"गाँधी स्मृति, दिल्ली": अवतरणों में अंतर
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'''गाँधी स्मृति''' 'बिड़ला भवन', [[दिल्ली]] के बरामदे में स्थित वह जगह है, जहाँ [[नाथूराम गोडसे]] ने [[30 जनवरी]], [[1948]] को प्रार्थना सभा में जाते हुए [[राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] की गोली मार कर हत्या कर दी थी। बाद में इसे स्मारक का रूप दे दिया गया। 'गाँधी स्मृति' या 'गाँधी स्मृति संग्रहालय' वही स्थल है, जहाँ महात्मा गाँधी ने अपने जीवन के आखिरी 144 दिन बिताए। 'गाँधी स्मृति' को पहले 'बिड़ला हाउस' या 'बिड़ला भवन' के नाम से पुकारा जाता था। | {{सूचना बक्सा संग्रहालय | ||
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|विवरण='गाँधी स्मृति' या 'गाँधी स्मृति संग्रहालय' राजधानी [[दिल्ली]] में स्थित वह स्थान है, जहाँ [[महात्मा गाँधी]] ने अपने जीवन के आखिरी 144 दिन व्यतीत किए थे। | |||
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'''गाँधी स्मृति''' 'बिड़ला भवन', [[दिल्ली]] के बरामदे में स्थित वह जगह है, जहाँ [[नाथूराम गोडसे]] ने [[30 जनवरी]], [[1948]] को प्रार्थना सभा में जाते हुए [[राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] की गोली मार कर हत्या कर दी थी। बाद में इसे स्मारक का रूप दे दिया गया। 'गाँधी स्मृति' या 'गाँधी स्मृति संग्रहालय' वही स्थल है, जहाँ महात्मा गाँधी ने अपने जीवन के आखिरी 144 दिन बिताए। इस भवन में महात्मा गाँधी [[9 सितम्बर]], [[1947]] से [[30 जनवरी]], [[1948]] तक रहे थे। 'गाँधी स्मृति' को पहले 'बिड़ला हाउस' या 'बिड़ला भवन' के नाम से पुकारा जाता था। | |||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
देश की राजधानी [[नई दिल्ली]] में तीस जनवरी मार्ग पर स्थित 'गाँधी स्मृति' का सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं, पर्यटकीय महत्व भी है। देश-विदेश से आने वाले सैलानियों में यह बेहद लोकप्रिय है। इसे देखे बिना वे [[दिल्ली]] या देश के पर्यटन को अधूरा मानते हैं। गाँधीवादियों के लिए तो यह तीर्थ स्थल ही है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपनी अंतिम सांसें यहीं ली थीं। आज जो स्थान 'गाँधी स्मृति' के नाम से जाना जाता है, वह कभी 'बिड़ला हाउस' कहलाता था। जिस श्रद्धा से लोग यहाँ महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े स्मृति चिह्नों को देखते हैं, उतने ही शौक और शिद्दत से 'बिड़ला हाउस' के प्रांगण में घूमते भी हैं। 'बिड़ला हाउस' के बारे में कहा जाता है कि 'बापू' जब भी दिल्ली आते थे, अपने अनुयायी घनश्याम दास बिरला के इसी आलीशान घर में ठहरते थे। शाम को पांच बजे प्रार्थना सभा के दौरान वह लोगों से यहीं मिलते थे और उनसे बातें करते थे।<ref>{{cite web |url=http://www.thesundayindian.com/hi/story/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%27%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%27/24/351/|title=दान में नहीं मिला 'गाँधी स्मृति'|accessmonthday=08 अक्टूबर|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> 'बिड़ला हाउस' का भारत सरकार द्वारा [[1971]] में अधिग्रहण किया गया और इसे राष्ट्रपिता के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। [[15 अगस्त]], [[1973]] को इसे भारत की आम जनता के लिए खोल दिया गया। | देश की राजधानी [[नई दिल्ली]] में तीस जनवरी मार्ग पर स्थित 'गाँधी स्मृति' का सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं, पर्यटकीय महत्व भी है। देश-विदेश से आने वाले सैलानियों में यह बेहद लोकप्रिय है। इसे देखे बिना वे [[दिल्ली]] या देश के पर्यटन को अधूरा मानते हैं। गाँधीवादियों के लिए तो यह तीर्थ स्थल ही है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपनी अंतिम सांसें यहीं ली थीं। आज जो स्थान 'गाँधी स्मृति' के नाम से जाना जाता है, वह कभी 'बिड़ला हाउस' कहलाता था। जिस श्रद्धा से लोग यहाँ महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े स्मृति चिह्नों को देखते हैं, उतने ही शौक और शिद्दत से 'बिड़ला हाउस' के प्रांगण में घूमते भी हैं। 'बिड़ला हाउस' के बारे में कहा जाता है कि 'बापू' जब भी दिल्ली आते थे, अपने अनुयायी घनश्याम दास बिरला के इसी आलीशान घर में ठहरते थे। शाम को पांच बजे प्रार्थना सभा के दौरान वह लोगों से यहीं मिलते थे और उनसे बातें करते थे।<ref>{{cite web |url=http://www.thesundayindian.com/hi/story/%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%27%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF%27/24/351/|title=दान में नहीं मिला 'गाँधी स्मृति'|accessmonthday=08 अक्टूबर|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> 'बिड़ला हाउस' का भारत सरकार द्वारा [[1971]] में अधिग्रहण किया गया और इसे राष्ट्रपिता के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। [[15 अगस्त]], [[1973]] को इसे भारत की आम जनता के लिए खोल दिया गया। | ||
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#कुछ अनुभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उनकी गतिविधियों को प्रस्तुत करने के लिए उनकी सेवा के पहलू। | #कुछ अनुभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उनकी गतिविधियों को प्रस्तुत करने के लिए उनकी सेवा के पहलू। | ||
====गाँधीजी की महत्त्वपूर्ण वस्तुएँ==== | ====गाँधीजी की महत्त्वपूर्ण वस्तुएँ==== | ||
गाँधी स्मृति संग्रहालय में बिताए गए गाँधीजी के दिनों के फोटोग्राफ, मूर्तियाँ, पेटिंग, भित्ति चित्र, [[शिलालेख]] तथा स्मृति चिह्न संग्रहित हैं। गाँधीजी की कुछ वैयक्तिक वस्तुएँ भी यहाँ पर सावधानी से संरक्षित हैं। यहाँ का प्रवेश द्वार भी ऐतिहासिक महत्व का है, क्योंकि इसके ऊपर से ही [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] ने महात्मा गाँधी महाप्रयाण की घोषणा करते हुए कहा था कि- "हमारे जीवन का प्रकाश चला गया और अब चारों ओर अंधेरा है।" 'गाँधी स्मृति' के प्रवेश द्वार पर गोलाकार भूमण्डल से उभरती हुई आदमकद से बड़ी महात्मा गाँधी की एक प्रतिमा, जिसके बगल में और हाथों में कबूतर पकड़े हुए एक ओर एक लड़का और दूसरी ओर एक लड़की की मूर्ति है, जो | गाँधी स्मृति संग्रहालय में बिताए गए गाँधीजी के दिनों के फोटोग्राफ, मूर्तियाँ, पेटिंग, भित्ति चित्र, [[शिलालेख]] तथा स्मृति चिह्न संग्रहित हैं। गाँधीजी की कुछ वैयक्तिक वस्तुएँ भी यहाँ पर सावधानी से संरक्षित हैं। यहाँ का प्रवेश द्वार भी ऐतिहासिक महत्व का है, क्योंकि इसके ऊपर से ही [[प्रधानमंत्री]] [[जवाहरलाल नेहरू]] ने महात्मा गाँधी महाप्रयाण की घोषणा करते हुए कहा था कि- "हमारे जीवन का प्रकाश चला गया और अब चारों ओर अंधेरा है।" 'गाँधी स्मृति' के प्रवेश द्वार पर गोलाकार भूमण्डल से उभरती हुई आदमकद से बड़ी महात्मा गाँधी की एक प्रतिमा, जिसके बगल में और हाथों में कबूतर पकड़े हुए एक ओर एक लड़का और दूसरी ओर एक लड़की की मूर्ति है, जो ग़रीबों एवं विपन्न लोगों की उनकी सार्वभौमिक चिंता को प्रकट करती है, अभ्यागतों का स्वागत करती है। यह विख्यात मूर्तिकार श्रीराम सुतार की कृति है। प्रस्तर मूर्ति की आधारशिला पर '''मेरा जीवन ही मेरा संदेश है''' अंकित है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://gandhismritichuru.blogspot.in/2010/04/blog-post.html|title=गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति|accessmonthday=08 अक्टूबर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
====बलिदान शिलाखण्ड==== | ====बलिदान शिलाखण्ड==== | ||
महात्मा गाँधी को जिस स्थान पर गोलियों का निशाना बनाया गया था, वहाँ पर एक बलिदान शिलाखण्ड स्थापित है, जो [[भारत]] के लम्बे [[स्वाधीनता संग्राम]] की सभी पीड़ाओं और बलिदानों का प्रतीक है। इस शिलाखण्ड के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए पत्थरों का एक मार्ग बनाया हुआ है। शिलाखण्ड के सामने श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए स्थान छोड़ा गया है। शिलाखण्ड के नीचे के घास के मैदान में [[रवीन्द्रनाथ टैगोर|गुरुदेव टैगोर]] के शब्द हैं- "वह प्रत्येक कुटिया की देहलीज पर रूके।" | महात्मा गाँधी को जिस स्थान पर गोलियों का निशाना बनाया गया था, वहाँ पर एक बलिदान शिलाखण्ड स्थापित है, जो [[भारत]] के लम्बे [[स्वाधीनता संग्राम]] की सभी पीड़ाओं और बलिदानों का प्रतीक है। इस शिलाखण्ड के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए पत्थरों का एक मार्ग बनाया हुआ है। शिलाखण्ड के सामने श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए स्थान छोड़ा गया है। शिलाखण्ड के नीचे के घास के मैदान में [[रवीन्द्रनाथ टैगोर|गुरुदेव टैगोर]] के शब्द हैं- "वह प्रत्येक कुटिया की देहलीज पर रूके।" | ||
====भित्ति चित्र==== | ====भित्ति चित्र==== | ||
प्रार्थना प्रांगण के मध्य में एक मण्डप है, जिसकी दीवारों पर भित्ति चित्र है, जो [[भारत]] की सांस्कृतिक यात्रा की निरंतरता, विश्व भर में इसके विचारों के आदान-प्रदान को प्रतिबिम्बित करते हैं और महात्मा गाँधी के विश्व व्यापी व्यक्त्तित्व को अभिव्यक्त करते हैं। इन भित्ति चित्रों में उनकी विनम्रता का भी प्रतिपादन हुआ है। वह कहते थे- "मेरी वैयक्तिक आवश्यकताओं के लिए मेरा गाँव ही मेरा संसार है, परंतु मेरी आध्यात्मिक आवश्यकताओं के लिए समूचा संसार मेरा गाँव है।" मण्डप के बाहर [[लाल रंग]] के पत्थर से बनी एक बेंच है, जिस पर बैठकर महात्मा गाँधी प्रार्थना करते थे या कठिनाई के दिनों में शांति प्रदान के लिए उनके पास आने वाले लोगों के साथ वह वार्तालाप करते थे। | प्रार्थना प्रांगण के मध्य में एक मण्डप है, जिसकी दीवारों पर भित्ति चित्र है, जो [[भारत]] की सांस्कृतिक यात्रा की निरंतरता, विश्व भर में इसके विचारों के आदान-प्रदान को प्रतिबिम्बित करते हैं और महात्मा गाँधी के विश्व व्यापी व्यक्त्तित्व को अभिव्यक्त करते हैं। इन भित्ति चित्रों में उनकी विनम्रता का भी प्रतिपादन हुआ है। वह कहते थे- "मेरी वैयक्तिक आवश्यकताओं के लिए मेरा गाँव ही मेरा संसार है, परंतु मेरी आध्यात्मिक आवश्यकताओं के लिए समूचा संसार मेरा गाँव है।" मण्डप के बाहर [[लाल रंग]] के पत्थर से बनी एक बेंच है, जिस पर बैठकर महात्मा गाँधी प्रार्थना करते थे या कठिनाई के दिनों में शांति प्रदान के लिए उनके पास आने वाले लोगों के साथ वह वार्तालाप करते थे। | ||
====प्रार्थना भवन==== | |||
[[चित्र:Gandhi-Smriti-Museum-Delhi.jpg|thumb|left|250px|गाँधी स्मृति, [[दिल्ली]]]] | |||
हरी भरी घास प्रार्थना भवन की विशेषता है, जिसमें चारों ओर [[सफ़ेद रंग]] के [[गुलाब]] के पौधे हैं। दाएँ ओर के मैदान पर स्मारक के प्रवेश द्वार के निकट '''गाँधी के सपनों का भारत''' अंकित है। घुमावदार मार्ग के केंद्र में विख्यात कलाकार शंखो चौधुरी की कास्यं की एक कृति है, जो गाँधीजी के बलिदान पर प्रज्ज्वलित शाश्वत अग्निशिखा की प्रतीक है। 'बिड़ला भवन' में गाँधीजी का कक्ष वैसे ही रखा गया है, जैसा उनके निधन के समय था। उनकी सभी वस्तुएँ- उनकी छडी, एक चाकू, कांटा और चम्मच, साबुन के स्थान पर प्रयोग किया जाने वाला खरहरा सुरक्षित है। उनका बिस्तरा था धरती पर एक चटाई, सादा सफ़ेद ढलान लकड़ी की एक डेस्क बगल में है। वहाँ पर एक पुरानी काफ़ी दिनों से पढ़ी जा रही '[[गीता]]' की पुस्तक भी है। यह पूरा भवन कई भागों में विभाजित है। भवन के मुख्य प्रवेश के दोनों ओर महात्मा गाँधी द्वारा रचित एक प्रार्थना 'एक सेवक की प्रार्थना' तथा उनका शाश्वत संदेश उनके 'जंतर' प्रदर्शित हैं। बगल के एक कमरे में 'बा' ([[कस्तूरबा गाँधी]]) और 'बापू' की दो प्रतिमाएँ रखी हैं। फाइबर ग्लास से बनी प्रतिमाएँ [[थाइलैण्ड]] के एक युगल 'डेका सैसम्बून' और 'सैसम्बून' की बनाई हुई है।<ref name="aa"/> | |||
==दक्षिण व उत्तरी खण्ड== | |||
मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी का बनना दक्षिण खण्ड में विवरण सहित 35 पैनलों पर श्वते-श्याम चित्रों में प्रदर्शित है। दक्षिण खण्ड में एक सभागार तथा समिति कक्ष भी है। उत्तरी खण्ड में पांच विभिन्न कक्ष हैं। प्रथम खण्ड में वह वीथिका है, जो उस कक्ष की ओर ले जाती है, जहाँ पर गाँधीजी ने अपनी शांति यात्रा और बलिदान को समर्पित जीवन के अंतिम 144 दिन बिताए थे। उत्तरी खण्ड का तीसरा भाग 'गाँधी के सपनों के भारत' तथा आने वाली पीढि़यों द्वारा इस स्वप्न को साकार करने का गाँधीजी का फार्मूला प्रदर्शित है। वह फार्मूला था 'अट्ठारह सूत्रीय कार्यक्रम'। गाँधीजी [[भारत]] को संसार के समक्ष वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ एक विकसित माडल के रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे। चौथे खण्ड सुमन में कुल 27 उपखण्ड हैं। इनमें से तीन विभितीय पटलों पर महात्मा गाँधी के बाल्यकाल से लेकर उनके प्राणात्सर्ग तक[[चित्र:Gandhi-Smriti.JPG|thumb|250px|[[गाँधीजी]] का बलिदान स्थल]] के जीवन की 27 महत्वपूर्ण घटनाएँ प्रदर्शित की गई हैं। पांचवे खण्ड सन्मति में जो 'गाँधी स्मृति' का साहित्य केंद्र है, गाँधीवाद तथा इससे संबंधित अनेक पुस्तकें एक स्थान पर उपलब्ध पूरा मण्डप अब एक चहल-कदमी करते हुए देखने वाली वीथिका है, जो हमारे समाज के सभी अंगों और संसार के सभी भागों के कलाकारों को एक अवसर प्रदान करती है, जहाँ वे अपनी कृतियाँ प्रदर्शित कर सकते हैं और वहाँ आने वाले विशाल जनसमुदाय तक अपनी भावनाएँ पहुँचा सकते हैं। बच्चों तथा कमज़ोर वर्ग के कलाकारों को विशेष अवसर प्रदान किया जाता है तथा अपनी कलाकृतियों को प्रदर्शित करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है। | |||
*'गाँधी स्मृति' में 'स्वराज' खादी, कुटीर उद्योग तथा ग्रामीण विकास पर गाँधीवादी विचारधारा को अभिव्यक्त करता है। यहाँ पर एक 'स्मृतिचिह्न' पटल है, जहाँ गाँधीजी विषयक प्रतिमाएँ तथा संगत कलाकृतियाँ प्रदर्शित हैं। प्रख्यात [[सरोद]] के वादक [[अमजद अली ख़ाँ|उस्ताद अमजद अली ख़ाँ]] द्वारा उद्घाटित 'कीर्ति मण्डप' नव-उद्घाटित मण्डप, जो 'गाँधी स्मृति' में बलिदान शिलाखण्ड के निकट स्थित है, किसी बड़े कार्यक्रम के लिए 500 जन प्रतिनिधियों के लिए स्थान उपलब्ध कराता है। प्रत्येक [[शुक्रवार]] को इस मण्डप में नियमित रूप से प्रार्थना की जाती है।<ref name="aa"/> | |||
==शैक्षणिक केन्द्र की स्थापना== | |||
समाज के विभिन्न वर्गों के बच्चों को कम्प्यूटर, सिलाई और कढ़ाई, बालकों की देखभाल और शिक्षा, सामुदायिक स्वास्थ्य, कुम्हारी, कताई और बुनाई, [[कठपुतली]] प्रदर्शन, स्वांग, [[संगीत]] तथा कहानी सुनाने आदि में कौशल प्रदान करने के प्रयास के लिए 'सृजन' नामक 'गाँधी स्मृति शैक्षणिक केंद्र' की स्थापना की गई है। 'सृजन' व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को सीखने में बच्चों की सहायता करता है, ताकि उनमें स्व-सहायता की भावना और आत्मविश्वास उत्पन्न हो सके और जीवन-यापन में समर्थ हो सकें। इनमें से कुछ पाठ्यक्रमों को 'राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय' द्वारा मान्यता प्रदान कर दी गई है। हाल ही में संग्रहालय में 'शाश्वत गाँधी' शीर्षक की मल्टी-मीडिया प्रदर्शनी आरम्भ की गई है, जो भवन के समूचे तल पर है। [[महात्मा गाँधी]] के जीवन और उनके दृष्टिकोण को साकार रूप से प्रस्तुत करने के लिए इसमें अधुनातन इलेक्ट्रानिक हार्डवेयर तथा नवीन मीडिया का उपयोग किया गया है। इसमें ऐतिहासिकता तथा व्याख्यात्मकता दोनों को प्रमुखता दी गई है। इक्कीसवीं सदी की प्रौद्योगिकी का प्रयोग करती हुई यह प्रदर्शनी गाँधीवादी विचारों को उद्घाटित करती है जो उस सत्याग्रही का सत्य के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता को स्थापित करती है। इन सभी वस्तुओं के साथ 'गाँधी स्मृति' एक समग्र संग्रहालय का स्वरूप धारण करती है। | |||
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==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://hindi.nativeplanet.com/delhi/attractions/gandhi-smriti/ गाँधी स्मृति, दिल्ली] | |||
*[http://www.delhitourism.gov.in/delhitourism/hindi/entertainment/gandhi_smriti.jsp दिल्ली पर्यटन- गाँधी स्मृति] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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09:18, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
गाँधी स्मृति, दिल्ली
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विवरण | 'गाँधी स्मृति' या 'गाँधी स्मृति संग्रहालय' राजधानी दिल्ली में स्थित वह स्थान है, जहाँ महात्मा गाँधी ने अपने जीवन के आखिरी 144 दिन व्यतीत किए थे। |
राज्य | राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली |
नगर | दिल्ली |
मार्ग स्थिति | तीस जनवरी मार्ग, दिल्ली |
प्रसिद्धि | महात्मा गाँधी से जुड़ी अनेक महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के लिए। |
संबंधित लेख | महात्मा गाँधी, कस्तूरबा गाँधी |
विशेष | इस भवन में महात्मा गाँधी 9 सितम्बर, 1947 से 30 जनवरी, 1948 तक रहे थे। |
अन्य जानकारी | 'गाँधी स्मृति संग्रहालय' में गाँधीजी ने जो दिन बिताए, उन दिनों के फोटोग्राफ, मूर्तियाँ, पेटिंग, भित्ति चित्र, शिलालेख तथा स्मृति चिह्न संग्रहित हैं। गाँधीजी की कुछ वैयक्तिक वस्तुएँ भी यहाँ पर सावधानी से संरक्षित हैं। |
गाँधी स्मृति 'बिड़ला भवन', दिल्ली के बरामदे में स्थित वह जगह है, जहाँ नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी, 1948 को प्रार्थना सभा में जाते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की गोली मार कर हत्या कर दी थी। बाद में इसे स्मारक का रूप दे दिया गया। 'गाँधी स्मृति' या 'गाँधी स्मृति संग्रहालय' वही स्थल है, जहाँ महात्मा गाँधी ने अपने जीवन के आखिरी 144 दिन बिताए। इस भवन में महात्मा गाँधी 9 सितम्बर, 1947 से 30 जनवरी, 1948 तक रहे थे। 'गाँधी स्मृति' को पहले 'बिड़ला हाउस' या 'बिड़ला भवन' के नाम से पुकारा जाता था।
इतिहास
देश की राजधानी नई दिल्ली में तीस जनवरी मार्ग पर स्थित 'गाँधी स्मृति' का सिर्फ ऐतिहासिक ही नहीं, पर्यटकीय महत्व भी है। देश-विदेश से आने वाले सैलानियों में यह बेहद लोकप्रिय है। इसे देखे बिना वे दिल्ली या देश के पर्यटन को अधूरा मानते हैं। गाँधीवादियों के लिए तो यह तीर्थ स्थल ही है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अपनी अंतिम सांसें यहीं ली थीं। आज जो स्थान 'गाँधी स्मृति' के नाम से जाना जाता है, वह कभी 'बिड़ला हाउस' कहलाता था। जिस श्रद्धा से लोग यहाँ महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़े स्मृति चिह्नों को देखते हैं, उतने ही शौक और शिद्दत से 'बिड़ला हाउस' के प्रांगण में घूमते भी हैं। 'बिड़ला हाउस' के बारे में कहा जाता है कि 'बापू' जब भी दिल्ली आते थे, अपने अनुयायी घनश्याम दास बिरला के इसी आलीशान घर में ठहरते थे। शाम को पांच बजे प्रार्थना सभा के दौरान वह लोगों से यहीं मिलते थे और उनसे बातें करते थे।[1] 'बिड़ला हाउस' का भारत सरकार द्वारा 1971 में अधिग्रहण किया गया और इसे राष्ट्रपिता के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। 15 अगस्त, 1973 को इसे भारत की आम जनता के लिए खोल दिया गया।
संग्रह
'गाँधी स्मृति' में महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण वस्तुएँ आदि संरक्षित हैं-
- महात्मा गाँधी की स्मृति एवं उनके द्वारा अपनाए गए पवित्र आदर्शों को प्रचारित करने वाले दृश्यात्मक पहलू।
- गाँधीजी को एक महात्मा बनाने वाले उनके जीवन के मूल्यों पर गहन रूप से केन्द्रित शैक्षणिक पहलू।
- कुछ अनुभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उनकी गतिविधियों को प्रस्तुत करने के लिए उनकी सेवा के पहलू।
गाँधीजी की महत्त्वपूर्ण वस्तुएँ
गाँधी स्मृति संग्रहालय में बिताए गए गाँधीजी के दिनों के फोटोग्राफ, मूर्तियाँ, पेटिंग, भित्ति चित्र, शिलालेख तथा स्मृति चिह्न संग्रहित हैं। गाँधीजी की कुछ वैयक्तिक वस्तुएँ भी यहाँ पर सावधानी से संरक्षित हैं। यहाँ का प्रवेश द्वार भी ऐतिहासिक महत्व का है, क्योंकि इसके ऊपर से ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गाँधी महाप्रयाण की घोषणा करते हुए कहा था कि- "हमारे जीवन का प्रकाश चला गया और अब चारों ओर अंधेरा है।" 'गाँधी स्मृति' के प्रवेश द्वार पर गोलाकार भूमण्डल से उभरती हुई आदमकद से बड़ी महात्मा गाँधी की एक प्रतिमा, जिसके बगल में और हाथों में कबूतर पकड़े हुए एक ओर एक लड़का और दूसरी ओर एक लड़की की मूर्ति है, जो ग़रीबों एवं विपन्न लोगों की उनकी सार्वभौमिक चिंता को प्रकट करती है, अभ्यागतों का स्वागत करती है। यह विख्यात मूर्तिकार श्रीराम सुतार की कृति है। प्रस्तर मूर्ति की आधारशिला पर मेरा जीवन ही मेरा संदेश है अंकित है।[2]
बलिदान शिलाखण्ड
महात्मा गाँधी को जिस स्थान पर गोलियों का निशाना बनाया गया था, वहाँ पर एक बलिदान शिलाखण्ड स्थापित है, जो भारत के लम्बे स्वाधीनता संग्राम की सभी पीड़ाओं और बलिदानों का प्रतीक है। इस शिलाखण्ड के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए पत्थरों का एक मार्ग बनाया हुआ है। शिलाखण्ड के सामने श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए स्थान छोड़ा गया है। शिलाखण्ड के नीचे के घास के मैदान में गुरुदेव टैगोर के शब्द हैं- "वह प्रत्येक कुटिया की देहलीज पर रूके।"
भित्ति चित्र
प्रार्थना प्रांगण के मध्य में एक मण्डप है, जिसकी दीवारों पर भित्ति चित्र है, जो भारत की सांस्कृतिक यात्रा की निरंतरता, विश्व भर में इसके विचारों के आदान-प्रदान को प्रतिबिम्बित करते हैं और महात्मा गाँधी के विश्व व्यापी व्यक्त्तित्व को अभिव्यक्त करते हैं। इन भित्ति चित्रों में उनकी विनम्रता का भी प्रतिपादन हुआ है। वह कहते थे- "मेरी वैयक्तिक आवश्यकताओं के लिए मेरा गाँव ही मेरा संसार है, परंतु मेरी आध्यात्मिक आवश्यकताओं के लिए समूचा संसार मेरा गाँव है।" मण्डप के बाहर लाल रंग के पत्थर से बनी एक बेंच है, जिस पर बैठकर महात्मा गाँधी प्रार्थना करते थे या कठिनाई के दिनों में शांति प्रदान के लिए उनके पास आने वाले लोगों के साथ वह वार्तालाप करते थे।
प्रार्थना भवन

हरी भरी घास प्रार्थना भवन की विशेषता है, जिसमें चारों ओर सफ़ेद रंग के गुलाब के पौधे हैं। दाएँ ओर के मैदान पर स्मारक के प्रवेश द्वार के निकट गाँधी के सपनों का भारत अंकित है। घुमावदार मार्ग के केंद्र में विख्यात कलाकार शंखो चौधुरी की कास्यं की एक कृति है, जो गाँधीजी के बलिदान पर प्रज्ज्वलित शाश्वत अग्निशिखा की प्रतीक है। 'बिड़ला भवन' में गाँधीजी का कक्ष वैसे ही रखा गया है, जैसा उनके निधन के समय था। उनकी सभी वस्तुएँ- उनकी छडी, एक चाकू, कांटा और चम्मच, साबुन के स्थान पर प्रयोग किया जाने वाला खरहरा सुरक्षित है। उनका बिस्तरा था धरती पर एक चटाई, सादा सफ़ेद ढलान लकड़ी की एक डेस्क बगल में है। वहाँ पर एक पुरानी काफ़ी दिनों से पढ़ी जा रही 'गीता' की पुस्तक भी है। यह पूरा भवन कई भागों में विभाजित है। भवन के मुख्य प्रवेश के दोनों ओर महात्मा गाँधी द्वारा रचित एक प्रार्थना 'एक सेवक की प्रार्थना' तथा उनका शाश्वत संदेश उनके 'जंतर' प्रदर्शित हैं। बगल के एक कमरे में 'बा' (कस्तूरबा गाँधी) और 'बापू' की दो प्रतिमाएँ रखी हैं। फाइबर ग्लास से बनी प्रतिमाएँ थाइलैण्ड के एक युगल 'डेका सैसम्बून' और 'सैसम्बून' की बनाई हुई है।[2]
दक्षिण व उत्तरी खण्ड
मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी का बनना दक्षिण खण्ड में विवरण सहित 35 पैनलों पर श्वते-श्याम चित्रों में प्रदर्शित है। दक्षिण खण्ड में एक सभागार तथा समिति कक्ष भी है। उत्तरी खण्ड में पांच विभिन्न कक्ष हैं। प्रथम खण्ड में वह वीथिका है, जो उस कक्ष की ओर ले जाती है, जहाँ पर गाँधीजी ने अपनी शांति यात्रा और बलिदान को समर्पित जीवन के अंतिम 144 दिन बिताए थे। उत्तरी खण्ड का तीसरा भाग 'गाँधी के सपनों के भारत' तथा आने वाली पीढि़यों द्वारा इस स्वप्न को साकार करने का गाँधीजी का फार्मूला प्रदर्शित है। वह फार्मूला था 'अट्ठारह सूत्रीय कार्यक्रम'। गाँधीजी भारत को संसार के समक्ष वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ एक विकसित माडल के रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे। चौथे खण्ड सुमन में कुल 27 उपखण्ड हैं। इनमें से तीन विभितीय पटलों पर महात्मा गाँधी के बाल्यकाल से लेकर उनके प्राणात्सर्ग तक
के जीवन की 27 महत्वपूर्ण घटनाएँ प्रदर्शित की गई हैं। पांचवे खण्ड सन्मति में जो 'गाँधी स्मृति' का साहित्य केंद्र है, गाँधीवाद तथा इससे संबंधित अनेक पुस्तकें एक स्थान पर उपलब्ध पूरा मण्डप अब एक चहल-कदमी करते हुए देखने वाली वीथिका है, जो हमारे समाज के सभी अंगों और संसार के सभी भागों के कलाकारों को एक अवसर प्रदान करती है, जहाँ वे अपनी कृतियाँ प्रदर्शित कर सकते हैं और वहाँ आने वाले विशाल जनसमुदाय तक अपनी भावनाएँ पहुँचा सकते हैं। बच्चों तथा कमज़ोर वर्ग के कलाकारों को विशेष अवसर प्रदान किया जाता है तथा अपनी कलाकृतियों को प्रदर्शित करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है।
- 'गाँधी स्मृति' में 'स्वराज' खादी, कुटीर उद्योग तथा ग्रामीण विकास पर गाँधीवादी विचारधारा को अभिव्यक्त करता है। यहाँ पर एक 'स्मृतिचिह्न' पटल है, जहाँ गाँधीजी विषयक प्रतिमाएँ तथा संगत कलाकृतियाँ प्रदर्शित हैं। प्रख्यात सरोद के वादक उस्ताद अमजद अली ख़ाँ द्वारा उद्घाटित 'कीर्ति मण्डप' नव-उद्घाटित मण्डप, जो 'गाँधी स्मृति' में बलिदान शिलाखण्ड के निकट स्थित है, किसी बड़े कार्यक्रम के लिए 500 जन प्रतिनिधियों के लिए स्थान उपलब्ध कराता है। प्रत्येक शुक्रवार को इस मण्डप में नियमित रूप से प्रार्थना की जाती है।[2]
शैक्षणिक केन्द्र की स्थापना
समाज के विभिन्न वर्गों के बच्चों को कम्प्यूटर, सिलाई और कढ़ाई, बालकों की देखभाल और शिक्षा, सामुदायिक स्वास्थ्य, कुम्हारी, कताई और बुनाई, कठपुतली प्रदर्शन, स्वांग, संगीत तथा कहानी सुनाने आदि में कौशल प्रदान करने के प्रयास के लिए 'सृजन' नामक 'गाँधी स्मृति शैक्षणिक केंद्र' की स्थापना की गई है। 'सृजन' व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को सीखने में बच्चों की सहायता करता है, ताकि उनमें स्व-सहायता की भावना और आत्मविश्वास उत्पन्न हो सके और जीवन-यापन में समर्थ हो सकें। इनमें से कुछ पाठ्यक्रमों को 'राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय' द्वारा मान्यता प्रदान कर दी गई है। हाल ही में संग्रहालय में 'शाश्वत गाँधी' शीर्षक की मल्टी-मीडिया प्रदर्शनी आरम्भ की गई है, जो भवन के समूचे तल पर है। महात्मा गाँधी के जीवन और उनके दृष्टिकोण को साकार रूप से प्रस्तुत करने के लिए इसमें अधुनातन इलेक्ट्रानिक हार्डवेयर तथा नवीन मीडिया का उपयोग किया गया है। इसमें ऐतिहासिकता तथा व्याख्यात्मकता दोनों को प्रमुखता दी गई है। इक्कीसवीं सदी की प्रौद्योगिकी का प्रयोग करती हुई यह प्रदर्शनी गाँधीवादी विचारों को उद्घाटित करती है जो उस सत्याग्रही का सत्य के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता को स्थापित करती है। इन सभी वस्तुओं के साथ 'गाँधी स्मृति' एक समग्र संग्रहालय का स्वरूप धारण करती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ दान में नहीं मिला 'गाँधी स्मृति' (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 08 अक्टूबर, 2013।
- ↑ 2.0 2.1 2.2 गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 08 अक्टूबर, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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