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महाभारत युद्ध दसवाँ दिन

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महाभारत के दसवें दिन के युद्ध में शिखंडी पांडवों की ओर से भीष्म पितामह के सामने आकर डट गया, जिसे देखते ही भीष्म ने अस्त्र-शस्त्र का परित्याग कर दिया।

  • श्रीकृष्ण के कहने पर शिखंडी की आड़ लेकर बड़े ही बेमन से अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म को छेद दिया।
  • पितामह भीष्म अपने रथ से नीचे गिर पड़े। उनका शरीर भूमि का स्पर्श नहीं कर रहा था, क्योंकि अर्जुन के बाण उनके समस्त शरीर में समाये हुए थे, जिस कारण वे बाणों की शैय्या पर पड़े थे।
  • भीष्म के गिरते ही दोनों पक्षों में हाहाकार मच गया। कौरवों तथा पांडव दोनों शोक मनाने लगे। भीष्म ने बताया कि वे सूर्य के उत्तरायण होने पर ही शरीर छोड़ेंगे, क्योंकि उन्हें अपने पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वर प्राप्त है।
  • पितामह के शर-शैय्या पर गिरने का समाचार सुनकर कर्ण अपनी शत्रुता भूलकर उनसे मिलने गया। उसने पितामह को प्रणाम किया। भीष्म ने कर्ण को आशीर्वाद दिया और समझाया कि- "यदि तुम चाहो तो युद्ध रुक सकता है। दुर्योधन समझता है कि तुम्हारी सहायता से वह विजयी होगा, पर अर्जुन को जीतना संभव नहीं। तुम दुर्योधन को समझाओ। तुम पांडवों के भाई तथा कुंती के पुत्र हो। तुम दोनों पक्षों में शांति स्थापित करो।" कर्ण ने कहा- "पितामह अब संघर्ष दूर तक पहुँच गया है। मैं तो अब सूत अधिरथ का ही पुत्र हूँ, जिसने मेरा पालन-पोषण किया है।" यह कहकर कर्ण अपने शिविर में लौट आया।[1]
  • दसवें दिन के युद्ध में शतानीक के वध से पांडव पक्ष की क्षति हुई, जबकि पितामह भीष्म के शर-शैय्या पर आ जाने से कौरवों को बहुत बड़ी क्षति उठानी पड़ी। इस दिन पांडवों का पक्ष मजबूत रहा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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