"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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||'जैनुल अबादीन' (1420-1470 ई.) अलीशाह का भाई और [[कश्मीर]] का सुल्तान था। सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता का भाव रखने व अपने अच्छे कार्यों के कारण ही उसे '''कश्मीर का अकबर''' कहा जाता है। अपने शासन के दौरान [[जैनुल अबादीन]] ने [[हिन्दू|हिन्दुओं]] को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की थी। उसने हिन्दुओं के टूटे हुए मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया, [[गाय|गायों]] की सुरक्षा के लिए अनेक उपाय किए और राज्य में एक बेहतर शासन व्यवस्था लागू की। सुल्तान ने [[कश्मीर]] की आर्थिक उन्नति पर भी ध्यान दिया। जैनुल अबादीन ने दो आदमियों को [[काग़ज़]] बनाने तथा जिल्दसाजी की कला सीखने के लिए [[समरकंद]] भी भेजा। उसने [[कश्मीर]] में कई कलाओं को प्रोत्साहन दिया, जैसे- पत्थर तराशना और उस पर पॉलिश करना, बोतलें बनाना, स्वर्ण-पत्र बनाना इत्यादि।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जैनुल अबादीन]] | ||'जैनुल अबादीन' (1420-1470 ई.) अलीशाह का भाई और [[कश्मीर]] का सुल्तान था। सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता का भाव रखने व अपने अच्छे कार्यों के कारण ही उसे '''कश्मीर का अकबर''' कहा जाता है। अपने शासन के दौरान [[जैनुल अबादीन]] ने [[हिन्दू|हिन्दुओं]] को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की थी। उसने हिन्दुओं के टूटे हुए मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया, [[गाय|गायों]] की सुरक्षा के लिए अनेक उपाय किए और राज्य में एक बेहतर शासन व्यवस्था लागू की। सुल्तान ने [[कश्मीर]] की आर्थिक उन्नति पर भी ध्यान दिया। जैनुल अबादीन ने दो आदमियों को [[काग़ज़]] बनाने तथा जिल्दसाजी की कला सीखने के लिए [[समरकंद]] भी भेजा। उसने [[कश्मीर]] में कई कलाओं को प्रोत्साहन दिया, जैसे- पत्थर तराशना और उस पर पॉलिश करना, बोतलें बनाना, स्वर्ण-पत्र बनाना इत्यादि।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जैनुल अबादीन]] | ||
{[[हड़प्पा सभ्यता]] के [[हिन्दू देवी-देवता|देवी देवताओं]] में किसे परवर्ती [[हिन्दू धर्म]] में अंगीकार नहीं किया गया? | {[[हड़प्पा सभ्यता]] के [[हिन्दू देवी-देवता|देवी देवताओं]] में किसे परवर्ती [[हिन्दू धर्म]] में अंगीकार नहीं किया गया? | ||
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-पशुपति शिव | -पशुपति शिव | ||
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||[[चित्र:Mohenjodaro-Sindh.jpg|right|100px|सिन्ध में मोहनजोदाड़ो में हड़प्पा संस्कृति के अवशेष]]सबसे पहले [[1927]] में '[[हड़प्पा]]' नामक स्थल पर उत्खनन होने के कारण '[[सिन्धु सभ्यता]]' का नाम 'हड़प्पा सभ्यता' पड़ा। पर कालान्तर में 'पिग्गट' ने हड़प्पा एवं [[मोहनजोदड़ो]] को ‘एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियाँ' बतलाया। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में असंख्य्य देवियों की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। विद्वानों का अनुमान है कि ये मूर्तियाँ मातृदेवी अथवा प्रकृति देवी की हैं। प्राचीन काल से ही मातृ या प्रकृति की [[पूजा]] भारतीय करते रहे हैं और [[आधुनिक काल]] में भी कर रहे हैं। पुरुष देवताओं में पशुपति प्रधान प्रतीत होता है। एक मुहर में तीन मुँह वाला एक नग्न व्यक्ति चौकी पर पद्मासन लगाकर बैठा हुआ है। इसके चारों ओर [[हाथी]] तथा बैल हैं। चौकी के नीचे हिरण है, उसके सिर पर सींग और विचित्र शिरोभूषा है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हड़प्पा सभ्यता]] | ||[[चित्र:Mohenjodaro-Sindh.jpg|right|100px|सिन्ध में मोहनजोदाड़ो में हड़प्पा संस्कृति के अवशेष]]सबसे पहले [[1927]] में '[[हड़प्पा]]' नामक स्थल पर उत्खनन होने के कारण '[[सिन्धु सभ्यता]]' का नाम 'हड़प्पा सभ्यता' पड़ा। पर कालान्तर में 'पिग्गट' ने हड़प्पा एवं [[मोहनजोदड़ो]] को ‘एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानियाँ' बतलाया। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में असंख्य्य देवियों की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। विद्वानों का अनुमान है कि ये मूर्तियाँ मातृदेवी अथवा प्रकृति देवी की हैं। प्राचीन काल से ही मातृ या प्रकृति की [[पूजा]] भारतीय करते रहे हैं और [[आधुनिक काल]] में भी कर रहे हैं। पुरुष देवताओं में पशुपति प्रधान प्रतीत होता है। एक मुहर में तीन मुँह वाला एक नग्न व्यक्ति चौकी पर पद्मासन लगाकर बैठा हुआ है। इसके चारों ओर [[हाथी]] तथा बैल हैं। चौकी के नीचे हिरण है, उसके सिर पर सींग और विचित्र शिरोभूषा है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हड़प्पा सभ्यता]] | ||
{[[सिन्धु घाटी की सभ्यता|सिन्धु घाटी]] के लोगों द्वारा सबसे अधिक प्रयुक्त की जाने वाली [[धातु]] कौन-सी थी? | {[[सिन्धु घाटी की सभ्यता|सिन्धु घाटी]] के लोगों द्वारा सबसे अधिक प्रयुक्त की जाने वाली [[धातु]] कौन-सी थी? | ||
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||[[चित्र:Lekhan-Samagri-1.jpg|right|100px|सिंधु सभ्यता की उत्कीर्ण मुद्रा ]]'काँसा' एक [[मिश्र धातु]] है, जो [[ताँबा|ताँबे]] और [[जस्ता|जस्ते]] अथवा [[ताँबा|ताँबे]] और [[टिन]] के योग से बनाई जाती है। [[काँसा]], ताँबे की अपेक्षा अधिक कड़ा होता है और कम [[ताप]] पर पिघलता है। इसलिए काँसा सुविधापूर्वक ढाला जा सकता है। आमतौर पर साधारण बोलचाल में कभी-कभी [[पीतल]] को भी काँसा कह दिया जाता है, जो ताँबे तथा जस्ते की मिश्र धातु है और [[पीला रंग|पीले रंग]] का होता है। पुराकालीन वस्तुओं में काँसे से निर्मित वस्तुएँ काफ़ी महत्त्वपूर्ण थीं। इसीलिए उस युग को "कांस्य युग" का नाम दिया गया था। काँसे को [[अंग्रेज़ी]] में 'ब्रोंज़' कहते हैं। यह [[फ़ारसी भाषा]] का मूल शब्द है। काँसा, जिसे [[संस्कृत]] में 'कांस्य' कहा जाता है, संस्कृत कोशों के अनुसार श्वेत ताँबे अथवा घंटा बनाने की [[धातु]] को कहते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[काँसा|काँस्य]] | ||[[चित्र:Lekhan-Samagri-1.jpg|right|100px|सिंधु सभ्यता की उत्कीर्ण मुद्रा ]]'काँसा' एक [[मिश्र धातु]] है, जो [[ताँबा|ताँबे]] और [[जस्ता|जस्ते]] अथवा [[ताँबा|ताँबे]] और [[टिन]] के योग से बनाई जाती है। [[काँसा]], ताँबे की अपेक्षा अधिक कड़ा होता है और कम [[ताप]] पर पिघलता है। इसलिए काँसा सुविधापूर्वक ढाला जा सकता है। आमतौर पर साधारण बोलचाल में कभी-कभी [[पीतल]] को भी काँसा कह दिया जाता है, जो ताँबे तथा जस्ते की मिश्र धातु है और [[पीला रंग|पीले रंग]] का होता है। पुराकालीन वस्तुओं में काँसे से निर्मित वस्तुएँ काफ़ी महत्त्वपूर्ण थीं। इसीलिए उस युग को "कांस्य युग" का नाम दिया गया था। काँसे को [[अंग्रेज़ी]] में 'ब्रोंज़' कहते हैं। यह [[फ़ारसी भाषा]] का मूल शब्द है। काँसा, जिसे [[संस्कृत]] में 'कांस्य' कहा जाता है, संस्कृत कोशों के अनुसार श्वेत ताँबे अथवा घंटा बनाने की [[धातु]] को कहते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[काँसा|काँस्य]] | ||
{[[सैन्धव सभ्यता]] का प्रमुख बन्दरगाह एवं व्यापारिक केन्द्र कौन सा? | {[[सैन्धव सभ्यता]] का प्रमुख बन्दरगाह एवं व्यापारिक केन्द्र कौन सा? | ||
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||[[चित्र:Kanishka-Coin.jpg|right|100px|कनिष्क का सिक्का]]'[[कुषाण वंश]]' का प्रमुख प्रतापी सम्राट [[कनिष्क]] '[[भारतीय इतिहास]]' में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, [[साहित्य]] तथा [[कला]] का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान रखता है। [[कुमारलात]] की 'कल्पनामंड' नामक [[टीका]] के अनुसार इसने [[भारत]] विजय के पश्चात [[एशिया|मध्य एशिया]] में ख़ोतान जीता और वहीं पर राज्य करने लगा। [[कल्हण]] ने भी अपनी '[[राजतरंगिणी]]' में [[कनिष्क]] और [[हुविष्क]] द्वारा [[कश्मीर]] पर राज्य तथा वहाँ अपने नाम पर नगर बसाने का उल्लेख किया है। इनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सम्राट कनिष्क का राज्य कश्मीर से [[सिंध प्रदेश|उत्तरी सिंध]] तथा [[पेशावर]] से [[सारनाथ]] के आगे तक फैला था। [[कुषाण]] राजा कनिष्क के निर्माण कार्यों का निरीक्षक अभियन्ता एक [[यवन]] अधिकारी '[[अगेसिलोस]]' था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कनिष्क]], [[अगेसिलोस]] | ||[[चित्र:Kanishka-Coin.jpg|right|100px|कनिष्क का सिक्का]]'[[कुषाण वंश]]' का प्रमुख प्रतापी सम्राट [[कनिष्क]] '[[भारतीय इतिहास]]' में अपनी विजय, धार्मिक प्रवृत्ति, [[साहित्य]] तथा [[कला]] का प्रेमी होने के नाते विशेष स्थान रखता है। [[कुमारलात]] की 'कल्पनामंड' नामक [[टीका]] के अनुसार इसने [[भारत]] विजय के पश्चात [[एशिया|मध्य एशिया]] में ख़ोतान जीता और वहीं पर राज्य करने लगा। [[कल्हण]] ने भी अपनी '[[राजतरंगिणी]]' में [[कनिष्क]] और [[हुविष्क]] द्वारा [[कश्मीर]] पर राज्य तथा वहाँ अपने नाम पर नगर बसाने का उल्लेख किया है। इनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि सम्राट कनिष्क का राज्य कश्मीर से [[सिंध प्रदेश|उत्तरी सिंध]] तथा [[पेशावर]] से [[सारनाथ]] के आगे तक फैला था। [[कुषाण]] राजा कनिष्क के निर्माण कार्यों का निरीक्षक अभियन्ता एक [[यवन]] अधिकारी '[[अगेसिलोस]]' था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कनिष्क]], [[अगेसिलोस]] | ||
{[[इतिहास]] में दूसरी जैन सभा कहाँ पर आयोजित हुई थी? | {[[इतिहास]] में दूसरी जैन सभा कहाँ पर आयोजित हुई थी? | ||
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+[[वल्लभीपुर]] | +[[वल्लभीपुर]] | ||
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||'वल्लभीपुर' या 'बल्लभीपुर' [[प्राचीन भारत]] का नगर, जो पाँचवीं से आठवीं शताब्दी तक मैत्रक वंश की राजधानी रहा था। यह [[पश्चिमी भारत]] के [[सौराष्ट्र]] में और बाद में [[गुजरात|गुजरात राज्य]] के [[भावनगर]] बंदरगाह के पश्चिमोत्तर में '[[खम्भात की खाड़ी]]' के मुहाने पर स्थित था। माना जाता है कि [[वल्लभीपुर]] की स्थापना लगभग 470 ई. में मैत्रक वंश के संस्थापक सेनापति भट्टारक ने की थी। वल्लभीपुर ज्ञान का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था और यहाँ कई [[बौद्ध]] मठ भी थे। एक [[जैन]] परम्परा के अनुसार पाँचवीं या छठी शताब्दी में दूसरी जैन परिषद यहीं आयोजित की गई थी। इसी परिषद में जैन ग्रन्थों ने वर्तमान स्वरूप ग्रहण किया था। यह नगर अब लुप्त हो चुका है, लेकिन 'वल' नामक गाँव से इसकी पहचान की गई है, जहाँ मैत्रकों के [[ताँबा|ताँबे]] के [[अभिलेख]] और मुद्राएँ पाई गई हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वल्लभीपुर]] | ||'वल्लभीपुर' या 'बल्लभीपुर' [[प्राचीन भारत]] का नगर, जो पाँचवीं से आठवीं शताब्दी तक मैत्रक वंश की राजधानी रहा था। यह [[पश्चिमी भारत]] के [[सौराष्ट्र]] में और बाद में [[गुजरात|गुजरात राज्य]] के [[भावनगर]] बंदरगाह के पश्चिमोत्तर में '[[खम्भात की खाड़ी]]' के मुहाने पर स्थित था। माना जाता है कि [[वल्लभीपुर]] की स्थापना लगभग 470 ई. में मैत्रक वंश के संस्थापक सेनापति भट्टारक ने की थी। वल्लभीपुर ज्ञान का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था और यहाँ कई [[बौद्ध]] मठ भी थे। एक [[जैन]] परम्परा के अनुसार पाँचवीं या छठी शताब्दी में दूसरी जैन परिषद यहीं आयोजित की गई थी। इसी परिषद में जैन ग्रन्थों ने वर्तमान स्वरूप ग्रहण किया था। यह नगर अब लुप्त हो चुका है, लेकिन 'वल' नामक गाँव से इसकी पहचान की गई है, जहाँ मैत्रकों के [[ताँबा|ताँबे]] के [[अभिलेख]] और मुद्राएँ पाई गई हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वल्लभीपुर]] | ||
{'अंग साहित्य' किस [[धर्म]] से सम्बन्धित है? | {'अंग साहित्य' किस [[धर्म]] से सम्बन्धित है? | ||
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-[[बौद्ध धर्म]] | -[[बौद्ध धर्म]] | ||
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||[[चित्र:Gomateswara.jpg|right|80px|गोमतेश्वर की प्रतिमा, श्रवणबेलगोला]]'जैन धर्म' [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला [[धर्म]] और [[दर्शन]] है। 'जैन' उन्हें कहते हैं, जो '[[जिन]]' के अनुयायी हों। [[जैन धर्म]] ग्रंथ पर आधारित धर्म नहीं है। [[भगवान महावीर]] ने सिर्फ़ प्रवचन ही दिए थे, उन्होंने किसी [[ग्रंथ]] की रचना नहीं की थी| लेकिन बाद में उनके गणधरों ने उनके अमृत वचन और प्रवचनों का संग्रह कर लिया था। यह संग्रह मूलत: [[प्राकृत भाषा]] में है, विशेष रूप से [[मागधी]] में। भगवान महावीर से पूर्व के [[जैन साहित्य|जैन धार्मिक साहित्य]] को महावीर के शिष्य गौतम ने संकलित किया था। [[जैन धर्म]] में 12 अंग ग्रंथ माने गए हैं- 'आचार', 'सूत्रकृत', 'स्थान', 'समवाय', 'भगवती', 'ज्ञाता धर्मकथा', 'उपासकदशा', 'अन्तकृतदशा', 'अनुत्तर उपपातिकदशा', 'प्रश्न-व्याकरण', 'विपाक' और 'दृष्टिवाद'। इनमें 11 अंग तो मिलते हैं, किंतु बारहवाँ दृष्टिवाद अंग नहीं मिलता।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जैन धर्म]] | ||[[चित्र:Gomateswara.jpg|right|80px|गोमतेश्वर की प्रतिमा, श्रवणबेलगोला]]'जैन धर्म' [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला [[धर्म]] और [[दर्शन]] है। 'जैन' उन्हें कहते हैं, जो '[[जिन]]' के अनुयायी हों। [[जैन धर्म]] ग्रंथ पर आधारित धर्म नहीं है। [[भगवान महावीर]] ने सिर्फ़ प्रवचन ही दिए थे, उन्होंने किसी [[ग्रंथ]] की रचना नहीं की थी| लेकिन बाद में उनके गणधरों ने उनके अमृत वचन और प्रवचनों का संग्रह कर लिया था। यह संग्रह मूलत: [[प्राकृत भाषा]] में है, विशेष रूप से [[मागधी]] में। भगवान महावीर से पूर्व के [[जैन साहित्य|जैन धार्मिक साहित्य]] को महावीर के शिष्य गौतम ने संकलित किया था। [[जैन धर्म]] में 12 अंग ग्रंथ माने गए हैं- 'आचार', 'सूत्रकृत', 'स्थान', 'समवाय', 'भगवती', 'ज्ञाता धर्मकथा', 'उपासकदशा', 'अन्तकृतदशा', 'अनुत्तर उपपातिकदशा', 'प्रश्न-व्याकरण', 'विपाक' और 'दृष्टिवाद'। इनमें 11 अंग तो मिलते हैं, किंतु बारहवाँ दृष्टिवाद अंग नहीं मिलता।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जैन धर्म]] | ||
{किस [[ग्रंथ]] में [[चाणक्य]] की पत्नी का नाम 'यशोमती' मिलता है? | {किस [[ग्रंथ]] में [[चाणक्य]] की पत्नी का नाम 'यशोमती' मिलता है? | ||
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-[[अर्थशास्त्र -कौटिल्य|अर्थशास्त्र]] | -[[अर्थशास्त्र -कौटिल्य|अर्थशास्त्र]] | ||
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||[[चित्र:Chanakya.jpg|right|100px|चाणक्य]]'कौटिल्य', 'चाणक्य' एवं 'विष्णुगुप्त' नाम से भी प्रसिद्ध हैं। इनका व्यक्तिवाचक नाम 'विष्णुगुप्त', स्थानीय नाम '[[चाणक्य]]' (चाणक्यवासी) और गोत्र नाम 'कौटिल्य' (कुटिल से) था। ये [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के प्रधानमन्त्री थे। चाणक्य का नाम संभवत उनके गोत्र 'चणक', [[पिता]] के नाम 'चणक' अथवा स्थान के नाम 'चणक' का परिवर्तित रूप रहा होगा। चाणक्य नाम से प्रसिद्ध एक नीतिग्रन्थ 'चाणक्यनीति' भी प्रचलित है। [[तक्षशिला]] की प्रसिद्धि महान अर्थशास्त्री चाणक्य के कारण भी है, जो यहाँ प्राध्यापक थे और जिन्होंने चन्द्रगुप्त के साथ मिलकर [[मौर्य साम्राज्य]] की नींव डाली थी। '[[बृहत्कथाकोश]]' के अनुसार चाणक्य की पत्नी का नाम 'यशोमती' था। 'मुद्राराक्षस' में कहा गया है कि [[धननन्द|राजा नन्द]] ने भरे दरबार में चाणक्य को उसके उस पद से हटा दिया, जो उसे दरबार में दिया गया था। इस पर चाणक्य ने शपथ ली कि- "वह उसके परिवार तथा वंश को निर्मूल करके नन्द से बदला लेगा।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहत्कथाकोश]], [[चाणक्य]] | ||[[चित्र:Chanakya.jpg|right|100px|चाणक्य]]'कौटिल्य', 'चाणक्य' एवं 'विष्णुगुप्त' नाम से भी प्रसिद्ध हैं। इनका व्यक्तिवाचक नाम 'विष्णुगुप्त', स्थानीय नाम '[[चाणक्य]]' (चाणक्यवासी) और गोत्र नाम 'कौटिल्य' (कुटिल से) था। ये [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के प्रधानमन्त्री थे। चाणक्य का नाम संभवत उनके गोत्र 'चणक', [[पिता]] के नाम 'चणक' अथवा स्थान के नाम 'चणक' का परिवर्तित रूप रहा होगा। चाणक्य नाम से प्रसिद्ध एक नीतिग्रन्थ 'चाणक्यनीति' भी प्रचलित है। [[तक्षशिला]] की प्रसिद्धि महान अर्थशास्त्री चाणक्य के कारण भी है, जो यहाँ प्राध्यापक थे और जिन्होंने चन्द्रगुप्त के साथ मिलकर [[मौर्य साम्राज्य]] की नींव डाली थी। '[[बृहत्कथाकोश]]' के अनुसार चाणक्य की पत्नी का नाम 'यशोमती' था। 'मुद्राराक्षस' में कहा गया है कि [[धननन्द|राजा नन्द]] ने भरे दरबार में चाणक्य को उसके उस पद से हटा दिया, जो उसे दरबार में दिया गया था। इस पर चाणक्य ने शपथ ली कि- "वह उसके परिवार तथा वंश को निर्मूल करके नन्द से बदला लेगा।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बृहत्कथाकोश]], [[चाणक्य]] | ||
{[[साँची]] के [[स्तूप]] का निर्माण किस शासक ने करवाया था? | {[[साँची]] के [[स्तूप]] का निर्माण किस शासक ने करवाया था? | ||
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-[[बिम्बिसार]] | -[[बिम्बिसार]] |
05:51, 21 जुलाई 2013 का अवतरण
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