वारा बताये गये मार्ग अर्थात् ईसाई धर्म का फ़िलीस्तीन में सर्वप्रथम प्रचार किया, जहाँ से वह रोम और फिर सारे यूरोप में फैला। वर्तमान में यह विश्व का सबसे अधिक अनुयायियों वाला धर्म है। ईसाई लोग ईश्वर को 'पिता' और मसीह को 'ईश्वर पुत्र' मानते हैं। ईश्वर, ईश्वर पुत्र ईसा मसीह और पवित्र आत्मा–ये तीनों ईसाई त्रयंक (ट्रिनीटी) माने जाते हैं। ईसाई धर्म की कुछ अन्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं—

आस्था सूत्र

ईसाई धर्मावलम्बी प्रार्थनाओं तथा बप्तिस्मा एवं अन्य अनुष्ठानों के अवसर पर निम्न आस्था सूत्र का स्मरण करते हैं—मैं आकाश तथा पृथ्वी एवं सभी गोचर-अगोचर वस्तुओं के सृजक एकमात्र महाशक्तिमान पिता प्रभु तथा उनके पुत्र ईसा मसीह में विश्वास करता हूँ।

पवित्र पुस्तक

ईसाई धर्म की पवित्र पुस्तक बाइबिल या इंजील है, जिसके दो भाग हैं—

  1. ओल्ड टेस्टामेंट, जिसमें यहूदी इतिहास तथा धर्मकथाएँ वर्णित हैं, तथा
  2. न्यू टेस्टामेंट, जिसमें ईसाईयों के धर्म सम्बन्धी विचार, विश्वास तथा इतिहास वर्णित हैं।
ईसा मसीह

धर्मकृत्य

ईसाईयों के विभिन्न सम्प्रदायों में थोड़े-बहुत अन्तर के साथ कुछ धर्मकृत्य संस्कार या अनुष्ठान प्रचलित हैं, जिनका प्रभु की अदृश्य अगोचर कृपा से दृश्य-गोचर प्रतीक माना जाता है। ऐसे सात धर्मकृत्य मान्य हैं—

  • धन्यवाद ज्ञापन (यूखैरिस्ट)–गिरिजाघर की प्रार्थना के समय रोटी और मदिरा का सेवन करना, जिसका उद्देश्य ईसा मसीह के शरीर का अंग बन जाना है। मान्यता यह है कि ईसा मसीह ने यहूदियों द्वारा अपनी गिरफ्तारी के पूर्व रात्रि को दिये गये एक भोज में रोटी तोड़कर एक-एक टुकड़ा और साथ में थोड़ी-थोड़ी मदिरा अपने प्रत्येक शिष्य को यह कहते हुए दिया था कि यह मेरे शरीर एवं रक्त के हिस्से हैं और इनके सेवन से सभी शिष्य एक मन, एक प्राण, एक शरीर रूप हो सहधर्मी हो गये।
  • बैप्टिज़्म–व्यक्ति पर जल छिड़कर या शिशु को पवित्र जल में डुबकी लगवाकर उसे चर्च विशेष के सदस्य के रूप में प्रविष्ट करना।
  • पुष्टिकरण (कनफरमेशन)–ईसाई धर्म स्वीकार कर चुके व्यक्ति के हाथों में तेल और बाम मलना, जिसका उद्देश्य उसके ईसाईयत को पुनः पुष्ट करना है।
  • प्रायश्चित (कनफेशन)–ईसाई धर्मावलम्बियों में, विशेषकर रोमन कैथोलिक में प्रचलित इस व्यवस्था के अनुसार चर्च में विशिष्ट रूप से बने एक स्थान पर व्यक्ति को पादरी के समक्ष धर्मग्रहण के समय तथा प्रत्येक वर्ष कम से कम एक बार अपने पापों का ब्यौरा देकर प्रायश्चित करना पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि प्रभु पादरी के माध्यम से उसे माफ़ कर देता है।
  • अभिषेक–मृत्यु शय्या पर पड़े व्यक्ति की आँखों, कानों, नथुनों, ओठों, हाथों, पाँवों और पुरुषों की जाँघों में पादरी तेल छुवाता है या मलता है और प्रभु से उसके पापों को क्षमा करने की प्रार्थना करता है।
  • विवाह–ईसाईयों में विवाह एक पवित्र संस्कार है, जिसका सम्पादन चर्च में पादरी के आशीर्वाद एवं घोषणा से किया जाता है।
  • पुरोहित एवं आर्डिनेशन–रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय में पुरोहितों की अत्यन्त सुव्यवस्थित व्यवस्था दृष्टिगत होती है, जिसे वे 'होली आर्डर्स' कहते हैं। अन्य सम्प्रदायों में भी पादरियों की व्यवस्था है। पादरियों के दो वर्ग होते हैं—ज्येष्ठ और कनिष्ठ। कनिष्ठ वर्ग में शिक्षार्थी पादरी, धर्मग्रन्थ कथावाचक आदि आते हैं। वहीं ज्येष्ठ वर्ग में बिशप, पादरी, डीकन, आर्कबिशप आदि आते हैं। पोप रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय के सर्वमान्य सर्वोच्च धर्मगुरु हैं। रोमन कैथोलिक में किसी कनिष्ठ पुरोहित को ज्येष्ठ वर्ग में प्रवेश हेतु किया जाने वाला संस्कार 'आर्डिनेशन' कहलाता है।

ईसाई धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय

यद्यपि ईसाई धर्म के अनेक सम्प्रदाय हैं, परन्तु उनमें दो सर्वप्रमुख हैं—

  1. रोमन कैथोलिक चर्च–इसे 'अपोस्टोलिक चर्च' भी कहते हैं। यह सम्प्रदाय यह विश्वास करता है कि वेटिकन स्थित पोप ईसा मसीह का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी है और इस रूप में वह ईसाईयत का धर्माधिकारी है। अतः धर्म, आचार एवं संस्कार के विषय में उसका निर्णय अन्तिम माना जाता है। पोप का चुनाव वेटिकन के सिस्टीन गिरजे में इस सम्प्रदाय के श्रेष्ठ पादरियों (कार्डिनलों) द्वारा गुप्त मतदान द्वारा किया जाता है।
  2. प्रोटेस्टैंट–15-16वीं शताब्दी तक पोप की शक्ति अवर्णनीय रूप से बढ़ गई थी और उसका धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, सभी मामलों में हस्तक्षेप बढ़ गया था। पोप की इसी शक्ति को 14वीं शताब्दी में जॉन बाइक्लिफ़ ने और फिर मार्टिन लूथर (जर्मनी में) ने चुनौती दी, जिससे एक नवीन सुधारवादी ईसाई सम्प्रदाय-प्रोटेस्टैंट का जन्म हुआ, जो कि अधिक उदारवादी दृष्टिकोण रखते हैं।

बाइबिल

बाइबिल
Bible

ईसाई धर्म का पवित्र ग्रन्थ बाइबिल है, जिसके दो भाग ओल्ड टेस्टामेंट और न्यू टेस्टामेंट हैं। ईसाईयों का विश्वास है कि बाइबिल की रचना विभिन्न व्यक्तियों द्वारा 2000-2500 वर्ष पूर्व की गई थी। वास्तव में यह ग्रन्थ ई. पू. 9वीं शताब्दी से लेकर ईस्वी प्रथम शताब्दी के बीच लिखे गये 73 लेख श्रृंखलाओं का संकलन है, जिनमें से 46 ओल्ड टेस्टामेंट में और 27 न्यू टेस्टामेंट में संकलित हैं। जहाँ ओल्ड टेस्टामेंट में यहूदियों के इतिहास और विश्वासों का वर्णन है, वहीं न्यू टेस्टामेंट में ईसा मसीह के उपदेशों एवं जीवन का विवरण है।

भारत में ईसाई धर्म

ईसाई धर्म का भारत में प्रवेश अत्यन्त प्राचीन काल में ही हो चुका था। ईसा मसीह के प्रमुख शिष्यों में से एक संत टामस ने प्रथम शताब्दी ईस्वी में ही भारत में मद्रास के पास आकर ईसाई धर्म का प्रचार किया था। उसी समय से इस क्षेत्र में ईसाई धर्म का स्वतंत्र रूप में प्रसार होता रहा है। 16वीं सदी में पुर्तग़ालियों के साथ आये रोमन कैथोलिक धर्म प्रचारकों के माध्यम से उनका सम्पर्क पोप के कैथोलिक चर्च से हुआ। परन्तु भारत के कुछ इसाईयों ने पोप की सत्ता को अस्वीकृत करके 'जेकोबाइट' चर्च की स्थापना की। केरल में कैथोलिक चर्च से सम्बन्धित तीन शाखाएँ दिखाई देती हैं—

  • सीरियन मलाबारी
  • सीरियन मालाकारी और
  • लैटिन।

रोमन कैथोलिक चर्च की लैटिन शाखा के भी दो वर्ग दिखाई पड़ते हैं—

  • गोवा, मंगलोर, महाराष्ट्रियन समूह, जो पश्चिमी विचारों से प्रभावित था, तथा
  • तमिल समूह जो अपनी प्राचीन भाषा-संस्कृति से जुड़ा रहा।

काका बेपतिस्टा, फ़ादर स्टीफ़ेंस (ख़ीस्ट पुराण के रचयिता), फ़ादर दी नोबिली आदि दक्षिण भारत के प्रमुख ईसाई धर्म प्रचारक थे। उत्तर भारत में अकबर के दरबार में सर्व धर्म सभा में विचार-विमर्श हेतु जेसुइट फ़ादर उपस्थित थे। उन्होंने आगरा में एक चर्च भी स्थापित किया था। इसी काल में ईसाई सम्प्रदाय रोथ ने लैटिन भाषा में संस्कृत व्याकरण लिखा। भारत में प्रोटेस्टेंट धर्म का आगमन 1706 में हुआ। बी. जीगेनबाल्ग ने तमिलनाडु के ट्रंकबार में तथा विलियम केरी ने कलकत्ता के निकट सेरामपुर में लूथरन चर्च स्थापित किया। मदर टेरेसा द्वारा 1950 में कलकत्ता में स्थापित मिशनरीज और चेरिटी मानवता की सेवा में कार्यरत हैं। वर्तमान में भारत में ईसाई धर्मावलम्बियों की संख्या लगभग 1 करोड़ 65 लाख है, जो देश की कुल जनसंख्या का लगभग 2.5% है।


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