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*जैन धर्म के मतानुसार इनके गणधरों की कुल संख्या 66 थी, जिनमें सुभूम स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
 
*भगवान वासुपूज्य ने फाल्गुन [[अमावस्या]] तिथि को चम्पापुरी में ही दीक्षा प्राप्ति की।
 
*भगवान वासुपूज्य ने फाल्गुन [[अमावस्या]] तिथि को चम्पापुरी में ही दीक्षा प्राप्ति की।
*दीक्षा प्राप्ति के पश्चात एक माह तक कठिन तप करने के बाद चम्पापुरी में ही 'पाटल' वृक्ष के नीचे वासुपूज्य को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी।
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*दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् एक माह तक कठिन तप करने के बाद चम्पापुरी में ही 'पाटल' वृक्ष के नीचे वासुपूज्य को '[[कैवल्य ज्ञान]]' की प्राप्ति हुई थी।
 
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07:33, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

वासुपूज्य को जैन धर्म के बारहवें तीर्थंकर के रूप में जाना जाता है। वासुपूज्य स्वामी का जन्म चम्पापुरी के इक्ष्वाकु वंश में फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शतभिषा नक्षत्र में हुआ था। इनकी माता का नाम जया देवी और पिता का नाम राजा वासुपूज्य था। इनके शरीर का वर्ण लाल और चिह्न भैंसा था।

  • वासुपूज्य के यक्ष का नाम षणमुख और यक्षिणी का नाम गौरी था।
  • जैन धर्म के मतानुसार इनके गणधरों की कुल संख्या 66 थी, जिनमें सुभूम स्वामी इनके प्रथम गणधर थे।
  • भगवान वासुपूज्य ने फाल्गुन अमावस्या तिथि को चम्पापुरी में ही दीक्षा प्राप्ति की।
  • दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् एक माह तक कठिन तप करने के बाद चम्पापुरी में ही 'पाटल' वृक्ष के नीचे वासुपूज्य को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी।
  • वासुपूज्य स्वामी ने आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को चम्पापुरी में ही निर्वाण को प्राप्त किया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री वासुपूज्य जी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 फ़रवरी, 2012।

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