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'''ओरियेंटल रिसर्च इंस्टीटयूट''' [[कर्नाटक]] राज्य के मैसूर नगर में स्थित है। इस इंस्टीट्यूट अथवा संग्रहालय को संक्षिप्त रूप में ओआरआई (''Oriental Research Institute'') कहा जाता है।  
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'''ओरियेंटल रिसर्च इंस्टीटयूट''' [[कर्नाटक]] राज्य के [[मैसूर]] नगर में स्थित है। इस इंस्टीट्यूट अथवा संग्रहालय को संक्षिप्त रूप में ओआरआई (''Oriental Research Institute'') भी कहा जाता है।  
 
==स्थापना==
 
==स्थापना==
वर्ष [[1891]] में [[मैसूर]] के शासक चामराज वाडेयार ने भी यहां एक संग्रहालय की स्थापना की थी। इसे ओआरआई के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार ने करवाई थी। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य मैसूर के विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखी जाने वाली उत्कृष्ट पुस्तकों का संरक्षणकरना तथा अगली पीढ़ी के हाथों तक उन्हें सुरक्षित पहुंचाना था। इस समय इस संग्रहालय में 60 हजार से अधिक पांडुलिपियों तथा 30 हजार से अधिक उत्कृषट स्तर की किताबों का संग्रह उपलब्ध है। इस संग्रहालय की तरफ प्रत्येक वर्ष विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में आकर्षित होते हैं।<ref>{{cite web |url=http://dakshinbharatrashtramat.blogspot.in/2009/08/blog-post_31.html |title=संग्रहालयों का भी शहर है मैसूर |accessmonthday=1 जनवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher= दक्षिण भारत राष्ट्रमत|language=हिंदी }} </ref>
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11:43, 21 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

ओरियेंटल रिसर्च इंस्टीटयूट, मैसूर
ओरियेंटल रिसर्च इंस्टीटयूट
विवरण इस इंस्टीट्यूट अथवा संग्रहालय को संक्षिप्त रूप में ओआरआई (Oriental Research Institute) कहा जाता है।
राज्य कर्नाटक
नगर मैसूर
स्थापना 20 जून 1887 में चामराज वाडेयार द्वारा
प्रसिद्धि इस संग्रहालय में 60 हज़ार से अधिक पांडुलिपियों तथा 30 हज़ार से अधिक उत्कृषट स्तर की किताबों का संग्रह उपलब्ध है।
Map-icon.gif गूगल मानचित्र

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ओरियेंटल रिसर्च इंस्टीटयूट कर्नाटक राज्य के मैसूर नगर में स्थित है। इस इंस्टीट्यूट अथवा संग्रहालय को संक्षिप्त रूप में ओआरआई (Oriental Research Institute) भी कहा जाता है।

स्थापना

वर्ष 1887 में मैसूर के शासक चामराज वाडेयार ने भी यहां एक संग्रहालय की स्थापना की थी। इसे ओआरआई के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना तत्कालीन अंग्रेज़ सरकार ने करवाई थी। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य मैसूर के विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखी जाने वाली उत्कृष्ट पुस्तकों का संरक्षणकरना तथा अगली पीढ़ी के हाथों तक उन्हें सुरक्षित पहुंचाना था। इस संग्रहालय में 60 हज़ार से अधिक पांडुलिपियों तथा 30 हज़ार से अधिक उत्कृषट स्तर की किताबों का संग्रह उपलब्ध है। इस संग्रहालय की तरफ प्रत्येक वर्ष विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में आकर्षित होते हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संग्रहालयों का भी शहर है मैसूर (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) दक्षिण भारत राष्ट्रमत। अभिगमन तिथि: 1 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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