माघ पूर्णिमा

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माघ पूर्णिमा
माघ में कुम्भ स्नान
माघ में कुम्भ स्नान
विवरण 'माघ पूर्णिमा' हिन्दू धर्म में धार्मिक दृष्टि से बहुत ही पवित्र मानी गई है। इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्त्व होता है।
अन्य नाम माघी पूर्णिमा, बत्तीस पूर्णिमा
तिथि माघ माह की पूर्णिमा
धार्मिक मान्यता इस दिन संगम की रेत पर स्नान-ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण तो होती ही हैं, साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
विशेष माघ माह के बारे में कहते हैं कि इन दिनों देवता पृथ्वी पर आते हैं। प्रयाग में स्नान-दान आदि करते हैं। देवता मनुष्य रूप धारण करके भजन-सत्संग आदि करते हैं।
देव पूजन इस भगवान सत्यनारायण जी कि कथा की जाती है। भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है।
संबंधित लेख माघ स्नान, माघ मेला, कुम्भ मेला, कल्पवास
अन्य जानकारी हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार महाकुंभ में माघ पूर्णिमा का स्नान इसलिए भी अति महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण यौवन पर होता है।

माघ पूर्णिमा या माघी पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में बड़ा ही धार्मिक महत्त्व बताया गया है। वैसे तो हर पूर्णिमा का अपना अलग-अलग माहात्म्य होता है, लेकिन माघ पूर्णिमा की बात सबसे अलग है। इस दिन संगम (प्रयाग) की रेत पर स्नान-ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण तो होती ही हैं, साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। मघा नक्षत्र के नाम पर 'माघ पूर्णिमा' की उत्पत्ति होती है। माघ माह में देवता पितरगण सदृश होते हैं। पितृगणों की श्रेष्ठता की अवधारणा और श्रेष्ठता सर्वविदित है। पितरों के लिए तर्पण भी हज़ारों साल से चला आ रहा है।[1] इस दिन स्वर्ण, तिल, कम्बल, पुस्तकें, पंचांग, कपास के वस्त्र और अन्नादि दान करने से सुकृत्य मिलता है।

धार्मिक मान्यता

माघ माह के बारे में कहते हैं कि इन दिनों देवता पृथ्वी पर आते हैं। प्रयाग में स्नान-दान आदि करते हैं। सूर्य मकर राशि में आ जाता है। देवता मनुष्य रूप धारण करके भजन-सत्संग आदि करते हैं। माघ पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवता अंतिम बार स्नान करके अपने लोकों को प्रस्थान करते हैं। नतीजतन इसी दिन से संगम तट पर गंगा, यमुना एवं सरस्वती की जलराशियों का स्तर कम होने लगता है। मान्यता है कि इस दिन अनेकों तीर्थ, नदी-समुद्र आदि में प्रातः स्नान, सूर्य अर्घ्य, जप-तप, दान आदि से सभी दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति मिल जाती है। शास्त्र कहते हैं कि यदि माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस दिन का पुण्य अक्षुण हो जाता है।[2]

पौराणिक प्रसंग

शास्त्रों में एक प्रसंग है कि "भरत ने कौशल्या से कहा कि 'यदि राम को वन भेजे जाने में उनकी किंचितमात्र भी सम्मति रही हो तो वैशाख, कार्तिक और माघ पूर्णिमा के स्नान सुख से वो वंचित रहें। उन्हें निम्न गति प्राप्त हो।' यह सुनते ही कौशल्या ने भरत को गले से लगा लिया।" इस तथ्य से ही इन अक्षुण पुण्यदायक पर्व का लाभ उठाने का महत्त्व पता चलता है।[2]

संक्षिप्त कथा

माघ माह की पूर्णिमा को 'बत्तीस पूर्णिमा' भी कहते हैं। पुत्र और सौभाग्य को प्राप्त करने के लिए मध्याह्न में शिवोपासना की जाती है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार- "कांतिका नगरी में धनेश्वर नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह नि:संतान था। बहुत उपाय किया, लेकिन उसकी पत्नी रूपमती से कोई संतान नहीं हुई। ब्राह्मण दान आदि मांगने भी जाता था। एक व्यक्ति ने ब्राह्मण दंपत्ति को दान देने से इसलिए मना कर दिया कि वह नि:संतान दंपत्ति को दान नहीं करता है। लेकिन उसने उस नि:संतान दंपत्ति को एक सलाह दी कि चंद्रिका देवी की वे आराधना करें। इसके पश्चात् ब्राह्मण दंपत्ति ने माँ काली की घनघोर आराधना की। 16 दिन उपवास करने के पश्चात् माँ काली प्रकट हुईं। माँ बोलीं कि "तुमको संतान की प्राप्ति अवश्य होगी। अपनी शक्ति के अनुसार आटे से बना दीप जलाओं और उसमें एक-एक दीप की वृद्धि करते रहना। यह कर्क पूर्णिमा के दिन तक 22 दीपों को जलाने की हो जानी चाहिए।" देवी के कथनानुसार ब्राह्मण ने आम के वृक्ष से एक आम तोड़ कर पूजन हेतु अपनी पत्नी को दे दिया। पत्नी इसके बाद गर्भवती हो गयी। देवी के आशीर्वाद से देवदास नाम का पुत्र पैदा हुआ। देवदास पढ़ने के लिए काशी गया, उसका मामा भी साथ गया। रास्ते में घटना हुई। प्रपंचवश उसे विवाह करना पड़ा। देवदास ने जबकि साफ-साफ बता दिया था कि वह अल्पायु है, लेकिन विधि के चक्र के चलते उसे मजबूरन विवाह करना पड़ा। उधर, काशी में एक रात उसे दबोचने के लिए काल आया, लेकिन व्रत के प्रताप से देवदास जीवित हो गया।[1]

कल्पवास की पूर्णता

कल्पवास के दौरान रहने का स्थान

'माघ पूर्णिमा' कल्पवास की पूर्णता का पर्व है। एक माह की तपस्या इस तिथि को समाप्त हो जाती है। कल्पवासी अपने घरों को लौट जाते हैं। स्वाभाविक है कि संकल्प की संपूर्ति का संतोष एवं परिजनों से मिलने की उत्सुकता उनके हृदय के उत्साह का संचार है। इसीलिये यह स्नान पर्व आनंद और उत्साह का पर्व बन जाता है।

इन्हें भी देखें: कल्पवास एवं कुम्भ मेला

माघ स्नान की महिमा

संगम में माघ पूर्णिमा का स्नान एक प्रमुख स्नान है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज रहता है, जो पाप का शमन करता है। 'निर्णयसिन्धु' में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें, लेकिन माघ पूर्णिमा के स्नान से स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बना जा सकता है। इस बात का उदाहरण इस श्लोक से मिलता है-

मासपर्यन्त स्नानासम्भवे तु त्रयहमेकाहं वा स्नायात्‌।

अर्थात् "जो लोग लंबे समय तक स्वर्गलोक का आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर अवश्य तीर्थ स्नान करना चाहिए।"

हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार महाकुंभ में माघ पूर्णिमा का स्नान इसलिए भी अति महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण यौवन पर होता है। साधु-संतों का कहना है कि पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणें पूरी लौकिकता के साथ पृथ्वी पर पड़ती हैं। स्नान के बाद मानव शरीर पर उन किरणों के पड़ने से शांति की अनुभूति होती है और इसीलिए पूर्णिमा का स्नान महत्वपूर्ण है। माघ स्नान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। माघ में ठंड खत्म होने की ओर रहती है तथा इसके साथ ही शिशिर की शुरुआत होती है। ऋतु के बदलाव का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े, इसलिए प्रतिदिन सुबह स्नान करने से शरीर को मजबूती मिलती है।

'ब्रह्मवैवर्तपुराण' में उल्लेख है कि माघी पूर्णिमा पर भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं, अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है। इसी प्रकार पुराणों में मान्यता है कि भगवान विष्णु व्रत, उपवास, दान से भी उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना अधिक प्रसन्न माघ स्नान करने से होते हैं। महाभारत में एक जगह इस बात का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इन दिनों में अनेक तीर्थों का समागम होता है। वहीं 'पद्मपुराण' में कहा गया है कि अन्य मास में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते, जितने कि वे माघ मास में स्नान करने से होते हैं। यही वजह है कि प्राचीन ग्रंथों में नारायण को पाने का आसान रास्ता माघ पूर्णिमा के पुण्य स्नान को बताया गया है। भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इन्द्र भी माघ स्नान के सत्व द्वारा ही श्राप से मुक्त हुए थे। 'पद्मपुराण' के अनुसार माघ-स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं।[3]

इन्हें भी देखें: माघ स्नान एवं माघ मेला

यज्ञ, तप तथा दान का महत्त्व

इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्त्व होता है। भगवान विष्णु की पूजा कि जाती है। भोजन, वस्त्र, गुड़, कपास, घी, लड्डु, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक माना जाता है। माघ पूर्णिमा में प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी या घर पर ही स्नान करके भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। माघ मास में काले तिलों से हवन और पितरों का तर्पण करना चाहिए। तिल के दान का इस माह में विशेष महत्त्व माना गया है।

पुराणं ब्रह्म वैवर्तं यो दद्यान्माघर्मासि च,
पौर्णमास्यां शुभदिने ब्रह्मलोके महीयते।

'मत्स्य पुराण' का कथन है कि माघ मास की पूर्णिमा में जो व्यक्ति ब्राह्मण को दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। यह त्यौहार बहुत हीं पवित्र त्यौहार माना जाता हैं। स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ग़रीबो को भोजन, वस्त्र, गुड़, कपास, घी, लड्डु, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक होता है। माघ पूर्णिमा को 'माघी पूर्णिमा' के नाम से भी संबोधित किया जाता है। माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी 'भीमाष्टमी' के नाम से प्रसिद्ध है। इस तिथि को भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने नश्वर शरीर का त्याग किया था। उन्हीं की पावन स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है। माघी पूर्णिमा को एक मास का कल्पवास पूर्ण हो जाता है। इस दिन सत्यनारायण कथा और दान-पुण्य को अति फलदायी माना गया है। इस अवसर पर गंगा में स्नान करने से पाप एवं संताप का नाश होता है तथा मन एवं आत्मा को शुद्वता प्राप्त होती है। किसी भी व्यक्ति द्वारा इस दिन किया गया महास्नान समस्त रोगों को शांत करने वाला है। 'ओम नमः भगवते वासुदेवाय नमः' का जाप करते हुए स्नान व दान करना चाहिए। इस दिन से ही होली का डांडा गाड़ा जाता है।

पूजन

माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी कि कथा की जाती है। भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है। सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी का पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है। इसके साथ ही साथ आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगता है। सत्यनारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है। इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद सभी को दिया जाता है।[4]

माघ मेले का एक दृश्य

मेलों का आयोजन

प्रतिवर्ष माघ माह के समय प्रयाग (इलाहाबाद) में मेला लगता है, जो 'कल्पवास' कहलाता है। प्रयाग में इस अवधि में कल्पवास बिताने की परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसका समापन माघी पूर्णिमा के स्नान के साथ होता है। इस दौरान देश के सभी भागों से आए अनेक श्रद्धालु यहां संगम क्षेत्र में स्नान कर धर्म, कर्म के कार्य करते हैं। यह कल्पवास पूरे माघ माह तक चलता है, जो माघ माह की पूर्णिमा को संपन्न होता है। माघ पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु स्नान, दान, पूजा-पाठ, यज्ञ आदि करते हैं। माघ पूर्णिमा के दिन स्नान करने वाले पर भगवान विष्णु कि असीम कृपा रहती है। सुख-सौभाग्य, धन-संतान कि प्राप्ति होती है। माघ स्नान पुण्यशाली होता है।

माघ पूर्णिमा-2015

वर्ष 2015 में 3 फ़रवरी के दिन पड़ने वाली 'माघ पूर्णिमा' को दुर्लभ संयोग बन रहा है। छह साल बाद फिर से माघ पूर्णिमा पर पुष्य नक्षत्र और रवि योग का त्रिवेणी संयोग बना है। इस दिन लाखों लोग तीर्थ स्थलों पर पवित्र नदियों में डुबकियाँ लगाएंगे। 'ललिता' और 'रविदास जयंती' भी होगी और होली के एक माह पहले ही होली का डांडा गली, चौराहों पर गाड़ा जाएगा। ज्योतिषियों के अनुसार 3 फ़रवरी, मंगलवार को माघ पूर्णिमा दिवस पर्यंत रहेगी। पुष्य नक्षत्र सुबह 7 से रात 8 बजे तक 13 घंटे रहेगा। मंगलकारी रवि योग भी सूर्योदय से दोपहर 12.37 तक होगा। इस दिन 'माघ स्नान' का समापन होता है। मान्यता है कि इस दिन देवता भी स्नान के लिए धरती पर आते हैं। माघ पू्‌र्णिमा, पुष्य नक्षत्र और रवि योग का त्रिवेणी संयोग 6 साल बाद बन रहा है। इससे पहले यह संयोग 2009 में बना था। माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र का आना मंगलकारी योग है। पुष्य नक्षत्र में चंद्रमा कर्क राशि में स्थित होता है। इस दिन किए गए कार्य में सफलता प्राप्त होती है।[5]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 पुण्य प्रदायिनी माघ पूर्णिमा (हिन्दी) जागरण। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2015।
  2. 2.0 2.1 पुष्य नक्षत्र के साथ माघ पूर्णिमा का संयोग जानिए महत्व (हिन्दी) अमर उजाला.कॉम। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2015।
  3. जानिए की क्या हैं माघ पूर्णिमा और माघ पूर्णिमा का महत्व..??? (हिन्दी) विनायक वास्तु टाइम्स। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2015।
  4. दान-पुण्य की माघ पूर्णिमा (हिन्दी) हिन्दुमार्ग। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2015।
  5. तीन फ़रवरी माघ पूर्णिमा पर बन रहा दुर्लभ संयोग (हिन्दी) पल-पल इण्डिया। अभिगमन तिथि: 30 जनवरी, 2015।

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