"पत्थर का आसमान -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) ('{| width="85%" class="headbg37" style="border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:10px;" |- | [[चित्र:Bharatkosh-c...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{| width=" | {| width="100%" style="background:#fbf8df; border:thin groove #003333; border-radius:5px; padding:8px;" | ||
|- | |- | ||
| | | | ||
[[चित्र: | <noinclude>[[चित्र:Copyright.png|50px|right|link=|]]</noinclude> | ||
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>पत्थर का आसमान | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>पत्थर का आसमान<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div> | ||
---- | ---- | ||
{| width="100%" style="background:transparent" | |||
< | |-valign="top" | ||
| style="width:35%"| | |||
| style="width:35%"| | |||
<poem style="color=#003333"> | |||
पूस की रात ने | पूस की रात ने | ||
आषाढ़ के एक दिन से पूछा | आषाढ़ के एक दिन से पूछा | ||
"बड़ी तबियत से उछाला था पत्थर तुमने | "बड़ी तबियत से उछाला था पत्थर तुमने | ||
आसमान में | आसमान में | ||
सूराख़ हुआ क्या ?" | |||
परबत सी पीर लिये | परबत सी पीर लिये | ||
दिन बोला | दिन बोला | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 26: | ||
कमबख्त वो भी | कमबख्त वो भी | ||
आसमान बन जाते हैं | आसमान बन जाते हैं | ||
कि उसमें | कि उसमें सूराख़ करना तो | ||
दूर की बात है | दूर की बात है | ||
हम तो उन्हें | हम तो उन्हें | ||
ख़रोंच भी नहीं पाते हैं | |||
-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
</poem> | |||
| style="width:30%"| | |||
|- | |||
| colspan="3"| | |||
[[प्रेमचन्द|मुंशी प्रेमचन्द]] की कहानी '[[पूस की रात -प्रेमचंद|पूस की रात]]', [[मोहन राकेश]] के नाटक '[[आषाढ़ का एक दिन -मोहन राकेश|आषाढ़ का एक दिन]]' और दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों की स्मृति में | |||
<poem> | |||
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता | |||
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो | |||
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिये, | |||
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये -[[दुष्यंत कुमार]] | |||
पीर | |||
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिये -दुष्यंत कुमार | |||
</poem> | </poem> | ||
|} | |||
|} | |} | ||
06:46, 24 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
![]() पत्थर का आसमान -आदित्य चौधरी
|