"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Kanishka-Coin.jpg|right|100px|कनिष्क का सिक्का]]'[[कुषाण वंश]]' का प्रमुख प्रतापी सम्राट [[कनिष्क]] '[[भारतीय इतिहास]]' में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, [[साहित्य]] तथा [[कला]] का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान रखता है। [[कुमारलात]] की 'कल्पनामंड' नामक [[टीका]] के अनुसार इसने [[भारत]] विजय के पश्चात [[एशिया|मध्य एशिया]] में ख़ोतान जीता और वहीं पर राज्य करने लगा। [[कल्हण]] ने भी अपनी '[[राजतरंगिणी]]' में [[कनिष्क]] और [[हुविष्क]] द्वारा [[कश्मीर]] पर राज्य तथा वहाँ अपने नाम पर नगर बसाने का उल्लेख किया है। इनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सम्राट कनिष्क का राज्य कश्मीर से [[सिंध प्रदेश|उत्तरी सिंध]] तथा [[पेशावर]] से [[सारनाथ]] के आगे तक फैला था। [[कुषाण]] राजा कनिष्क के निर्माण कार्यों का निरीक्षक अभियन्ता एक [[यवन]] अधिकारी '[[अगेसिलोस]]' था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कनिष्क]], [[अगेसिलोस]] | |||
{इतिहास में दूसरी | {[[इतिहास]] में दूसरी जैन सभा कहाँ पर आयोजित हुई थी?(यूजीसी इतिहास, 201) | ||
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+[[वल्लभीपुर | +[[वल्लभीपुर]] | ||
-[[पाटलिपुत्र]] | -[[पाटलिपुत्र]] | ||
-[[कश्मीर]] | -[[कश्मीर]] | ||
-[[वैशाली]] | -[[वैशाली]] | ||
||'वल्लभीपुर' या 'बल्लभीपुर' [[प्राचीन भारत]] का नगर, जो पाँचवीं से आठवीं शताब्दी तक मैत्रक वंश की राजधानी रहा था। यह [[पश्चिमी भारत]] के [[सौराष्ट्र]] में और बाद में [[गुजरात|गुजरात राज्य]] के [[भावनगर]] बंदरगाह के पश्चिमोत्तर में '[[खम्भात की खाड़ी]]' के मुहाने पर स्थित था। माना जाता है कि [[वल्लभीपुर]] की स्थापना लगभग 470 ई. में मैत्रक वंश के संस्थापक सेनापति भट्टारक ने की थी। वल्लभीपुर ज्ञान का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था और यहाँ कई [[बौद्ध]] मठ भी थे। एक [[जैन]] परम्परा के अनुसार पाँचवीं या छठी शताब्दी में दूसरी जैन परिषद यहीं आयोजित की गई थी। इसी परिषद में जैन ग्रन्थों ने वर्तमान स्वरूप ग्रहण किया था। यह नगर अब लुप्त हो चुका है, लेकिन 'वल' नामक गाँव से इसकी पहचान की गई है, जहाँ मैत्रकों के [[ताँबा|ताँबे]] के [[अभिलेख]] और मुद्राएँ पाई गई हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वल्लभीपुर]] | |||
{'अंग साहित्य' किस [[धर्म]] से सम्बन्धित है?(यूजीसी इतिहास, 203) | {'अंग साहित्य' किस [[धर्म]] से सम्बन्धित है?(यूजीसी इतिहास, 203) | ||
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-[[वैष्णव धर्म]] | -[[वैष्णव धर्म]] | ||
-[[हिन्दू धर्म]] | -[[हिन्दू धर्म]] | ||
||[[चित्र:Gomateswara.jpg|right|80px|गोमतेश्वर की प्रतिमा, श्रवणबेलगोला]]'जैन धर्म' [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला [[धर्म]] और [[दर्शन]] है। 'जैन' उन्हें कहते हैं, जो '[[जिन]]' के अनुयायी हों। [[जैन धर्म]] ग्रंथ पर आधारित धर्म नहीं है। [[भगवान महावीर]] ने सिर्फ़ प्रवचन ही दिए थे, उन्होंने किसी [[ग्रंथ]] की रचना नहीं की थी| लेकिन बाद में उनके गणधरों ने उनके अमृत वचन और प्रवचनों का संग्रह कर लिया था। यह संग्रह मूलत: [[प्राकृत भाषा]] में है, विशेष रूप से [[मागधी]] में। भगवान महावीर से पूर्व के [[जैन साहित्य|जैन धार्मिक साहित्य]] को महावीर के शिष्य गौतम ने संकलित किया था। [[जैन धर्म]] में 12 अंग ग्रंथ माने गए हैं- 'आचार', 'सूत्रकृत', 'स्थान', 'समवाय', 'भगवती', 'ज्ञाता धर्मकथा', 'उपासकदशा', 'अन्तकृतदशा', 'अनुत्तर उपपातिकदशा', 'प्रश्न-व्याकरण', 'विपाक' और 'दृष्टिवाद'। इनमें 11 अंग तो मिलते हैं, किंतु बारहवाँ दृष्टिवाद अंग नहीं मिलता।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जैन धर्म]] | |||
{किस [[ग्रंथ]] में [[चाणक्य]] की पत्नी का नाम 'यशोमती' मिलता है?(यूजीसी इतिहास, 207) | {किस [[ग्रंथ]] में [[चाणक्य]] की पत्नी का नाम 'यशोमती' मिलता है?(यूजीसी इतिहास, 207) |
07:52, 16 जुलाई 2013 का अवतरण
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