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  • इस खण्ड में 'गायत्र' सम्बन्धी विशिष्ट उपासना का वर्णन है।
  • जो साधक गायत्र-साम को प्राणों में अधिष्ठित हुआ जानता है, वह प्राणवान होता है और पूर्ण आयु को भोगता है।


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