"संतोषी माता की आरती": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " शृंगार " to " श्रृंगार ") |
||
(3 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 10 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चित्र:santosimata.jpg|thumb| | [[चित्र:santosimata.jpg|thumb|300|संतोषी माता <br />Santoshi Mata]] | ||
<blockquote><span style="color: maroon"><poem>जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता । | <blockquote><span style="color: maroon"><poem>जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता । | ||
अपने सेवक जन को, सुख संपति दाता ॥ जय… | अपने सेवक जन को, सुख संपति दाता ॥ जय… | ||
सुंदर चीर सुनहरी, | सुंदर चीर सुनहरी, माँ धारण कीन्हो । | ||
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ॥ जय… | हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ॥ जय… | ||
गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे । | गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे । | ||
मंद हँसत | मंद हँसत करुणामयी, त्रिभुवन जन मोहे ॥ जय… | ||
स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे । | स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे । | ||
पंक्ति 33: | पंक्ति 33: | ||
संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे ॥ जय… | संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे ॥ जय… | ||
संतोषी | संतोषी माँ की आरती, जो कोई नर गावे । | ||
ॠद्धि-सिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे ॥ जय…</poem></span></blockquote> | ॠद्धि-सिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे ॥ जय…</poem></span></blockquote> | ||
{{seealso|संतोषी चालीसा|आरती संग्रह}} | |||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= | ||
|प्रारम्भिक= | |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 | ||
|माध्यमिक= | |माध्यमिक= | ||
|पूर्णता= | |पूर्णता= | ||
|शोध= | |शोध= | ||
}} | }} | ||
== | ==संबंधित लेख== | ||
{{आरती स्तुति स्तोत्र}} | |||
[[Category: | [[Category:आरती स्तुति स्तोत्र]] | ||
[[Category:हिन्दू धर्म]] [[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
08:53, 17 जुलाई 2017 के समय का अवतरण

Santoshi Mata
जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन को, सुख संपति दाता ॥ जय…
सुंदर चीर सुनहरी, माँ धारण कीन्हो ।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ॥ जय…
गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे ।
मंद हँसत करुणामयी, त्रिभुवन जन मोहे ॥ जय…
स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे ।
धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे ॥ जय…
गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो।
संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो ॥ जय…
शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही ।
भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही ॥ जय…
मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई ।
विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई ॥ जय…
भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै ।
जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै ॥ जय…
दुखी, दरिद्री, रोगी, संकटमुक्त किए ।
बहु धन-धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए ॥ जय…
ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो ।
पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो ॥ जय…
शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदंबे ।
संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे ॥ जय…
संतोषी माँ की आरती, जो कोई नर गावे ।
ॠद्धि-सिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे ॥ जय…
इन्हें भी देखें: संतोषी चालीसा एवं आरती संग्रह
|
|
|
|
|