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'''विजया मेहता''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vijaya Mehta'' ; जन्म- [[4 नवम्बर]], [[1934]], [[बड़ौदा]], [[गुजरात]]) [[भारतीय सिनेमा]] की एक उच्च श्रेणी की महिला फ़िल्मकार हैं। उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय भी किया है। विजया मेहता [[रंगमंच]] से फ़िल्मी दुनिया में आई थीं। फ़िल्म माध्यम पर उनकी गहरी पकड़ है। | '''विजया मेहता''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vijaya Mehta'' ; जन्म- [[4 नवम्बर]], [[1934]], [[बड़ौदा]], [[गुजरात]]) [[भारतीय सिनेमा]] की एक उच्च श्रेणी की महिला फ़िल्मकार हैं। उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय भी किया है। विजया मेहता [[रंगमंच]] से फ़िल्मी दुनिया में आई थीं। फ़िल्म माध्यम पर उनकी गहरी पकड़ है। | ||
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फ़िल्म 'राव साहब' परम्परा और आधुनिकता के द्वंद्व को कई पहलुओं से उकेरती है। यह उस काल ([[1910]]-[[1920]] ई.) की [[कहानी]] है, जब [[महाराष्ट्र]] के ठेठ परम्परावादी माहौल में कई युवक [[इंग्लैंड]] से शिक्षा ग्रहण कर स्वदेश लौट रहे थे। वहां के आधुनिक समाज से क्रांति के बीज वे अपने साथ लेकर आए थे। लेकिन यहां की [[मिट्टी]] उनके लिये उपयुक्त नहीं थी। अत: उनकी यह क्रांतिकारिता कोरी वैचारिक थी। कामकाज या कहें कृत्य उनके परम्परावादी ही थे। ऐसा ही एक विचार था- 'विधवा विवाह', जिसका वे खुलकर समर्थन नहीं कर सकते थे। फ़िल्म 'राव साहब' जयंत दलवी के प्रसिद्ध मराठी [[नाटक]] 'बैरिस्टर' पर आधारित थी। इस नाटक का [[रंगमंच]] पर असफलतापूर्वक मंचन स्वयं विजया मेहता कर चुकी हैं। मंच पर बैरिस्टर की भूमिका विक्रम गोखले ने की थी, जबकि फ़िल्म में अनुपम खेर ने भूमिका निभाई थी। इसी नाटक में युवा विधवा की भूमिका सुहास जोशी ने निभाई, जबकि फ़िल्म में तन्वी आकामी ने निभाई थी। | फ़िल्म 'राव साहब' परम्परा और आधुनिकता के द्वंद्व को कई पहलुओं से उकेरती है। यह उस काल ([[1910]]-[[1920]] ई.) की [[कहानी]] है, जब [[महाराष्ट्र]] के ठेठ परम्परावादी माहौल में कई युवक [[इंग्लैंड]] से शिक्षा ग्रहण कर स्वदेश लौट रहे थे। वहां के आधुनिक समाज से क्रांति के बीज वे अपने साथ लेकर आए थे। लेकिन यहां की [[मिट्टी]] उनके लिये उपयुक्त नहीं थी। अत: उनकी यह क्रांतिकारिता कोरी वैचारिक थी। कामकाज या कहें कृत्य उनके परम्परावादी ही थे। ऐसा ही एक विचार था- 'विधवा विवाह', जिसका वे खुलकर समर्थन नहीं कर सकते थे। फ़िल्म 'राव साहब' जयंत दलवी के प्रसिद्ध मराठी [[नाटक]] 'बैरिस्टर' पर आधारित थी। इस नाटक का [[रंगमंच]] पर असफलतापूर्वक मंचन स्वयं विजया मेहता कर चुकी हैं। मंच पर बैरिस्टर की भूमिका विक्रम गोखले ने की थी, जबकि फ़िल्म में अनुपम खेर ने भूमिका निभाई थी। इसी नाटक में युवा विधवा की भूमिका सुहास जोशी ने निभाई, जबकि फ़िल्म में तन्वी आकामी ने निभाई थी। | ||
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10:22, 21 दिसम्बर 2014 का अवतरण
विजया मेहता
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पूरा नाम | विजया मेहता |
जन्म | 4 नवम्बर, 1934 |
जन्म भूमि | बड़ौदा, गुजरात |
पति/पत्नी | हरिन खोटे, फ़ारुख मेहता |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | भारतीय सिनेमा तथा रंगमंच |
शिक्षा | स्नातक |
विद्यालय | 'मुम्बई विश्वविद्यालय' |
पुरस्कार-उपाधि | सहायक अभिनेत्री का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' (1986), 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' (1975) |
प्रसिद्धि | फ़िल्मकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | विजया मेहता की जिस फ़िल्म से हिन्दी फ़िल्म-जगत में सही अर्थों में पहचान बनी, वह थी- 'राव साहब'। सन 1986 में प्रदर्शित यह फ़िल्म बतौर निर्देशिका उनकी पहली फ़िल्म थी। |
विजया मेहता (अंग्रेज़ी: Vijaya Mehta ; जन्म- 4 नवम्बर, 1934, बड़ौदा, गुजरात) भारतीय सिनेमा की एक उच्च श्रेणी की महिला फ़िल्मकार हैं। उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय भी किया है। विजया मेहता रंगमंच से फ़िल्मी दुनिया में आई थीं। फ़िल्म माध्यम पर उनकी गहरी पकड़ है।
जन्म तथा शिक्षा
विजया मेहता का जन्म 4 नवम्बर, 1934 को ब्रिटिश शासन काल में बड़ौदा (गुजरात) में हुआ था। उन्होंने 'मुम्बई विश्वविद्यालय' से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। इसके बाद उन्होंने दिल्ली में इब्राहीम अलकाज़ी के साथ थियेटर का अध्ययन किया।
विवाह
विजया मेहता का प्रथम विवाह हरिन खोटे के साथ हुआ था, जो अपने समय की जाने मानी अभिनेत्री दुर्गा खोटे के पुत्र थे। लेकिन कुछ समय बाद ही हरिन खोटे का निधन हो गया। इसके बाद विजया मेहता ने फ़ारुख मेहता के साथ दूसरा विवाह कर लिया।
फ़िल्म निर्देशन
रंगमंच से मंझकर आई विजया मेहता की फ़िल्म-माध्यम पर गहरी पकड़ है। उनकी यह पकड़ कितनी पुख्ता है, यह उनकी फ़िल्म्स देखकर जाना जा सकता है। विजया मेहता की जिस फ़िल्म से हिन्दी फ़िल्म-जगत में सही अर्थों में पहचान बनी, वह थी- 'राव साहब'। सन 1986 में प्रदर्शित यह फ़िल्म बतौर निर्देशिका उनकी पहली फ़िल्म थी।[1]
फ़िल्म 'राव साहब' परम्परा और आधुनिकता के द्वंद्व को कई पहलुओं से उकेरती है। यह उस काल (1910-1920 ई.) की कहानी है, जब महाराष्ट्र के ठेठ परम्परावादी माहौल में कई युवक इंग्लैंड से शिक्षा ग्रहण कर स्वदेश लौट रहे थे। वहां के आधुनिक समाज से क्रांति के बीज वे अपने साथ लेकर आए थे। लेकिन यहां की मिट्टी उनके लिये उपयुक्त नहीं थी। अत: उनकी यह क्रांतिकारिता कोरी वैचारिक थी। कामकाज या कहें कृत्य उनके परम्परावादी ही थे। ऐसा ही एक विचार था- 'विधवा विवाह', जिसका वे खुलकर समर्थन नहीं कर सकते थे। फ़िल्म 'राव साहब' जयंत दलवी के प्रसिद्ध मराठी नाटक 'बैरिस्टर' पर आधारित थी। इस नाटक का रंगमंच पर असफलतापूर्वक मंचन स्वयं विजया मेहता कर चुकी हैं। मंच पर बैरिस्टर की भूमिका विक्रम गोखले ने की थी, जबकि फ़िल्म में अनुपम खेर ने भूमिका निभाई थी। इसी नाटक में युवा विधवा की भूमिका सुहास जोशी ने निभाई, जबकि फ़िल्म में तन्वी आकामी ने निभाई थी।
पुरस्कार व सम्मान
नाटक और फ़िल्म दोनों ही जगह विधवा मौसी की भूमिका स्वयं निर्देशिका विजया मेहता ने की थी। उल्लेखनीय है कि 'राव साहब' को न सिर्फ दर्शकों और समीक्षकों की सराहना मिली, बल्कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह बहुप्रशंसित और पुरस्कृत भी हुई थी। इस फ़िल्म के लिए विजया को सहायक अभिनेत्री का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' (1986) मिला था।[1] इससे पहले वर्ष 1975 में उन्हें 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' का पुरस्कार भी मिला था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 परम्परा और आधुनिकता का द्वन्द्व (हिन्दी) डेली न्यूज। अभिगमन तिथि: 21 दिसम्बर, 2014।
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