छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 खण्ड-1 से 5

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 खण्ड-1 से 5
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय तीसरा
कुल खण्ड 19 (उन्नीस)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

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छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय तीसरे का यह प्रथम से पांचवाँ खण्ड है।

  • इन खण्डों में बताया गया है कि आदित्य ही परब्रह्म है।
  • इन पांच खण्डों में आदित्य के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम व उत्तर भागों तथा उर्ध्व में स्थित रसों की व्याख्या मधुमक्खियों के छत्ते के रूपक द्वारा की गयी है।
  • ऋषि का कहना है कि सूर्य के समस्त दृश्य, स्थूल रंगों (सप्तरंग) के साथ सूक्ष्म चेतना प्रवाह से जुड़े हैं।
  • 'ॐकार' रूप यह आदित्य ही देवों का मधु है।
  • समस्त वेदों- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्वेवेद- की ऋचाएं ही मधुमक्खियां हैं, चारों वेद पुष्प हैं और सोम ही अमृत-रूप जल है।
  • इस ब्रह्माण्ड में आदित्य की जो दृश्य प्रक्रिया चल रही है, उसके पीछे चैतन्य का संकल्प अथवा आदेश ही कार्य कर रहा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

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