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एकाग्नि अस्त्र

यह वे शस्त्र हैं, जो यान्त्रिक उपाय से फेंके जाते हैं; ये अस्त्र नलिका आदि हैं। नाना प्रकार के अस्त्र इसके अन्तर्गत आते हैं। अग्नि, गैस, विद्युत से भी ये अस्त्र छोडे जाते हैं। प्रमाणों की ज़रूरत नहीं है कि प्राचीन आर्य गोला-बारूद और भारी तोपें, टैंक बनाने में भी कुशल थे। इन अस्त्रों के लिये देवी और देवताओं की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये भयकंर अस्त्र हैं और स्वयं ही अग्नि, गैस या विद्युत आदि से चलते हैं। ये वे आयुध जो मन्त्रों से चलाये जाते हैं- ये दैवी हैं। प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मन्त्र-तन्त्र के द्वारा उसका संचालन होता है। वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मान्त्रिक-अस्त्र कहते हैं।


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