रामजी भाई हंसमुख कमानी
रामजी भाई हंसमुख कमानी (जन्म- 1888, गुजरात, मृत्यु- 1965) जैन परिवार में जन्मे एक प्रसिद्ध उद्योगपति एवं 'कमानी इंडस्ट्रीज' के संस्थापक थे। कमानी ने एल्युमीनियम के बर्तन बेचने के लिए फेरी लगाकर अपना व्यवसाय आरम्भ करते हुए दुनिया में वो सम्मान प्राप्त किया जो टाटा कंपनी को प्राप्त है।
परिचय
रामजी भाई हंसमुख कमानी का जन्म1888 में गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में एक जैन परिवार में हुआ था। कमानी की शिक्षा सौराष्ट्र और कोलकाता में हुई। उन्होंने अपना व्यवसाय फेरी लगाकर एल्युमीनियम के बर्तन बेचने से आरंभ किया और एक दिन देश के प्रसिद्ध उद्योग्पति बन गये। प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ हो जाने पर उन्हें अपना व्यवसाय बढ़ाने का उपयुक्त अवसर मिल गया। कमानी ने पहले कार्खानों को एल्युमीनियम के पिंडो की आपूर्ति की इसके बाद जीवन लाल के सहयोग से बर्तन बनाने का कारखाना स्थापित कर लिया। पर्याप्त संपत्ति अर्जित करने के बाद अब कमानी धन कमाने से बचना चाहते थे पर ऐसा हो न सका और जमनालाल बजाज के आग्रह पर 1938 में मुंबई के 'मुकुंद आयरन एंड स्टील वर्क्स' के मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए। रामजी भाई कमानी का व्यक्तिगत जीवन अत्यंत सादा और गांधीजी से प्रभावित था। [1]
कारोबार
रामजी भाई हंसमुख कमानी ने अनुभव किया कि देश में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध पीतल और तांबा के टुकड़ों को मिलाकर धातु का अच्छा कारोबार किया जा सकता है।1940 में कोलकाता में कमानी उद्योग को आगे बढ़ने के काम में जुट गए । इसके बाद फिर इस उद्योग ने पीछे नहीं देखा और निरंतर विभिन्न क्षेत्रों में इसका विस्तार होता गया। इसके अंतर्गत अनेक कंपनियां बनी और विदेशी कंपनियों से सहयोग हुआ। बिजली के ट्रांसमिशन टावर, विद्युत उपकरण, एक्सरे मशीनें, ट्यूब आदि विविध प्रकार की वस्तुओं का यह कंपनी उत्पादन करती है।
ख्याति
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के कूद पड़ने से कोलकाता के उद्योगों के लिए खतरा पैदा हो गया था। इसलिए कमानी अपने कारखाने को जयपुर ले आए। कम्पनी का नाम रखा 'जयपुर मेटल इंडस्ट्रीज' यहां हथियारों के निर्माण में काम आने वाले गन मेटल सहित विविध प्रकार की धातुओं का निर्माण हुआ और कमानी उद्योग को इससे लाभ भी हुआ और उसकी ख्याति भी बढ़ी। विश्व के औद्योगिक जगत में कमानी को भी वही सम्मान प्राप्त है जो भारत की टाटा कंपनी को है।
लोक सेवा
रामजी भाई कमानी ने उद्योग के क्षेत्र में प्रगति के साथ-साथ जन सेवा के भी अनेक काम किए। उनके स्थापित किए हुए ट्र्स्ट आज भी जरुरतमंदों की सहायता कर रहे हैं। उनका व्यक्तिगत जीवन अत्यंत सादा और गांधीजी से प्रभावित था।
मृत्यु
रामजी भाई हंसमुख कमानी का 1965 ई. में निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 731 |
बाहरी कड़ियाँ
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