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'''भोज परमार''' [[मालवा]] के '[[परमार वंश|परमार]]' अथवा 'पवार वंश' का यशस्वी राजा था। उसने 1018-1060 ई. तक शासन किया था। उसकी राजधानी [[धार]] थी। भोज परमार ने 'नवसाहसाक' अर्थात 'नव विक्रमादित्य' की पदवी धारण की थी।
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'''भोज परमार''' [[मालवा]] के '[[परमार वंश|परमार]]' अथवा 'पवार वंश' का नौवाँ यशस्वी राजा था। उसने 1018-1060 ई. तक शासन किया। उसकी राजधानी [[धार]] थी। भोज परमार ने 'नवसाहसाक' अर्थात 'नव विक्रमादित्य' की पदवी धारण की थी। भोज ने बहुत-से युद्ध किए और पूर्णत: अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की, जिससे सिद्ध होता है कि उसमें असाधारण योग्यता थी। यद्यपि उसके जीवन का अधिकांश समय युद्धक्षेत्र में बीता, तथापि उसने अपने राज्य की उन्नति में किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न होने दी। राजा भोज ने मालवा के नगरों व ग्रामों में बहुत-से मंदिर बनवाए, यद्यपि उनमें से अब बहुत कम का पता चलता है। भोज स्वयं एक विद्वान था और कहा जाता है कि उसने [[धर्म]], खगोल विद्या, [[कला]], कोश रचना, भवन निर्माण, [[काव्य]], औषधशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखीं, जो अब भी वर्तमान हैं।
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==परिचय==
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भोज [[परमार वंश]] के नवें राजा थे। परमार<ref>पवार ([[हिन्दी]])/पोवार ([[मराठी]])</ref> वंशीय राजाओं ने [[मालवा]] की राजधानी 'धारा नगरी' ([[धार]]) से आठवीं [[शताब्दी]] से लेकर चौदहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया। राजा भोज [[वाक्पति मुंज]] के छोटे भाई सिंधुराज का पुत्र था। रोहक इसका प्रधानमंत्री और भुवनपाल मंत्री था। कुलचंद्र, साढ़ तथा तरादित्य इसके सेनापति थे, जिनकी सहायता से भोज ने राज्य संचालन सुचारु रूप से किया।
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==साम्राज्य विस्तार==
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अपने चाचा [[वाक्पति मुंज]] की ही भाँति भोज भी [[पश्चिमी भारत]] में एक साम्राज्य स्थापित करना चाहता था और इस इच्छा की पूर्ति के लिये इसे अपने पड़ोसी राज्यों से हर दिशा में युद्ध करना पड़ा। मुंज की मृत्यु शोकजनक परिस्थिति में हो जाने से परमार बहुत ही उत्तेजित थे और इसीलिये भोज चालुक्यों से बदला लेन के विचार से दक्षिण की ओर सेना लेकर चढ़ाई करने को प्रेरित हुआ। उसने दाहल के [[कलचुरी वंश|कलचुरी]] गांगेयदेव तथा [[तंजौर]]<ref>तंच्यावूर</ref> के राजेंद्र चोल से संधि की ओर साथ ही साथ दक्षिण पर आक्रमण भी कर दिया, परंतु तत्कालीन राजा [[जयसिंह द्वितीय चालुक्य|चालुक्य जयसिंह द्वितीय]] ने बहादुरी से सामना किया और अपना राज्य बचा लिया। सन 1044 ई. के कुछ समय बाद [[जयसिंह चालुक्य|जयसिंह]] के पुत्र [[सोमेश्वर द्वितीय]] ने परमारों से फिर शत्रुता कर ली और मालव राज्य पर आक्रमण कर भोज को भागने के लिये बाध्य कर दिय। धारानगरी पर अधिकार कर लेने के बाद उसने आग लगा दी, परंतु कुछ ही दिनों बाद सोमेश्वर ने मालव छोड़ दिया और भोज ने राजधानी में लोटकर फिर सत्ताधिकार प्राप्त कर लिया। सन 1018 ई. के कुछ ही पहले भोज ने इंद्ररथ नामक एक व्यक्ति को, जो संभवत: [[कलिंग]] के गांग राजाओं का सामंत था, पराजित किया।
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==रचनाएँ==
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भोज परमार ने कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था। वह बहुत अच्छा [[कवि]], दार्शनिक और ज्योतिषी भी था। 'सरस्वतीकंठाभरण', 'शृंगारमंजरी', 'चंपूरामायण', 'चारुचर्या', 'तत्वप्रकाश', 'व्यवहारसमुच्चय' आदि अनेक [[ग्रंथ]] उसी के द्वारा लिखे हुए बतलाए जाते हैं। उसकी सभा सदा बड़े-बड़े पंडितों से सुशोभित रहती थी। उनकी पत्नी का नाम 'लीलावती' था, जो बहुत बड़ी विदुषी महिला थी। भोज परमार ने ज्ञान के सभी क्षेत्रों में रचनाएँ कीं। उसने लगभग 84 ग्रन्थों की रचना की थी। उनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-
  
*जनश्रुति है कि भोज परमार ने पुरुष्कों (तुर्कों) को भी पराजित किया था।
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#राजमार्तण्ड (पतंजलि के योगसूत्र की टीका)
*भोज परमार विद्या का पोषक, [[कवि|कवियों]] का संरक्षक और स्वयं भी बहुमुखी विद्वान था।
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#सरस्वतीकण्टाभरण (व्याकरण)
*उसने [[संस्कृत]] में [[छन्द]], [[अलंकार]], योगशास्त्र, गणित ज्योतिष तथा [[वास्तुकला]] आदि विषयों पर गम्भीर पुस्तकें लिखी थीं।
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#सरस्वतीकठाभरण (काव्यशास्त्र)
*भोज ने भोजपुर में एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया था, जिसका क्षेत्रफल 250 वर्ग मील से भी अधिक विस्तृत था।
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#शृंगारप्रकाश (काव्यशास्त्र तथा नाट्यशास्त्र)
*यह सरोवर पन्द्रहवीं शताब्दी तक विद्यमान था, जब उसके तटबन्धों को कुछ स्थानीय शासकों ने काट दिया।
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#तत्त्वप्रकाश (शैवागम पर)
*अपने शासन काल के अंतिम वर्षों में भोज परमार को पराजय का अपयश भोगना पड़ा।
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#वृहद्राजमार्तण्ड (धर्मशास्त्र)
*[[गुजरात]] के [[चालुक्य राजवंश|चालुक्य]] राजा तथा चेदी नरेश की संयुक्त सेनाओं ने लगभग 1060 ई. में भोज परमार को पराजित कर दिया। इसके बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।
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#राजमृगांक (चिकित्सा)
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डॉ. महेश सिंह ने भोज परमार की रचनाओं को विभिन्न विषयों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया है-
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#'''धर्मशास्त्र, राजधर्म तथा राजनीति''' - भुजबुल (निबन्ध) , भुपालपद्धति, भुपालसमुच्चय या कृत्यसमुच्चय, चाणक्यनीतिः या दण्डनीतिः, व्यवहारसमुच्चय, युक्तिकल्पतरु, पुर्तमार्तण्ड, राजमार्तण्ड, राजनीति
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#'''संकलन''' - सुभाषितप्रबन्ध
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#'''शिल्प''' - समराङ्गणसूत्रधार
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#'''खगोल एवं ज्योतिष''' - आदित्यप्रतापसिद्धान्त, राजमार्तण्ड, राजमृगाङ्क, विद्वज्ञानवल्लभ (प्रश्नविज्ञान)
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#'''संगीत''' - संगीतप्रकाश
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#'''दर्शन''' - राजमार्तण्ड (योगसूत्र की टीका), राजमार्तण्द (वेदान्त), सिद्धान्तसंग्रह, सिद्धान्तसारपद्धति, शिवतत्त्व या शिवतत्त्वप्रकाशिका
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#'''प्राकृत काव्य''' - कुर्माष्टक
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#'''संस्कृत काव्य एवं गद्य''' - चम्पूरामायण, महाकालीविजय, शृंगारमञ्जरी, विद्याविनोद
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#'''व्याकरण''' - शब्दानुशासन
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#'''कोश''' - नाममालिका
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#'''चिकित्साविज्ञान''' - आयुर्वेदसर्वस्व, राजमार्तण्ड या योगसारसंग्रह राजमृगारिका, शालिहोत्र, विश्रान्त विद्याविनोद
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====महानता====
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*जब भोज जीवित थे, तब उनकी महानता के बारे में कहा जाता था कि-
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<blockquote><poem>अद्य धारा सदाधारा सदालम्बा सरस्वती।
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पण्डिता मण्डिताः सर्वे भोजराजे भुवि स्थिते॥</poem></blockquote>
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अर्थात "आज जब भोजराज धरती पर स्थित हैं तो धारा नगरी सदाधारा (अच्छे आधार वाली) है; सरस्वती को सदा आलम्ब मिला हुआ है; सभी पंडित आदृत हैं।"
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*जब भोज परमार का देहान्त हुआ तो कहा गया कि-
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<blockquote><poem>अद्य धारा निराधारा निरालंबा सरस्वती।
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पण्डिताः खण्डिताः: सर्वे भोजराजे दिवं गते॥</poem></blockquote>
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अर्थात "आज भोजराज के दिवंगत हो जाने से धारा नगरी निराधार हो गयी है; सरस्वती बिना आलम्ब की हो गयी है और सभी पंडित खंडित हैं।"
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==पराजय तथा मृत्यु==
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भोज ने भोजपुर में एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया था, जिसका क्षेत्रफल 250 वर्ग मील से भी अधिक विस्तृत था। यह सरोवर पन्द्रहवीं [[शताब्दी]] तक विद्यमान था, जब उसके तटबन्धों को कुछ स्थानीय शासकों ने काट दिया। अपने शासन काल के अंतिम वर्षों में भोज परमार को पराजय का अपयश भोगना पड़ा। [[गुजरात]] के [[चालुक्य राजवंश|चालुक्य]] राजा तथा चेदी नरेश की संयुक्त सेनाओं ने लगभग 1060 ई. में भोज परमार को पराजित कर दिया। इसके बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।
  
 
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Disamb2.jpg भोज एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- भोज (बहुविकल्पी)

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भोज परमार मालवा के 'परमार' अथवा 'पवार वंश' का नौवाँ यशस्वी राजा था। उसने 1018-1060 ई. तक शासन किया। उसकी राजधानी धार थी। भोज परमार ने 'नवसाहसाक' अर्थात 'नव विक्रमादित्य' की पदवी धारण की थी। भोज ने बहुत-से युद्ध किए और पूर्णत: अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की, जिससे सिद्ध होता है कि उसमें असाधारण योग्यता थी। यद्यपि उसके जीवन का अधिकांश समय युद्धक्षेत्र में बीता, तथापि उसने अपने राज्य की उन्नति में किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न होने दी। राजा भोज ने मालवा के नगरों व ग्रामों में बहुत-से मंदिर बनवाए, यद्यपि उनमें से अब बहुत कम का पता चलता है। भोज स्वयं एक विद्वान था और कहा जाता है कि उसने धर्म, खगोल विद्या, कला, कोश रचना, भवन निर्माण, काव्य, औषधशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखीं, जो अब भी वर्तमान हैं।

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परिचय

भोज परमार वंश के नवें राजा थे। परमार[1] वंशीय राजाओं ने मालवा की राजधानी 'धारा नगरी' (धार) से आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया। राजा भोज वाक्पति मुंज के छोटे भाई सिंधुराज का पुत्र था। रोहक इसका प्रधानमंत्री और भुवनपाल मंत्री था। कुलचंद्र, साढ़ तथा तरादित्य इसके सेनापति थे, जिनकी सहायता से भोज ने राज्य संचालन सुचारु रूप से किया।

साम्राज्य विस्तार

अपने चाचा वाक्पति मुंज की ही भाँति भोज भी पश्चिमी भारत में एक साम्राज्य स्थापित करना चाहता था और इस इच्छा की पूर्ति के लिये इसे अपने पड़ोसी राज्यों से हर दिशा में युद्ध करना पड़ा। मुंज की मृत्यु शोकजनक परिस्थिति में हो जाने से परमार बहुत ही उत्तेजित थे और इसीलिये भोज चालुक्यों से बदला लेन के विचार से दक्षिण की ओर सेना लेकर चढ़ाई करने को प्रेरित हुआ। उसने दाहल के कलचुरी गांगेयदेव तथा तंजौर[2] के राजेंद्र चोल से संधि की ओर साथ ही साथ दक्षिण पर आक्रमण भी कर दिया, परंतु तत्कालीन राजा चालुक्य जयसिंह द्वितीय ने बहादुरी से सामना किया और अपना राज्य बचा लिया। सन 1044 ई. के कुछ समय बाद जयसिंह के पुत्र सोमेश्वर द्वितीय ने परमारों से फिर शत्रुता कर ली और मालव राज्य पर आक्रमण कर भोज को भागने के लिये बाध्य कर दिय। धारानगरी पर अधिकार कर लेने के बाद उसने आग लगा दी, परंतु कुछ ही दिनों बाद सोमेश्वर ने मालव छोड़ दिया और भोज ने राजधानी में लोटकर फिर सत्ताधिकार प्राप्त कर लिया। सन 1018 ई. के कुछ ही पहले भोज ने इंद्ररथ नामक एक व्यक्ति को, जो संभवत: कलिंग के गांग राजाओं का सामंत था, पराजित किया।

रचनाएँ

भोज परमार ने कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था। वह बहुत अच्छा कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी भी था। 'सरस्वतीकंठाभरण', 'शृंगारमंजरी', 'चंपूरामायण', 'चारुचर्या', 'तत्वप्रकाश', 'व्यवहारसमुच्चय' आदि अनेक ग्रंथ उसी के द्वारा लिखे हुए बतलाए जाते हैं। उसकी सभा सदा बड़े-बड़े पंडितों से सुशोभित रहती थी। उनकी पत्नी का नाम 'लीलावती' था, जो बहुत बड़ी विदुषी महिला थी। भोज परमार ने ज्ञान के सभी क्षेत्रों में रचनाएँ कीं। उसने लगभग 84 ग्रन्थों की रचना की थी। उनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  1. राजमार्तण्ड (पतंजलि के योगसूत्र की टीका)
  2. सरस्वतीकण्टाभरण (व्याकरण)
  3. सरस्वतीकठाभरण (काव्यशास्त्र)
  4. शृंगारप्रकाश (काव्यशास्त्र तथा नाट्यशास्त्र)
  5. तत्त्वप्रकाश (शैवागम पर)
  6. वृहद्राजमार्तण्ड (धर्मशास्त्र)
  7. राजमृगांक (चिकित्सा)

डॉ. महेश सिंह ने भोज परमार की रचनाओं को विभिन्न विषयों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया है-

  1. धर्मशास्त्र, राजधर्म तथा राजनीति - भुजबुल (निबन्ध) , भुपालपद्धति, भुपालसमुच्चय या कृत्यसमुच्चय, चाणक्यनीतिः या दण्डनीतिः, व्यवहारसमुच्चय, युक्तिकल्पतरु, पुर्तमार्तण्ड, राजमार्तण्ड, राजनीति
  2. संकलन - सुभाषितप्रबन्ध
  3. शिल्प - समराङ्गणसूत्रधार
  4. खगोल एवं ज्योतिष - आदित्यप्रतापसिद्धान्त, राजमार्तण्ड, राजमृगाङ्क, विद्वज्ञानवल्लभ (प्रश्नविज्ञान)
  5. संगीत - संगीतप्रकाश
  6. दर्शन - राजमार्तण्ड (योगसूत्र की टीका), राजमार्तण्द (वेदान्त), सिद्धान्तसंग्रह, सिद्धान्तसारपद्धति, शिवतत्त्व या शिवतत्त्वप्रकाशिका
  7. प्राकृत काव्य - कुर्माष्टक
  8. संस्कृत काव्य एवं गद्य - चम्पूरामायण, महाकालीविजय, शृंगारमञ्जरी, विद्याविनोद
  9. व्याकरण - शब्दानुशासन
  10. कोश - नाममालिका
  11. चिकित्साविज्ञान - आयुर्वेदसर्वस्व, राजमार्तण्ड या योगसारसंग्रह राजमृगारिका, शालिहोत्र, विश्रान्त विद्याविनोद

महानता

  • जब भोज जीवित थे, तब उनकी महानता के बारे में कहा जाता था कि-

अद्य धारा सदाधारा सदालम्बा सरस्वती।
पण्डिता मण्डिताः सर्वे भोजराजे भुवि स्थिते॥

अर्थात "आज जब भोजराज धरती पर स्थित हैं तो धारा नगरी सदाधारा (अच्छे आधार वाली) है; सरस्वती को सदा आलम्ब मिला हुआ है; सभी पंडित आदृत हैं।"

  • जब भोज परमार का देहान्त हुआ तो कहा गया कि-

अद्य धारा निराधारा निरालंबा सरस्वती।
पण्डिताः खण्डिताः: सर्वे भोजराजे दिवं गते॥

अर्थात "आज भोजराज के दिवंगत हो जाने से धारा नगरी निराधार हो गयी है; सरस्वती बिना आलम्ब की हो गयी है और सभी पंडित खंडित हैं।"

पराजय तथा मृत्यु

भोज ने भोजपुर में एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया था, जिसका क्षेत्रफल 250 वर्ग मील से भी अधिक विस्तृत था। यह सरोवर पन्द्रहवीं शताब्दी तक विद्यमान था, जब उसके तटबन्धों को कुछ स्थानीय शासकों ने काट दिया। अपने शासन काल के अंतिम वर्षों में भोज परमार को पराजय का अपयश भोगना पड़ा। गुजरात के चालुक्य राजा तथा चेदी नरेश की संयुक्त सेनाओं ने लगभग 1060 ई. में भोज परमार को पराजित कर दिया। इसके बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पवार (हिन्दी)/पोवार (मराठी)
  2. तंच्यावूर

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