"तुलसी": अवतरणों में अंतर
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== | '''तुलसी''' (Ocimum sanctum / ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और 1 से 3 फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] आभा वाली हल्के रोएँ सो ढकी होती है। पत्तियाँ 1 से 2 इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं 8 इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और [[गुलाबी रंग|गुलाबी]] आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से [[वर्षा ऋतु]] में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है। | ||
==तुलसी का महत्त्व== | |||
[[भारत]] में तुलसी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। तुलसी शब्द का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि जिस वनस्पति की किसी से तुलना न की जा सके वह तुलसी है। तुलसी को [[हिन्दू धर्म]] में ''जगत-जननी'' का पद प्राप्त है। तुलसी के महात्म्यों व कारण शक्ति के सूक्ष्म प्रभावों से पुराणों के अध्याय भरे पड़े हैं। हिन्दूओं द्वारा सदियों से [[देवता]] के रूप में घर-घर पूजे जाने वाला पौधा '''तुलसी (Holy Basil)''' है। बहुत ही कम लोग यह जानते है कि यह पौधा मात्र [[धर्म]] और आध्यात्मिक तौर पर ही पूज्यनीय नहीं है वरन् इसके अन्य जीवनदायी गुण भी है, जो इस पौधे की महत्ता में चार चांद लगा देते है। सर्व रोग निवारक तथा जीवन शक्ति संवर्धक इस औषधि को संभवतः प्रत्यक्ष देव माना जाना इसी तथ्य पर आधारित है कि ऐसी सस्ती, सुलभ, सुगम, सुंदर, उपयोगी [[वनस्पति]] मनुष्य समुदाय के लिए कोई और नहीं है। तुलसी आपके जीवन को निरोगी एवं आत्मा का शोधन कर उसे पवित्र बनाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। | |||
[[ | अधिकांश [[हिन्दू]] घरों में तुलसी का पौधा अवश्य ही होता है। तुलसी घर के आंगन में लगाने की प्रथा हज़ारों साल पुरानी है। तुलसी को दैवी का रूप माना जाता है। साथ ही मान्यता है कि तुलसी का पौधा घर में होने से घर वालों को बुरी नजर प्रभावित नहीं कर पाती और अन्य बुराइयां भी घर और घरवालों से दूर ही रहती है। तुलसी का पौधा घर में रहने से उसकी सुगंध वातावरण को पवित्र बनाती है और हवा में मौजूद बीमारी के [[जीवाणु]] आदि को नष्ट कर देती है। तुलसी की सुंगध हमें श्वास संबंधी कई रोगों से बचाती है। साथ ही तुलसी की एक पत्ती रोज सेवन करने से हमें कभी बुखार नहीं आएगा और इस तरह के सभी रोग हमसे सदा दूर रहते हैं। तुलसी की पत्ती खाने से हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता काफ़ी बढ़ जाती है। | ||
====तुलसी के आठ नाम==== | |||
धर्मशास्त्रों के अनुसार तुलसी के आठ नाम बताए गए हैं - ''वृंदा, वृंदावनि, विश्व पूजिता, विश्व पावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी और कृष्ण जीवनी''। | धर्मशास्त्रों के अनुसार तुलसी के आठ नाम बताए गए हैं - ''वृंदा, वृंदावनि, विश्व पूजिता, विश्व पावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी और कृष्ण जीवनी''। | ||
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|+ '''तुलसी''' | |+ '''तुलसी''' | ||
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| <small>भारतीय डाकटिकट में तुलसी</small> | | <small>भारतीय डाकटिकट में तुलसी</small> | ||
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==तुलसी की प्रजातियाँ== | |||
भारत के प्रत्येक भाग में तुलसी के पौधे पाये जाते हैं इसका पौधा बड़ा वृक्ष नहीं बनता केवल डेढ़ या दो फुट तक बढ़ता है। इसकी जड़ें धरती की गहराई तक जाकर पानी खींच नहीं सकती। नित्यजल सिंचन से इसकी संभाल-सुरक्षा की जाती है। तुलसी की लगभग 60 प्रजातियाँ [[एशिया]], [[अफ्रीका]], [[अमेरिका]] तथा अन्य देशों मैं उगाई जाती है। तुलसी विश्व की लगभग सभी जलवायु में पाई जाती हैं। तुलसी सदा हरित होती है। साधारणतः [[मार्च]] से [[जून]] तक इसे लगाते हैं। [[सितम्बर]] और [[अक्टूबर]] में वह फूलता है। सारा पौधा सुगंधित मंजरियों से लद जाता है। जाड़े के दिनों में इसके बीज पकते हैं। यह बारहों [[माह]] किसी न किसी रूप में प्राप्त किया जा सकता है। तुलसी की सामान्यतया निम्न '''प्रजातियाँ''' पाई जाती हैं। | |||
भारत के प्रत्येक भाग में तुलसी के पौधे पाये जाते हैं इसका पौधा बड़ा | |||
#ऑसीमम अमेरिकन, ओसीमम केनम - (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी। | #ऑसीमम अमेरिकन, ओसीमम केनम - (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी। | ||
#ऑसीमम वेसिलिकम - (मरुआ तुलसी), मुन्जरिकी या मुरसा, (स्वीट बेसिल या फ्रेंच बेसिल या इंडियन बेसिल या मीठी तुलसी)। | #ऑसीमम वेसिलिकम - (मरुआ तुलसी), मुन्जरिकी या मुरसा, (स्वीट बेसिल या फ्रेंच बेसिल या इंडियन बेसिल या मीठी तुलसी)। | ||
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#ऑसीमम सैक्टम - श्री तुलसी तथा कृष्णा तुलसी, (घरेलू तुलसी)। श्याम तुलसी | #ऑसीमम सैक्टम - श्री तुलसी तथा कृष्णा तुलसी, (घरेलू तुलसी)। श्याम तुलसी | ||
#ऑसीमम विरिडी - (जंगली तुलसी)। | #ऑसीमम विरिडी - (जंगली तुलसी)। | ||
====ऑसीमम सैक्टम==== | |||
'''ऑसीमम सैक्टम''' को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है, इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं - '''श्री तुलसी''' जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा '''कृष्णा तुलसी''' जिसकी पत्तियाँ निलाभ - कुछ [[बैंगनी रंग]] लिए होती हैं। श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ होते हैं, जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं। इनमें कृष्ण तुलसी सर्वप्रिय मानी जाती है। गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों ही गुणों में समान हैं। श्री भाव मिश्र कहते हैं - 'श्यामा शुक्ला कृष्णा च तुलसी गुणैस्तुल्या प्रकीर्तित।' | |||
====ओसीमम बेसिलिकम==== | |||
'''ओसीमम बेसिलिकम''' (स्वीट बेसिल या फ्रेंच बेसिल या इंडियन बेसिल या मीठी तुलसी) प्रजाति बहुत ही उपयोगी है, क्योंकि इससे मीठा तुलसी का तेल (स्वीटबेसिल ऑइल) मिलता है। ओसीमम बेसिलिकम लेमिएसी कुल का पौधा है। इस पौधे की लम्बाई 30 से 90 से॰ मी॰ होती है, पत्तियों की लम्बाई 3-5 से॰ मी॰ होती है। पौधे में बहुत सी तेल कौशिकाएं होती है जो सुगंध तेल देती है। | '''ओसीमम बेसिलिकम''' (स्वीट बेसिल या फ्रेंच बेसिल या इंडियन बेसिल या मीठी तुलसी) प्रजाति बहुत ही उपयोगी है, क्योंकि इससे मीठा तुलसी का तेल (स्वीटबेसिल ऑइल) मिलता है। ओसीमम बेसिलिकम लेमिएसी कुल का पौधा है। इस पौधे की लम्बाई 30 से 90 से॰ मी॰ होती है, पत्तियों की लम्बाई 3-5 से॰ मी॰ होती है। पौधे में बहुत सी तेल कौशिकाएं होती है जो सुगंध तेल देती है। | ||
तुलसी का गुल्म के समान क्षुप 1 से 3 फुट ऊँचा शाखायुक्त रोमश, बैंगनी आभा लिए होता है। पत्र 1 से 2 इंच लम्बे अण्डाकार या आयताकार होते हैं। प्रत्येक पत्र में एक प्रकार की तीव्र सुगंध होती है। तुलसी में खड़ी मंजरियाँ उगती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं 8 इंच लम्बी और अनेक रंगी छटाओं से मण्डित होती है। इस पर बैंगनी या रक्त-सी आभा लिए बहुत छोटे पुष्प चक्रों में लगते हैं। पुष्पक प्रायः हृदयवत् होते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अण्डाकार होते हैं। पुष्प शीतकाल में आते हैं। | तुलसी का गुल्म के समान क्षुप 1 से 3 फुट ऊँचा शाखायुक्त रोमश, बैंगनी आभा लिए होता है। पत्र 1 से 2 इंच लम्बे अण्डाकार या आयताकार होते हैं। प्रत्येक पत्र में एक प्रकार की तीव्र सुगंध होती है। तुलसी में खड़ी मंजरियाँ उगती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं 8 इंच लम्बी और अनेक रंगी छटाओं से मण्डित होती है। इस पर बैंगनी या रक्त-सी आभा लिए बहुत छोटे पुष्प चक्रों में लगते हैं। पुष्पक प्रायः हृदयवत् होते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अण्डाकार होते हैं। पुष्प शीतकाल में आते हैं। | ||
====संग्रह संरक्षण==== | |||
तुलसी का पत्र, मूल, बीज उपयोगी अंग हैं। इन्हें सुखाकर मुख बंद पात्रों में सूखे शीतल स्थानों पर रखा जाता है। इन्हें एक वर्ष तक प्रयोग में लाया जा सकता है। सर्वत्र एवं सर्वदा सुलभ होने से पत्रों का प्रयोग ताजी अवस्था में किया जाना ही श्रेष्ठ है। ऐसा शास्त्रीय मत है कि पत्तों को [[पूर्णिमा]], [[अमावस्या]], [[द्वादशी]], सूर्य संक्रांति के दिन, मध्याह्न काल रात्रि दोनों संध्याओं के समय बिना नहाए-धोए न तोड़ा जाए। उपयुक्त समय पर तोड़ा जाना धार्मिक महत्त्व रखता है, जल में रखे जाने पर ताजा पत्र भी तीन रात्रि तक पवित्र रहता है। यह पौधा सामान्तया दो-तीन वर्षों तक जवान बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है तो पत्ते कम और छोटे आते हैं। सूखी-सूखी डण्ठलें खड़ी दिखाई देती हैं। तब उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है। | |||
तुलसी का पत्र, मूल, बीज उपयोगी अंग हैं। इन्हें सुखाकर मुख बंद पात्रों में सूखे शीतल स्थानों पर रखा जाता है। इन्हें एक वर्ष तक प्रयोग में लाया जा सकता है। सर्वत्र एवं सर्वदा सुलभ होने से पत्रों का प्रयोग ताजी अवस्था में किया जाना ही श्रेष्ठ है। ऐसा शास्त्रीय मत है कि पत्तों को पूर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी, सूर्य संक्रांति के दिन, मध्याह्न काल रात्रि दोनों संध्याओं के समय बिना नहाए-धोए न तोड़ा जाए। उपयुक्त समय पर तोड़ा जाना धार्मिक महत्त्व रखता है, जल में रखे जाने पर ताजा पत्र भी तीन रात्रि तक पवित्र रहता है। यह पौधा सामान्तया दो-तीन वर्षों तक जवान बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है तो पत्ते कम और छोटे आते हैं। सूखी-सूखी डण्ठलें खड़ी दिखाई देती हैं। तब उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है। | |||
===रासायनिक संगठन=== | ===रासायनिक संगठन=== | ||
तुलसी में अनेकों जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है। | तुलसी में अनेकों जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है। प्रमुख सक्रिय तत्व हैं एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल जिसकी मात्रा संगठन स्थान व समय के अनुसार बदलते रहते हैं। 0.1 से 0.3 प्रतिशत तक तेल पाया जाना सामान्य बात है। 'वैल्थ ऑफ इण्डिया' के अनुसार इस तेल में लगभग 71 प्रतिशत यूजीनॉल, बीस प्रतिशत यूजीनॉल मिथाइल ईथर तथा तीन प्रतिशत कार्वाकोल होता है। श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में लगभग 83 मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन सी एवं 2.5 मिलीग्राम प्रतिशत कैरीटीन होता है। तुलसी बीजों में हरे [[पीला रंग|पीले रंग]] का तेल लगभग 17.8 प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं कुछ सीटोस्टेरॉल, अनेकों वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल। तेल के अलावा बीजों में श्लेष्मक प्रचुर मात्रा में होता है। इस म्युसिलेज के प्रमुख घटक हैं - पेन्टोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और राख। राख लगभग 0.2 प्रतिशत होती है। | ||
प्रमुख सक्रिय तत्व हैं एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल जिसकी मात्रा संगठन स्थान व समय के अनुसार बदलते रहते हैं। 0.1 से 0.3 प्रतिशत तक तेल पाया जाना सामान्य बात है। 'वैल्थ ऑफ इण्डिया' के अनुसार इस तेल में लगभग 71 प्रतिशत यूजीनॉल, बीस प्रतिशत यूजीनॉल मिथाइल ईथर तथा तीन प्रतिशत कार्वाकोल होता है। श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में लगभग 83 मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन सी एवं 2.5 मिलीग्राम प्रतिशत कैरीटीन होता है। | |||
तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल लगभग 17.8 प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं कुछ सीटोस्टेरॉल, अनेकों वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल। तेल के अलावा बीजों में श्लेष्मक प्रचुर मात्रा में होता है। इस म्युसिलेज के प्रमुख घटक हैं - पेन्टोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और राख। राख लगभग 0.2 प्रतिशत होती है। | |||
==तुलसी की खेती== | |||
तुलसी की उपयोगिता को देखते हुए आज इसकी खेती भी होने लगी है। [[आजमगढ़]] मैं बड़े पैमाने पर तुलसी की खेती शुरू हो गई है, जो देश विदेश मैं भेजी जा रही है। तुलसी का पौधा औषधीय गुणों से परिपूर्ण एवं सुगंध तेल का उत्तम स्रोत है। विभिन्न प्रजातियों की तुलसी के तेल में रासायनिक तत्व अलग-अलग होने के कारण विभिन्न उत्पादों में प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग सुगंध बनाने, सर्दियों की औषधियों के निर्माण, खाँसी एवं कफ की दवा बनाने, कन्फैक्शनरी उद्योग एवं टूथ पेस्ट, माउथवाश, डेन्टल क्रीम आदि के निर्माण में किया जाता है। इसका तेल खाद्य पदार्थों को सुवासित करने में भी किया जाता है। | |||
====जलवायु==== | |||
तुलसी को सभी प्रकार की जलवायु वाले स्थानों पर उगाया जा सकता है। [[उत्तर भारत]] के मैदानी भागों मैं तुलसी को [[ग्रीष्म ऋतु]] की फसल के रूप में उगाया जा सकता है। तुलसी की संतोषजनक विधि के लिए मध्यम तापक्रम अधिक उपयुक्त रहता हैं। अधिक वर्षा तथा पाला तुलसी की उपज पर बुरा प्रभाव डालते हैं। | |||
====भूमि==== | |||
तुलसी को विभिन्न प्रकार के मृदाओं एवं जलवायु मैं आसानी से उगाया जा सकता है। तुलसी की खेती करने के लिए दोमट एवं बुलई दोमट मिट्टी जिनका पी॰ एच॰ 5-8 हो एवं जलधारण क्षमता अच्छी हो उपयुक्त समझी जाती है। अधिक रेतीली व भारी दोमट मिट्टी उपयुक्त नहीं है। खेत को एक बार [[मिट्टी]] पलटने वाले हल से तथा दो बाद देसी हल या कल्टीवेटर से जोत कर पता लगाएं। गोबर की गली-सड़ी खाद उपलब्ध हो तो अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दें। खेत की तैयारी इस प्रकार करें कि [[मई]] – [[जून]] मैं पौध लग जाये।स्म''' -- कुसुमोहक एवं विकार सुधा, CIMAP [[लखनऊ]] द्वारा विकसित किस्में हैं। | |||
==तुलसी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक परिचय== | ==तुलसी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक परिचय== | ||
{{main|तुलसी का धार्मिक महत्त्व}} | {{main|तुलसी का धार्मिक महत्त्व}} | ||
तुलसी का पौधा हमारे लिए धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व का पौधा है जिस घर में इसका वास होता है वहा आध्यात्मिक उन्नति के साथ सुख-शांति एवं आर्थिक समृद्धता स्वतः आ जाती है। वातावारण में स्वच्छता एवं शुद्धता, [[प्रदूषण]] का शमन, घर परिवार में आरोग्य की जड़ें मज़बूत करने, श्रद्धा तत्व को जीवित करने जैसे अनेकों लाभ इसके हैं। तुलसी के नियमित सेवन से सौभाग्यशालिता के साथ ही सोच में पवित्रता, मन में एकाग्रता आती है और क्रोध पर पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। आलस्य दूर होकर शरीर में दिनभर फूर्ती बनी रहती है। तुलसी की सूक्ष्म व कारण शक्ति अद्वितीय है। यह आत्मोन्नति का पथ प्रशस्त करती है तथा गुणों की दृष्टि से संजीवनी बूटी है। तुलसी को प्रत्यक्ष देव मानने और मंदिरों एवं घरों में उसे लगाने, पूजा करने के पीछे संभवतः यही कारण है कि यह सर्व दोष निवारक औषधि सर्व सुलभ तथा सर्वोपयोगी है। धार्मिक धारणा है कि तुलसी की सेवापूजा व आराधना से व्यक्ति स्वस्थ एवं सुखी रहता है। अनेक भारतीय हर रोग में तुलसीदल-ग्रहण करते हुए इसे दैवीय गुणों से युक्त सौ रोगों की एक दवा मानते हैं। गले में तुलसी-काष्ठ की माला पहनते हैं। | |||
===तुलसी | ====तुलसी पूजा==== | ||
तुलसी की पूजा से घर में सुख-समृद्धि और धन की कोई कमी नहीं होती। इसके पीछे धार्मिक कारण है। तुलसी में हमारे सभी पापों का नाश करने की शक्ति होती है। तुलसी को लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। विधि-विधान से इसकी पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और इनकी कृपा स्वरूप हमारे घर पर कभी धन की कमी नहीं होती। कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। इस एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। | तुलसी की पूजा से घर में सुख-समृद्धि और धन की कोई कमी नहीं होती। इसके पीछे धार्मिक कारण है। तुलसी में हमारे सभी पापों का नाश करने की शक्ति होती है। तुलसी को लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। विधि-विधान से इसकी पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और इनकी कृपा स्वरूप हमारे घर पर कभी धन की कमी नहीं होती। कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। इस एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। | ||
;तुलसी पूजन की सामान्य सामग्री | |||
तुलसी पूजा के लिए [[गन्ना]] (ईख), विवाह मंडप की सामग्री, सुहागन स्त्री की संपूर्ण सामग्री, [[घी]], [[दीपक]], [[धूप]], [[सिन्दूर]] , [[चंदन]], नैवद्य और [[पुष्प]] आदि। | |||
;तुलसी पूजन का श्रेष्ठ मुहूर्त | |||
शाम 7.50 से 9.20 तक शुभ चौघडिय़ां में तुलसी पूजन करें। | |||
;तुलसी नामाष्टक | |||
<blockquote><span style="color: blue"><poem>वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।। | <blockquote><span style="color: blue"><poem>वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।। | ||
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुतम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फलंलमेता।।</poem></span></blockquote> | एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुतम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फलंलमेता।।</poem></span></blockquote> | ||
==तुलसी का औषधीय परिचय== | ==तुलसी का औषधीय परिचय== | ||
{{main|तुलसी का औषधीय | {{main|तुलसी का औषधीय महत्त्व}} | ||
[[भारतीय संस्कृति]] और धर्म में तुलसी को उसके महान गुणों के कारण ही सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। भारतीय संस्कृति में यह पूज्य है। तुलसी का धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन विज्ञान के दृष्टिकोण से तुलसी एक औषधि है। तुलसी को हजारों वर्षों से विभिन्न रोगों के इलाज के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जा रहा हैं। [[आयुर्वेद]] में तुलसी तथा उसके विभिन्न औषधीय प्रयोगों का विशेष स्थान हैं। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटी के समान माना जाता है। आपके आंगन में लगा छोटा सा तुलसी का पौधा, अनेक बीमारियो का इलाज करने के आचर्यजनक गुण लिए हुए होता हैं। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। हृदय रोग हो या सर्दी जुकाम, भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है। औषधि ये गुणों से परिपूर्ण पौराणिक काल से प्रसिद्ध '''पतीत पावन तुलसी''' के पत्तो का विधिपूर्वक नियमित औषधितुल्य सेवन करने से अनेकानेक बिमारिया ठीक हो जाती है। इसके प्रभाव से मानसिक शांति घर में सुख समृद्धि और जीवन में अपार सफलताओं का द्वार खुलता है। यह ऐसी रामबाण औषधी है जो हर प्रकार की बीमारियों में काम आती है जैसे - स्मरण शक्ति, हृदय रोग, कफ, श्वास के रोग, प्रतिश्याय, ख़ून की कमी, खॉसी, जुकाम, दमा, दंत रोग, धवल रोग आदि में चमत्कारी लाभ मिलता है। तुलसी एक प्रकार से सारे शरीर का शोधन करने वाली जीवन शक्ति संवर्धक औषधि है। वातावरण का भी शोधन करती है तथा पर्यावरण संतुलन बनाती है। इस औषधि के विषय में जितना लिखा जाए कम है। | |||
*हिन्दू धर्म संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। '''अथर्ववेद''' (1-24) में वर्णन मिलता है - '''सरुपकृत त्वयोषधेसा सरुपमिद कृधि, श्यामा सरुप करणी पृथिव्यां अत्यदभुता। इदम् सुप्रसाधय पुना रुपाणि कल्पय॥''' अर्थात् - श्यामा तुलसी मानव के स्वरूप को बनाती है, शरीर के ऊपर के सफेद धब्बे अथवा अन्य प्रकार के त्वचा संबंधी रोगों को नष्ट करने वाली अत्युत्तम महौषधि है। | ====गुण==== | ||
*[[हिन्दू धर्म]] संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ [[वेद|वेदों]] में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। '''[[अथर्ववेद]]''' (1-24) में वर्णन मिलता है - '''सरुपकृत त्वयोषधेसा सरुपमिद कृधि, श्यामा सरुप करणी पृथिव्यां अत्यदभुता। इदम् सुप्रसाधय पुना रुपाणि कल्पय॥''' अर्थात् - श्यामा तुलसी मानव के स्वरूप को बनाती है, शरीर के ऊपर के सफेद धब्बे अथवा अन्य प्रकार के त्वचा संबंधी रोगों को नष्ट करने वाली अत्युत्तम महौषधि है। | |||
*महर्षि चरक तुलसी के गुणों का वर्णन करते हुए लिखते हैं - '''हिक्काकासविषश्वास पार्श्वशूलविनाशनः । पित्तकृत् कफवातघ्न्रः सुरसः पूतिगन्धहाः॥''' तुलसी हिचकी, खाँसी, विष, श्वांस रोग और पार्श्व शूल को नष्ट करती है। यह पित्त कारक, कफ-वातनाशक तथा शरीर एवं भोज्य पदार्थों की दुर्गन्ध को दूर करती है। | *[[चरक|महर्षि चरक]] तुलसी के गुणों का वर्णन करते हुए लिखते हैं - '''हिक्काकासविषश्वास पार्श्वशूलविनाशनः । पित्तकृत् कफवातघ्न्रः सुरसः पूतिगन्धहाः॥''' तुलसी हिचकी, खाँसी, विष, श्वांस रोग और पार्श्व शूल को नष्ट करती है। यह पित्त कारक, कफ-वातनाशक तथा शरीर एवं भोज्य पदार्थों की दुर्गन्ध को दूर करती है। | ||
*सूत्र स्थान में वे लिखते हैं - '''गौरवे शिरसः शूलेपीनसे ह्यहिफेनके । क्रिमिव्याधवपस्मारे घ्राणनाशे प्रेमहेके॥ (2/5)''' सिर का भारी होना, पीनस, माथे का दर्द, आधा शीशी, मिरगी, नासिका रोग, कृमि रोग तुलसी से दूर होते हैं। | *सूत्र स्थान में वे लिखते हैं - '''गौरवे शिरसः शूलेपीनसे ह्यहिफेनके । क्रिमिव्याधवपस्मारे घ्राणनाशे प्रेमहेके॥ (2/5)''' सिर का भारी होना, पीनस, माथे का दर्द, आधा शीशी, मिरगी, नासिका रोग, कृमि रोग तुलसी से दूर होते हैं। | ||
*सुश्रुत महर्षि का मत भी इससे अलग नहीं है। वे लिखते हैं - '''कफानिलविषश्वासकास दौर्गन्धनाशनः । पित्तकृतकफवातघ्नः सुरसः समुदाहृतः॥ (सूत्र-46)''' तुलसी, कफ, वात, विष विकार, श्वांस-खाँसी और दुर्गन्ध नाशक है। पित्त को उत्पन्न करती है तथा कफ और वायु को विशेष रूप से नष्ट करती है। | *सुश्रुत महर्षि का मत भी इससे अलग नहीं है। वे लिखते हैं - '''कफानिलविषश्वासकास दौर्गन्धनाशनः । पित्तकृतकफवातघ्नः सुरसः समुदाहृतः॥ (सूत्र-46)''' तुलसी, कफ, वात, विष विकार, श्वांस-खाँसी और दुर्गन्ध नाशक है। पित्त को उत्पन्न करती है तथा कफ और वायु को विशेष रूप से नष्ट करती है। | ||
*भाव प्रकाश में उद्धरण है - '''तुलसी पित्तकृद वात कृमिर्दोर्गन्धनाशिनी। पार्श्वशूलारतिस्वास-कास हिक्काविकारजित॥''' तुलसी पित्तनाशक, वात-कृमि तथा दुर्गन्ध नाशक है। पसली का दर्द, अरुचि, खाँसी, श्वांस, हिचकी आदि विकारों को जीतने वाली है। आगे वे लिखते हैं - यह [[हृदय]] के लिए हितकर, उष्ण तथा अग्निदीपक है एवं कुष्ट-मूत्र विकार, रक्त विकार, पार्श्वशूल को नष्ट करने वाली है। श्वेत तथा कृष्णा तुलसी दोनों ही गुणों में समान हैं। | |||
====होम्योपैथिक मत==== | |||
भारतीय व यूरोपीय दोनों ही होम्योपैथ सिद्धान्त तुलसी को अमृतोपम मानते हैं। बंगाल के डॉ. विश्वास कहते हैं कि तुलसी अनेकानेक लक्षणों में लाभकारी औषधि है। सिर में दर्द, स्मरण शक्ति में कमी, बच्चों का चिड़चिड़ापन, [[आँख|आँखों]] की लाली, एलर्जी के कारण छीकें आना, नाक बहना, मुँह में छाले, गले में दर्द, पेशाब में जलन, दमा तथा जीर्ण ज्वर जैसे बहुत प्रकार के लक्षणों में तुलसी को होम्योपैथी में स्थान दिया गया है। इसकी 2, 3, 6, 30 तथा 200 वीं पोटेन्सी में प्रयोग कर इन सभी रोगों में लाभ पाए हैं। ब्राजील में तुलसी की ऑसीमम कैनन नामक जाति पायी जाती है। डॉ. भरे व बोरिक यह मानते हैं कि यह प्रजनन तथा मूत्रवाही संस्थान रोगों की श्रेष्ठ औषधि है। | |||
====यूनानी मत==== | |||
इसके अनुसार तुलसी हृदयोत्तेजक, बलवर्धक तथा [[यकृत]] आमाशय बलदायक है। यह [[हृदय]] को बल देने वाली होने के कारण अनेक प्रकार के शोथ-विकारजन्य रोगों में आराम देती है। यह शिरःशूल की श्रेष्ठ औषधि है। पत्ते सूँघने से मूर्छा दूर होती है तथा चबाने से दुर्गन्ध। रस कान में टपकाने से कर्णशूल शान्त होता है। | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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08:20, 15 अप्रैल 2013 का अवतरण
तुलसी
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जगत | पादप (Plantae) |
वर्ग | ऍस्टरिड्स (Asterids) |
गण | लैमिएल्स (Lamiales) |
कुल | लैमिएसी (Lamiaceae) |
जाति | ओसिमम (Ocimum) |
प्रजाति | O. tenuiflorum (टेनूईफ्लोरम) |
द्विपद नाम | ऑसीमम सैक्टम |
तुलसी (Ocimum sanctum / ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और 1 से 3 फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ सो ढकी होती है। पत्तियाँ 1 से 2 इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं 8 इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
तुलसी का महत्त्व
भारत में तुलसी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। तुलसी शब्द का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि जिस वनस्पति की किसी से तुलना न की जा सके वह तुलसी है। तुलसी को हिन्दू धर्म में जगत-जननी का पद प्राप्त है। तुलसी के महात्म्यों व कारण शक्ति के सूक्ष्म प्रभावों से पुराणों के अध्याय भरे पड़े हैं। हिन्दूओं द्वारा सदियों से देवता के रूप में घर-घर पूजे जाने वाला पौधा तुलसी (Holy Basil) है। बहुत ही कम लोग यह जानते है कि यह पौधा मात्र धर्म और आध्यात्मिक तौर पर ही पूज्यनीय नहीं है वरन् इसके अन्य जीवनदायी गुण भी है, जो इस पौधे की महत्ता में चार चांद लगा देते है। सर्व रोग निवारक तथा जीवन शक्ति संवर्धक इस औषधि को संभवतः प्रत्यक्ष देव माना जाना इसी तथ्य पर आधारित है कि ऐसी सस्ती, सुलभ, सुगम, सुंदर, उपयोगी वनस्पति मनुष्य समुदाय के लिए कोई और नहीं है। तुलसी आपके जीवन को निरोगी एवं आत्मा का शोधन कर उसे पवित्र बनाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
अधिकांश हिन्दू घरों में तुलसी का पौधा अवश्य ही होता है। तुलसी घर के आंगन में लगाने की प्रथा हज़ारों साल पुरानी है। तुलसी को दैवी का रूप माना जाता है। साथ ही मान्यता है कि तुलसी का पौधा घर में होने से घर वालों को बुरी नजर प्रभावित नहीं कर पाती और अन्य बुराइयां भी घर और घरवालों से दूर ही रहती है। तुलसी का पौधा घर में रहने से उसकी सुगंध वातावरण को पवित्र बनाती है और हवा में मौजूद बीमारी के जीवाणु आदि को नष्ट कर देती है। तुलसी की सुंगध हमें श्वास संबंधी कई रोगों से बचाती है। साथ ही तुलसी की एक पत्ती रोज सेवन करने से हमें कभी बुखार नहीं आएगा और इस तरह के सभी रोग हमसे सदा दूर रहते हैं। तुलसी की पत्ती खाने से हमारे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता काफ़ी बढ़ जाती है।
तुलसी के आठ नाम
धर्मशास्त्रों के अनुसार तुलसी के आठ नाम बताए गए हैं - वृंदा, वृंदावनि, विश्व पूजिता, विश्व पावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी और कृष्ण जीवनी।
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Tulsi |
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Sweet Tulsi |
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Thai Tulsi |
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Lemon Tulsi |
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Purple Tulsi |
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Cinnamon Tulsi |
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भारतीय डाकटिकट में तुलसी |
तुलसी की प्रजातियाँ
भारत के प्रत्येक भाग में तुलसी के पौधे पाये जाते हैं इसका पौधा बड़ा वृक्ष नहीं बनता केवल डेढ़ या दो फुट तक बढ़ता है। इसकी जड़ें धरती की गहराई तक जाकर पानी खींच नहीं सकती। नित्यजल सिंचन से इसकी संभाल-सुरक्षा की जाती है। तुलसी की लगभग 60 प्रजातियाँ एशिया, अफ्रीका, अमेरिका तथा अन्य देशों मैं उगाई जाती है। तुलसी विश्व की लगभग सभी जलवायु में पाई जाती हैं। तुलसी सदा हरित होती है। साधारणतः मार्च से जून तक इसे लगाते हैं। सितम्बर और अक्टूबर में वह फूलता है। सारा पौधा सुगंधित मंजरियों से लद जाता है। जाड़े के दिनों में इसके बीज पकते हैं। यह बारहों माह किसी न किसी रूप में प्राप्त किया जा सकता है। तुलसी की सामान्यतया निम्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- ऑसीमम अमेरिकन, ओसीमम केनम - (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी।
- ऑसीमम वेसिलिकम - (मरुआ तुलसी), मुन्जरिकी या मुरसा, (स्वीट बेसिल या फ्रेंच बेसिल या इंडियन बेसिल या मीठी तुलसी)।
- ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम।
- आसीमम ग्रेटिसिकम - (राम तुलसी, वन तुलसी)। सफेद तुलसी
- ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम - (कपूरी / कपूर तुलसी, बेल तुलसी)।
- ऑसीमम सैक्टम - श्री तुलसी तथा कृष्णा तुलसी, (घरेलू तुलसी)। श्याम तुलसी
- ऑसीमम विरिडी - (जंगली तुलसी)।
ऑसीमम सैक्टम
ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है, इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं - श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ निलाभ - कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ होते हैं, जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं। इनमें कृष्ण तुलसी सर्वप्रिय मानी जाती है। गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों ही गुणों में समान हैं। श्री भाव मिश्र कहते हैं - 'श्यामा शुक्ला कृष्णा च तुलसी गुणैस्तुल्या प्रकीर्तित।'
ओसीमम बेसिलिकम
ओसीमम बेसिलिकम (स्वीट बेसिल या फ्रेंच बेसिल या इंडियन बेसिल या मीठी तुलसी) प्रजाति बहुत ही उपयोगी है, क्योंकि इससे मीठा तुलसी का तेल (स्वीटबेसिल ऑइल) मिलता है। ओसीमम बेसिलिकम लेमिएसी कुल का पौधा है। इस पौधे की लम्बाई 30 से 90 से॰ मी॰ होती है, पत्तियों की लम्बाई 3-5 से॰ मी॰ होती है। पौधे में बहुत सी तेल कौशिकाएं होती है जो सुगंध तेल देती है।
तुलसी का गुल्म के समान क्षुप 1 से 3 फुट ऊँचा शाखायुक्त रोमश, बैंगनी आभा लिए होता है। पत्र 1 से 2 इंच लम्बे अण्डाकार या आयताकार होते हैं। प्रत्येक पत्र में एक प्रकार की तीव्र सुगंध होती है। तुलसी में खड़ी मंजरियाँ उगती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं 8 इंच लम्बी और अनेक रंगी छटाओं से मण्डित होती है। इस पर बैंगनी या रक्त-सी आभा लिए बहुत छोटे पुष्प चक्रों में लगते हैं। पुष्पक प्रायः हृदयवत् होते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अण्डाकार होते हैं। पुष्प शीतकाल में आते हैं।
संग्रह संरक्षण
तुलसी का पत्र, मूल, बीज उपयोगी अंग हैं। इन्हें सुखाकर मुख बंद पात्रों में सूखे शीतल स्थानों पर रखा जाता है। इन्हें एक वर्ष तक प्रयोग में लाया जा सकता है। सर्वत्र एवं सर्वदा सुलभ होने से पत्रों का प्रयोग ताजी अवस्था में किया जाना ही श्रेष्ठ है। ऐसा शास्त्रीय मत है कि पत्तों को पूर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी, सूर्य संक्रांति के दिन, मध्याह्न काल रात्रि दोनों संध्याओं के समय बिना नहाए-धोए न तोड़ा जाए। उपयुक्त समय पर तोड़ा जाना धार्मिक महत्त्व रखता है, जल में रखे जाने पर ताजा पत्र भी तीन रात्रि तक पवित्र रहता है। यह पौधा सामान्तया दो-तीन वर्षों तक जवान बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है तो पत्ते कम और छोटे आते हैं। सूखी-सूखी डण्ठलें खड़ी दिखाई देती हैं। तब उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
रासायनिक संगठन
तुलसी में अनेकों जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है। प्रमुख सक्रिय तत्व हैं एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल जिसकी मात्रा संगठन स्थान व समय के अनुसार बदलते रहते हैं। 0.1 से 0.3 प्रतिशत तक तेल पाया जाना सामान्य बात है। 'वैल्थ ऑफ इण्डिया' के अनुसार इस तेल में लगभग 71 प्रतिशत यूजीनॉल, बीस प्रतिशत यूजीनॉल मिथाइल ईथर तथा तीन प्रतिशत कार्वाकोल होता है। श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में लगभग 83 मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन सी एवं 2.5 मिलीग्राम प्रतिशत कैरीटीन होता है। तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल लगभग 17.8 प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं कुछ सीटोस्टेरॉल, अनेकों वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल। तेल के अलावा बीजों में श्लेष्मक प्रचुर मात्रा में होता है। इस म्युसिलेज के प्रमुख घटक हैं - पेन्टोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और राख। राख लगभग 0.2 प्रतिशत होती है।
तुलसी की खेती
तुलसी की उपयोगिता को देखते हुए आज इसकी खेती भी होने लगी है। आजमगढ़ मैं बड़े पैमाने पर तुलसी की खेती शुरू हो गई है, जो देश विदेश मैं भेजी जा रही है। तुलसी का पौधा औषधीय गुणों से परिपूर्ण एवं सुगंध तेल का उत्तम स्रोत है। विभिन्न प्रजातियों की तुलसी के तेल में रासायनिक तत्व अलग-अलग होने के कारण विभिन्न उत्पादों में प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग सुगंध बनाने, सर्दियों की औषधियों के निर्माण, खाँसी एवं कफ की दवा बनाने, कन्फैक्शनरी उद्योग एवं टूथ पेस्ट, माउथवाश, डेन्टल क्रीम आदि के निर्माण में किया जाता है। इसका तेल खाद्य पदार्थों को सुवासित करने में भी किया जाता है।
जलवायु
तुलसी को सभी प्रकार की जलवायु वाले स्थानों पर उगाया जा सकता है। उत्तर भारत के मैदानी भागों मैं तुलसी को ग्रीष्म ऋतु की फसल के रूप में उगाया जा सकता है। तुलसी की संतोषजनक विधि के लिए मध्यम तापक्रम अधिक उपयुक्त रहता हैं। अधिक वर्षा तथा पाला तुलसी की उपज पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
भूमि
तुलसी को विभिन्न प्रकार के मृदाओं एवं जलवायु मैं आसानी से उगाया जा सकता है। तुलसी की खेती करने के लिए दोमट एवं बुलई दोमट मिट्टी जिनका पी॰ एच॰ 5-8 हो एवं जलधारण क्षमता अच्छी हो उपयुक्त समझी जाती है। अधिक रेतीली व भारी दोमट मिट्टी उपयुक्त नहीं है। खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो बाद देसी हल या कल्टीवेटर से जोत कर पता लगाएं। गोबर की गली-सड़ी खाद उपलब्ध हो तो अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दें। खेत की तैयारी इस प्रकार करें कि मई – जून मैं पौध लग जाये।स्म -- कुसुमोहक एवं विकार सुधा, CIMAP लखनऊ द्वारा विकसित किस्में हैं।
तुलसी का धार्मिक एवं आध्यात्मिक परिचय
तुलसी का पौधा हमारे लिए धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व का पौधा है जिस घर में इसका वास होता है वहा आध्यात्मिक उन्नति के साथ सुख-शांति एवं आर्थिक समृद्धता स्वतः आ जाती है। वातावारण में स्वच्छता एवं शुद्धता, प्रदूषण का शमन, घर परिवार में आरोग्य की जड़ें मज़बूत करने, श्रद्धा तत्व को जीवित करने जैसे अनेकों लाभ इसके हैं। तुलसी के नियमित सेवन से सौभाग्यशालिता के साथ ही सोच में पवित्रता, मन में एकाग्रता आती है और क्रोध पर पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। आलस्य दूर होकर शरीर में दिनभर फूर्ती बनी रहती है। तुलसी की सूक्ष्म व कारण शक्ति अद्वितीय है। यह आत्मोन्नति का पथ प्रशस्त करती है तथा गुणों की दृष्टि से संजीवनी बूटी है। तुलसी को प्रत्यक्ष देव मानने और मंदिरों एवं घरों में उसे लगाने, पूजा करने के पीछे संभवतः यही कारण है कि यह सर्व दोष निवारक औषधि सर्व सुलभ तथा सर्वोपयोगी है। धार्मिक धारणा है कि तुलसी की सेवापूजा व आराधना से व्यक्ति स्वस्थ एवं सुखी रहता है। अनेक भारतीय हर रोग में तुलसीदल-ग्रहण करते हुए इसे दैवीय गुणों से युक्त सौ रोगों की एक दवा मानते हैं। गले में तुलसी-काष्ठ की माला पहनते हैं।
तुलसी पूजा
तुलसी की पूजा से घर में सुख-समृद्धि और धन की कोई कमी नहीं होती। इसके पीछे धार्मिक कारण है। तुलसी में हमारे सभी पापों का नाश करने की शक्ति होती है। तुलसी को लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। विधि-विधान से इसकी पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और इनकी कृपा स्वरूप हमारे घर पर कभी धन की कमी नहीं होती। कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। इस एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- तुलसी पूजन की सामान्य सामग्री
तुलसी पूजा के लिए गन्ना (ईख), विवाह मंडप की सामग्री, सुहागन स्त्री की संपूर्ण सामग्री, घी, दीपक, धूप, सिन्दूर , चंदन, नैवद्य और पुष्प आदि।
- तुलसी पूजन का श्रेष्ठ मुहूर्त
शाम 7.50 से 9.20 तक शुभ चौघडिय़ां में तुलसी पूजन करें।
- तुलसी नामाष्टक
वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुतम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फलंलमेता।।
तुलसी का औषधीय परिचय
भारतीय संस्कृति और धर्म में तुलसी को उसके महान गुणों के कारण ही सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। भारतीय संस्कृति में यह पूज्य है। तुलसी का धार्मिक महत्व तो है ही लेकिन विज्ञान के दृष्टिकोण से तुलसी एक औषधि है। तुलसी को हजारों वर्षों से विभिन्न रोगों के इलाज के लिए औषधि के रूप में प्रयोग किया जा रहा हैं। आयुर्वेद में तुलसी तथा उसके विभिन्न औषधीय प्रयोगों का विशेष स्थान हैं। आयुर्वेद में तुलसी को संजीवनी बूटी के समान माना जाता है। आपके आंगन में लगा छोटा सा तुलसी का पौधा, अनेक बीमारियो का इलाज करने के आचर्यजनक गुण लिए हुए होता हैं। तुलसी में कई ऐसे गुण होते हैं जो बड़ी-बड़ी जटिल बीमारियों को दूर करने और उनकी रोकथाम करने में सहायक है। हृदय रोग हो या सर्दी जुकाम, भारत में सदियों से तुलसी का इस्तेमाल होता चला आ रहा है। औषधि ये गुणों से परिपूर्ण पौराणिक काल से प्रसिद्ध पतीत पावन तुलसी के पत्तो का विधिपूर्वक नियमित औषधितुल्य सेवन करने से अनेकानेक बिमारिया ठीक हो जाती है। इसके प्रभाव से मानसिक शांति घर में सुख समृद्धि और जीवन में अपार सफलताओं का द्वार खुलता है। यह ऐसी रामबाण औषधी है जो हर प्रकार की बीमारियों में काम आती है जैसे - स्मरण शक्ति, हृदय रोग, कफ, श्वास के रोग, प्रतिश्याय, ख़ून की कमी, खॉसी, जुकाम, दमा, दंत रोग, धवल रोग आदि में चमत्कारी लाभ मिलता है। तुलसी एक प्रकार से सारे शरीर का शोधन करने वाली जीवन शक्ति संवर्धक औषधि है। वातावरण का भी शोधन करती है तथा पर्यावरण संतुलन बनाती है। इस औषधि के विषय में जितना लिखा जाए कम है।
गुण
- हिन्दू धर्म संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। अथर्ववेद (1-24) में वर्णन मिलता है - सरुपकृत त्वयोषधेसा सरुपमिद कृधि, श्यामा सरुप करणी पृथिव्यां अत्यदभुता। इदम् सुप्रसाधय पुना रुपाणि कल्पय॥ अर्थात् - श्यामा तुलसी मानव के स्वरूप को बनाती है, शरीर के ऊपर के सफेद धब्बे अथवा अन्य प्रकार के त्वचा संबंधी रोगों को नष्ट करने वाली अत्युत्तम महौषधि है।
- महर्षि चरक तुलसी के गुणों का वर्णन करते हुए लिखते हैं - हिक्काकासविषश्वास पार्श्वशूलविनाशनः । पित्तकृत् कफवातघ्न्रः सुरसः पूतिगन्धहाः॥ तुलसी हिचकी, खाँसी, विष, श्वांस रोग और पार्श्व शूल को नष्ट करती है। यह पित्त कारक, कफ-वातनाशक तथा शरीर एवं भोज्य पदार्थों की दुर्गन्ध को दूर करती है।
- सूत्र स्थान में वे लिखते हैं - गौरवे शिरसः शूलेपीनसे ह्यहिफेनके । क्रिमिव्याधवपस्मारे घ्राणनाशे प्रेमहेके॥ (2/5) सिर का भारी होना, पीनस, माथे का दर्द, आधा शीशी, मिरगी, नासिका रोग, कृमि रोग तुलसी से दूर होते हैं।
- सुश्रुत महर्षि का मत भी इससे अलग नहीं है। वे लिखते हैं - कफानिलविषश्वासकास दौर्गन्धनाशनः । पित्तकृतकफवातघ्नः सुरसः समुदाहृतः॥ (सूत्र-46) तुलसी, कफ, वात, विष विकार, श्वांस-खाँसी और दुर्गन्ध नाशक है। पित्त को उत्पन्न करती है तथा कफ और वायु को विशेष रूप से नष्ट करती है।
- भाव प्रकाश में उद्धरण है - तुलसी पित्तकृद वात कृमिर्दोर्गन्धनाशिनी। पार्श्वशूलारतिस्वास-कास हिक्काविकारजित॥ तुलसी पित्तनाशक, वात-कृमि तथा दुर्गन्ध नाशक है। पसली का दर्द, अरुचि, खाँसी, श्वांस, हिचकी आदि विकारों को जीतने वाली है। आगे वे लिखते हैं - यह हृदय के लिए हितकर, उष्ण तथा अग्निदीपक है एवं कुष्ट-मूत्र विकार, रक्त विकार, पार्श्वशूल को नष्ट करने वाली है। श्वेत तथा कृष्णा तुलसी दोनों ही गुणों में समान हैं।
होम्योपैथिक मत
भारतीय व यूरोपीय दोनों ही होम्योपैथ सिद्धान्त तुलसी को अमृतोपम मानते हैं। बंगाल के डॉ. विश्वास कहते हैं कि तुलसी अनेकानेक लक्षणों में लाभकारी औषधि है। सिर में दर्द, स्मरण शक्ति में कमी, बच्चों का चिड़चिड़ापन, आँखों की लाली, एलर्जी के कारण छीकें आना, नाक बहना, मुँह में छाले, गले में दर्द, पेशाब में जलन, दमा तथा जीर्ण ज्वर जैसे बहुत प्रकार के लक्षणों में तुलसी को होम्योपैथी में स्थान दिया गया है। इसकी 2, 3, 6, 30 तथा 200 वीं पोटेन्सी में प्रयोग कर इन सभी रोगों में लाभ पाए हैं। ब्राजील में तुलसी की ऑसीमम कैनन नामक जाति पायी जाती है। डॉ. भरे व बोरिक यह मानते हैं कि यह प्रजनन तथा मूत्रवाही संस्थान रोगों की श्रेष्ठ औषधि है।
यूनानी मत
इसके अनुसार तुलसी हृदयोत्तेजक, बलवर्धक तथा यकृत आमाशय बलदायक है। यह हृदय को बल देने वाली होने के कारण अनेक प्रकार के शोथ-विकारजन्य रोगों में आराम देती है। यह शिरःशूल की श्रेष्ठ औषधि है। पत्ते सूँघने से मूर्छा दूर होती है तथा चबाने से दुर्गन्ध। रस कान में टपकाने से कर्णशूल शान्त होता है।
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