राधाबाई

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राधाबाई बालाजी विश्वनाथ की पत्नी और बाजीराव प्रथम की माता थी। राधाबाई में त्याग, दृढ़ता, कार्यकुशलता, व्यवहारचातुर्य और उदारता आदि सभी गुण विद्यमान थे। वह राज्य के विभिन्न कार्यों में बाजीराव को उचित सलाह देती थी। मस्तानी और बाजीराव के प्रेम संबंध को उसने कोई विशेष महत्व कभी नहीं दिया, अपितु सदा ही यह प्रयत्न किया कि परिवार में फूट की स्थिति न उत्पन्न हो और पेशवा परिवार का सम्मान भी बना रहे।

परिचय

राधाबाई नेवास के बर्वे परिवार की कन्या थी, जिसका विवाह बालाजी विश्वनाथ के साथ हुआ था। इनके पिता का नाम डुबेरकर अंताजी मल्हार बर्वे था। राधाबाई के पिता विश्वनाथ भट्ट सिद्दियों के अधीन श्रीवर्धन गाँव के देशमुख थे। भारत के पश्चिमी सिद्दियों से न पटने के कारण विश्वनाथ और बालाजी श्रीवर्धन गाँव छोड़कर बेला नामक स्थान पर भानु भाइयों के साथ रहने लगे थे। राधाबाई भी अपने परिवार के साथ बेला में रहने लगी। कुछ समय पश्चात् बालाजी डंडाराजपुरी के देशमुख हो गए। 1699 ई. से 1708 ई. तक वे पूना के सर-सूबेदार रहे।

संतान

राधाबाई एवं बालाजी विश्वनाथ के दो पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं। इनके बड़े पुत्र बाजीराव प्रथम का जन्म 18 अगस्त, 1700 ई. में और दूसरे पुत्र चिमाजी अप्पा का जन्म 1710 ई. में हुआ। इनकी पुत्रियों के नाम अनुबाई और भिऊबाई थे।

कार्यकुशल महिला

बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु उनके पुत्र बाजीराव प्रथम पेशवा बनाए गए। राधाबाई राज्य के विभिन्न कार्यों में बाजीराव को उचित सलाह देती थी। इसी समय मस्तानी और बाजीराव का संबंध सरदारों की आलोचना का विषय बन चुका था। बाजीराव के आलोचकों का वर्ताव उस समय और तीव्र हुआ, जब पेशवा परिवार में रघुनाथराव का उपनयन और सदाशिवराव का विवाह होने वाला था। पंडितों ने किसी भी ऐसे कार्य में भाग न लेने का निर्णय किया। राधाबाई ने बाजीराव को विशेष रूप से सतर्क रहने के लिए लिखा। अंतत: राधाबाई उपर्युक्त कार्य कराने में सफल हुई। मस्तानी और बाजीराव के संबंध को विशेष महत्व कभी नहीं दिया अपितु सदा ही यह प्रयत्न किया कि परिवार में फूट की स्थिति न उत्पन्न हो और पेशवा परिवार का सम्मान भी बना रहे। चिमाजी अप्पा ने मस्तानी को कैद किया। राधाबाई ने मस्तानी को कैद से छुड़ाया और वह बाजीराव के पास आ गई। बाजीराव ने भी राधाबाई की आज्ञाओं का पालन किया।

1740 ई. के 28 अप्रैल को बाजीराव प्रथम की मृत्यु से राधाबाई को बहुत दु:ख हुआ। पाँच माह पश्चात् ही चिमाजी अप्पा की भी मृत्यु हो गई। अब राधाबाई का उत्साह शिथिल पड़ गया। फिर भी, जब कभी आवश्यकता पड़ती थी, वे परिवार की सेवा और राजकीय कार्यों में बालाजी बाजीराव को उचित परामर्श देती थी। 1752 ई. में जब पेशवा दक्षिण की ओर गए हुए थे, राधाबाई ने ताराबाई और उमाबाई की सम्मिलित सेना को पूना की ओर बढ़ने से रोकने का उपाय किया। दूसरे अवसर पर उन्होंने बाबूजी नाइक को पेशवा बालाजी के विरुद्ध अनशन करने से रोका।

मृत्यु

राधाबाई की मृत्यु 20 मार्च, सन 1753 ई. में हुई। राधाबाई ने तत्कालीन राजनीति में सक्रिय भाग लिया था। उसके व्यवहार में कभी भी कटुता नहीं आ पाई। अपने परिवार को साधारण स्थिति से पेशवा पद प्राप्त करते हुए उसने देखा था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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