ओलम्पिक खेल

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ओलम्पिक खेल
ओलंपिक का प्रतीक चिह्न
विवरण ओलम्पिक खेल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली बहु-खेल प्रतियोगिता है।
सर्वोच्च नियंत्रण निकाय अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी या IOC)
शुरुआत सन 1896 में (एथेंस)
प्रकार ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेल, शीतकालीन ओलम्पिक खेल, पैरालम्पिक खेल
अन्य जानकारी प्राचीन ओलंपिक में मुक्केबाज़ी, कुश्ती, घुड़सवारी के खेल खेले जाते थे। खेल के विजेता को कविता और मूर्तियों के जरिए प्रशंसित किया जाता था। हर चार साल पर होने वाले ओलंपिक खेल के वर्ष को ओलंपियाड के नाम से भी जाना जाता था।

ओलम्पिक खेल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली बहु-खेल प्रतियोगिता है। आधुनिक ओलम्पिक खेल एथेंस में सन 1896 में आरम्भ किये गये। इन खेलों में भारत स्वर्ण पदक भी जीत चुका है। ओलम्पिक खेल प्रत्येक चार वर्ष बाद विश्व के किसी प्रसिद्ध स्थान पर आयोजित किये जाते हैं। सन 2008 के ओलम्पिक खेल चीन के बीजिंग तथा सन 2012 के ओलंपिक खेल ब्रिटेन के लंदन में आयोजित किए गए।

ओलम्पिक का इतिहास

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प्राचीन काल में शांति के समय योद्धाओं के बीच प्रतिस्पर्धा के साथ खेलों का विकास हुआ। दौड़, मुक्केबाजी, कुश्ती और रथों की दौड़ सैनिक प्रशिक्षण का हिस्सा हुआ करते थे। इनमें से सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले योद्धा प्रतिस्पर्धी खेलों में अपना दमखम दिखाते थे। समाचार एजेंसी ‘आरआईए नोवोस्ती’ के अनुसार प्राचीन ओलंपिक खेलों का आयोजन 1200 साल पूर्व योद्धा-खिलाड़ियों के बीच हुआ था। हालांकि ओलंपिक का पहला आधिकारिक आयोजन 776 ईसा पूर्व में हुआ था, जबकि आखिरी बार इसका आयोजन 394 ईस्वी में हुआ। इसके बाद रोम के सम्राट थियोडोसिस ने इसे मूर्तिपूजा वाला उत्सव करार देकर इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बाद लगभग डेढ़ सौ सालों तक इन खेलों को भुला दिया गया। हालांकि मध्यकाल में अभिजात्य वर्गों के बीच अलग-अलग तरह की प्रतिस्पर्धाएं होती रहीं। लेकिन इन्हें खेल आयोजन का दर्जा नहीं मिल सका। कुल मिलाकर रोम और ग्रीस जैसी प्रभुत्वादी सभ्यताओं के अभाव में इस काल में लोगों के पास खेलों के लिए समय नहीं था। 19वीं शताब्दी में यूरोप में सर्वमान्य सभ्यता के विकास के साथ पुरातन काल की इस परंपरा को फिर से जिंदा किया गया। इसका श्रेय फ्रांस के अभिजात पुरुष बैरों पियरे डी कुवर्तेन को जाता है। कुवर्तेन ने दो लक्ष्य रखे, एक तो खेलों को अपने देश में लोकप्रिय बनाना और दूसरा, सभी देशों को एक शांतिपूर्ण प्रतिस्पर्धा के लिए एकत्रित करना। कुवर्तेन मानते थे कि खेल युद्धों को टालने के सबसे अच्छे माध्यम हो सकते हैं। कुवर्तेन की इस परिकल्पना के आधार पर वर्ष 1896 में पहली बार आधुनिक ओलंपिक खेलों का आयोजन ग्रीस (यूनान) की राजधानी एथेंस में हुआ। शुरुआती दशक में ओलंपिक आंदोलन अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करता रहा क्योंकि कुवर्तेन की इस परिकल्पना को किसी भी बड़ी शक्ति का साथ नहीं मिल सका था। एक बार तो ऐसा लगा कि वित्तीय समस्याओं के कारण एथेंस से ये खेल निकलकर हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट चले जाएंगे।

ओलम्पिक के प्रतीक

ओलम्पिक वलय

एक-दूसरे से जुड़े हुए 5 वलय (Rings) पांच महाद्वीपों, उत्तरी अमेरिका तथा दक्षिणी अमेरिका को एक ही वलय (रिंग) में दर्शाया गया है, ओलम्पिक के प्रतीक हैं। यह खेलों के माध्यम से सभी महाद्वीपों के लोगों को एकता के सूत्र में पिरोने का प्रतीक हैं। नीले, पीले, काले, हरे और लाल रंग के ये 5 वलय एक दूसरे में गुंथे हुए हैं। इसे आधुनिक ओलम्पिक के संस्थापक पियरे बारोन डे कुबेर्टिन ने बनाया था। ये पांच घेरे उत्साह, आस्था, विजय, काम की नैतिकता और खेल भावना को दिखाते हैं। पहली बार साल 1920 के एंटवर्प ओलम्पिक खेलों में इन्हें आधिकारिक तौर पर प्रयोग में लाया गया, लेकिन 1936 के ओलम्पिक खेलों में बड़े पैमाने पर इसका उपयोग होने से इसे ज्यादा लोकप्रियता मिलनी शुरू हुई।

ओलंपिक ध्वज

ओलंपिक ध्वज

प्रत्येक ओलम्पिक खेलों के समापन समारोह के दौरान मेजबान शहर की तरफ से अगले आयोजित शहर को ओलम्पिक ध्वज प्रदान किया जाता है। पहली बार 1920 के ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेलों में बेल्जियम के शहर एंटवर्प की तरफ से अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक संघ को ओलम्पिक ध्वज दिया गया। खेलों की समाप्ति पर ये ध्वज नहीं मिल सका और इसलिए 1924 के ओलम्पिक खेलों के लिए दोबारा ध्वज बनाया गया, लेकिन फिर भी इसे 'एंटवर्प ध्वज' कहा गया और उसके बाद से ये अगले आयोजित शहर को दिया जाने लगा। ओलम्पिक ध्वज में श्वेत पृष्ठभूमि पर 5 रंगीन छल्ले यानि ओलम्पिक वलय को दर्शाया जाता है और यह ध्वज खेल के सभी समारोहों में फहराया जाता है। इस ध्वज में

  1. नीले रंग का वलय यूरोप को प्रदर्शित करता है।  
  2. काले रंग का वलय अफ़्रीका को प्रदर्शित करता है।
  3. लाल रंग का वलय अमेरिका को प्रदर्शित करता है
  4. पीले रंग का वलय एशिया को प्रदर्शित करता है
  5. हरे रंग का वलय ऑस्ट्रेलिया को प्रदर्शित करता है

ओलम्पिक मशाल

ओलम्पिक ज्वाला या मशाल ओलम्पिक खेलों का एक प्रतीक है। बहुत समय पहले ओलम्पिया, ग्रीस में प्राचीन ओलम्पिक के आयोजन के समय खेलों के सफलतापूर्वक समापन के लिए अग्नि देवता की प्रार्थना की गई थी तथा एक मशाल भी जलाई गई थी। यह परंपरा आज भी जारी है। हर बार के खेलों के लिए नई मशाल बनायी जाती है। ओलम्पिक खेलों की प्रतीक मशाल की लौ पवित्र मानी जाती है, क्योंकि सूर्य की किरणों को लेंस से गुजारकर अग्नि प्रज्जवलित होती है, जो मशाल को रोशन करती है। इसे फिर कलश में रखा जाता है और फिर इसे उस स्टेडियम में ले जाया जाता है जहां पहली बार ओलंपिक खेल हुए थे। यह मशाल ओलंपिक खेलों के आगाज से पहले अपनी यात्रा खत्म कर मेजबान शहर में पहुंचती है। आधुनिक ओलंपिक की बात करें तो 1936 के बर्लिन ओलंपिक में पहली बार मशाल यात्रा शुरू हुई। 1952 के ओस्लो ओलंपिक में मशाल ने पहली बार हवाई मार्ग से यात्रा की। 1956 के स्कॉटहोम ओलंपिक में घोड़े की पीठ पर शाल यात्रा सम्पन्न की गई। सन 1960 के रोम ओलंपिक में पहली बार मशाल यात्रा का टेलीविजन प्रसारण हुआ। इस बार इसमें मीडिया ने भी दिलचस्पी दिखाई। 1968 के मैक्सिको ओलंपिक में मशाल को समुद्र के रास्ते ले जाया गया। 1976 के मांट्रियल ओलंपिक में कनाडा ने एथेंस से ओटावा तक मशाल के सफर का सेटेलाइट प्रसारण किया। 1994 के लिलेहैमर शीतकालीन खेलों के दौरान पैराजंपरों ने पहली बार हवा में मशाल का आदान-प्रदान किया। 2000 के सिडनी ओलंपिक में तो मशाल को ग्रेट बैरियर रीफ के पास समुद्र की गहराइयों में उतारा गया।

ओलम्पिक शुभंकर

ओलम्पिक शुभंकर 'मांडेविल्ले'

शुभंकर का अर्थ होता है कल्याणकारी। शुभंकर खेलों के प्रतिनिधि होते हैं और प्रतियोगियों और दर्शकों में उत्साह लाते हैं। इंसान या जानवर की आकृति वाला यह शुभंकर मेजबान देश की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है। ओलम्पिक खेलों का पहला शुभंकर 1968 के ओलम्पिक के दौरान आया, हालांकि ये अनाधिकारिक था। आधिकारिक रूप से ओलम्पिक खेलों का पहला शुभंकर 1972 के खेलों में शामिल हुआ। लंदन में 2012 में होने वाले ओलम्पिक खेलों का शुभंकर 'वेनलॉक’ और पैरालंपिक खेलों का ‘मांडेविल्ले' को चुना गया। इस शुभंकर को बोल्टोन के एक कारखाने में इस्पात की दो बूंदों से बनाया गया है। इसमें एक ही आंख है, जो कैमरे के लैंस की जैसी दिखती है। वेनलॉक नाम, वेनलॉक शहर के नाम पर रखा गया, जहां 19 वीं शताब्दी में वेनलॉक खेलों का आयोजन किया गया था। आधुनिक ओलम्पिक खेलों के लिए यह आयोजन एक बड़ा प्रेरणास्रोत बना था। जबकि मांडेविल्ले नाम बकिंघमशायर के स्टॉक मांडेविल्ले के नाम पर रखा गया है, जहां पहले पैरालंपिक खेल हुए थे। वेनलॉक के सबसे ऊपर एक हेड लाईट लगी है जो लंदन की काली टैक्सियों की लाइट्स से प्रेरित है। इसके चेहरे का आकार ओलम्पिक स्टेडियम की छत का है, जबकि इसके सिर का आकार ओलम्पिक खेलों में जीते जाने वाले 3 मेडल्स को दिखाता है। कैमरे के लेंस की तरह दिखती इसकी एक आँख दिखाई देने वाली सभी चीजों को कैप्चर करने के लिए है। इसके दोनों हाथों में ओलम्पिक रिंग्स ब्रेसलेट की तरह बंधे हैं। जबकि इसके शरीर पर ओलम्पिक का लोगो (प्रतीक) छपा है। वेनलॉक की तरह ही मांडेविल्ले के सबसे ऊपर लंदन की काली टैक्सियों की लाइट्स से प्रेरित एक हेड लाईट और दिखाई देने वाली सभी चीजों को कैप्चर करने के लिए कैमरे के लेंस की तरह दिखती एक आँख है। हेलमेट की तरह के इसके सिर में पैरालंपिक खेलों के तीन रंग दिखाई देते हैं। इसके हाथ में गुलाबी रंग की घड़ी भी है।

ओलम्पिक शुभंकर 'वेनलॉक'

आदर्श वाक्य

आदर्श वाक्य, जीवन का बहुत गूढ़ दर्शन प्रस्तुत करता है। जीवन की आचार संहिता का पालन करने के लिए प्रेरित करने वाला एक कथन है आदर्श वाक्य। ओलंपिक्स आदर्श वाक्य तीन लैटिन शब्दों से बना है, जो हैं – सिटिअस-अल्टिअस-फॉरटिअस (Citius- Altius- Fortius)। इन शब्दों का अर्थ है तेज़-उच्चतर-मजबूत। ये तीन शब्द खिलाडियों में उत्साह भरते हैं। खेल प्रतिभागी अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित होते हैं। इसे अच्छी तरह समझने के लिए हम ओलम्पिक के सिद्धांत से इसकी तुलना कर सकते हैं - जीवन में सबसे महत्वपूर्ण बात जीतना नहीं, बल्कि लड़ना है, जरुरी यह नहीं की आप जीते हैं जरुरी ये है कि आप अच्छी तरह खेले। ओलम्पिक वाक्य और सिद्धांत एक साथ इस तरफ इशारा करते हैं कि कुबेर्टिन ने जीवन जीने के महत्वपूर्ण सबक पर विश्वास किया और उसे आगे बढ़ाया।[1]

1896 - 1936 ओलंपिक

पहले आधुनिक ओलंपिक खेल यूनान की राजधानी एथेंस में 1896 में आयोजित किए गए। लेकिन उसके बाद भी सालों तक ओलंपिक आंदोलन का स्वरूप नहीं ले पाया। तमाम सुविधाओं की कमी, आयोजन की मेजबानी की समस्या और खिलाड़ियों की कम भागीदारी-इन सभी समस्याओं के बावजूद धीरे-धीरे ओलंपिक अपने मक़सद में कामयाब होता गया। एथेंस ओलंपिक खेलों में सिर्फ़ 14 देशों के 200 लोगों ने 43 मुक़ाबलों में हिस्सा लिया। 1896 के बाद पेरिस को ओलंपिक की मेजबानी का इंतज़ार नहीं करना पड़ा और उसे 1900 में मौक़ा मिल ही गया। पेरिस में महिला खिलाड़ियों की संख्या सिर्फ़ 20 थी। पेरिस में ओलंपिक आयोजित तो हुए लेकिन वहाँ एथेंस जैसा उत्साह देखने को नहीं मिला। 1904 के सेंट लुई ओलंपिक के बाद अमरीकी खिलाड़ियों का दबदबा ट्रैक एंड फ़ील्ड मुक़ाबलों में बढ़ता गया। शुरुआत में तो ट्रैक एंड फ़ील्ड मुक़ाबलों में सिर्फ़ अमरीकी खिलाड़ी ही भाग लेते थे। लंदन में पहली बार ओलंपिक आयोजित हुए 1908 में. पहली बार खिलाड़ियों ने अपने देश के झंडे के साथ स्टेडियम में मार्च पास्ट किया। लेकिन इसी ओलंपिक में अमरीकी खिलाड़ियों ने जजों पर आरोप लगाया कि वे अपने देश का पक्ष ले रहे हैं। 1912 में स्टॉकहोम में ओलंपिक हुए और फिर विश्व युद्ध की छाया भी इन खेलों पर पड़ी. विश्व युद्ध के बाद एंटवर्प ओलंपिक 1920 में आयोजित हुआ। दूसरे विश्व युद्ध के पहले बर्लिन में 1936 में ओलंपिक आयोजित हुआ था। इस समय तक ओलंपिक में हिस्सेदारी बढ़ गई थी। सम्मान बढ़ गया था। लेकिन विश्व राजनीति का असर भी खेलों पर देखने को मिला। विरोध हुए और बँटी हुई दुनिया का असर खेल के मैदान पर भी पड़ा।

1948 - 2004 ओलंपिक

दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1948 में ओलंपिक के आयोजन की ज़िम्मेदारी मिली लंदन को। युद्ध के ज़ख़्म भरे नहीं थे। आगे आने वाले कई ओलंपिक खेलों में बहिष्कार और विरोध का अपना ही अंदाज़ देखने को मिला। कई बार किसी ख़ास देशों को न्यौता नहीं मिला तो कई बार देशों ने ओलंपिक का ही बहिष्कार किया। भले ही विश्व युद्ध ख़त्म हो गया था। लेकिन दुनिया बँटी हुई थी। शीत युद्ध चल रहा था। दुनिया दो ख़ेमे में बँटी हुई थी। ओलंपिक भी कभी-कभी राजनीति की बिसात पर एक मोहरा साबित हुआ। 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में तो चरमपंथी हमले और इसराइली खिलाड़ियों की हत्या से सनसनी फ़ैल गई। तो दूसरी ओर तमाम विवादों के बावजूद ओलंपिक खेलों का आयोजन होता रहा। खिलाड़ी मैदान पर अपनी प्रतिभा का जादू दिखाने को बेताब दिखे और ओलंपिक पदक लेने की होड़ सी लग गई। दुनिया ने ओलंपिक खेलों में कई महान खिलाड़ियों का प्रदर्शन देखा तो कई महान खिलाड़ियों की विदाई भी दी। इस बीच प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों के ड्रग्स लेने का मामला भी सामने आया और रातों-रात स्टार बने बेन जॉनसन को अपना पदक गँवाना पड़ा। खेल की दुनिया के लिए यह बड़ा झटका था। लेकिन ओलंपिक आयोजन समिति ने अपनी ओर से इससे निपटने की कोशिश की।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ओलम्पिक प्रतीक (हिंदी) रफ़्तार डॉट इन। अभिगमन तिथि: 18 अगस्त, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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