"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Vishwamitra-Menaka.jpg|right|100px|अप्सरा मेनका]]'मेनका' स्वर्ग की सर्वसुन्दर [[अप्सरा]] थी। [[इन्द्र|देवराज इन्द्र]] ने [[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] के नई सृष्टि निर्माण के तप से डर कर उनकी तपस्या भंग करने के लिए [[मेनका]] को [[पृथ्वी]] पर भेजा था। मेनका ने अपने रूप और सौन्दर्य से तपस्या में लीन विश्वामित्र का तप भंग कर दिया। विश्वामित्र ने मेनका से [[विवाह]] किया और वहीं वन में रहने लगे। विश्वामित्र सब कुछ छोड़कर मेनका के ही प्रेम में डूब गये थे। मेनका से विश्वामित्र ने एक सुन्दर कन्या प्राप्त की, जिसका नाम [[शकुंतला]] रखा गया था। जब शकुंतला छोटी थी, तभी एक दिन मेनका उसे और विश्वामित्र को वन में छोड़कर स्वर्ग चली गई। विश्वामित्र का तप भंग करने में सफल होकर मेनका देवलोक लौटी तो वहाँ उसकी कामोद्दीपक शक्ति और कलात्मक सामर्थ्य की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई और देवसभा में उसका आदर बहुत बढ़ गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मेनका]] | ||[[चित्र:Vishwamitra-Menaka.jpg|right|100px|अप्सरा मेनका]]'मेनका' स्वर्ग की सर्वसुन्दर [[अप्सरा]] थी। [[इन्द्र|देवराज इन्द्र]] ने [[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] के नई सृष्टि निर्माण के तप से डर कर उनकी तपस्या भंग करने के लिए [[मेनका]] को [[पृथ्वी]] पर भेजा था। मेनका ने अपने रूप और सौन्दर्य से तपस्या में लीन विश्वामित्र का तप भंग कर दिया। विश्वामित्र ने मेनका से [[विवाह]] किया और वहीं वन में रहने लगे। विश्वामित्र सब कुछ छोड़कर मेनका के ही प्रेम में डूब गये थे। मेनका से विश्वामित्र ने एक सुन्दर कन्या प्राप्त की, जिसका नाम [[शकुंतला]] रखा गया था। जब शकुंतला छोटी थी, तभी एक दिन मेनका उसे और विश्वामित्र को वन में छोड़कर स्वर्ग चली गई। विश्वामित्र का तप भंग करने में सफल होकर मेनका देवलोक लौटी तो वहाँ उसकी कामोद्दीपक शक्ति और कलात्मक सामर्थ्य की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई और देवसभा में उसका आदर बहुत बढ़ गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मेनका]] | ||
{'[[मुस्लिम लीग]]' | {[[ढाका]] में किस वर्ष '[[मुस्लिम लीग]]' की स्थापना की गई थी? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[ | -[[1910]] | ||
+[[ | +[[1906]] | ||
- | -[[1915]] | ||
- | -[[1905]] | ||
||'मुस्लिम लीग' का मूल नाम 'अखिल भारतीय मुस्लिम लीग' था। यह एक राजनीतिक समूह था, जिसने ब्रिटिश भारत के विभाजन (1947 ई.) के समय एक अलग मुस्लिम राष्ट्र के लिए आन्दोलन चलाया। [[1 अक्टूबर]], [[1906]] को एच.एच. आगा ख़ाँ के नेतृत्व में मुस्लिमों का एक दल [[लॉर्ड मिण्टो द्वितीय|लॉर्ड मिण्टो]] से [[शिमला]] में मिला। '[[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय|अलीगढ़ कॉलेज]]' के प्रिंसपल आर्चबोल्ड इस प्रतिनिधिमण्डल के जनक थे। इस प्रतिनिधिमण्डल ने [[वायसराय]] से अनुरोध किया कि प्रान्तीय, केन्द्रीय व स्थानीय निर्वाचन हेतु मुस्लिमों के लिए पृथक साम्प्रदायिक निर्वाचन की व्यवस्था की जाय। इस शिष्टमण्डल को भेजने के पीछे [[अंग्रेज़]] उच्च अधिकारियों का हाथ था। मिण्टो ने इनकी मांगो का पूर्ण समर्थन किया, जिसके फलस्वरूप [[मुस्लिम]] नेताओं ने [[ढाका]] के नवाब सलीमुल्ला के नेतृत्व में [[30 दिसम्बर]], [[1906]] ई. को ढाका में '[[मुस्लिम लीग]]' की स्थापना की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मुस्लिम लीग]] | |||
{' | {"मैं कोई तत्ववेत्ता नहीं हूँ। न तो संत या दार्शनिक ही हूँ। मैं तो ग़रीब हूँ और ग़रीबों का अनन्य भक्त हूँ। मैं तो सच्चा महात्मा उसे ही कहूँगा, जिसका हृदय ग़रीबों के लिये तड़पता हो।' यह कथन किस महापुरुष का है? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[वीर दामोदर सावरकर]] | -[[वीर दामोदर सावरकर]] | ||
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-[[रामकृष्ण परमहंस]] | -[[रामकृष्ण परमहंस]] | ||
+[[स्वामी विवेकानन्द]] | +[[स्वामी विवेकानन्द]] | ||
||[[चित्र:Swami Vivekananda.gif|right|100px|विवेकानन्द]]'स्वामी विवेकानन्द' एक युवा संन्यासी के रूप में '[[भारतीय संस्कृति]]' की सुगन्ध विदेशों में बिखरने वाले [[साहित्य]], [[दर्शन]] और [[इतिहास]] के प्रकाण्ड विद्वान थे। [[स्वामी विवेकानन्द|विवेकानन्दजी]] का मूल नाम 'नरेंद्रनाथ दत्त' था। [[भारत]] के पुनर्निर्माण के प्रति उनके लगाव ने ही उन्हें वर्ष [[1893]] में 'शिकागो धर्म संसद' में जाने के लिए प्रेरित किया था, जहाँ वह बिना आमंत्रण के ही गए थे। [[11 सितम्बर]], [[1893]] के उस दिन विवेकानन्द के अलौकिक तत्वज्ञान ने पाश्चात्य जगत को चौंका दिया। [[अमेरिका]] ने भी स्वीकार कर लिया कि वस्तुत: [[भारत]] ही 'जगद्गुरु' था और रहेगा। [[धर्म]] एवं तत्वज्ञान के समान भारतीय स्वतन्त्रता की प्रेरणा का भी स्वामी विवेकानन्द ने नेतृत्व किया। वे कहा करते थे- "मैं कोई तत्ववेत्ता नहीं हूँ। न तो संत या दार्शनिक ही हूँ। मैं तो ग़रीब हूँ और ग़रीबों का अनन्य [[भक्त]] हूँ। मैं तो सच्चा महात्मा उसे ही कहूँगा, जिसका [[हृदय]] ग़रीबों के लिये तड़पता हो।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[स्वामी विवेकानन्द]] | |||
{"कश्मीर का अकबर" कहे जाने वाले शासक [[जैनुल आब्दीन]] ने [[कल्हण]] की '[[राजतरंगिणी]]' का [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में अनुवाद कराया था। फ़ारसी में यह किस नाम से प्रसिद्ध है? (पृ.सं. 171 | {"कश्मीर का अकबर" कहे जाने वाले शासक [[जैनुल आब्दीन]] ने [[कल्हण]] की '[[राजतरंगिणी]]' का [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में अनुवाद कराया था। फ़ारसी में यह किस नाम से प्रसिद्ध है? (पृ.सं. 171 |
07:27, 8 जुलाई 2013 का अवतरण
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