कनडेलावोलु

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(लगभग 12.8 कि.मी.)दूर एक विशाल मंदिर बनाया जा रहा था; पत्थर ढोने वाली गाड़ियों के पहियों में तुंगभद्रा के इस पार ठहर कर गाड़ी वाले तेल डालते थे जिससे इस स्थान का नाम कनडेलावोलु पड़ गया।

  • कालांतर में कनडेलावोलु बस्ती बन गई जिसका कनडेलावोलु का अपभ्रंश रूप कुरुनूल नाम पड़ गया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 130| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार


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