"कला-संस्कृति और धर्म सामान्य ज्ञान 413": अवतरणों में अंतर
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{ | {होलिका दहन किस [[मास]] की किस [[तिथि]] को होता है? | ||
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+[[फाल्गुन पूर्णिमा]] | +[[फाल्गुन पूर्णिमा]] | ||
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-[[चैत्र]] [[प्रतिपदा]] | -[[चैत्र]] [[प्रतिपदा]] | ||
-[[कार्तिक]] [[दशमी]] | -[[कार्तिक]] [[दशमी]] | ||
||[[चित्र:Holika-Prahlad-1.jpg|border|100px|right|प्रह्लाद को गोद में बिठाकर बैठी होलिका]]'होलिका दहन' [[फाल्गुन पूर्णिमा]] के दिन होता है। इस दिन सायंकाल को होली जलाई जाती है। एक [[माह]] पूर्व अर्थात् [[माघ पूर्णिमा]] को 'एरंड' या गूलर वृक्ष की टहनी को गाँव के बाहर किसी स्थान पर गाड़ दिया जाता है और उस पर लकड़ियाँ, सूखे उपले, खर-पतवार आदि चारों से एकत्र किया जाता है और [[फाल्गुन]] की [[पूर्णिमा]] की रात या सायंकाल इसे जलाया जाता है। परंपरा के अनुसार सभी लोग अलाव के चारों ओर एकत्रित होते हैं। इसी अलाव को होली कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[होलिका दहन]] | |||
{ | {कल्कि अवतार किस [[तिथि]] को होने की मान्यता है? | ||
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-[[ज्येष्ठ मास|ज्येष्ठ]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] [[नवमी]] | -[[ज्येष्ठ मास|ज्येष्ठ]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] [[नवमी]] | ||
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+[[श्रावण मास|श्रावण]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[षष्ठी]] | +[[श्रावण मास|श्रावण]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[षष्ठी]] | ||
-[[चैत्र]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] [[नवमी]] | -[[चैत्र]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] [[नवमी]] | ||
||[[चित्र:Kalki.jpg|border|100px|right|कल्कि अवतार]]'कल्कि अवतार' को [[विष्णु]] का भावी और अंतिम [[अवतार]] माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार [[पृथ्वी]] पर पाप की सीमा पार होने लगेगी, तब दुष्टों के संहार के लिए विष्णु का यह [[अवतार]] प्रकट होगा। अपने [[माता]]-[[पिता]] की पांचवीं संतान [[कल्कि अवतार|कल्कि]] यथा समय देवदत्त नाम के [[घोड़ा|घोड़े]] पर आरूढ़ होकर तलवार से दुष्टों का संहार करेंगे। तब [[सतयुग]] का प्रारंभ होगा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कल्कि अवतार]] | |||
{[[भारत]] के चारों कोनों में स्थापित चार धामों में से कौन-सा एक पूर्वी दिशा में स्थापित है? | {[[भारत]] के चारों कोनों में स्थापित चार धामों में से कौन-सा एक पूर्वी दिशा में स्थापित है? | ||
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-[[द्वारका|द्वारकानाथ धाम]] | -[[द्वारका|द्वारकानाथ धाम]] | ||
-[[बदरीनाथ|बदरीनाथ धाम]] | -[[बदरीनाथ|बदरीनाथ धाम]] | ||
||[[चित्र:Jagannath-Temple-Puri.jpg|border|100px|right|जगन्नाथ मंदिर पुरी]]'जगन्नाथ मंदिर' [[उड़ीसा]] के तटवर्ती शहर [[पुरी]] में स्थित है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ ([[कृष्ण]]) को समर्पित है। 'जगन्नाथ' शब्द का अर्थ "जगत का स्वामी" होता है। इनकी नगरी ही [[जगन्नाथपुरी]] या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के [[चार धाम यात्रा|चार धाम]] में से एक गिना जाता है। यह [[वैष्णव सम्प्रदाय]] का मंदिर है, जो [[विष्णु के अवतार|भगवान विष्णु के अवतार]] श्रीकृष्ण को समर्पित है। मंदिर का वार्षिक रथयात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मंदिर के तीनों मुख्य [[देवता]]- भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता [[बलराम|बलभद्र]] और भगिनी [[सुभद्रा]], तीनों तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जगन्नाथ मंदिर पुरी]] | |||
{जिस दिन [[राम|श्रीराम]] ने [[रावण]] पर विजय प्राप्त की थी, उस दिन कौन-सी [[तिथि]] थी? | {जिस दिन [[राम|श्रीराम]] ने [[रावण]] पर विजय प्राप्त की थी, उस दिन कौन-सी [[तिथि]] थी? | ||
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+[[दशमी]] | +[[दशमी]] | ||
-[[एकादशी]] | -[[एकादशी]] | ||
||[[चित्र:Lord-Rama.jpg|border|100px|right|राम]]'राम' [[हिन्दू धर्म]] में [[विष्णु]] के 10 [[अवतार|अवतारों]] में से एक हैं। [[राम]] का जीवन काल एवं पराक्रम, [[वाल्मीकि]] द्वारा रचित, [[संस्कृत]] [[महाकाव्य]] [[रामायण]] के रूप में लिखा गया है। उनके उपर [[तुलसीदास]] ने भक्ति काव्य [[रामचरितमानस]] रचा था। ख़ास तौर पर [[उत्तर भारत]] में राम बहुत अधिक पूज्यनीय माने जाते हैं। रामचन्द्र हिन्दुत्ववादियों के भी आदर्श पुरुष हैं। राम, [[अयोध्या]] के राजा [[दशरथ]] और रानी [[कौशल्या]] के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम [[सीता]] था, जो [[महालक्ष्मी देवी|लक्ष्मी]] का अवतार मानी जाती हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राम]] | |||
{उन [[ऋषि]] का क्या नाम है, जो 'नारयण-नारायण' कहते हुए तीनों लोकों में विचरण करते रहते हैं? | {उन [[ऋषि]] का क्या नाम है, जो 'नारयण-नारायण' कहते हुए तीनों लोकों में विचरण करते रहते हैं? | ||
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-[[याज्ञवल्क्य]] | -[[याज्ञवल्क्य]] | ||
+[[नारद]] | +[[नारद]] | ||
||[[चित्र:Narada-Muni.jpg|border|80px|right|नारद]]'नारद' [[हिन्दू]] शास्त्रों के अनुसार, [[ब्रह्मा]] के सात मानस पुत्रों में से एक माने गये हैं। ये [[विष्णु|भगवान विष्णु]] के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते है। ये स्वयं [[वैष्णव]] हैं और वैष्णवों के परमाचार्य तथा मार्गदर्शक हैं। इनकी [[वीणा]] भगवन जप 'महती' के नाम से विख्यात है। उससे 'नारायण-नारायण' की ध्वनि निकलती रहती है। इनकी गति अव्याहत है। ये ब्रह्म-मुहूर्त में सभी जीवों की गति देखते हैं और अजर-अमर हैं। भगवद-भक्ति की स्थापना तथा प्रचार के लिए ही इनका आविर्भाव हुआ है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नारद]] | |||
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07:08, 27 जनवरी 2020 का अवतरण
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- इस विषय से संबंधित लेख पढ़ें:- कला प्रांगण, कला कोश, संस्कृति प्रांगण, संस्कृति कोश, धर्म प्रांगण, धर्म कोश
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