"इक सपना बना लेते -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
|- style="text-align:center;"
|- style="text-align:center;"
|
|
{{#widget:YouTube||width=180px|height=150px|id=5_LCrAeuvM4}}
{{#widget: YouTube|id=5_LCrAeuvM4}}
|-
|-
|
|

09:46, 18 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण

फ़ेसबुक पर शेयर करें
फ़ेसबुक पर शेयर करें
इक सपना बना लेते -आदित्य चौधरी

ज़रा सी आँख लग जाती तो इक सपना बना लेते
ज़माना राहतें देता, तुझे अपना बना लेते

          तुझे सुनने की चाहत है, हमें कहना नहीं आता
          जो ऐसी क़ुव्वतें होतीं, शहर अपना बना लेते

जहाँ जिससे भी मिलना हो, नज़र बस तू ही आता है
सनम! हालात में ऐसे, किसे अपना बना लेते

          ये दुनिया ख़ूबसूरत है, बस इक तेरी ज़रूरत है
          जिसे भी चाहता हो तू उसे अपना बना लेते

तमन्नाओं के दरवाज़ों से आके देख ले मंज़र
तेरी आमद जो हो जाती तो घर अपना बना लेते