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||रामानंद संप्रदाय का नाम 'श्रीसंप्रदाय' तथा 'वैरागी संप्रदाय' भी है। इस संप्रदाय में आचार पर अधिक बल नहीं दिया जाता। कर्मकांड का महत्त्व यहाँ बहुत कम है। इस संप्रदाय के अनुयायी 'अवधूत' और 'तपसी' भी कहलाते हैं। [[रामानन्द]] के धार्मिक आंदोलन में जाति-पांति का भेद-भाव नहीं था। उनके शिष्यों में [[हिन्दू|हिंदुओं]] की विभिन्न जातियों के लोगों के साथ-साथ [[मुसलमान]] भी थे। [[भारत]] में रामानन्दी [[साधु|साधुओं]] की संख्या सर्वाधिक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रामानन्द]] | ||रामानंद संप्रदाय का नाम 'श्रीसंप्रदाय' तथा 'वैरागी संप्रदाय' भी है। इस संप्रदाय में आचार पर अधिक बल नहीं दिया जाता। कर्मकांड का महत्त्व यहाँ बहुत कम है। इस संप्रदाय के अनुयायी 'अवधूत' और 'तपसी' भी कहलाते हैं। [[रामानन्द]] के धार्मिक आंदोलन में जाति-पांति का भेद-भाव नहीं था। उनके शिष्यों में [[हिन्दू|हिंदुओं]] की विभिन्न जातियों के लोगों के साथ-साथ [[मुसलमान]] भी थे। [[भारत]] में रामानन्दी [[साधु|साधुओं]] की संख्या सर्वाधिक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रामानन्द]] | ||
{निम्नलिखित में से किन शासकों के पास एक शक्तिशाली नौसेना थी? | {निम्नलिखित में से किन शासकों के पास एक शक्तिशाली [[नौसेना]] थी? | ||
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-[[चेर वंश|चेर]] | -[[चेर वंश|चेर]] | ||
-[[पल्लव वंश|पल्लव]] | -[[पल्लव वंश|पल्लव]] | ||
||चोलों | ||चोलों की स्थायी सेना में पैदल, गजारोही, अश्वारोही आदि सैनिक शामिल होते थे। इनके पास एक बड़ी शक्तिशाली नौसेना रहती थी, जो [[राजराज प्रथम]] एवं [[राजेन्द्र प्रथम]] के समय में चरमोत्कर्ष पर थी। [[बंगाल की खाड़ी]] [[चोल]] नौसेना के कारण ही 'चोलों की झील' बन गई। 'बड़पेर्र कैककोलस' राजा की व्यक्तिगत सुरक्षा में तैनात पैदल दल को कहते थे, जबकि 'कुंजिर-मल्लर' गजारोही दल को, 'कुदिरैच्चैवगर' अश्वारोही दल को, 'बिल्लिगल' धनुर्धारी दल को, 'कैककोलस' पैदल सेना में सर्वाधिक शक्तिशाली को दल को कहा जाता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चोल]] | ||
{'[[तुग़लक़नामा]]' के रचनाकार का नाम है- | {'[[तुग़लक़नामा]]' के रचनाकार का नाम है- |
08:22, 3 अगस्त 2011 का अवतरण
इतिहास
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